Saturday, 18 July 2015

गीतांजलि और नोबेल पुरस्कार के सौ साल @डॉ. राम रंजन सेन

रवींद्रनाथ के सुदीर्घ काव्य जीवन की कालजयी सृष्टि है गीतांजलि। यह काव्य ईश्वर के चरणों में कवि का संपूर्ण आत्मसमर्पण का काव्य है। रवींद्रनाथ के प्रसिद्ध जीवनीकार प्रभात कुमार मुखोपाध्याय ने गीतांजलि के युग को 'भगवत रसलीला उपलब्धि' का युग कहा है। सत्य और मानवता के पुजारी रवींद्रनाथ थे सर्व संस्कार मुक्त पुरुष। उन्होंने नि:संकोच कहा था-मिथ्या आमि कि संधाने जाबो काहार द्वार, पथ आमारे पथ देखाबे इ जेनेछि सार।'

वस्तुत: गीतांजलि के रचनाकाल में रवींद्रनाथ के कई प्रिय जनों का निधन हुआ था। मृत्यु को उन्होंने नजदीक से देखा। जीवन को नए रूप से देखने का अवसर मिला। जीवन के इस नए दौर में संसार के सभी बंधनों को स्वीकार करते हुए उन्होंने मुक्ति की साधना की। वस्तुत: 1901 से 1910 तक रचित नैवेद्य, उत्सर्ग, खेया, गीतांजलि, गीतिमाल्य, गीतालि काव्य का प्रकाशन हुआ था। इन काव्यों में भगवत भक्ति के लिए कवि की व्याकुलता प्रकट हुई है। यह व्याकुलता विशेष रूप से गीतांजलि के १५७ गीतों में सार्थक रूप से प्रकट हुई है। गीतांजलि काव्य ने ही पाठकों को सर्वाधिक प्रभावित किया। इसलिए इसे इस युग का सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
जाहिर है बांग्ला गीतांजलि और अंग्रेजी गीतांजलि दो अलग-अलग काव्य हैं। कुमार स्वामी, अजीत कुमार चक्रवर्ती, जगदीश चंद्र बसु, राउटेन स्टाइन एवं प्रमुख साहित्यकार रवींद्रनाथ को उनकी रचनाओं को अंग्रेजी में अनुवाद करने के लिए दबाव डाल रहे थे। रवींद्रनाथ अनुवाद के बजाय मार्च १९१३ को तीसरी बार इंग्लैंड जाने की तैयारी कर रहे थे। लेकिन शरीर अस्वस्थ होने के कारण लंदन जाना स्थगित करना पड़ा। विश्राम के लिए वे सिलाईदह (वर्तमान बांग्लादेश) गए। वहां अवकाश मिलने का कारण रवींद्रनाथ सिलाईदह में गीतांजलि तथा अन्य काव्यों की कुछ कविताओं का अंग्रेजी में सरल भाषा में गद्यानुवाद किया। उन्होंने गीतांजलि काव्य की 55 कविताएं, गीतिमाल्य की 16, नैवेद्य की 14, खेया की 11, शिशु काव्य की 3 तथा चैताली, कल्पना, स्मरण तथा उत्सर्ग काव्य की एक-एक अर्थात 103 कविताओं का अनुवाद किया। गीतांजलि ग्रंथ अंग्रेजी का नाम रखा गया 'सांग्स ऑफरिंग'। फिर वह काव्य सुइडिस एकेडमी ऑफ नोबल कमेटी के पास भेजा गया। सांग्स ऑफरिंग पढऩे के पश्चात कमेटी के सदस्यों ने रवींद्रनाथ को नोबल पुरस्कार देने का निर्णय लिया। यह शुभ समाचार 13 नवंबर, 1913 को जोड़ासांको के ठाकुरबाड़ी में पहुंचा। फिर रवींद्रनाथ के दामाद नगेंद्रनाथ ने रवींद्रनाथ को शांतिनिकेतन में टेलिग्राम से अवगत कराया। शांतिनिकेतन में यह समाचार पहुंचते ही शांतिनिकेतन के सभी आश्रमिक ने गुरुदेव को प्रणाम कर अपनी खुशी जाहिर की। पूरे भारत से अभिनंदन पत्र आने का तांता लग गया। कोलकाता से एक स्पेशल ट्रेन से अनगिनत भक्त शांति निकेतन आकर रवींद्रनाथ को बधाई देने लगे। फिर 27 जनवरी, 1914 को लॉर्ड कार्माइकल ने एक भव्य समारोह में रवींद्रनाथ को नोबल पुरस्कार का संश पत्र, स्मृति फलक तथा एक लाख बीस हजार रुपए प्रदान किए। दैनंदिन जीवन में जब विभिन्न समस्याओं से विभ्रांत होते हैं, तब गीतांजलि सिखाती है, 'जब जीवन शुष्क हो जाय, तब तू करुणा की धार बनकर आना।'
झारखंड के प्रसिद्ध बांग्ला साहित्यकार व भाषाविद्। 

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