अगर दुनिया के सर्वकालिक महान क्रिकेटरों की एक सूची बनाई जाए, तो उसमें सचिन तेंदुलकर का नाम सबसे ऊपर दिखेगा। अपने करियर की शुरुआत से लेकर अंत तक, (1989 से 2013) वह निर्विवाद रूप से बेहतरीन प्रदर्शन करते रहे और टीम इंडिया के श्रेष्ठ बल्लेबाज बने रहे। वह अपने खेल के प्रति ईमानदार ही नहीं थे, बल्कि जब तक क्रिकेट खेलते रहे, तब तक किसी तरह के विवाद में नहीं पड़े। बॉल टैंपिरग का उन पर एक आरोप लगा भी, तो सिरे से खारिज हो गया। भारतीय टीम में उनका योगदान अतुलनीय रहा है और यह कहने में मुझे कोई परहेज नहीं कि सचिन तेंदुलकर एक महानतम खिलाड़ी ही नहीं, महानतम इंसान भी हैं। इसलिए उनके कहे हुए और लिखे हुए पर सबसे अधिक भरोसा स्वाभाविक है।
खेल से संन्यास के करीब एक साल बाद उनकी आत्मकथा प्लेइंग इट माई वे आई है, जिसमें सचिन ने अपने समय के क्रिकेट के सच को रखा है। ये सच उनके अपने हैं, इसलिए यह जरूरी भी नहीं कि सब उनके सच से सहमत हों। लेकिन जहां तक ग्रेग चैपल प्रकरण का सवाल है, तो मैं यह नहीं कह सकता कि सचिन ने टीम में रहते हुए या साल 2006-07 में ही इस मुद्दे को क्यों नहीं उठाया? अब लिखने का मकसद क्या सिर्फ किताब की बिक्री बढ़ाना है? ऐसा इसलिए कि मैं उन्हें निजी तौर पर जानता हूं और मुझे यह भी मालूम है कि उन्होंने भारतीय टीम के तत्कालीन कोच ग्रेग चैपल के खिलाफ स्टैंड लिया था।
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को तेंदुलकर ने ग्रेग चैपल के व्यवहार के बारे में बताया था। उन्होंने यह कहा कि टीम के वरिष्ठ खिलाडिम्यों को प्रताड़ित किया जा रहा है, ड्रेसिंग रूम का माहौल एकदम खराब है और जो जिस सम्मान के हकदार हैं, उन्हें वह सम्मान नहीं मिल रहा है। सचिन का इशारा इस ओर था कि कोच ग्रेग चैपल खिलाड़ियों की ‘बुली’ कर रहे हैं। इसलिए वह चाहते थे कि वर्ल्ड कप 2007 के लिए बतौर कोच ग्रेग चैपल को आराम दिया जाए।
मई, 2005 से विश्व कप तक का जो समय था, वह भारतीय टीम के लिए अच्छा नहीं रहा था। हम तक यह सुगबुगाहट पहुंचती रही कि खिलाड़ियों के बीच अहं का टकराव बढ़ गया है। ग्रेग चैपल, तेंदुलकर और कुछ वरिष्ठ खिलाड़ियों के बीच यह ‘इगो क्लैश’काफी है। चूंकि दो नाम पहले से ही सामने हैं, बाकी के नाम मैं नहीं लूंगा, क्योंकि विवाद बढ़ाने का कोई मतलब नहीं है। हम यह नहीं भूल सकते कि ग्रेग चैपल भी एक महान खिलाड़ी थे। वैसे, ग्रेग चैपल की बातचीत वरिष्ठ खिलाड़ियों से कई-कई दिनों तक नहीं होती थी। संवादहीनता किसी भी टीम के लिए लाभकारी नहीं होती। इसलिए ऐसा नहीं है कि सचिन तेंदुलकर आज ये सब बोल रहे हैं, बल्कि टीम हित में उन्होंने पहले भी आवाज उठाई थी।
बहरहाल, इस प्रकरण को ग्रेग चैपल के नजरिये से भी देखने की जरूरत है। वह क्रिकेट में ‘ऑस्ट्रेलियन वे ऑफ वर्किंग’ को मानते थे। हमारे लहजे में यह ‘मुंहफट शैली’ है। चूंकि उनका रहन-सहन और परवरिश ही ऐसी थी कि जो मन में आया, वह सीधे बोल दिया, इसलिए वह भारतीय खिलाड़ियों को उनकी खामियां गिनाने और इस कारण कोसने से नहीं चूकते थे। इस शैली को ऐसे समझें कि ग्रेग चैपल किसी बात के लिए सीधे ‘नहीं’ बोलते थे, तो यहां घुमा-फिराकर ‘न’ कहने का चलन था। हमारे यहां मना इस तरह किया जाता है कि सामने वाला आहत न हो। इस कारण से ग्रेग चैपल भारतीय खिलाड़ियों को अपरिपक्व मानते थे और हमारे खिलाड़ी उन्हें रिंग मास्टर बताते थे।
ऑस्ट्रेलिया में कोच का काम न सिर्फ अपनी टीम को लगातार जीत दिलाना होता है, बल्कि अगली पीढ़ी की टीम तैयार करना भी होता है। ग्रेग चैपल यहां ‘बी’ टीम बनाना चाहते थे। तब भारतीय टीम के ज्यादातर खिलाड़ी 28-29 साल के हो चले थे, इसलिए वह युवाओं को अधिक मौका देना चाहते थे। उन्होंने वेणुगोपाल, रैना वगैरह पर भरोसा किया। किंतु दुर्भाग्य से इनका यह प्रयास उस समय नाकाम रहा, या यों कहें कि वरिष्ठ खिलाडिम्यों का तब कोई विकल्प नहीं था। बाद में उन्हें गांगुली, जहीर खान को वापस लाना पडम। किसी को दोषी ठहराना सही नहीं होता है। एक पेशेवर खिलाडम्ी से यह उम्मीद की जाती है कि वह कठिन हालात में अपना खेल दिखाए। इसलिए सिर्फ यह कह देना कि ग्रेग चैपल की वजह से यह हुआ या वह हुआ, सही नहीं होगा। बल्कि ऐसे समय में हमारे वरिष्ठ खिलाडिम्यों को टीम का खेवनहार बनना चाहिए था। लेकिन यह नहीं हुआ।
सचिन ने यह जरूर बताया कि वेस्ट इंडीज दौरे के बाद चैपल, राहुल द्रविड़ की जगह उन्हें कप्तान बनाना चाहते थे। इसे इस नजरिये से देखा जा सकता है कि सचिन तेंदुलकर का जूनियर खिलाड़ियों से अच्छा बनता था और जहां तक मेरे पास जानकारी है, कप्तान राहुल द्रविड़ मैच के बाद अन्य खिलाड़ियों से अलग-थलग रहा करते थे। ग्रेग चैपल को लगा होगा कि यह टीम-हित में नहीं है। इसलिए उन्होंने कप्तानी को लेकर सचिन के बारे में सोचा होगा। एक महान खिलाड़ी किसी मुद्दे को अलग नजरिये से देखता है और चैपल ने भी यही किया होगा।
क्रिकेट प्रेमी शायद इससे वाकिफ न हों कि ग्रेग चैपल को लाने वाले वही सीनियर खिलाड़ी थे, जो बाद में उनके विरोध में आ गए। यही बात ग्रेग चैपल की कोचिंग के खाते में जाती है और विरोध में भी।
सचिन तेंदुलकर ने अपनी किताब में कपिल देव की कोचिंग पर भी सवाल उठाए। उन्होंने लिखा है कि ऑस्ट्रेलियाई मुकाबलों में कपिल देव रणनीति बनाने में मदद नहीं करते थे। लेकिन यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि खेल में सबके काम करने का अलग-अलग तरीका होता है, कोई एक प्रारूप तय नहीं होता। जैसे, भारतीय टीम के मौजूदा कप्तान धौनी सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर लेते हैं, वह कोच से रणनीति की उम्मीद नहीं करते। अगर सचिन तेंदुलकर को लगता था कि कोच की राय महत्वपूर्ण है, तो उन्हें कपिल देव से राय मांगनी चाहिए थी। उनके इस बात से मैं सहमत नहीं कि ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सब कुछ मेरे ऊपर ही छोड़ दिया गया। हालांकि, मैं यहां कपिल देव का भी बचाव नहीं करना चाहूंगा। वह महान ऑलराउंडर थे, उन्हें भी सामने आना चाहिए था।
मास्टर ब्लास्टर के दौर में सबसे बड़ा विवाद मैच फिक्सिंग का रहा। क्रिकेट प्रेमी सचिन से यह जानना चाहते थे कि भारतीय टीम पर यह ग्रहण कैसे लगा? उनसे उम्मीद थी कि वह इसकी परत-दर-परत खोलेंगे, क्योंकि उनके लिखे हुए को लोग सच मानते। लेकिन सचिन ने उन सबको निराश किया और इस मुद्दे को अपनी तरफ से अनकहा ही रखा। यह चुप्पी समय के साथ सबको खलती जाएगी।
खेल से संन्यास के करीब एक साल बाद उनकी आत्मकथा प्लेइंग इट माई वे आई है, जिसमें सचिन ने अपने समय के क्रिकेट के सच को रखा है। ये सच उनके अपने हैं, इसलिए यह जरूरी भी नहीं कि सब उनके सच से सहमत हों। लेकिन जहां तक ग्रेग चैपल प्रकरण का सवाल है, तो मैं यह नहीं कह सकता कि सचिन ने टीम में रहते हुए या साल 2006-07 में ही इस मुद्दे को क्यों नहीं उठाया? अब लिखने का मकसद क्या सिर्फ किताब की बिक्री बढ़ाना है? ऐसा इसलिए कि मैं उन्हें निजी तौर पर जानता हूं और मुझे यह भी मालूम है कि उन्होंने भारतीय टीम के तत्कालीन कोच ग्रेग चैपल के खिलाफ स्टैंड लिया था।
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को तेंदुलकर ने ग्रेग चैपल के व्यवहार के बारे में बताया था। उन्होंने यह कहा कि टीम के वरिष्ठ खिलाडिम्यों को प्रताड़ित किया जा रहा है, ड्रेसिंग रूम का माहौल एकदम खराब है और जो जिस सम्मान के हकदार हैं, उन्हें वह सम्मान नहीं मिल रहा है। सचिन का इशारा इस ओर था कि कोच ग्रेग चैपल खिलाड़ियों की ‘बुली’ कर रहे हैं। इसलिए वह चाहते थे कि वर्ल्ड कप 2007 के लिए बतौर कोच ग्रेग चैपल को आराम दिया जाए।
मई, 2005 से विश्व कप तक का जो समय था, वह भारतीय टीम के लिए अच्छा नहीं रहा था। हम तक यह सुगबुगाहट पहुंचती रही कि खिलाड़ियों के बीच अहं का टकराव बढ़ गया है। ग्रेग चैपल, तेंदुलकर और कुछ वरिष्ठ खिलाड़ियों के बीच यह ‘इगो क्लैश’काफी है। चूंकि दो नाम पहले से ही सामने हैं, बाकी के नाम मैं नहीं लूंगा, क्योंकि विवाद बढ़ाने का कोई मतलब नहीं है। हम यह नहीं भूल सकते कि ग्रेग चैपल भी एक महान खिलाड़ी थे। वैसे, ग्रेग चैपल की बातचीत वरिष्ठ खिलाड़ियों से कई-कई दिनों तक नहीं होती थी। संवादहीनता किसी भी टीम के लिए लाभकारी नहीं होती। इसलिए ऐसा नहीं है कि सचिन तेंदुलकर आज ये सब बोल रहे हैं, बल्कि टीम हित में उन्होंने पहले भी आवाज उठाई थी।
बहरहाल, इस प्रकरण को ग्रेग चैपल के नजरिये से भी देखने की जरूरत है। वह क्रिकेट में ‘ऑस्ट्रेलियन वे ऑफ वर्किंग’ को मानते थे। हमारे लहजे में यह ‘मुंहफट शैली’ है। चूंकि उनका रहन-सहन और परवरिश ही ऐसी थी कि जो मन में आया, वह सीधे बोल दिया, इसलिए वह भारतीय खिलाड़ियों को उनकी खामियां गिनाने और इस कारण कोसने से नहीं चूकते थे। इस शैली को ऐसे समझें कि ग्रेग चैपल किसी बात के लिए सीधे ‘नहीं’ बोलते थे, तो यहां घुमा-फिराकर ‘न’ कहने का चलन था। हमारे यहां मना इस तरह किया जाता है कि सामने वाला आहत न हो। इस कारण से ग्रेग चैपल भारतीय खिलाड़ियों को अपरिपक्व मानते थे और हमारे खिलाड़ी उन्हें रिंग मास्टर बताते थे।
ऑस्ट्रेलिया में कोच का काम न सिर्फ अपनी टीम को लगातार जीत दिलाना होता है, बल्कि अगली पीढ़ी की टीम तैयार करना भी होता है। ग्रेग चैपल यहां ‘बी’ टीम बनाना चाहते थे। तब भारतीय टीम के ज्यादातर खिलाड़ी 28-29 साल के हो चले थे, इसलिए वह युवाओं को अधिक मौका देना चाहते थे। उन्होंने वेणुगोपाल, रैना वगैरह पर भरोसा किया। किंतु दुर्भाग्य से इनका यह प्रयास उस समय नाकाम रहा, या यों कहें कि वरिष्ठ खिलाडिम्यों का तब कोई विकल्प नहीं था। बाद में उन्हें गांगुली, जहीर खान को वापस लाना पडम। किसी को दोषी ठहराना सही नहीं होता है। एक पेशेवर खिलाडम्ी से यह उम्मीद की जाती है कि वह कठिन हालात में अपना खेल दिखाए। इसलिए सिर्फ यह कह देना कि ग्रेग चैपल की वजह से यह हुआ या वह हुआ, सही नहीं होगा। बल्कि ऐसे समय में हमारे वरिष्ठ खिलाडिम्यों को टीम का खेवनहार बनना चाहिए था। लेकिन यह नहीं हुआ।
सचिन ने यह जरूर बताया कि वेस्ट इंडीज दौरे के बाद चैपल, राहुल द्रविड़ की जगह उन्हें कप्तान बनाना चाहते थे। इसे इस नजरिये से देखा जा सकता है कि सचिन तेंदुलकर का जूनियर खिलाड़ियों से अच्छा बनता था और जहां तक मेरे पास जानकारी है, कप्तान राहुल द्रविड़ मैच के बाद अन्य खिलाड़ियों से अलग-थलग रहा करते थे। ग्रेग चैपल को लगा होगा कि यह टीम-हित में नहीं है। इसलिए उन्होंने कप्तानी को लेकर सचिन के बारे में सोचा होगा। एक महान खिलाड़ी किसी मुद्दे को अलग नजरिये से देखता है और चैपल ने भी यही किया होगा।
क्रिकेट प्रेमी शायद इससे वाकिफ न हों कि ग्रेग चैपल को लाने वाले वही सीनियर खिलाड़ी थे, जो बाद में उनके विरोध में आ गए। यही बात ग्रेग चैपल की कोचिंग के खाते में जाती है और विरोध में भी।
सचिन तेंदुलकर ने अपनी किताब में कपिल देव की कोचिंग पर भी सवाल उठाए। उन्होंने लिखा है कि ऑस्ट्रेलियाई मुकाबलों में कपिल देव रणनीति बनाने में मदद नहीं करते थे। लेकिन यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि खेल में सबके काम करने का अलग-अलग तरीका होता है, कोई एक प्रारूप तय नहीं होता। जैसे, भारतीय टीम के मौजूदा कप्तान धौनी सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर लेते हैं, वह कोच से रणनीति की उम्मीद नहीं करते। अगर सचिन तेंदुलकर को लगता था कि कोच की राय महत्वपूर्ण है, तो उन्हें कपिल देव से राय मांगनी चाहिए थी। उनके इस बात से मैं सहमत नहीं कि ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सब कुछ मेरे ऊपर ही छोड़ दिया गया। हालांकि, मैं यहां कपिल देव का भी बचाव नहीं करना चाहूंगा। वह महान ऑलराउंडर थे, उन्हें भी सामने आना चाहिए था।
मास्टर ब्लास्टर के दौर में सबसे बड़ा विवाद मैच फिक्सिंग का रहा। क्रिकेट प्रेमी सचिन से यह जानना चाहते थे कि भारतीय टीम पर यह ग्रहण कैसे लगा? उनसे उम्मीद थी कि वह इसकी परत-दर-परत खोलेंगे, क्योंकि उनके लिखे हुए को लोग सच मानते। लेकिन सचिन ने उन सबको निराश किया और इस मुद्दे को अपनी तरफ से अनकहा ही रखा। यह चुप्पी समय के साथ सबको खलती जाएगी।
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