क़ायम है ज़ियाउल हक़ की मौत का राज़
बीस साल पहले वर्ष 1988 में जब जनरल ज़ियाउल हक़ का सी-130 हरकुलीज़ विमान बहावलपुर के रेगिस्तान में गिरा, तब से लेकर अब तक इससे जुड़े कई षड्यंत्रों पर काफ़ी चर्चा हुई है.
इस दुर्घटना के कारणों का कभी पता नहीं चल सका और जाँच कमेटी की रिपोर्ट को कभी सार्वजनिक नहीं किया गया.
बहुत से लोग अब भी मानते हैं कि जनरल ज़िया की मौत एक साधारण विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी बल्कि साजिश का नतीजा थी.
हादसा या साजिश
17 अगस्त वर्ष 1988. बहावलपुर एयरबेस. समय दोपहर तीन बजकर 46 मिनट. अमरीका में बने हरकुलीज़ सी-130 विमान ने टेक ऑफ़ के लिए रनवे पर दौडना शुरू किया.
विमान में जनरल ज़िया उल हक़ के साथ पाकिस्तानी ज्वाइंट चीफ़ ऑफ़ स्टॉफ़ के प्रमुख जनरल अख़्तर अब्दुल रहमान, पाकिस्तान में अमरीका के राजदूत अरनॉल्ड राफ़ेल, पाकिस्तान में अमरीकी सैन्य सहायता मिशन के प्रमुख जनरल हरबर्ट वासम और पाकिस्तानी सेना के दूसरे वरिष्ठ अधिकारी भी थे.
जनरल ज़िया अमरीकी टैंक एमआई अब्राहम का परीक्षण देखने बहावलपुर गए थे.
शुरू में जिया वहाँ नहीं जाना चाहते थे, लेकिन उनकी फ़ौज़ के ही कई वरिष्ठ अधिकारियों ने उन पर ज़ोर डाला कि वो वहाँ ज़रूर जाएँ.
पाक-1 विमान के कॉकपिट की कमान विंग कमांडर मशहूद हसन ने संभाली थी. इस ज़िम्मेदारी के लिए खुद जनरल ज़िया उल हक़ ने उन्हें चुना था.
जैसे ही विमान पूरी तरह से हवा में आया, बहावलपुर के कंट्रोल टॉवर ने विंग कमांडर मशहूद से रूटीन सवाल पूछा कि अपनी पोज़ीशन बताइए. मशहूद ने जबाव दिया कि पाक-1 स्टैंड बाय है. इसके बाद मशहूद चुप हो गए.
कंट्रोल टॉवर उनसे संपर्क करने की कोशिश करने लगा, लेकिन सब बेकार. टेक ऑफ़ के कुछ मिनटों के अंदर पाकिस्तान का सबसे महत्वपूर्ण विमान पाक-1 लापता था.
लेकिन इस बीच हवाई अड्डे से करीब 18 किलोमीटर दूर कुछ ग्रामीणों ने आकाश में देखा कि पाक-1 विमान हवा में कभी ऊपर तो कभी नीचे आ रहा था.
तीसरे लूप के बाद विमान सीधे नाक के बल रेगिस्तान में गिरा और चारों तरफ़ आग का एक गोला फैल गया. समय था तीन बजकर 51 मिनट.
बेग़ की भूमिका
लगभग इसी समय पाकिस्तानी सेना के उप प्रमुख लेफ़्टिनेंट जनरल मिर्ज़ा असलम बेग़ ने बहावलपुर हवाई अड्डे से अपने छोटे टर्बो जेट में उड़ान भरी.
मिनटों में वे उस स्थान के ऊपर थे जहाँ जनरल ज़िया के विमान का मलवा जल रहा था. उन्होंने उस स्थान का एक चक्कर लगाया और विमान चालक को आदेश दिया कि इस्लामाबाद की ओर प्रस्थान करो.
लेफ़्टिनेंट जनरल मिर्ज़ा असलम बेग कहते हैं, ''क़रीब पाँच-सात मिनट बाद मेरा विमान उड़ा. मेरे विमान के टेक ऑफ़ करने के सात-आठ मिनट बाद मुझे सूचना मिली कि ज़िया का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया है. तब तक हमारे कुछ लोग वहाँ पहुँच गए थे. उन्होंने बताया कि सब कुछ ख़त्म हो गया. इसके बाद मैंने वहाँ का चक्कर लगाया और वापस लौट आया. ''
उधर, इस्लामाबाद में इस तरह की अफ़वाहें फैलने लगीं कि किसी बहुत महत्वपूर्ण व्यक्ति की मृत्यु हो गई है. उस समय टीसी रंगाचारी इस्लामाबाद में भारत के उप उच्चायुक्त थे.
रंगाचारी कहते हैं, "मेरे ख़्याल से हादसा दोपहर को हुआ. आधिकारिक तौर पर हादसे की पुष्टि रात को हुई, लेकिन इस बीच लोग जान गए थे कि ऐसा कोई हादसा हुआ है. हालाँकि लोगों को पूरा ब्यौरा मालूम नहीं था.''
बहरहाल, रात में उस समय सीनेट के अध्यक्ष और बाद में कार्यवाहक राष्ट्रपति बने ग़ुलाम इसहाक़ खाँ ने राष्ट्र के नाम संदेश में घोषणा करते हुए कहा कि ज़िया उल हक़ का विमान दुर्घटना में निधन हो गया है.
ज़िया के जाने के बाद पाकिस्तान में चुनाव हुए और बेनज़ीर भुट्टो सत्ता में आईं. लेकिन इससे इन सवालों का अंत नहीं हुआ कि आखिर पाक-1 के साथ ऐसा क्या हादसा हुआ कि वो ज़मीन पर आ गिरा.
बेनज़ीर को नेतृत्व
बेनज़ीर ने अपनी आत्मकथा 'द डॉटर ऑफ़ द ईस्ट' में लिखा है कि ज़िया की मौत ईश्वर का कारनामा थी.
अमरीका ने इस दुर्घटना की जाँच के लिए वायुसेना के अधिकारियों का दल पाकिस्तान भेजा. अमरीकी जाँचकर्ताओं ने रफ़ेल की पत्नी एली रफ़ेल और ब्रिगेडियर जनरल वासम की पत्नी जूडी को बताया कि दुर्घटना का कारण तकनीकी गड़बड़ी थी.
दूसरी तरफ, पाकिस्तानी जाँच में पाया गया कि ये दुर्घटना षड्यंत्र की वजह से हुई और विमान के ऐलीवेटर बूस्टर पैकेज से छेड़खानी के सबूत पाए गए.
मैंने तत्कालीन आईएसआई प्रमुख हमीद गुल से पूछा कि आपकी नज़र में इस दुर्घटना के पीछे कौन हो सकता है?
गुल ने बताया, ''वो एक हादसा नहीं था. उनकी हत्या की गई. मेरे ख़्याल से जाँच में भी यही सामने आया था. लेकिन मेरी उंगली अमेरिका की तरफ उठती है. अमरीका को ही इससे फ़ायदा हुआ.''
लेकिन तत्कालीन भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ के प्रमुख आनंद कुमार वर्मा का मानना है कि सीआईए के पास ज़िया को हटाने के पर्याप्त कारण नहीं थे.
फिर भी ये नहीं भूलना चाहिए कि उस विमान में पाकिस्तान में अमरीका के राजदूत भी सवार थे.
आनंद कुमार वर्मा कहते है, ''ज़िया को रास्ते से हटाने में सीआईए की कोई दिलचस्पी नहीं थी. बल्कि सीआईए को तो ज़िया से अफ़गानिस्तान में मदद मिल रही थी.''
षड्यंत्र
कुछ लोगों का ये भी मानना है कि इसके पीछे जनरल ज़िया से असंतुष्ट जनरल भी हो सकते हैं.
जिस तरह से जनरल असलम बेग़ एक अलग विमान में बहावलपुर से उड़े थे और दुर्घटना का पता चलते ही बहावलपुर आने के बजाय इस्लामाबाद चले गए. उस समय भी कई उंगलियाँ उठी.
जनरल ज़िया उल हक़ के पुत्र एज़ाज़ उल हक़ ने बीबीसी को बताया, '' इतना बड़ा हादसा होने के बाद आप उड़ान भर रहे हैं और हादसे का जायज़ा ले रहे हैं. आपने विमान वहाँ उतारने तक की ज़ेहमत नहीं उठाई. ''
जनरल बेग़ का कहना था कि जनरल ज़िया उन्हें विमान में बैठाना चाह रहे थे, लेकिन फिर उन्होंने ही कहा कि आप तो अपना जहाज लाएँ हैं, उसी में आइए.
दूसरी तरफ, वर्ष 1988 में रॉ के प्रमुख आनंद कुमार वर्मा रहस्योद्घाटन करते हैं कि बहुत कम लोगों को पता है कि जिस समय ज़िया की मौत हुई, उस समय भारत और पाकिस्तान सियाचीन का समाधान ढूँढने के बहुत नज़दीक थे.
ज़िया को इसलिए रास्ते से हटाया गया क्योंकि कुछ लोग नहीं चाहते थे कि भारत और पाकिस्तान में यह समझौता हो.
वर्मा कहते हैं, ''सियाचीन विवाद हल हो रहा था. लेकिन कुछ लोग नहीं चाहते थे कि मामला हल हो. तभी तो बाद में बेनज़ीर भुट्टो ने कह दिया था कि ज़िया के समझौते को हम नहीं मानते. अगर यह मामला हल हो जाता तो राजीव गांधी और ज़िया दोनों को शांति का नोबेल पुरस्कार मिल जाता.''
कई कहानियाँ
कुछ हल्कों में ये भी चर्चा थी कि इसके पीछे केजीबी या भारतीय खुफ़िया एजेंसी रॉ का भी हाथ हो सकता था.
मैंने जब ये सवाल आईएसआई के तत्कालीन प्रमुख जनरल हमीद गुल से पूछा कि इसकी कितनी संभावना हो सकती है, तो उन्होंने कहा, ''रॉ तो उस समय बहुत कच्ची थी. और केजीबी को ऐसा करना होता तो वह पहले ही ऐसा कर चुकी होती.''
जिस तरह से मामले की जाँच की गई, उससे जनरल ज़ियाउल हक़ के पुत्र कतई मुतमईन नहीं हैं. उनका कहना है कि जाँच करने के बजाए मामले को दबाने की कोशिश की गई.
संडे टाइम्स ने एक नई कहानी बताई कि जनरल ज़िया के विमान को चलाने वाले विंग कमाँडर मशहूद हसन ने अब्दुल क़दीर खाँ के एक साथी को बताया था कि वो जनरल ज़िया से नफ़रत करते थे और एक स्थानीय धार्मिक नेता के मारे जाने के लिए उन्हें ज़िम्मेदार मानते थे.
मशहूद का कहना था कि जिस दिन वो मेरे साथ उड़ेंगे, ये उनकी ज़िंदगी का आखिरी दिन होगा.
एक और कहानी है कि ज़िया के विमान में आम की पेटियों के साथ गैस रख दी गई थी जिससे पायलट बेहोश हो गया और विमान से उसका नियंत्रण जाता रहा.
जनरल असलम बेग़ कहते हैं. ''आम की पेटियाँ तो उनके अपने निजी सचिव ने रखवाईं थी. जिस दिन मैं इस्लामाबाद पहुँचा तो मेरे सुनने में आया कि हादसे के लिए जनरल असलम बेग़ ज़िम्मेदार हैं. इस तरह की अफवाहें तब फैलती हैं जब पहले से कोई बात रही हो और जिसे अवाम में फैला दिया गया हो. उस समय सीआईए का दुनिया में सबसे बड़ा नेटवर्क पाकिस्तान में ही था.''
अभी तक किसी भी जाँचकर्ता ने सभी संदिग्धों को एक जगह इकट्ठा कर रहस्य पर से पर्दा हटाने की कोशिश नहीं की है, क्योंकि शायद सच कुछ लोगों के लिए बहुत कड़वा साबित होता और रहस्य का पर्दाफ़ाश पहले से ही संवेदनशील इलाक़े के लिए और समस्याएँ खड़ी कर देता.
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