मनमोहन शर्मा के ख़िलाफ़ इल्ज़ाम है कि वो एक चीनी महिला को सूचनाएं देने लगे थे |
पिछले दिनों ख़बर आई थी कि बीज़िंग में भारत की विदेशी खुफ़िया एजेंसी रॉ की स्टेशन प्रमुख को वापस दिल्ली बुला लिया गया.
इससे पहले फ़रवरी में रॉ के एक और खुफ़िया अधिकारी मनमोहन शर्मा को वापस बुला लिया गया था जिनके बारे में कहा गया था कि वो चीनी भाषा सिखाने वाली अध्यापिका के मोहपाश में फंस गए थे.
आम लोगों में एक ख़ुफ़िया अधिकारी की छवि जेम्स बांड की है जो महामानव होता है. बेहतरीन कपड़े पहनता है. लड़कियाँ उस पर जान छिड़कती हैं. उसके पास कई हथियार होते हैं और उसे किसी को भी मारने का अधिकार यानी लाइसेंस होता है.
असलियत में यह सब बातें दिखाई नहीं देतीं सिवाय एक अपवाद के कि उसके काम में उसका वास्ता कई बार लड़कियों से पड़ता है और अक्सर सूचनाएं जमा करने में इनका इस्तेमाल किया जाता है.
मेजर जनरल वीके सिंह भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ में न सिर्फ़ एक उच्चाधिकारी रह चुके हैं बल्कि उस पर उन्होंने एक किताब भी लिखी है.
औरतों का इस्तेमाल
वे कहते हैं, " यह बहुत महत्वपूर्ण टूल है. हमें सारी गुप्त सूचनाएँ जासूसों से ही मिला करती थीं लेकिन अब इसका इस्तेमाल कम हो गया है. अब हम तकनीकी रूप से ज़्यादा काम लेते हैं लेकिन मानव से सूचनाएं लेने में उसे कुछ देना पड़ता है. किसी को पैसा तो किसी को शारीरिक सुख देना पड़ता है जिसमें औरतों का इस्तेमाल किया जाता है."
पिछले दिनों बीजिंग में भारतीय दूतावास उस समय विवादों में आया जब वहाँ तैनात एक रॉ अधिकारी मनमोहन शर्मा को इसलिए तुरंत बुला लिया गया कि वह एक चीनी भाषा सिखाने वाली महिला के संपर्क में थे. अभी इस मामले की जाँच चल ही रही थी कि वहाँ पर रॉ की स्टेशन प्रमुख उमा मिश्रा को भी वापस दिल्ली आने के लिए कह दिया गया.
जासूसी और महिला का संबंध फ़िल्मों में भी दिखाया जाता रहा है |
इस मामले में बीबीसी के पूर्वी भारत संवाददाता सुबीर भौमिक का कहना है, "मनमोहन शर्मा के खिलाफ़
इल्ज़ाम है कि वे चीनी भाषा सिखाने के लिए रखी महिला जो चीनी खुफ़िया विभाग की थी, के मोहपाश में फंस गए थे और उसे अपनी कुछ महत्वपूर्ण सूचनाएं देने लगे थे जबकि उमा शर्मा पर उन्हें बचाने की कोशिश का आरोप है."
इल्ज़ाम है कि वे चीनी भाषा सिखाने के लिए रखी महिला जो चीनी खुफ़िया विभाग की थी, के मोहपाश में फंस गए थे और उसे अपनी कुछ महत्वपूर्ण सूचनाएं देने लगे थे जबकि उमा शर्मा पर उन्हें बचाने की कोशिश का आरोप है."
उनके अनुसार, "कहा यह भी जा रहा है कि वे रॉ के अधिकारियों के कहने के मुताबिक ही काम कर रहे थे लेकिन करते वक्त ऐसा कुछ हुआ जिसके चलते रॉ के उच्चाधिकारियों से उनकी बिगड़ गई और उन्हें वापस बुला लिया गया."
एयरहोस्टेस का हनीट्रैप
यह पहला मौका नहीं है जब भारतीय अधिकारी इस तरह मोहपाश में फंसे हों. 1986 में श्रीलंका में काम कर रहे एक रॉ अधिकारी केवी उन्नीकृष्णन भी इसी तरह एक एयरहोस्टेस के हनीट्रैप में फंस गए थे.
उन्नीकृष्णन को पहले गिरफ़्तार किया गया और फिर इस संस्था से उनकी छुट्टी कर दी गई.
इस विषय पर गहन शोध करने वाले कस्तूरी भाष्यम कहते हैं, "उन्नीकृष्णन 1986-87 में श्रीलंका में थे जब भारतीय सेना श्रीलंका गई थी. उस समय के हालात अजीब से थे. तभी पता लगा कि उन्नीकृष्णन सीआईए को भारत की सूचनाएँ दे रहे थे. सीआईए बहुत मज़बूत थी और आज भी है. दो साल पहले भी हमारे एक अफ़सर अमेरिकन एजेंट के हनीट्रैप में पकड़े गए थे."
पिछले साल 1975 बैच के रॉ अधिकारी रवि नायर को इसलिए श्रीलंका से वापस बुला लिया गया क्योंकि कथित रूप से उनके भी एक विदेशी महिला से संबंध थे जो चीनी खुफ़िया एजेंसी के लिए काम करती थी.
ब्लैकमेलिंग
और तो और नेहरू युग के एक चोटी के राजनयिक जो कि तीन बड़े देशों में भारत के राजदूत रह चुके हैं, की एक रूसी महिला के साथ अंतरंग तस्वीरें खींच कर केजीबी ने ब्लैकमेल करने की कोशिश की थी.
जानेमाने राजनीतिक विश्लेषक इंदर मल्होत्रा याद करते हैं, "एक बहुत वरिष्ठ और सम्माननीय व्यक्ति जिन्होंने चीन और रूस में कामयाबी के साथ काम किया. रूस में एक अमरीकी महिला से उनके ताल्लुकात बढ़ गए थे. जब उन्हें केजीबी ने ब्लैकमेल किया तब उन्होंने कहा कि इन तस्वीरों की जितनी कॉपी बन सकें, दे दो ताकि उन्हें भारत और रूस में बाँटा जा सके. नेहरू जी उनसे बहुत नाराज़ भी हुए. अमरीका में गहन जाँच के बाद इन हिंदुस्तानी राजदूत की बहुत तारीफ़ की गई कि उन्होंने बड़ी हिम्मत से मुकाबला किया और रूसी उनसे ऐसा कुछ नहीं निकलवा पाए जो वे जानना चाहते थे."
आपको जान कर शायद आश्चर्य हो लेकिन यह सही है कि भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी को अभी भी किसी विदेशी से शादी करने के लिए सरकार की अनुमति लेनी पड़ती है.
आमतौर से विदेशों में तैनात बग़ैर शादीशुदा आईएफ़एस अधिकारियों को विदेशी खुफ़िया एजेंसियाँ अपने संभावित शिकार के रूप में देखती हैं.
प्रवीन स्वामी हिंदू अख़बार में वरिष्ठ संवाददाता हैं और सामरिक मामलों पर लिखते रहे हैं. वे कहते हैं, "पहले सेक्स को प्राप्त करना जितना मुश्किल था, अब नहीं हैं. बदलते समय और नैतिक मूल्यों के साथ इसका असर भी कम हुआ है लेकिन किसी अधिकारी से यह उम्मीद रखना कि वह इतनी दूर अकेले रहते हुए सेक्स संबंध नहीं रखेगा शायद अवास्तविक है लेकिन इसी के साथ यह भी सच है कि पुराने पड़ चुके खुफ़िया विभाग के नियमों के अनुसार इस बारे में पता लग जाए तो इस अधिकारी की नौकरी जा सकती है, यह बात उसे ब्लैकमेल करने के रास्ते को आसान भी बनाती है."
केजीबी को श्रेय
कहा जाता है कि हनीट्रैप विधा का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल अगर किसी ख़ुफ़िया एजेंसी ने किया है तो वो है रूस की केजीबी.
कस्तूरी भाष्यम भी मानते हैं कि इस विधा को कला बनाने का श्रेय भी केजीबी को जाता है.
कस्तूरी भाष्यम कहते हैं, "इसमें कोई शक नहीं है. कोल्ड वार के समय उन्होंने मास्को के आसपास स्कूल बनाए थे जहाँ लोग पैदा होते ही यह सीख सकें कि किसी दूसरे मुल्क में जाकर आप कैसे रहें. केजीबी इस प्रथा में बहुत माहिर था."
अब सवाल यह उठता है क्या भारतीय खुफ़िया एजेंसियाँ भी विदेशों से जानकारी जुटाने के लिए हनीट्रैप का इस्तेमाल करती हैं?
उन्नीकृष्णन पर सीआईए को भारत की सूचनाएँ देने का आरोप था |
इंटेलीजेंस ब्यूरो के पूर्व संयुक्त निदेशक मलय कृष्ण धर स्वीकार करते हैं कि उन्होंने इस तरह के ऑपरेशन किए हैं. वे कहते हैं, "हिंदुस्तान में एक पड़ोसी देश के उच्चाधिकारी को इसी तरह से हमने फंसाया था जिन्हें फिर उनके देश को वापस बुलाना पड़ा. हमारे ट्रेड क्राफ़्ट में हनीट्रैप की अहम भूमिका है. इसके लिए पहले तो अधिकारी के व्यवहार का अध्ययन करना पड़ता है. जब यह पता लग जाता है कि वह अय्याश है तब उसे फंसाना आसान हो जाता है. फिर हमें ऐसी महिला को ढ़ूढ़ना पड़ता है जो वफ़ादार हो, माताहारी न हो ताकि बिक न जाए."
दूसरी तरफ़ प्रवीण स्वामी का मानना है कि इन दावों में थोड़ी बहुत सचाई हो सकती है लेकिन पाकिस्तान में छपने वाली किताबों में इन बातों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया है.
विभागों की खींचतान
प्रवीण स्वामी कहते हैं, "पाकिस्तानी आर्मी के ब्रिगेडियर तिरमेज़ी की किताब में इसको बहुत बढ़ाचढ़ा कर पेश किया गया था. मुझे उसमें सचाई कम ही लगती है. दोतीन किताबें और भी इसी को लेकर आई थीं जिसमें सचाई और कल्पना दोनों को मिलाजुला कर डाला गया था."
आम तौर से जब इस तरह के मामले प्रकाश में आते हैं तो संबंधित व्यक्तियों के नाम नहीं लिये जाते लेकिन मनमोहन शर्मा और उमा मिश्रा के मामले में ऐसा नहीं हुआ. न सिर्फ़ उनकी अंडर कवर पहचान को जगज़ाहिर किया गया बल्कि यह भा बताया गया कि उन्हें क्यों वापस बुलाया जा रहा है.
कस्तूरी भाष्यम कहते हैं, "यह कमी हमारी संस्थाओं के पैटर्न में है. जैसे आरएडब्ल्यू में ज़्यादातर अधिकारी पुलिस से डेपुटेशन पर ही आते हैं. उन्हें इन ऑपरेशनों के बारे में ज़्यादातर जानकारी नहीं होती है कि विदेश में बैठे खुफ़िया अधिकारी उन्हें किस हद तक फंसा सकते हैं."
दूसरी तरफ़ प्रवीण स्वामी इसके लिए भारतीय विदेश सेवा और रॉ के बीच खेली जा रही टर्फ़ वार और रॉ के अंदर आईपीएस और आरएएस के अधिकारियों के बीच चल रही खींचतान को ज़िम्मेदार ठहराते हैं.
प्रवीण कहते हैं, "कुछ लोग चाहते हैं कि आरएडब्ल्यू में पुलिस विभाग का होल्ड बने. दूसरी बात है कि विदेश सेवा और खुफ़िया विभाग में हमेशा झगड़ा रहता है. फिर ये बातें लीक की जाती हैं. ऐसे मामलों में खेली जाने वाली राजनीति हमारी व्यवस्था को शोभा नहीं देतीं."
इसे व्यवस्था की कमी कहें या अकुशलता या अपरिपक्वता. पहले से ही ठंडे चल रहे भारत-चीन संबंधों को इस तरह की घटनाओं ने और ख़राब किया है. मोहपाश खुफ़िया जानकारी जुटाने का बेशक अच्छा साधन है लेकिन इसके अपने जोखिम भी हैं और कभी कभी इसमें लेने के देने भी पड़ सकते हैं
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