दिन था 8 फरवरी 1967. देश जवाहर लाल नेहरु के बाद पहला चुनाव देख रहा था. देशभर में कॉग्रेस के खिलाफ गुस्सा था. आम जनता इंदिरा गांधी से भी नाराज थी. पार्टी के अंदर भी इंदिरा गांधी का विरोध हो रहा था. 1967 के चुनाव में लोगों के गुस्से का असर चुनाव के नतीजों पर पड़ा. कांग्रेस पार्टी को जीत तो मिली लेकिन पहले के मुकाबले उसे 78 सीटों का नुकसान हुआ था. वहीं 8 राज्यों में कांग्रेस का बहुमत नहीं रहा.
लेकिन कांग्रेस से ज्यादा नुकसान सिंडिकेट के उन नेताओं को हुआ जो इस बार इंदिरा को प्रधानमंत्री पद से हटाने की पूरी तैयारी कर चुके थे. कांग्रेस अध्यक्ष कामराज खुद चुनाव हार गये. कामराज और उनकी सिंडीकेट के सामने प्रधानमंत्री को दोबारा चुनने का सवाल था.
मोरारजी देसाई एक बार फिर मैदान में थे. दो बार से उन्हें प्रधानमंत्री बनने से रोकने वाला कॉग्रेस का सिंडीकेट इस बार खुद कमजोर था, इसलिए उन्हें अपनी दावेदारी और मजबूत दिख रही थी. सिंडीकेट के हारे हुए सदस्य यही चाहते थे कि किसी तरह दोनों दावेदारों के बीच मध्यस्थता करके वो सरकार में अपना दखल बनाए रखें. मोरारजी शुरू में तो प्रधानमंत्री बनने के लिए अड़े रहे. इंदिरा गांधी का खेमा इस बार प्रधानमंत्री का चुनाव नहीं चाहता था. इसका कारण था लोकसभा चुनाव के नतीजे. लोकसभा चुनाव में कॉग्रेस पार्टी को सिर्फ 22 सीटों का बहुमत था. ऐसे में पार्टी के अंदर प्रधानमंत्री पद के चुनाव से इंदिरा गांधी की स्थिति और खराब हो सकती थी. ऐसे हालात में कांग्रेस अध्यक्ष कामराज को एक बार फिर काम मिल गया और उन्होने दोनो को अपने घर में मिलने के लिए तैयार कर लिया. काफी देर तक ये बातचीत चलती रही.
मोरारजी देसाई, प्रधानमंत्री पद की जिद छोड़ने के लिए तैयार हो गये थे लेकिन उसके एवज में उपप्रधानमंत्री के साथ साथ होम मिनिस्टर की कुर्सी मांग रहे थे लेकिन इंदिरा इसके लिए राजी नहीं थीं. देश के सामने एक बार फिर सवाल अगले प्रधानमंत्री का था. इंदिरा गांधी के समर्थक और सलाहकार डी पी मिश्र ने कामराज से मुलाकात की. कामराज ने डीपी मिश्र की बात मान ली और मोरारजी को मनाने का काम उत्तर प्रदेश के बड़े कॉग्रेसी नेता सी बी गुप्ता पर छोड़ दिया. उसी रात सी बी गुप्ता ने मोरारजी से मुलाकात की.
मोरारजी के घर के बाहर भी पत्रकारों की भीड़ इकट्ठा थी. इंदिरा को संदेश भिजवाने के बाद से मोरारजी दो बार पत्रकारों से मिलने के समय को आगे बढ़ा चुके थे. इस बीच उन्होनें सांसदों से अपने पक्ष में वोट करने की अपील भी वापस ले ली. वो इंदिरा के जवाब का इंतजार कर रहे थे. लेकिन जब रात 10.30 बजे तक कोई जवाब नहीं आया तब वो पत्रकारों से मिलने बाहर आये.
ठीक इसी समय इंदिरा गांधी के घर पर अचानक हलचल तेज हो गयी और सभी लोग बाहर जाने लगे. पत्रकारों से बात करने इंदिरा गांधी बाहर आयीं. मोरारजी तक भी ये खबर पहुंच चुकी थी. उन्हें गृह मंत्रालय नहीं मिला था. शपथ ग्रहण से पहले इंदिरा गांधी ने उन्हें मिलने के अपने घर बुलाया. और इस बुलावे ने शुरु में ही मोरारजी और इंदिरा गांधी के रिश्तों में कड़वाहट बढ़ा दी. इस मीटिंग में मोराजी देसाई, वाई बी चह्वान और जगजीवन राम के बीच खूब कहा सुनी हुई.
मोरारजी को एक तरह सवाल पूछ कर बेइज्जत किया जा रहा था. इंदिरा ये सब देखती रहीं. दरअसल मोरारजी के कैबिनेट में शामिल होने से कॉग्रेस का गुट बगावत पर उतर आया था. इस गुट का नेतृत्व होम मिनिस्टर वाई बी चह्वान कर रहे थे. इन्हें शांत करने के लिये ही मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री ने मिलने के लिये बुलाया था लेकिन चह्वान और जगजीवन राम के सवालों से आहत मोरारजी देसाई ने कैबिनेट में शामिल नहीं होने का मन बना लिया था लेकिन कामराज के मनाने पर मोरारजी ने अपना इरादा बदल लिया.
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