Tuesday, 30 June 2015

कांग्रेस को अचानक नरसिम्हा राव क्यूं याद आने लगे? @पवन वर्मा


पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के नाम तक से पल्ला झाड़ने वाली कांग्रेस के लिए अब उनकी विरासत याद करना मजबूरी बन गया है
राजनीति में निर्वासित जीवन जी रहे किसी व्यक्ति के अचानक महत्वपूर्ण हो जाने के देश में बहुत उदाहरण हैं. लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव शायद अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जो अपनी मृत्यु के दस साल बाद अब अचानक मुख्यधारा की राजनीति में सम्मान के साथ याद किए जा रहे हैं. इसमें भी खास बात है कि खुद उनकी पार्टी, जिसने कभी उनसे किनारा करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी, बीती 28 जून को उनके जन्मदिन पर उन्हें सार्वजनिक रूप से याद कर रही थी. कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह तेलंगाना में इस मौके पर पार्टी द्वारा आयोजित समारोह में पहुंचे और कहा कि राव बुद्धिजीवी राजनेता थे जिनमें अपनी विचारधारा के प्रति गजब का समर्पण था.
राव के बेटे ने उनके अंतिम संस्कार का फैसला कांग्रेस पर छोड़ दिया था और लेकिन पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने संजय बारू को फोन करके कहा कि नरसिम्हा राव का अंतिम संस्कार दिल्ली में संभव नहीं है
कांग्रेस पार्टी अब जिस तरह पूर्व प्रधानमंत्री को याद कर रही है वह उसके दस साल पहले के रुख से बिल्कुल उलटा है. 23 दिसंबर, 2004 को दिल्ली में नरसिम्हा राव का निधन हुआ था. वैसे तो उनकी मृत्यु से काफी पहले ही कांग्रेस उन्हें राजनीतिक रूप से निर्वासित कर चुकी थी लेकिन लोगों को उम्मीद थी कि शायद मृत्यु के बाद पार्टी उनके प्रति सम्मान दिखाएगी. लेकिन पार्टी मुख्यालय में राव के लिए कोई श्रद्धांजलि सभा तक आयोजित नहीं होने दी गई. कहा जाता है कि केंद्र की यूपीए सरकार ने तुरत-फुरत यह इंतजाम कर दिया कि राव का अंतिम संस्कार दिल्ली की बजाय हैदराबाद में किया जाए. तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार संजय बारू ने अपनी किताब – द एक्सीडंटल प्राइममिनिस्टर – में  लिखा है कि राव के बेटे और बेटी उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में ही करना चाहते थे. लेकिन सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल ने बारू से, जो कि खुद भी आंध्र प्रदेश से ही हैं, उन्हें ऐसा न करने के लिए समझाने के लिए कहा था. बाद में इस काम में शिवराज पाटिल और आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वायएस राजशेखर रेड्डी को लगाया गया.
कांग्रेस और एक तरह से देश को ही मुश्किल घड़ी में संभालने वाले राव के बारे में यह प्रचारित है कि पार्टी उन्हें बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले को ठीक से न संभाल पाने का जिम्मेदार मानती थी और इसी कथित दागदार विरासत के चलते उनको हाशिये पर धकेला गया. हालांकि सत्ता के गलियारों से जुड़े जानकार यह भी मानते हैं कि इसकी एक वजह सोनिया गांधी की उनके प्रति नापसंदगी भी रही है. राव ने ही 1991 के चुनाव में कांग्रेस का घोषणा पत्र तैयार किया था. उस समय उनकी तबीयत इतनी खराब थी कि यह माना जा रहा था कि वे सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने वाले हैं. लेकिन राजीव गांधी की हत्या के बाद ऐसी परिस्थितियां बनी जिनमें वे शरद पवार और अर्जुन सिंह जैसे दिग्गजों को पीछे छोड़ते हुए प्रधानमंत्री बन गए. कहा जाता है प्रधानमंत्री बनने के बाद वे सोनिया गांधी से नियमित अंतराल पर मिलते रहते थे लेकिन उन्होंने श्रीमती गांधी को कभी-भी सत्ता केंद्र के रूप में उभरने नहीं दिया.
पीवी नरसिम्हा राव उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष भी थे लेकिन पार्टी का एक धड़ा लगातार इस कोशिश में था कि सोनिया गांधी को पार्टी की कमान सौंप दी जाए. राव ने हमेशा इसका विरोध किया. पार्टी मंच पर दिया उनका एक बयान उस समय काफी चर्चा में भी रहा. राव का कहना था, ‘जैसे इंजन ट्रेन की बोगियों को खींचता है वैसे ही कांग्रेस के लिए यह जरूरी क्यों है कि वह गांधी-नेहरू परिवार के पीछे-पीछे ही चले?’
नरसिम्हा राव का कहना था, ‘जैसे इंजन ट्रेन की बोगियों को खींचता है वैसे ही कांग्रेस के लिए यह जरूरी क्यों है कि वह गांधी-नेहरू परिवार के पीछे-पीछे ही चले?’
1996 के चुनाव में कांग्रेस हार गई थी लेकिन राव के लिए यह बड़ा झटका नहीं था. उनकी प्रतिष्ठा को असली धक्का तब लगा जब 1998 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने उन्हें टिकट देने से ही मना कर दिया. यह अपने आप में ऐतिहासिक घटना थी. बाद में जब सोनिया गांधी अध्यक्ष बनीं तो राव अनौपचारिक रूप से कांग्रेस से बहिष्कृत ही कर दिए गए. इस बहिष्कार की पराकाष्ठा 2004 में उनके निधन के बाद देखने को मिली. इससे जुड़ी एक घटना का जिक्र हमने शुरू में किया है. पूर्व प्रधानमंत्री होने के नाते राव का समाधि स्थल दिल्ली में होना चाहिए था. लेकिन यूपीए सरकार ने फैसला किया कि राजधानी में जगह की कमी है और अब यहां समाधिस्थल नहीं बनाए जा सकते. इस फैसले से साफ था कि कांग्रेस अपने ही पूर्व अध्यक्ष और प्रधानमंत्री के साथ कोई जुड़ाव नहीं रखना चाहती थी.
तो फिर ऐसा क्या हुआ कि अचानक पार्टी को पीवी नरसिम्हा राव याद आने लगे? राजनीतिक विश्लेषक इसके पीछे कांग्रेस की मजबूरी बता रहे हैं. दरअसल पिछले साल अक्टूबर में केंद्र सरकार में सहयोगी दल तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) ने एक प्रस्ताव पारित कर सरकार से मांग की थी कि नई दिल्ली में पीवी नरसिम्हा राव का समाधि स्थल बनाया जाए. इसके बाद इसी मार्च में केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू ने इससे संबंधित प्रस्ताव मंत्रिपरिषद के सामने रखा. मंत्रालय के एक अधिकारी बताते हैं कि समाधिस्थल अब बनकर तैयार हो गया है.
कहा जा रहा है कि कांग्रेस केंद्र सरकार के इस कदम को राव की विरासत हथियाने की कोशिश मान रही है. दरअसल राष्ट्रीय स्तर पर भले ही इस बात से कोई फर्क न पड़ता हो लेकिन तेलंगाना (वारंगल जिला यहीं हैं जहां राव का जन्म हुआ था) और आंध्र प्रदेश में राव के प्रति काफी सम्मान और सहानुभूति है. तेलंगाना की टीआरएस सरकार ने तो बाकायदा स्कूली पाठ्यक्रम में पूर्व प्रधानमंत्री की जीवनी भी शामिल की है. वह उनके जन्मदिन पर कार्यक्रम भी आयोजित कर रही है. वहीं चंद्रबाबू नायडू की तेलगू देशम पार्टी पहले ही राव के समाधिस्थल का मामला उठाकर इस भावनात्मक मुद्दे पर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश कर चुकी है. पार्टी उन्हें भारत रत्न देने की मांग भी करती रही है. भाजपा भी नरसिम्हा राव के मामले में इसी नाव पर सवार है.
कांग्रेस को पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में इन दोनों राज्यों में बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भले ही पीवी नरसिम्हा राव को हाशिये पर करने का उसे सीधा नुकसान इन राज्यों में न उठाना पड़ा हो लेकिन आज की परिस्थितियों में टीआरएस, टीडीपी और भाजपा के सामने यहां वह बिल्कुल विरोधी खेमे में खड़ी दिखाई पड़ रही थी. कांग्रेस द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री को अचानक अपनाने और याद करने की यही सबसे बड़ी वजह मानी जा रही है और उसकी कोशिश बस यही है कि इन राज्यों में उसके नेता की विरासत विरोधी पार्टियां न हथिया लें. वैसे ही जैसे गुजरात में नरेंद्र मोदी, सरदार वल्लभ भाई पटेल के मामले में कर चुके हैं

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