यूं तो भारत ने ओलंपिक में कुल आठ स्वर्ण, एक रजत और पांच कांस्य पदक जीते हैं लेकिन ऐसे भी कई मौक़े आए हैं जब भारतीय खिलाड़ियों ने प्रर्दशन तो शानदार किया है लेकिन वो पदक लाते-लाते रह गए.
6 सिंतबर 1960 शायद भारतीय एथलेटिक्स के इतिहास का सबसे बड़ा दिन था जब रोम के ओलंपिक स्टेडियम में नंगे पाँव दौड़ते हुए मिल्खा सिंह ने 400 मीटर का ओलंपिक रिकॉर्ड तो तोड़ा लेकिन उन्हें चौथे स्थान पर ही संतोष करना पड़ा.
उन्होंने 45.6 सेकेंड का समय निकाला जो कई दशकों तक भारत का राष्ट्रीय रिकार्ड बनाया.
रोम से पहले मिल्खा ने 80 दौड़ों में भाग लिया था जिनमें 77 में उनकी जीत हुई थी. मिल्खा सिंह उस दौड़ को अभी तक नहीं भूल पाये हैं.
हॉकी के जाने-माने खिलाड़ी आरएस भोला भी उस दौड़ को स्टैंड्स से देख रहे थे. भोला कहते हैं मिल्खा का बीच दौड़ में पीछे मुड़कर देखना उनको भारी पड़ गया.
रिकॉर्ड
1964 के टोक्यो ओलंपिक में गुरुबचन सिंह रंधावा ने भी 110 मीटर बाधा दौड़ में 14 सेकेंड का राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया लेकिन उन्हें पाँचवां स्थान ही मिला.
प्रेमनाथ ने म्यूनिख ओलंपिक में चौथा स्थान हासिल किया था
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1972 के म्यूनिख़ ओलंपिक में भारतीय पहलवान प्रेमनाथ फ्लाईवेट और सुदेश कुमार ने बैंटमवेट में चौथा स्थान प्राप्त किया.
1976 के मॉन्ट्रियल ओलंपिक में श्रीराम सिंह ने 800 मीटर में 1 मिनट 45.77 सेकेंड का राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया.
लेकिन सातवें स्थान पर ही आ पाए. उस दौड़ को जीतने वाले क्यूबा के अलबर्टो ज्वानटोरीना ने बाद में माना कि शुरू में श्रीराम के तेज़ दौड़ने के बदौलत ही वो ओलंपिक रिकार्ड तोड़ पाए.
1984 के लॉस एंजिल्स ओलंपिक में महिलाओं की 400 मीटर बाधा दौड़ में पीटी ऊषा एक सेकेंड के सौवें हिस्से से भी कम समय में काँस्य पदक चूक गई.
उस दौड़ में जीत हासिल की थी मोरक्को की नवल एल मुतवाकिल ने. रजत मिला अमरीका की जूडी ब्राउन को और काँस्य पर क़ब्ज़ा जमाया रोमानिया की क्रिस्टीना कोजाकारु ने.
एथेंस में अंजू जॉर्ज से ऊंची कूद में सबसे ज्यादा उम्मीद है. देखना है कि वो पदक ला भी पाती हैं या नहीं. अगर ऐसा होता है तो वो ओलंपिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय एथलीट होंगी.
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