977-80 के जनता पार्टी की सरकार के दौर में उत्तर प्रदेश में किसान जातियों जैसे यादव,कुर्मी, लोध व अन्य गरीब जातियों के सामजिक राजनीतिक उभार की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी. 1980 में उत्तर प्रदेश में और देश में कांग्रेस सत्ता में वापस लौटी. इंदिरा गांधी को यह समझ में आ गया था कि अब ब्राह्मण -मुसलमान-दलित के पारंपरिक सामाजिक समीकरण के बल पर उत्तर प्रदेश में लम्बे समय तक राज नहीं किया जा सकता. इसलिए राजपूत नेता का चुनाव किया गया और विश्व नाथ प्रताप सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्या मंत्री बने. शुरू हुया राजपूत सामंतो का दमन चक्र जिसका शिकार पिछड़े वर्गों के नेता और इसी वर्ग के लोग बने.इसमे सबसे प्रमुख नाम है मुलायम सिंह यादव का. मुलायम सिंह पर कई बार कातिलाना हमला हुया। मुलायम सिंह को डाकू साबित करने के लिए पुलिस की अपराध शाखा को विशेष जांच सौंपी गयी। यह रिपोर्ट आज भी गृह विभाग की फाइल में मौजद है। उस रिपोर्ट का निष्कर्ष था की मुलायम सिंह यादव के डकैतों के गहरे सम्बन्ध हैं.
मुलायम सिंह के साथ उस दौर में जो हुया वो उस वक्त की हिंदी पत्रिका "रविवार'' में उदयन शर्मा की रिपोर्टों में उपलब्ध है.1980 के विधान सभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव को जसवंत नगर से चुनाव हरवाया गया.आगरा रेंज के तत्कालीन पुलिस उप महा निरीक्षक KD Sharma को यह जिम्मेदारी सौंपी गयी थी और वो सफल रहे। सेवानिवृत्ति की बाद उनको बतौर इनाम एक निगम UP Agro Industrial Corporation का चेयरमैन बनया गया .उनको इस पद से मुलायम सिंह ने ही दिसंबर 1989 में प्रदेश का पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद मुलायम सिंह ने हटाया था। मुलायम सिंह राजनीती में जीवित रहे केवल चोधरी चरण सिंह के कारण। विधान सभा का चुनाव हारने की बाद चरण सिंह ने उनको विधान परिषद् का सदस्य बनवा दिया और वो नेता विपक्ष भी बन गए। पिछड़े वर्गों पर राजपूत सामंतों के जुल्म के प्रतिरोध से जन्म हुया फूलन देवी का और तब के कानपूर देहात के बेहमई गाँव में एक दर्जन ठाकुरों का सामूहिक कत्लेआम हुया। जिसके बाद राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह ने त्याग पात्र दे दिया. बेहमई के ह्त्या काण्ड का मुकदमा कानपुर की सेशन कोर्ट में आज भी चल रहा है। आज केवल बेहमई कांड को याद किया जाता है लेकिन उस दौर में पिछड़े वर्गों के ऊपर जुल्म अत्याचार और हत्याकांडों को भुला दिया गया है। लेकिन वो सारे कांड आज भी पुलिस के रिकार्ड में उपलब्ध हैं. यह महज संयोग नहीं है की 1994 में उत्तर प्रदेश का दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद मुलायम सिंह ने फूलन देवी को कड़ी आलोचना झेलकर जेल से रिहा कराया और समाजवादी पार्टी में शामिल किया और वह 1996 में पहली बार सांसद बनी. यह भी क्या संयोग है की फूलन की ह्त्या भी एक राजपूत ने ही की थी। लेकिन इतिहास भी क्या खेल खेलता है वही राजा विश्व नाथ प्रताप सिंह आज देश में मंडल मसीहा के रूप में याद किये जाते हैं।मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू करने की घोषणा कर के राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पिछड़े वर्गों पर कोई अहसान या परोपकार नहीं किया था .यह बात 1989 के लोक सभा चुनाव पूर्व जारी जनता दल के चुनावी घोषणा पत्र में स्पष्ट रूप से कही गयी थी और घोषणा पत्र के अनुसार कार्य करना सरकार का सामान्य दायित्व होता है.
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