आग बरसाते इसी जून ने 30 बरस पहले पंजाब को ऐसा झुलसाया कि उसके जख्म आज भी सुलग रहे हैं। दमदमी टकसाल के मुखी जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके साथी स्वर्ण मंदिर में जंगी हथियारों के साथ डेरा डाले हुए थे। तबकी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें काबू करने के लिए भारतीय फौज को ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार का हुक्म दिया। तीन दिनों तक चली फौजी कार्रवाई 6 जून की सुबह जब खत्म हुई तब तक आतंकियों सहित 492 लोग मारे गए थे। इसी कार्रवाई में 83 फौजियों की जान भी गई।
सिखों के सबसे बड़े धार्मिक स्थल श्री दरबार साहिब पर हुई इस कार्रवाई के बाद कौम में भारी आक्रोश फैल गया। फौज में शामिल कई सिख जवान बागी हो गए। पांच महीनों के भीतर ही इंदिरा गांधी को उन्हीं के सिख बॉडी गार्डों ने गोली मार दी। हालात ऐसे बेकाबू हुए कि देश के कई हिस्सों में दंगे भड़क उठे।
अलग खुदमुख्तार राज्य के मंसूबे के साथ जिस खालिस्तान संघर्ष की शुरुआत करीब दशक भर पहले हुई थी वह खूनी संघर्ष में बदल गया। हिंदू-सिख विरोधी संघर्ष बन गया। मुख्यमंत्री बेअंत सिंह को उन्हीं के दफ्तर के नीचे बम से उड़ाया गया। भारतीय सेना के प्रमुख रहे जनरल एएस वैद्य की भी हत्या की गई। सेना, पुलिस, प्रशासन, नेताओं सहित इस आतंकवाद ने करीब 9800 लोगों की जान ली। हजारों बेघर, काम धंधे सब चौपट। कितने ही पलायन कर गए।
ब्ल्यू स्टार ऑपरेशन के 30 बरस बीत जाने के बाद भी क्या यह तय हो पाया कि इस खूनी संघर्ष के लिए जिम्मेदार कौन है? भिंडरावाले, जिन्होंने स्वर्ण मंदिर को इस संघर्ष के लिए इस्तेमाल किया? इंदिरा गांधी, जिन्होंने फौजी कार्रवाई की इजाजत दी? तब की सुरक्षा एजेंसियां जिन्होंने इस पवित्र स्थल के भीतर जंगी हथियार पहुंचने दिए? पंजाब के वे नेता जो सत्ता पर काबिज रहने के लिए पंथ को आगे रखते हैं? जिम्मेेदारी तय होती तो सच भी सामने आता। सच्चाई बड़े-बड़ों को लोगों के बीच निर्वस्त्र करती रही है। सियासी तौर पर यह मामला देश की दो पुरानी पार्टियों के बीच फंसा है, कांग्रेस और अकाली दल। शायद सच सामने लाने से दोनों ही बचना चाहते हैं।
जिन मुद्दों को लेकर करीब दस हजार लोगों की जान चली गई, वे आज भी जिंदा हैं। वहीं नहरों और नदियों के पानी का बंटवारा, पंजाब की अपनी राजधानी, चंडीगढ़ पंजाब को सौंपना, पंजाबी बोली वाले पड़ोसी राज्यों के सरहदी गांव पंजाब को देना। ये अब विधानसभा के सत्रों में रस्म अदायगी के लिए छोड़े गए हैं।
पंजाब के इन जख्मों से सत्ता को सींचने के लिए यादगारें बनाई गई हैं। एक दरबार साहिब परिसर में। और दूसरी दुग्र्याणा मंदिर में बनाने का एलान किया गया है। जाहिर है ब्ल्यू स्टार और उसके बाद आतंकवाद ने पंजाब को जो जख्म दिए उन्हें मिटाया नहीं जा सकता, यादगारें भी उन्हें जिंदा रखेंगी। क्या 30 बरस बाद हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि पंजाब अब एक सुखद भविष्य की ओर बढ़े? पंजाब की नई पीढ़ी नशे से मुक्त हो। उसे नौकरियों के लिए विदेशों की ओर न ताकना पड़े। उसे फिर से खुशहाली के लिए पहचाना और जाना जाए। ... याद रखा जाए।
-लेखक चंडीगढ़, पंजाब व हिमाचल, दैनिक भास्कर के स्टेट एडिटर हैं।
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