Tuesday, 21 July 2015

भारत की योगविद्या की 'रोशनी" बुझ गई @हेमल अशर

वर्ष 1966 में प्रकाशित अपनी किताब 'लाइट ऑन योगा" से दुनिया में अपार कीर्ति पाने वाले बेल्लूर कृष्णमाचारी सुंदरराज अयंगर निश्चित ही भारत के महानतम योगगुरु थे। आधुनिक जीवन की समस्याओं से जूझ रहे अमेरिका में अयंगर के योग की इतनी ख्याति थी कि जब वे लॉस एंजेलेस, बोस्टन, कोलोराडो में व्याख्यान देने पहुंचते तो उन्हें सुनने उतनी ही संख्या में लोग उमड़ते, जितने कि दलाई लामा या जेके रोलिंग को सुनने उमड़ते हैं। 'सुख से जीयो और शान से मृत्यु का वरण करो" का मंत्र देने वाले अयंगर कहते थे कि 'मन कितना ही बलवान क्यों न हो, शरीर दुर्बल होगा तो मन भी कहां ठहरेगा? योगी हमारे आदर्श होने चाहिए। दुनिया में कई लोग कड़ा संघर्ष करके आगे बढ़ते हैं, मैंने भी किया है और यही कारण है कि मैं संघर्षों से मिली सीख को लोगों से साझा करना चाहता हूं।"

बुधवार को जब 96 वर्ष की अवस्था में अयंगर का पुणे में देहांत हुआ, तो अयंगर-योग से गहरा नाता रखने वाले शिवाजी पार्क के समर्थ व्यायाम मंदिर के निदेशक और मल्लखंभ कोच उदय देशपांडे का मायूस हो जाना स्वाभाविक ही था। देशपांडे बताते हैं, 'जब मैं दो वर्ष का था तो मेरी मां मुझे अपने नाना से मिलाने ले गई थीं। मेरे नाना अयंगर-योग के साधक बन चुके थे! 40 साल पहले मेरी पहली दफा उनसे भेंट हुई थी और उसके बाद तो अनेक बार उनसे मिलना हुआ। वे हमेशा व्यस्त रहते। या तो योग कक्षाएं ले रहे होते या लिख रहे होते। एक बार उन्होंने मुझे अपनी एक किताब भेंट की थी। मैं कह सकता हूं कि मेरे लिए वह किताब धर्मग्रंथ के समान है।"

वर्ष 1998 में जब समर्थ व्यायाम मंदिर में 'व्यायाम महर्षि" पीएल काले की जन्मशती मनाई गई तो जाहिर है मुख्य अतिथि के रूप में बीकेएस अयंगर से बेहतर किसी और का नाम नहीं हो सकता था। वास्तव में अयंगर-योग का मल्लखंभ से गहरा नाता है। रस्सी और खंभे पर योग-क्रियाओं का प्रदर्शन करने की इस कला का आज इतना प्रसार हो गया है कि इंडो-जर्मन मल्लखंभ सहकार भी प्रारंभ हो गया है। स्थिति यह है कि हर साल जर्मनी से आने वाले दल शिवाजी पार्क में मल्लखंभ के गुर सीखते हैं। ऐसा कैसे संभव हुआ? इसका कारण यह है कि जर्मनी में योगा फोरम की स्थापना करने वाले रेइनहार्ट बगल अयंगर-योग के साधक थे। वे पुणे में भी रहे हैं। आज इसका हिसाब लगाना वाकई बहुत कठिन है कि भारत की योग-विद्या के प्रसार में अयंगर की कितनी अहम भूमिका रही है।

'न्यूयॉर्क टाइम्स" को दिए एक इंटरव्यू में अयंगर ने कहा था, 'मैंने अच्छे स्वास्थ्य के लिए योग शुरू किया था, लेकिन बाद में तो वह मेरे जीवन का प्रयोजन बन गया। 'लाइट ऑन योगा" लिखने की जरूरत मुझे इसलिए महसूस हुई, क्योंकि मुझे लगा कि तब प्रकाशित होने वाली सभी योग पुस्तकें पाठकों को धोखा दे रही थीं। उनमें किसी मुद्रा के बारे में बताया कुछ जाता और फोटो में कुछ और ही मुद्रा बताई जाती।" शायद, यही कारण था कि इस किताब के लिए अयंगर ने एक फोटोग्राफर के साथ लगातार काम करते हुए विभिन्न् योग-मुद्राओं में अपनी कोई 4 हजार तस्वीरें खिंचवाई थीं।

अयंगर अन्य योग-शिक्षकों से इसलिए भिन्न् थे, क्योंकि उनके लिए थ्योरी और प्रैक्टिस अलग नहीं थे। वे न केवल योग के गुर समझाते, बल्कि उन्हें खुद करके भी दिखाते थे। 2004 में 'टाइम" द्वारा दुनिया के सौ प्रभावशाली व्यक्तियों में शुमार किए गए अयंगर 'आधुनिक योग के जनक" कहलाने वाले तिरुमलै कृष्णमाचार्य के प्रारंभिक शिष्यों में से थे। उन्होंने दुनिया के कोने-कोने तक अपने गुरु द्वारा दिए गए ज्ञान को पहुंचाकर उन्हें सबसे अच्छी गुरुदक्षिणा दी है

No comments:

Post a Comment