वियतनाम युद्ध में अमरीका की शिकस्त पूरी दुनिया को याद है लेकिन अपनी सीमा के पार एक युद्ध वियतनाम ने भी लड़ा था जिसे अब वियतनामी भी याद नहीं रखना चाहते.
अमरीका की तरह ही वियतनामी सेना ने कम्बोडियाई नागरिकों को पोल पोट कीख़मेर रूज़ सरकार से बचाने के लिए सैन्य हस्तक्षेप किया था.
लेकिन पोल पोट के भागने के कुछ दिन बाद ही कम्बोडियाई लोगों के लिए वियतनामी सेना दुश्मन हो गई.
आख़िरकार भारी जान-माल के नुक़सान के बाद वियतनाम को कम्बोडिया से वापस आना पड़ा.
वियतनाम में अमरीकी सेना पर जीत का जश्न आज भी मनाया जाता है लेकिन कम्बोडिया में उस अलोकप्रिय युद्ध को कोई याद नहीं करता.
पढ़ें केविन डोयल का विश्लेषण
तीस अप्रैल 1975 को जब उत्तरी वियतनामी सेना दक्षिण वियतनाम की राजधानी में दाख़िल हुई तो अंतिम अमरीकी हैलिकॉप्टरों को शर्मानाक रूप से साइगॉन से पीछे हटना पड़ा.
अमरीकी सेना पर इस जीत का जश्न हर वर्ष वियतनाम में मनाया जाता है क्योंकि राष्ट्रीय मुक्ति के इस युद्ध में विदेशी आक्रमण पर जीत हुई थी.
हालांकि 25 वर्ष पूर्व इसी महीने वियतनाम द्वारा दूसरे देश पर किए गए एक अलोकप्रिय युद्ध में शिकस्त को बहुत कम याद किया जाता है.
यह एक ऐसा युद्ध था जिसमें वियतामी सैन्य टुकड़ियों को रक्षक के रूप में भेजा गया था लेकिन जल्द ही इन्हें घुसपैठिए के तौर पर देखा जाने लगा था. एक दशक तक चले गुरिल्ला युद्ध में उसे भारी नुक़सान उठना पड़ा था.
कम्बोडिया से सैन्य टुकड़ियों की वापसी की 25वीं वर्षगांठ पर आज भी पूर्व वियतनामी सैनिकों के सपने में पोल पोट की फ़ौज से हार सालती रही है.
कुछ लोगों को ताज्जुब होता है कि क्यों कम्बोडियाई उस फ़ौज के प्रति अधिक ज़्यादा कृतज्ञ नहीं हैं जिसने उन्हें क्रूर ख़मेर रूज़ सरकार से मुक्त कराया था.
'भाग्यशाही ही वापस लौटे'
'अवे फ़्रॉम होम सीज़न- दि स्टोरी ऑफ़ ए वियतनामीज़ वॉलंटियर वेटेरन इन कम्बोडिया' आत्मकथा के लेखक और युद्ध में शामिल रहे न्यूयेन थान्ह न्हान कहते हैं, ''जो भी कम्बोडिया से सही सलामत वापस आया वह भाग्यशाली था.''
बीस वर्ष की उम्र में न्हान को कम्बोडिया भेजा गया था. उन्होंने 1984 से 1987 तक थाई-कम्बोडिया के पास अग्रिम मोर्चे पर तैनात रहे, जहां ख़मेर रूज़ के लड़ाकों के साथ सबसे ख़ूनी संघर्ष हुआ था.
हालांकि वियतनामी सरकार ने युद्ध में मारे गए लोगों की संख्या की कभी पुष्टि नहीं की, लेकिन माना जाता है कि इस युद्ध में सितम्बर 1989 में वापसी से पहले क़रीब 30 हज़ार सिपाही मारे गए थे.
वियतनाम में न्हान (50) की पुस्तक पर प्रतिबंध है. इस पुस्तक में वियतनामी सैनिकों की मुश्किलों का ब्यौरा है जो एक ऐसी जनता के बीच ख़ुद को बचाने की कोशिश कर रहे थे जो दिन में उनकी और रात में उनके दुश्मन की मदद करती थी.
वियतनाम युद्ध में लड़े युवा अमरीकियों की तरह ही, कम्बोडिया में बिताए गए वर्षों का न्हान पर मनोवैज्ञानिक असर हुआ.
वो कहते हैं, ''जब युद्ध में आपके साथी मारे जाते हैं, यह बहुत बड़ी क्षति होती है. युद्ध के समय कार्रवाई करने का समय नहीं होता है. हमें जमे रहने के लिए मज़बूत होना ही होता है और तीस वर्ष बाद भी वे यादें लौट लौट कर आती हैं.''
वो बताते हैं, ''एक या दो वर्ष बाद ही लौटने वाले सिपाही पागल हो गए.''
पोल पोट
उनका अनुभव उन अमरीकी सैनिकों जैसा ही है, जो वियतनाम में यह सोचकर पहुंचे थे कि वो एक राष्ट्र को बचाने आए थे. अधिकांश सामान्य लोग उन्हें दुश्मन मानते थे.
न्हान ने कहा, ''अमरीकी सैनिकों ने सोचा कि वे वियतनाम की मदद की थी. उसके बाद उनका भ्रम टूटा. कम्बोडिया में हमारे साथ भी ऐसा ही हुआ.''
वियतनाम ने दिसम्बर 1978 में कोम्बोडिया से पोल पोट को हटाने के लिए वहां सैन्य हस्तक्षेप कर दिया था.
ख़मेर रूज़ की अपनी ही सरकार के हाथों 20 लाख कम्बोडियाई मारे गए और पोल पोट की फ़ौजी टुकड़ियां कम्बोडिया के पुराने दुश्मन और पड़ोसी वियतनाम में ख़ूनी हमले कर नागरियों की सामूहिक हत्याएं कीं और गांवों को जलाया था.
भीषण आक्रमण के चलते पोल पोट फ़रार हो गए और एक सप्ताह में ही नोम पेन्ह पर वियतनाम का नियंत्रण हो गया था.
भुला दिया गया युद्ध
ख़मेर रूज़ सरकार के उत्पीड़न से जो बच गए थे उन्होंने शुरुआत में वियतानामी मुक्तिदाताओं का स्वागत किया. हालांकि एक वर्ष बाद भी वियतनामी सेना कम्बोडिया में ही रुकी रही और तब अधिकांश कम्बोडियाई नागरिकों की नज़र में वे दुश्मन हो गए.
कैनबरा में आस्ट्रेलियन डिफ़ेंस फ़ोर्स एकेडमी के न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय में वियतनाम मामलों के विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर कार्लाइल थेयर कहते हैं, ''वियतनाम के लिए कम्बोडिया का युद्ध एक अलोकप्रिय क़दम था.''
थेयर के अनुसार, फ्रांसीसी और अमरीकियों के ख़िलाफ़ हुए वियतनाम युद्ध से अलग, कम्बोडिया में सैन्य हस्तक्षेप को वियतनामी जनता में बहुत कम करके दिखाया गया. जब सिपाही लौटे और उनका स्वागत तक नहीं किया गया तो उन्हें महसूस किया कि उन्हें भुला दिया गया है.
यहां तक कि कम्बोडिया की ओर से आभार भी नहीं जताया गया.
कोई याद नहीं करना चाहता
आज, कम्बोडिया में अधिकांश लोग इस बात को भूल जाना पसंद करते हैं कि वियतनाम ने पोल पोट से उनके देश की रक्षा की थी.
कुछ महीने के अंतराल पर इस युद्ध के पूर्व सिपाही हो ची मिन्ह सिटी में इकठ्ठा होते हैं.
हाल ही में ऐसी ही एक बैठक में जब इस युद्ध की बात चली तो कड़वी यादें उनके चेहरे पर छलक आईं. कम्बोडिया में क्या हुआ वे इस पर बात नहीं करते.
ली थान्ह हीयू बताते हैं कि उनकी यूनिट ख़मेर रूज़ को थाईलैंड सीमा की ओर खदेड़ रही थी तो रास्ते में कम्बोडियाई गांवों में लोग भूख से मर रहे थे. सेना के पास सीमित राशन था फिर भी सिपाहियों ने लोगों को चावल का पतला सूप दिया.
हीयू कहते हैं, ''यह सब मैं आपको बताना नहीं चाहता.''
न्हान कहते हैं, ''वियतनाम कम्बोडिया युद्ध को पूरी तरह नहीं भूलना चाहता. वो केवल विजयी और पोल पोट का तख़्ता पलट करने वाले धमाकेदार आक्रमण के सरकारी विवरण को ही याद रखना चाहता है.'
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