चालीस साल तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट देखने के बाद जो कुछ खास क्षण याद रह गए हैं, उनमें से एक श्रीलंकाई क्रिकेटर दलीप मेंडिस की एक पारी है। यह पारी दिल्ली के फिरोजशाह कोटला के मैदान पर नवंबर 1975 के पहले हफ्ते में खेली गई थी। श्रीलंका को टेस्ट स्टेटस तब तक नहीं मिला था और यह मैच अनौपचारिक टेस्ट मैचों के पहले उत्तरी क्षेत्र के खिलाफ खेला गया था। मेंडिस के पिता क्रिकेट के शौकीन थे और उन्होंने अपने बेटे का नाम रणजी के भतीजे के एस दलीप सिंहजी के नाम पर रखा था। दलीप अपने चाचा की ही तरह कैम्ब्रिज ससेक्स और इंग्लैंड से खेले थे और उन्हीं की तरह बल्ले के कलाकार थे। दलीप मेंडिस हालांकि ताकत पर ज्यादा भरोसा रखते थे। उस दिन कोटला पर उन्होंने अच्छे-खासे गेंदबाजी आक्रमण के पुरजे बिखेर दिए। उनमें भारत की ओपनिंग जोड़ी मदनलाल और मोहिंदर अमरनाथ की थी और बाएं हाथ के महान स्पिनर बिशन सिंह बेदी भी थे। उत्तरी क्षेत्र की टीम में राजेंद्र गोयल थे, जो बेदी की ही तरह बाएं हाथ के स्पिनर थे। और यदि उनका करियर बेदी के साथ न टकराया होता, तो वह भी कई टेस्ट मैच खेलते।
उत्तरी क्षेत्र ने पहले बल्लेबाजी की और 300 से ज्यादा रन बनाए। श्रीलंका के कुछ विकेट जल्दी निकल गए और उसके बाद मेंडिस ने पारी को सहारा दिया। उन्होंने शानदार सैकड़ा बनाया, जिनमें कट, पुल, ड्राइव और स्वीप शामिल थे। वह धुआंधार बल्लेबाजी का शानदार नमूना था। उनमें से कुछ शॉट अब तक मेरी याददाश्त में जमे हुए हैं, जिनमें बेदी के खिलाफ हवा में खेला गया एक कवर ड्राइव है, जो चार रनों के लिए सीमा के पार पहुंच गया था।श्रीलंका को आधिकारिक टेस्ट स्टेटस सन 1982 में मिला। दो साल बाद वे इंग्लैंड में अपना पहला टेस्ट मैच खेले। मैंने उस मैच की कमेंटरी रेडियो पर सुनी, जिसमें मेंडिस ने फिर अपनी प्रतिभा का शानदार नमूना पेश किया। लॉर्डस पर मौजूद दर्शकों ने उन्हें अंग्रेज गेंदबाजी, खासकर इयान बॉथम के परखचे उड़ाते देखा। अगर मुझे याद है, तो उन्होंने अपना शतक बॉथम की गेंदों पर एक चौके और एक छक्के से पूरा किया। बॉथम ने अगली पारी में बदला ले लिया। मेंडिस ने नौ चौकों और तीन छक्कों के सहारे 94 रन बनाए थे, जब उन्होंने गेंद को बाउंड्री पार भेजने की कोशिश की और बाउंड्री पर ही कैच दे बैठे। मेंडिस की उम्र तीस बरस थी, जब श्रीलंका को टेस्ट स्टेटस हासिल हुआ। उनका करियर रिकॉर्ड औसत मालूम देता है, लेकिन वह पहले श्रीलंकाई बल्लेबाज थे, जिन्होंने विश्व स्तरीय गेंदबाजी का आक्रामक बल्लेबाजी से मुकाबला किया।
लॉर्डस के उसी टेस्ट मैच में एक युवा बल्लेबाज अरविंद डिसिल्वा भी अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत कर रहा था। शरीर से वह भी मेंडिस की तरह ही स्थूल थे। उनमें मेंडिस जैसी ताकत नहीं थी, लेकिन उनके शॉट में विविधता ज्यादा थी। उनका फुटवर्क जबर्दस्त था। वह पीछे हटकर कट और पुल खेल सकते थे और धीमे गेंदबाजों के खिलाफ कई कदम आगे बढ़कर भी शॉट खेल सकते थे। अरविंद डिसिल्वा ने कई शानदार टेस्ट पारियां खेलीं। लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा याद 1996 के विश्व कप के सेमीफाइनल और फाइनल में उनकी पारियों के लिए किया जाता है। सेमीफाइनल ईंडन गार्डन पर खेला गया था। श्रीलंका की शुरुआत खराब रही। अब तक सफल रहे उनके ओपनर एक रन पर ही चलते बने। अरविंद ने आते ही नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया। उन्होंने श्रीनाथ के खिलाफ कई शॉट लगाए और अनिल कुंबले की गेंदबाजी को भोथरा कर दिया। वह शतक की ओर बढ़ रहे थे, लेकिन तभी कुंबले की एक तेज गुगली ने उनके स्टंप बिखेर दिए। तब तक उन्होंने 14 चौकों के साथ 47 गेंदों पर 66 रन बना लिए थे। उनकी टीम 251 पर पहुंच गई और भारत उतने रन नहीं बना पाया।
फाइनल में श्रीलंका को कोई महत्व नहीं दे रहा था। ऑस्ट्रेलिया की ताकतवर टीम ने पहले बल्लेबाजी की और उम्मीद यही थी कि वह 300 से ज्यादा रन बना लेगी। वह 241 रन ही बना पाई, इसका कुछ श्रेय अरविंद डिसिल्वा को जाता है, जिन्होंने अपनी आसान लगती ऑफ ब्रेक के सहारे तीन विकेट ले लिए। फिर भी यह लग रहा था कि ग्लेन मैकग्रा और शेन वार्न जैसे गेंदबाजों वाली ऑस्ट्रेलियाई टीम श्रीलंका के खिलाफ जीत जाएगी। यह संभावना और प्रबल हो गई, जब उनके ओपनर बल्लेबाज फिर से जल्दी आउट हो गए। अरविंद डिसिल्वा 23 रनों पर दो विकेट के स्कोर पर बल्लेबाजी करने आए। इस बार धीमी शुरुआत की, लेकिन जब वह एक बार जम गए, तो उनके बल्ले से शॉट बरसने लगे। उन्होंने बहुत नियंत्रित ढंग से शतक लगाया और दिखाया कि वह अनिल कुंबले से भी ज्यादा शेन वार्न के खिलाफ उस्तादी रखते हैं।
अरविंद डिसिल्वा के ही समकालीन थे सनत जयसूर्या और अर्जुन रणतुंगा। उनके और भी ज्यादा प्रतिभाशाली उत्तराधिकारी महेला जयवर्धने और कुमार संगकारा हैं। ये दोनों विश्व स्तरीय खिलाड़ी हैं। महेला नजाकत और रेशमी स्पर्श वाले खिलाड़ी हैं, तो कुमार संगकारा तेज और चपल खिलाड़ी हैं। पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से उन्होंने श्रीलंका की बल्लेबाजी को थामकर रखा है। महेला बहुत अच्छे स्लिप फील्डर हैं और संगकारा उतने ही अच्छे विकेटकीपर। जयवर्धने बहुत भले इंसान मालूम होते हैं, लेकिन खास बात उनकी बौद्धिक ऊंचाई है। संगकारा असाधारण रूप से विचारशील, पढ़े-लिखे और समझदार हैं। सन 2011 में एमसीसी ‘स्पिरिट ऑफ क्रिकेट’ भाषण में उनकी ये विशेषताएं देखी जा सकती हैं, जिसमें उन्होंने इतिहास, खेल और राजनीति को समेटा है। लॉर्डस पर अपने भाषण के बीच संगकारा ने सन 1983 में कोलंबो में हुए तमिलों के हत्याकांड का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि उनका परिवार गौरव के साथ अपने आपको असांप्रदायिक मानता है और उन्होंने 35 तमिल मित्रों को तब पनाह दी थी।
अपने भाषण के अंत में उन्होंने कहा कि जब मैं श्रीलंका के लिए क्रिकेट खेलता हूं, तब मेरे साथ सारे लोग होते हैं। मैं तमिल होता हूं, सिंहली, मुस्लिम और यूरो-एशियाई होता हूं। मैं बौद्ध, हिंदू, मुस्लिम और ईसाई सब कुछ होता हूं। संगकारा ने यह भाषण 4 जुलाई, 2011 को दिया था। उसी महीने के अंत में मैं कोलंबो में था, जहां मैं नीलम तिरुसेलवम की स्मृति में बोलने गया था, जो कि नामी विद्वान और वकील थे और धार्मिक व जातीय एकता के लिए जिये और मरे भी। अपने भाषण में मैंने संगकारा के भाषण का जिक्र किया कि कोई भी भारतीय क्रिकेटर इतनी समझदारी और सहानुभूति से भाषण नहीं दे सकता। मुझे शायद यह भी कहना चाहिए था कि किसी भी देश का कोई क्रिकेटर संगकारा की तरह भाषण नहीं दे सकता था। अगले दिन मैं एक डिनर पर था, जिसमें संगकारा भी मौजूद थे। हमें बात करने का कम ही अवसर मिला, लेकिन जब हमने बात की, तब संगकारा ने कहा कि भारत की यात्राओं में उन्होंने जिन चीजों का सबसे ज्यादा लुत्फ उठाया है, उनमें ओल्ड मॉन्क भी है। इस बात से मेरे मन में उनके प्रति स्नेह कुछ ज्यादा बढ़ गया। वह महान बल्लेबाज, शानदार विकेटकीपर, एक सच्चे और आत्मीय सार्वजनिक वक्ता और अच्छी स्ट्रांग रम के प्रेमी भी हैं।
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