किसी अफ़सर का नाम आर्थिक विकास से जोड़ा जाए, यह अमूमन नहीं होता. लेकिन विकास से टेक्नोक्रेट का नाम ज़रूर जुड़ जाता है. यकीन नहीं हो तो कुरियन, होमी भाभा और श्रीधरन के उदाहरण सामने हैं. इन तीनों के नाम से क्रमश श्वेत क्रांति, परमाणु ऊर्जा और मेट्रोपॉलिटन परिवहन क्रांति के नाम जुड़े हैं.
लेकिन बी शिवारमन इसके अपवाद रहे. जब एक अमरीकी कृषि मंत्री से भारत के हरित क्रांति की कामयाबी के बारे में प्रतिक्रिया देने को कहा गया तो उन्होंने कहा था कि यह कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन, प्रशासनिक अधिकारी बी शिवारामन और राजनेता सी सुब्रमण्यम की गठजोड़ की कामयाबी है.
शिवरामन भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) में 1934 में चयनित हुए. वे संपन्न घर से ताल्लुक रखते थे क्योंकि जब उनकी पहली नियुक्ति एक ज़िले में हुई तो उनके पास अपनी कार थी.
हालांकि वे बेहद मृदु भाषी थे. ऐसे में, हर राजनेता के साथ उनके सहज संबंध बन जाते थे. लेकिन वे निष्पक्ष थे और गरीब-गुरबों के हिमायती थे. इनके अलावा वे ख़ूब मेहनत करने वाले अधिकारी थे.
मेहनती अधिकारी
अपने करियर के शुरुआती दिनों में उन्होंने नागरिक आपूर्ति मामलों को नई तरकीबों के जरिए पटरी पर ला दिया था. इस अहम काम के लिए उन्होंने ऑर्डर ऑफ़ ब्रिटिश एंपायर से सम्मानित किया गया.
मुख्य सचिव के तौर पर उन्हें पांच मुख्यमंत्रियों के साथ काम करने का मौका मिला.
जब हरे कृष्ण महताब ने उन्हें राजस्व बोर्ड में सदस्य के तौर पर भेजा तो माना गया कि उन्हें कम महत्व की ज़िम्मेदारी दी गई. लेकिन उन्होंने वहां भी काबलियत का लोहा मनवाया.
अपनी सूझबूझ से लंबे समय से उपेक्षित राजस्व विभाग को उन्होंने बेहद महत्वपूर्ण विभाग बना दिया.
उनके करियर में तब अहम मोड़ आया जब उन्हें सेंट्रल राइस रिसर्च इंस्टीच्यूट की एक बैठक में बोलने के लिए आमंत्रित किया गया. उन्होंने शुष्क जमीन पर धान की खेती की विधि के बारे में बताया.
इस बैठक में तत्कालीन केंद्रीय खाद्य और कृषि मामलों के मंत्री सी. सुब्रमण्यम मौजूद थे. बैठक के कुछ दिनों के भीतर ही केंद्रीय कृषि सचिव की जगह खाली हुई.
सुब्रमण्यम ने फोर्ड फाउंडेशन के विशेषज्ञों से कहा कि वे राज्यों के अंदर कृषि मामलों की व्यवहारिक जानकारी रखने वाले अफ़सरों के नाम सुझाएं.
हरित क्रांति की नींव
तत्कालीन कृषि मंत्री सी. सुब्रमण्यम के मिले भरोसे के चलते शिवरामन ठोस काम कर पाए.
जिन दो अफ़सरों के नाम सुझाए गए उनमें शिवरामन एक थे. सुब्रमण्यम ने ये तय किया कि वे पहले शिवरामन को उर्वरक कमेटी का चेयरमैन बनाकर आजमाएंगे और बाद में उन्हें कृषि मंत्रालय का सचिव बनाएंगे.
इस तरह उन संबंधों की शुरुआत हुई जो इन दोनों के जीवनपर्यंत रहे. लेकिन इससे बड़ी बात ये हुई इस रिश्ते ने ही देश में हरित क्रांति की नींव रखी.
हरित क्रांति की कामयाबी में शिवरामन की भूमिका कई प्रकार से रही.
मसलन तब कृषि मंत्रालय में सचिव स्तर के चार अधिकारी होते थे. शिवरामन ने दो पद वापस कर दिए और उनके कार्यों को संभाल लिया. इस तरह उन्होंने शीर्ष पर कमांड में एकरूपता पैदा हुई.
उन्होंने मंत्रालय में कृषि आयुक्त और पशुपालन आयुक्त जैसे पद सृजित कराए और इन पदों पर विशेषज्ञों को नियुक्त किया. इससे मंत्रालय को विशेषज्ञ सलाहें आसानी से मिलने लगीं.
कृषि मंत्री ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) में सुधार का प्रस्ताव रखा था लेकिन यह प्रस्ताव वित्त मंत्रालय में लंबे समय से लंबित पड़ा हुआ था.
शिवरामन के बैच के ही अधिकारी टीपी सिंह वित्त मंत्रालय में सचिव थे. शिवरामन ने अपने इस रिश्ते का उपयोग करते हुए तत्कालीन वित्त मंत्री टीटी कृष्णामचारी से मुलाकात का समय लिया.
इस मुलाकात में कई बातें हुईं लेकिन शिवरामन वित्त मंत्री को मनाने में कामयाब रहे. इसका सबसे बड़ा फ़ायदा ये हुआ कि अनुसंधान वैज्ञानिकों के कामकाज में एक तरह की एकरूपता आई.
बजट बढ़ाने का काम
तब अनुसंधान वैज्ञानिकों की यात्रा के लिए सीमित बजट हुआ करता था. लेकिन शिवरामन अलग अलग मदों से पैसे बचाकर यात्रा बजट को सात गुना करने में कामयाब हुए. इससे वैज्ञानिक दूर दराज के इलाकों की यात्रा करने की स्थिति में आए और खेतों में किए जा रहे प्रयोगों के असर की समीक्षा संभव हो पाई.
सरकार पहले ही सैद्धांतिक तौर पर अमरीकी तर्ज़ पर कृषि विश्वविद्यालयों की स्थापना को मंज़ूरी दे चुकी थी.
शिवरामन ने इस दिशा में कोशिशें बढ़ाईं और उनकी कोशिशों का नतीजा लुधियाना और पंतनगर में कृषि विश्वविद्यालयों की स्थापना रही.
इसके बाद शिवरामन के जेहन में वह अपुष्ट विचार आया जिनसे भारतीय कृषि की दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव ला दिया.
नार्मन बॉरलॉग को भारत में काम करने के लिए बी. शिवरामन ने निमंत्रित किया था.
इसके तहत उन्होंने मैक्सिकों में नार्मन बॉरलॉग के नेतृत्व में चल रहे छोटे स्तरों के प्रयोग को अपनाने पर बल दिया.
इसके तहत जमीन के छोटे टुकड़ों को प्रयोगशाला का रूप दिया जाता, जिसमें पैसे, सुविधाएं, बीज, उर्वरक और नई तकनीकों का इस्तेमाल होता. इन प्रयोगों के नतीजों की सूक्ष्म निगरानी स्थानीय टीम लीडर से कराई जाती और इस पर मुख्यालय में बैठे विशेषज्ञों की नजर भी रहती. इसके नतीजों की स्वतंत्र जांच भी कराई जाती.
लेकिन शिवरामन को यह देखकर अचरज हुआ कि उनकी इस रणनीति का विरोध उपर से लेकर नीचे तक नजर आया.
बदलाव का नायक
तब योजना आयोग में कृषि सदस्य थे डॉ. वीकेआरवी राव. वे इस बात पर नाराज़ हो गए कि योजना आयोग से मंजूरी मिले बिना नई रणनीति पर अमरीकी विशेषज्ञों से चर्चा शुरू हो चुकी है.
कुछ दूसरे कृषि वैज्ञानिक भी थे जो दूसरी तरकीबों के पक्ष में थे. वे नए तरह से खेती करने को तैयार नहीं थे और ग़लत आंकड़ों की मदद से नई तरकीब को खारिज करने की कोशिश कर रहे थे.
तब शिवरामन ने सुब्रमण्यम की ताकत का इस्तेमाल वीकेआरवी राव से निपटने के लिए किया. उन्होंने निष्पक्ष और समर्पित वैज्ञानिकों के सही आंकड़ों पर भरोसा किया.
कुछ ही समय में, उन्हें ये देखकर आश्चर्य हुआ कि किसानों ने नई तरकीब को हाथों हाथ लिया. उन्होंने किसानों के संघ और सहकारी समितियों को बीजों में तरह तरह के प्रयोगों के लिए तैयार कर लिया. इस तरह शिवरामन वीकेआरवी राव और लक्ष्य से भटक रहे कृषि वैज्ञानिकों से पीछा छुड़ाने में कामयाब हुए.
शिवरामन के योगदान के चलते सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया. उन्हें सरकारी अफ़सरों के सबसे बड़े पद कैबिनेट सचिव तक प्रमोट किया गया. शिवरामन 1969 में सेवानिवृत हुए. बाद में उन्हें केंद्र और राज्य के संबंधों पर बने सरकारिया आयोग का सदस्य नियुक्त किया गया.
कमाल की शख्सियत
शिवरामन की शख्सियत कमाल की थी. सबसे बड़ी बात तो ये थी कि वे दिल और दिमाग का इस्तेमाल करना बखूबी जानते थे. दिमाग से वो व्यवहारिक थे जबकि दिल से दयालु.
नई खोजों के प्रति उनकी दिलचस्पी थी और वे हमेशा व्यवस्थागत बदलाव की संभावना देखते.
बी. शिवरामन की गिनती भारत में हरित क्रांति की शुरुआत करने वाले लोगों में शामिल है.
उन्होंने अफ़सरशाही के अंदर पदक्रमों की अहमियत को नजदीक से देखा और उसकी बारीकियों के बारे सबकुछ समझने लगे थे. बाद में उन्होंने प्रशासनिक बदलाव और परिवर्तन लाने में इसका बखूबी इस्तेमाल किया.
तकनीकी विषयों की भी समझ में उन्हें महारथ हासिल थी. वे नई से नई तकनीकों के बारे में तीन महीने के अंदर इतना कुछ समझने लगते थे कि तकनीकी सलाहकारों को क्या करें और क्या नहीं करें का निर्देश देने लगते.
इतना ही नहीं वे बेहद मिलनसार थे. किसी भी रंग के राजनेताओं से तालमेल बिठा लेते थे.
जब किसी से मतभेद बढ़ जाता था तो वे आगे बढ़कर बातचीत के जरिए मामला सुलझाने की कोशिश करते.
शिवरामन को लेकर एक बात जो सबसे अहम थी, वे हमेशा सही समय पर सही जगह पर मौजदू सही आदमी थी.
(एमके कॉव भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय और नागरिक उड्डयन मंत्रालय के सचिव रहे हैं. उन्होंनेक्लिक करेंबीबीसी हिंदी की अफ़सरशाही सिरीज़के लिए बी.शिवारामन के योगदान को याद किया है.)
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