Wednesday, 22 July 2015

के. कामराज की कृपा से बने थे लाल बहादुर शास्त्री पीएम! @फ्रेंकलिन निगम

वर्ष 1964 में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का देहांत हुआ तो देशभर में मातम के साथ एक ही सवाल पूछा जा रहा था कि नेहरू के बाद कौन प्रधानमंत्री पद पर बैठेगा. कौन नेहरू की विरासत को संभालेगा?

सवाल अहम था. पंडित नेहरू के देहांत के 2 घंटे बाद ही गुलजारी लाल नंदा को केयरटेकर प्रधानमंत्री तो बना दिया गया. लेकिन प्रधानमंत्री के दावेदारी को लेकर ड्रामा शुरू हो चुका था. कांग्रेस पार्टी के सामने प्रधानमंत्री पद के लिए कई बड़े नाम थे और कई दावेदार भी. किसी एक को कैसे चुना जाए इसका फैसला करना मुश्किल था.

उन दिनों के. कामराज कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष थे. कामराज कांग्रेस के अंदर एक बड़ा नाम था. नेहरू के देहांत से एक साल पहले कामराज ने मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था और उनके इस्तीफे के बाद 6 केन्द्रीय मंत्री और कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी कुर्सी छोड़नी पड़ी. मकसद था पार्टी को मजबूत करना. पद छोड कर पार्टी में काम करने की इस योजना को ही कामराज प्लान कहा गया. 27 मई 1964 के बाद कामराज के सामने कांग्रेस पार्टी के अंदर नेहरू का उत्तराधिकारी चुनने की चुनौती थी.

नेहरू के बाद प्रधानमंत्री बनने का सपना कई बड़े नेता देख रहे थे. कांग्रेस नेता मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बनने की लालसा लिए अपने आप को सबसे बड़ा दावेदार मान रहे थे. केयरटेकर प्रधानमत्री गुलजारीलाल नंदा भी वरिष्ठता के आधार पर प्रधानमंत्री बनना चाहते थे. लेकिन कामराज और उनके सिंडीकेट ग्रुप के सदस्य लाल बहादुर शास्त्री को इस पद के लिए सही उम्मीदवार मान रहे थे.

दूसरी तरफ मोरारजी चाहते थे कि वोटिंग के जरिए नए नेता का चुनाव किया जाए. जबकि लाल बहादुर शास्त्री और कामराज का मानना था कि वोटिंग से कांग्रेस की छवि खराब हो सकती है.

इसलिए शास्त्री ने पत्रकार कुलदीप नैयर के जरिए मोरारजी के पास संदेश भिजवाया कि जयप्रकाश नारायण और इंदिरा गांधी में से किसी एक का चुनाव कर लिया जाना चाहिए.

मोरारजी देसाई ने पत्रकार कुलदीप नैयर से कहा कि इंदिरा एक छोटी-सी छोकरी है और जेपी भ्रमित आदमी. इसलिए वे इन दोनों नामों का समर्थन नहीं करेंगे. मोरारजी ने कुलदीप नैयर से साफ कह दिया कि वोटिंग से बचने का एक ही तरीका है कि पार्टी उन्हें प्रधानमंत्री पद का एकमात्र उम्मीदवार मान ले. कामराज और उनका ग्रुप मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनते देखना नहीं चाहता थे.

कांग्रेस पार्टी के अंदर प्रधानमंत्री पद को लेकर ड्रामा बढ़ता ही जा रहा था. देश की बागडोर किसे दी जाए ये फैसला अब कामराज को करना था. साल 1963 के सितंबर महीने में कामराज ने तिरुपति में सिंडिकेट गैर हिंदी भाषी राज्यों के कई कांग्रेसी नेताओं के साथ अगले प्रधानमंत्री के नाम पर चर्चा की. इस चर्चा में सिंडिकेट संजीव रेड्डी, निजालिंगप्पा, एस के पाटिल और अतुल्य घोष भी शामिल हुए. इस बैठक में मोरारजी देसाई, लालबहादुर शास्त्री, गुलजारी लाल नंदा, इंदिरा गांधी और जगजीवन राम के नामों पर भी गौर किया गया. लेकिन पंडित नेहरू का उत्तराधिकारी कौन होगा इस पर फैसला नहीं हो पाया.

पंडित नेहरू के देहांत के तीन दिन बाद देश का भविष्य तय करने के लिये कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य कामराज के घर पर इकट्टा हुये. पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरो भी इस बैठक में शामिल थे. मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरो, मोरारजी देसाई के समर्थक थे और कामराज के विरोधी भी. मोराजी देसाई और उनके समर्थक चाहते थे कि प्रधानमंत्री चुनने का काम संसदीय दल करे ना कि पार्टी. लेकिन कामराज ने कांग्रेस वर्किग कमेटी का वर्चस्व कायम रखा . और नेताओं की राय जानने के साथ-साथ कांग्रेस में आम राय बनाने की जिम्मेदारी भी खुद अपने उपर ले ली. अगले तीन दिन तक देश भर के कांग्रेसी नेताओं से मिलकर कामराज आमराय बनाने में जुटे रहे.

आखिरकार 1 जून 1964 की रात कामराज ने मोरारजी देसाई से उनके घर पर जाकर मुलाकात की और कांग्रेसी नेताओं की आमराय के बारे में मोरारजी को बता दिया. कामराज की बात सुनकर मोरारजी खफा भी हुए लेकिन थोड़ी ना-नुकर के बाद मोरारजी ने कांग्रेस पार्टी के बहुमत की राय को मान लिया. कामराज ने मोरारजी से मुलाकात के बाद कांग्रेस पार्टी की राय का एलान कर दिया. कांग्रेस के नए नेता और प्रधानमंत्री के पद के लिए लाल बहादुर शास्त्री नाम तय कर लिया गया.

लाल बहादुर शास्त्री को औपचारिक रुप से 2 जून 1964 को कांग्रेस संसदीय दल ने अपना नेता और देश का प्रधानमंत्री चुन लिया. कामराज ने अपीन शातिर राजनीति से मोरारजी देसाई को किनारे कर लाल बहादुर शास्त्री को अगला प्रधानमंत्री बनवा दिया था. लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री के पद पर 18 महीने तक रहे. अपने इस छोटे से कार्यकाल में शास्त्री ने भारत के आर्थिक संकट और पाकिस्तान से युद्ध जैसे हालात का सामना किया और देश को जय जवान, जय किसान का अमर नारा दिया.

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