13 अक्टूबर को कोलंबस दिवस है। इस दिन कई देश जश्न मनाते हैं कि कोलंबस ने अमेरिका को खोजा। भारत को भी खोजा था वास्को डी गामा ने, ऐसा मुझे स्कूल के इतिहास में सिखाया गया था। तब मैंने नादानी से पूछ लिया था - 'भारत की 'खोज" होने से पहले भारतीय कहां रहते थे?" शायद हमें कहना चाहिए कि वास्को ने यूरोप से भारत का समुद्री मार्ग खोजा? तथ्यों की जांच के बिना अटकलों से इतिहास का अनुमान लगाना खतरनाक है।
भारत की 'खोज" के लिए वास्को ने नौवहन की कौन-सी नई विधि अपनाई? दरअसल, वास्को तट से चिपका रहा और अफ्रीकी केप से घूमने के बाद भी उसने यही जारी रखा। लेकिन जिन अफ्रीकियों को उसने अज्ञानी और बर्बर कहा, वे उससे ज्यादा जानते थे। उन्होंने बताया कि ऐसे तो वह लाल सागर पहुंच जाएगा, जहां अरब हुकूमत कायम है। मसालों के व्यापार के लिए अरबों को दरकिनार कर हिंद पहुंचने के वास्को के मकसद के लिए उसे खुले समुद्र से जाना चाहिए। उस महान नेविगेटर को 'अज्ञात" सागर पार करना नहीं आता था।
'बर्बरों" के सहारे वास्को ने अफ्रीका में एक 'खोज" जरूर की। एक हिंदुस्तानी नेविगेटर की, जो उसे अफ्रीका के तट से कालीकट लाया। वास्को ने उसका नाम 'मालेमो काना" बताया। ('मालेमो" अरबी मुआलीम से और 'काना" संभवत: कणक या गणक से संबंधित लगता है, क्योंकि आकाशीय नेविगेशन में गणित लगता है।) लेकिन आश्चर्य यह कि वास्को को अफ्रीका में एक हिंदुस्तानी नौचालक मिला कैसे?
दरअसल, भारत और अफ्रीका के बीच समुद्री व्यापार हजारों साल पुराना है। कौटिल्य के अनुसार कोई 120 जहाज भारत से अलेक्जेंड्रिया को सालाना रवाना होते थे। ये ले जाते थे आबनूस या भारतीय हाथी (जिससे सिकंदर की सेना बेहद भयभीत हुई थी, इसलिए इनकी मांग थी)। ऐसी भारी चीजों को जमीनी रास्ते से दूर ले जाना मुश्किल था। वहीं प्लिनी शिकायत करता है कि रोमन साम्राज्य का सारा धन भारत से व्यापार में लुटा जा रहा है। रोमन सिक्कों के कई ढेर तटीय भारत में पाए गए हैं। मपिला नामक मल्लाहों का एक समुदाय पश्चिमी तट में बसा है, जिनकी भाषा अरबी-मलयालम है। इसलिए एक भारतीय नाविक का अफ्रीका में होना आश्चर्यजनक बात नहीं। 'वास्को ने हिंद खोजा" इस झूठी कहानी ने इस प्राचीन गैर-यूरोपीय समुद्री व्यापार परंपरा के असली इतिहास को दबा दिया है।
भारतीय नाविक कणक ने नौवहन के लिए जो उपकरण इस्तेमाल किया, उसे अरबी में कमाल और मलयालम में रापलगाय कहते हैं। वास्को ने उसे देखकर लिखा कि 'पायलट अपने दांत से दूरी बताता है!" वास्को ऐसे हास्यास्पद निष्कर्ष पर कैसे पहुंचा? वास्को ने कणक से नौवहन की विधि पूछी। जवाब था - 'काउ।" मलयालम में इसका मायना ध्रुव तारा है। पर 'काउ" का अर्थ दांत भी है और ध्रुव तारे की ऊंचाई नापने के लिए कमाल के धागे को दांतों से पकड़ते हैं। इसी से वास्को को भ्रम हुआ।
कोलंबस का निशाना तो इतने विशाल तट पर था कि चूकना नामुमकिन था। उसे भी नौवहन का कम ज्ञान था। आकाशीय नेविगेशन के लिए पृथ्वी की त्रिज्या जानना जरूरी है, लेकिन कोलंबस ने पृथ्वी को 40 फीसद छोटा माना। उससे हजार साल पहले आर्यभट या 8 सदी पूर्व खलीफा अल मामून ने पृथ्वी को सही नाप लिया था। लेकिन इतने साल बाद भी यूरोपीय पृथ्वी नापने की विधि नहीं जानते थे, सो कोलंबस की गलती और दो सदियों तक बरकरार रही।
यूरोपीय देशों की सरकारों ने 16वीं सदी में नेविगेशन के अपने अज्ञान को स्वीकारा। नेविगेशन की एक विश्वसनीय पद्धति के लिए कई पुरस्कार घोषित किए। पुर्तगाल, स्पेन, हॉलैंड और फ्रांस के बाद 1714 में ब्रिटिश संसद के एक अधिनियम द्वारा गठित देशांतर के ब्रिटिश बोर्ड ने समुद्र में देशांतर निर्धारण करने की यूरोपीय समस्या के समाधान के लिए एक बड़े पुरस्कार की घोषणा की थी। (देशांतर निर्धारण की भारतीय विधि भास्कर प्रथम की 7वीं सदी की किताबों में बताई गई है, लेकिन इस विधि के लिए पृथ्वी की त्रिज्या का सही मान आवश्यक है।) 1765 में केवल आधा ब्रिटिश पुरस्कार दिया गया, क्योंकि उस वक्त बोर्ड को नेविगेशन का इतना ज्ञान नहीं था कि यह सुनिश्चित कर पाए कि पुरस्कार सचमुच में देना चाहिए या नहीं।
उस समय जब यूरोपियों को नेविगेशन का इतना कम ज्ञान था, तो उन्होंने 'खोज" कैसे कर ली? इसे समझने के लिए 'खोज" के वास्तविक अर्थ को जानना जरूरी है, जो 'पश्चिमी खोज के सिद्धांत" से जुड़ा है। इस हठधर्मिता के मुताबिक किसी भी जमीन को देखने वाला पहला पश्चिमी उसका मालिक बन जाता है। कोलंबस की अमेरिका की 'खोज", वास्को की भारत की 'खोज" या कुक की ऑस्ट्रेलिया की 'खोज" जमीन के इसी मालिकाना हक से जुड़ी है।
यह हठधर्मिता वर्तमान कानून का हिस्सा है। 19वीं सदी में एक 'आदि अमेरिकी" ने एक अमेरिकी अदालत से शिकायत की कि उसकी पैतृक भूमि पर कब्जा करना अन्याय है। अदालत ने उसका दावा खारिज किया ईसाई खोज के सिद्धांत द्वारा। ब्रिटेन ने खोज की और अमेरिका को जमीन विरासत में मिली। जज ने आगे कहा कि हालांकि ब्रिटेन प्रोटेस्टेंट देश है, पर उसने पूरी तरह से ईसाई खोज के सिद्धांत को माना और यह कानून भी विरासत में अमेरिका को मिला। वैसे तो भारतीय कानून भी ब्रिटेन के कानूनों पर आधारित हैं, तो इस तर्क से ईसाई खोज का सिद्धांत हमारा भी कानून है।
(लेखक प्रख्यात गणितज्ञ हैं।
No comments:
Post a Comment