भारतीय क्रिकेट ने 1971 में ही सही मायनों में चलना सीखा था और वेस्ट इंडीज़, इंग्लैंड जैसी टीमों को उन्हीं की ज़मीन पर हराया था.
ये सब कुछ मुमकिन हो पाया था दिलीप सरदेसाई की शानदार बल्लेबाज़ी की बदौलत.
सरदेसाई ने भारत के लिए कुल 30 टेस्ट खेले थे, जिनमें उन्होंने दो दोहरे शतक समेत पाँच शतक लगाए थे.
विजय मर्चेंट ने उन्हें 'द रेनासांस मैन ऑफ़ इंडिया' कहा जबकि गावस्कर ने कहा कि सरदेसाई ने ही उन्हें तेज़ गेंदबाज़ी खेलने का हौसला दिया था.
दिलीप सरदेसाई की 74वीं वर्षगांठ के मौके पर रेहान फज़ल नज़र दौड़ा रहे हैं इस महान क्रिकेट खिलाड़ी के जीवन पर.
सरदेसाई की पारी
19 फ़रवरी 1971, किंग्सटन जमैका का सबाइना पार्क. वेस्ट इंडीज़ के ख़िलाफ़ पहले खेलते हुए भारत ने मात्र 75 रनों पर पाँच विकेट खो दिए थे. रेडियो उद्घोषक के मुंह से निकला... ये टीम तो किसी क्लब टीम जैसी लगती है.
विदेश में अपना पहला टेस्ट खेल रहे एकनाथ सोल्कर जैसे ही मैदान पर उतरे, नॉट आउट बल्लेबाज़ दिलीप सरदेसाई उनके पास आए और पिच तक पहुंचने के दौरान उनसे लगातार बात कर समझाते रहे कि बल्लेबाज़ी कैसे करनी है.
सोल्कर ने एक छोर संभाल लिया और सरदेसाई ने अपने जीवन की सर्वश्रेष्ठ पारी खेली. 212 रनों की इस इनिंग्स को तेज़ गेंदबाज़ी के ख़िलाफ़ अब तक की बेहतरीन पारियों में गिना जाता है.
सोबर्स को भ्रम में डाला
इस पारी में दिलीप के बल्ले ने तो कमाल दिखाया ही, उनका दिमाग भी सोबर्स जैसे महान खिलाड़ी पर बीस साबित हुआ.
दिलीप सरदेसाई के बेटे और जानमाने टीवी पत्रकार राजदीप सरदेसाई याद करते हैं, "उस मैच में मेरे पिता और सोल्कर ने तय किया कि वो वेस्ट इंडीज़ को ये आभास देंगे कि वो उनके स्पिन गेंदबाज़ इंशान अली से बहुत प्रभावित हैं."
"उन्होंने तय किया कि वो उनके हर ओवर में एक चौका मारेंगे और एक बार बीट होंगें और बीट होने के बाद ज़ोर-ज़ोर से कहेंगे कि इंशान अली क्या ख़तरनाक बॉलर हैं! नतीजा ये हुआ कि सोबर्स ने इंशान को लंबा स्पेल दे दिया. सरदेसाई और सोल्कर तो चाहते ही यही थे कि इंशान अली को बॉलिंग अटैक से न हटाया जाए."
इस पूरी सीरीज़ में सरदेसाई ने 80.25 के औसत से तीन शतकों समेत 642 रन बनाए. वेस्ट इंडीज़ के दर्शकों ने उनका नया नाम रख दिया 'सारडीमान.'
विजय मर्चेंट ने उन्हें 'द रिनॉसेंस मैन ऑफ़ इंडिया' कहा जबकि गावस्कर ने कहा कि सरदेसाई ने ही उन्हें तेज़ गेंदबाज़ी खेलने का हौसला दिया था.
रोज़ एक लव लेटर
दिलीप सरदेसाई का ये पहला वेस्ट इंडीज़ दौरा नहीं था. 1962 में भी वो वेस्ट इंडीज़ आए थे और उन्होंने वेस हॉल और ग्रिफ़िथ जैसे सुपर फ़ास्ट गेंदबाज़ों का सामना किया था. उस दौरे में वो बड़ौदा में रह रहीं अपनी गर्ल फ़्रेंड नंदिनी पंत को हर रोज़ पत्र लिखा करते थे.
बाद में उन्होंने नंदिनी से शादी की, जो एक मशहूर समाज शास्त्री और फ़िल्म सेंसर बोर्ड की सदस्य बनीं.
नंदिनी सरदेसाई याद करती हैं, "हमने उस दौरे में एक-दूसरे को 100 पत्र तो लिखे होंगें. उस ज़माने में एसटीडी तो हुआ नहीं करता था और एक-दूसरे से संपर्क करने का कोई दूसरा साधन नहीं था."
"हमने एक दूसरे को पत्रों के माध्यम से ही जाना. फिर ये दोस्ती प्यार में बदल गई. मैं उस ज़माने में बड़ौदा में पढ़ रही थी और मेरे पिता वहाँ डीआईजी हुआ करते थे."
जब नंदिनी मुंबई में बीए की परीक्षा दे रहीं थीं तो दिलीप परीक्षा हॉल के बाहर उनके लिए फ़्लास्क में कॉफी लिए खड़े रहते थे.
1965 में सरदेसाई ने ब्रेबॉर्न स्टेडियम में ओपनर की हैसियत से खेलते हुए 200 नाबाद रनों की ज़बरदस्त पारी खेली. भारत की टीम पहली पारी में सिर्फ़ 88 रनों पर ऑलआउट हो गई. दिलीप की पारी की वजह से भारत ने फॉलोऑन बचाते हुए मैच ड्रॉ कराया.
नंदिनी सरदेसाई याद करती हैं, "मैं उस समय गर्भवती थी. राजदीप मेरे पेट में था. मैं कॉमेंट्री सुन रही थी. जब मैंने सुना कि दिलीप की सेंचुरी हो गई तो सोचा स्टेडियम चला जाए. मैंने दिलीप की 100 से 200 रनों की पारी देखी."
वो बताती हैं, "कप्तान पटौदी मेरे पास आकर बोले कि आपका बच्चा हमारे लिए भाग्यशाली साबित हुआ है. जैसे ही दिलीप का डबल हंड्रेड हुआ, पटौदी ने भारत की पारी घोषित कर दी."
टीम मैन
1971 के दौरे में कप्तान अजीत वाडेकर ने उन्हें चंदू बोर्डे पर तरजीह देकर टीम में शामिल किया था और दिलीप ने उन्हें निराश नहीं किया.
वाडेकर ने बीबीसी को बताया, "सरदेसाई जब बैटिंग करने आते थे तो बहुत नर्वस होते थे. दस-बारह मिनट बाद वो अपने शॉट लगाना शुरू करते थे. उनके पास रनों के लिए लालच था. जब वो 50 करते थे तो 100 बनाने की फ़िराक में रहते थे और सैकड़ा मारने के बाद उनकी नज़र में डबल सैंचुरी हुआ करती थी."
"वो टीम के लिए खेलते थे. अगर टीम को उनसे अच्छी पारी की ज़रूरत होती थी तो वो उसी हिसाब से अपने खेल को ढाल लेते थे. लेकिन उन्हें जितने मौके मिलने चाहिए थे उतने नहीं मिले. वो बेहतरीन बल्लेबाज़ थे और तकनीकी रूप से पूरी तरह परफेक्ट थे."
सरदेसाई के खेल में एक कमी थी कि उनकी फ़ील्डिंग बहुत ख़राब थी. उनके बारे में एक किस्सा मशहूर है कि एक बार एडिलेड में वो एक शॉट के पीछे दौड़ रहे थे, उन्होंने पीछे मुड़कर देखा कि बल्लेबाज़ पांचवें रन के लिए दौड़ने वाला है!
सरदेसाई ने आव देखा न ताव, उन्होंने अपने पैर से ही गेंद बाउंड्री के बाहर मार दी ताकि बल्लेबाज़ को सिर्फ़ चार रन ही मिलें. एक बार वेस्ट इंडीज़ में उन्होंने गैरी सोबर्स को कैच कर लिया, लेकिन अंपायर ने उन्हें आउट नहीं दिया.
जब वाडेकर ने अंपायर से पूछा कि कैच तो साफ था. आपने सोबर्स को क्यों नहीं आउट दिया तो उन्होंने जवाब दिया कि वो कल्पना भी नहीं कर सकते कि सरदेसाई कोई कैच भी पकड़ सकते हैं.
दुर्रानी के साथ मज़ाक
दिलीप सरदेसाई बहुत ज़िंदादिल और मज़ाकिया इंसान भी थे. उनकी वजह से ड्रेसिंग रूम में हमेशा रौनक रहती थी. साथी खिलाड़ियों से प्रैक्टिकल जोक करना उनका शग़ल हुआ करता था.
1971 के वेस्ट इंडीज़ दौरे में उनके रूम-मेट रहे सलीम दुर्रानी एक दिलचस्प किस्सा सुनाते हैं, "एक शाम मेरे कमरे में फ़ोन आया कि क्या हम सलीम दुर्रानी से बात कर सकते हैं. हम यहाँ रहने वाले भारतीय मूल के लोग हैं जो आपके लिए एक कैमरा और टेप रिकॉर्डर लेकर आए हैं."
"सलीम ने कहा कि आप कमरे में आ जाइए. उन्होंने कहा कि हम रिसेप्शन के पास खड़े हैं. आप ही आ जाइए. मैं सूट पहन कर नीचे गया, लेकिन वहाँ मुझे कोई भी नहीं दिखाई दिया. मैं वापस कमरे में आ गया."
"अभी सूट उतार कर बैठा था कि दोबारा फ़ोन आया... आप कहाँ हैं. हम आपका इंतज़ार कर रहे हैं. सलीम दोबारा सूट पहन कर नीचे गए. लेकिन वहाँ फिर कोई नहीं मिला. वो झल्लाते हुए ऊपर आ रहे थे तो उन्हें एक खंभे के पीछे से सरदेसाई की आवाज़ सुनाई पड़ी... तो जनाब को टेप रेकॉर्डर चाहिए."
"पता चला वही आवाज़ बदल कर उन्हें बार-बार नीचे बुला रहे थे. मैं उनके पीछे दौड़ा और उन्हें स्वीमिंग पूल में धक्का दे कर ही मैंने दम लिया."
मिलड्रेड और चंद्रशेखर की गुगली
दिलीप सरदेसाई के क्रिकेट करियर का एक और यादगार क्षण तब आया जब 1971 में ही ओवल में भारत ने इंग्लैंड को पहली बार उनकी ही ज़मीन पर हराया.
वैसे तो ये मैच चंद्रशेखर का रहा, लेकिन सरदेसाई ने भी 54 और 40 रनों की महत्वपूर्ण पारियाँ खेली. वो भारत के लिए
ी रन मारना चाहते थे, लेकिन एलन नॉट ने एक अद्भुत कैच ले कर उन्हें पैवेलियन भेज दिया.
उनके बेटे राजदीप सरदेसाई एक दिलचस्प किस्सा सुनाते हैं, "मेरे पिता रेसिंग देखने के शौकीन थे. चंद्रशेखर भी टेस्ट मैच के रेस्ट वाले दिन उनके साथ रेस देखने गए थे, जिसमें मिलड्रेड नाम का घोड़ा जीता था."
"ओवल टेस्ट में जब चंद्रा बॉलिंग रन अप पर जा रहे थे तो मेरे पिता ने उनसे कोड वर्ड में कहा कि एलड्रिच को एक मिलड्रेड मारो. इसका मतलब था कि उन्हें गुगली फेंको. चंद्रा ने जैसे ही गुगली फेंकी, एलड्रिच का मिडिल स्टंप दूर जा गिरा."
दो जुलाई, 2007 को दिलीप सरदेसाई का मात्र 67 साल की उम्र में निधन हो गया. उनकी गर्ल फ़्रेंड और बाद में पत्नी बनी नंदिनी सरदेसाई ने गेट वे ऑफ़ इंडिया पर उन हज़ारों ख़तों को समुद्र में बहा दिया जो उन्होंने एक दूसरे को लिखे थे!
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