Sunday, 12 July 2015

हमें समझने होंगे सम्मान के मायने @आश नारायण राय

19वीं सदी के पहले उत्तराद्र्ध में आयरिश राजनेता डेनियल ओ कोनेल ने कहा था, 'अपने आत्मसम्मान की कीमत पर कोई भी व्यक्ति महान नहीं हो सकता... और कोई भी देश अपनी आजादी की कीमत पर महान नहीं हो सकता।' आज हमारा राजनीतिक वर्ग राष्ट्रीय नायकों, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और राजनीतिक विरासत पर एक-दूसरे से बुरी तरह से भिड़ा हुआ है। स्वतंत्रता आंदोलन के नायकों गांधी जी, सुभाष चंद्र बोस, नेहरू, पटेल, अंबेडकर, राजाजी ने एक साथ मिलकर आजादी दिलाने के साथ, राजनीतिक और संस्थागत दृष्टि और सामूहिक समझदारी से देश को सही दिशा दिखाने का काम किया। यह एक खुला रहस्य है कि गांधी जी के अंबेडकर, सुभाष बोस और नेहरू के साथ कई मसलों पर मतभेद थे लेकिन उनके बीच कटुता और सार्वजनिक रूप से कभी झगड़ा नहीं हुआ। आज वह महान परंपरा काफी पीछे छूट गई प्रतीत होती है।

हम नायकों की पूजा करने वाले देश बन चुके हैं लेकिन हम उन्हीं की पूजा करते हैं जिनके विचारों को अपनी राजनीतिक अनिवार्यता के लिए तोडऩे-मरोडऩे में सुविधा होती है। डॉ अंबेडकर ने संविधान सभा में अपने अंतिम भाषण में 'भक्ति और नायकों की पूजा' के खतरे के संबंध में चेताया था। लेकिन हमने उनकी सलाह पर कोई गौर नहीं किया। गांधी जी और बोस से लोग प्यार करते थे और अंग्रेज उनसे डरते थे। लेकिन कई मसलों पर गांधी जी उनसे सहमत नहीं थे। 1939 में जब पट्टाभि सीतारमैया को हराकर बोस कांग्रेस अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे तो गांधी जी ने उनकी जीत को अपनी हार कहा था। बाद में गांधी जी की भावनाओं का सम्मान करते हुए बोस ने इस्तीफा दे दिया था। पटेल, राजाजी और बीसी रॉय नेहरू के प्रति अनुराग रखते थे। विपक्ष के प्रमुख नेताओं एसपी मुखर्जी, राम मनोहर लोहिया, आचार्य कृपलानी और एके गोपालन के प्रति नेहरू और अन्य कांग्रेसी नेता सम्मान का भाव रखते थे।

आज मायावती की बहुजन समाज पार्टी अंबेडकर को केवल एक दलित नेता के रूप में पेशकर उनकी विरासत को हथियाने की कोशिश करती है। कांग्रेस भी केवल गांधी और नेहरू को अपना नायक मानते हुए उनकी विरासत को हथियाने की कोशिश करती है। यह दुखद है लेकिन इससे भी ज्यादा दुखद मौजूदा प्रवृत्ति है जिसमें इन नायकों को इस तरह एक-दूसरे के खिलाफ पेश किया जा रहा है जैसे कि वे एक-दूसरे के दुश्मन हैं। नेहरू-पटेल के मसले से इसको समझा जा सकता है। कांग्रेसी नेता विशेष रूप से गांधी-नेहरू परिवार के वंशजों ने पटेल के योगदान को ज्यादा तवज्जो नहीं दी, जबकि भाजपा पटेल की विरासत को कब्जाने के लिए एकदम विपरीत दूसरे सिरे पर पहुंच गई है। वास्तविकता में नेहरू और पटेल मतभेदों के बावजूद एक-दूसरे का बेहद सम्मान करते थे। जैसा कि गोपाल कृष्ण गांधी ने कहा है, 'दोनों नेताओं ने मुद्दों पर अपनी भिन्न राय को छुपाया नहीं। लेकिन एक-दूसरे को लिखे खत में दोनों ही एक-दूसरे के हाथों में सत्ता छोडऩे का आग्रह करते रहे।' सितंबर, 1950 में नासिक के अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन में पटेल ने गुजरात से आए प्रतिनिधिमंडल से कहा, 'वह काम करिये जो जवाहरलाल ने कहा है।'

23 नवंबर, 1950 को बीमार पटेल को देखने नेहरू आए। सरदार पटेल ने नेहरू से कहा, 'मुझे लगता है कि आपका मुझ पर विश्वास कम हो रहा है।' नेहरू ने जवाब दिया, 'मेरा खुद पर ही विश्वास कम हो रहा है।' यह दोनों के एक-दूसरे के प्रति भरोसे को दर्शाता है। गोपाल कृष्ण गांधी के मुताबिक देश को दोनों की जरूरत थी, 'नेहरू ने हमारी बहुलता की सुरक्षा की तो पटेल ने अखंडता की रक्षा की।'

हमारे महान नेताओं के बारे में निष्पक्ष होने का वक्त आ चुका है। उन्होंने भी गलतियां की हैं। जैसा कि गांधी जी ने कहा है, 'स्वतंत्रता का तब तक कोई मूल्य नहीं है जब तक उसमें गलतियां करने की आजादी नहीं है।' अंबेडकर के शब्दों में, 'भारतीय राजनीति में नायक पूजा ने जिस स्तर पर काम किया है, उतनी व्यापकता में शायद ही किसी अन्य देश की राजनीति में इसकी भागेदारी रही है।'

नेहरू की विरासत पर कांग्रेस और भाजपा के बीच चल रही तनातनी हमारे प्रथम प्रधानमंत्री के लिए अच्छा नहीं है। यदि कांग्रेस पार्टी का 'नेहरू के स्वामित्व' का दावा गलत है तो भाजपा के पटेल पर एकाधिकार की कोशिश भी सही नहीं है। यदि एक पार्टी कहती है कि नेहरू आधुनिक भारत के निर्माता थे तो दूसरी नेहरू के बजाय पटेल को 'वास्तविक' निर्माता ठहराती है। राजनीतिक फायदे के लिए इतिहास को तोडऩा-मरोडऩा उचित नहीं है। इसी तरह आधुनिक भारत के दोनों महान नायकों के मतभेदों को आवश्यकता से अधिक संदर्भ में पेश करना उचित नहीं है। यदि वे आज जीवित होते तो इस तरह के हास्यास्पद ढंग से पेश किए जाने पर शर्मिंदा होते।

स्वतंत्रता संघर्ष आंदोलन के दौरान भारत के पास नेताओं की पूरी जमात थी जिनकी प्रतिबद्धता, कड़ी मेहनत और दृष्टि का लाभ आजादी के बाद भी देश को मिला। हमें उस विरासत को संरक्षित करने के बारे में सीखना होगा। इस संदर्भ में गांधी जी ने 1937 में जो लिखा, हमें उसको याद रखना चाहिए, 'मेरा लेखन मेरे साथ ही दफन कर दिया जाना चाहिए। मैंने जो कहा या लिखा है उसे नहीं बल्कि जो किया है उसे याद रखा जाएगा।' गांधी जी और अन्य भारतीय नायकों का जीवन उनकी महानतम विरासत है। हमें उसमें हेरा-फेरी नहीं करनी चाहिए।

No comments:

Post a Comment