बिपिन चंद्रा से मेरी पहली मुलाकात 1959 में हुई। वह हिंदू कॉलेज में लेक्चरर थे। उसी समय मुझे अंदाजा हो गया कि उनकी सिर्फ इतिहास में ही नहीं, बल्कि अर्थशास्त्र में भी बड़ी नजर है। उनकी बातों से ही कोई भी आदमी बहुत-सा ज्ञान हासिल कर सकता है। वह कांगड़ा के थे और अमेरिका से डिग्री हासिल करके आए थे। वर्ष 1966 में उनकी मशहूर किताब ‘राइज ऐंड ग्रोथ ऑफ इकॉनोमिक नेशनलिज्म इन इंडिया 1880-1905’ आई, और जल्दी ही सभी ने मान लिया कि इस विषय पर यह किसी के भी आखिरी शब्द हैं।
इस किताब में अपने तर्कों, तथ्यों और विश्लेषण से उन्होंने यह साबित किया कि राष्ट्रीय आंदोलन आर्थिक मांगों के साथ और ब्रिटेन की भारत में लूट-खसोट के साथ आगे बढ़ा। इसी के साथ बिपिन चंद्र का आधुनिक आर्थिक इतिहास में भी बड़ा योगदान है। उन्होंने अमेरिकी इतिहासकार मौरिस टी मौरिस की उन्नीसवीं शताब्दी के बारे में कायम विचारों की आलोचना की। दरअसल मौरिस यह कह रहे थे कि भारत के गरीब होने में अंग्रेजों की कोई जिम्मेदारी नहीं है। लेकिन बिपिन चंद्रा ने तथ्यों और सुबूतों के आधार पर उसे गलत साबित किया। इसके अलावा बिपिन चंद्रा ने सांप्रदायिकता के खिलाफ भी पुरजोर ढंग से आवाज उठाई। उन्हें यह लगा कि इतिहास को ठीक तरह से स्कूल-कॉलेजों में पढ़ाया जाना चाहिए। इसीलिए उन्होंने एनसीईआरटी के तहत ‘आधुनिक भारत’ के नाम से किताब लिखी, जिसे अब तक पढ़ाया जाता है। बच्चों को बेहद सरल और रोचक शैली में आधुनिक भारत के इतिहास से रूबरू कराने के दृष्टिकोण से यह किताब शानदार है।
बिपिन चंद्रा ने यह भी सोचा कि भारत के राष्ट्रीय आंदोलन पर काम होना चाहिए। इसी के तहत उन्होंने ‘इंडियन स्ट्रगल फॉर इंडिपेंडेंस’ नाम से किताब लिखी। इस किताब में उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन के आर्थिक पहलू को भी छुआ, जो कि बहुत ही विलक्षण बात है, जबकि अधिकांश किताबों में राष्ट्रीय आंदोलन के राजनीतिक पहलुओं को ही उभारा जाता है। इसके बाद उन्होंने एक और किताब लिखी, जिसका जिक्र करना मैं जरूरी समझता हूं। वह थी ‘आजादी के बाद भारत’।
बिपिन चंद्रा आधुनिक भारत के राजनीतिक और आर्थिक इतिहास के विशेषज्ञ रहे हैं। भारत के राष्ट्रीय आंदोलन पर उनका शानदार काम है। आधुनिक भारत में महात्मा गांधी के योगदान को उन्होंने जिस ढंग से रेखांकित किया है, उसे भी कोई भूल नहीं सकता।
अपने जीवन के आखिरी वर्षों में वह नेशनल बुक ट्रस्ट (एनबीटी) के चेयरमैन भी रहे। उस हैसियत से उन्होंने बुक ट्रस्ट का कार्यक्रम ऐसा रखा कि देश के हर वर्ग के लिए किताबें छपीं। कुछ साल से उनकी तबियत खराब चल रही थी। आज वह हम सबको छोड़ गए हैं। एक दोस्त की हैसियत से मैं यह कह सकता हूं कि बिपिन चंद्रा मुश्किल से मुश्किल समय में भी हंसने वाले इन्सान थे। हमेशा चुटकुले सुनाना उनकी आदत में शुमार था। विचारधारा के स्तर पर उनका किसी से भले ही मतभेद हो,लेकिन व्यक्तिगत तौर पर उनके प्रेम और अपनेपन में कभी कोई बदलाव नहीं आता था। उनके निधन से बौद्धिक जगत को ऐसी क्षति हुई है, जिसकी भरपाई नहीं हो सकती। उनकी लिखी पुस्तकें और विचार सदियों तक हम दुनिया को ज्ञान की रोशनी देते रहेंगे।
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