Wednesday, 25 February 2015

आसान नहीं शवों को खोल कर देखना

शवों का पोस्टमार्टम करने वाली लंदन की डॉ जॉर्ज
अमूमन पर्दे पर कई लोगों ने फोरेंसिक पैथोलॉजिस्ट को काम करते हुए देखा है. लेकिन असल में इस काम में बेहद दुश्वारियां हैं.
लंदन के सेंट थॉमस अस्पताल में हिस्टोपैथोलॉजिस्ट के रूप में काम काम करने वाली डॉ सिमी जॉर्ज लगभग रोज ही मौत के कारणों का पता लगाने के लिए शव परीक्षण करती हैं.
डॉ सिमी जॉर्ज शवों के दिल, आंखें, पसलियों और खोपड़ी को खोलकर देखती हैं.
जॉर्ज बताती हैं कि कई बार तो मृत शरीर इतना गल चुका होता है कि उसका चेहरा नहीं दिखता, खोपड़ी काली पड़ जाती है और इधर-उधर कीड़े रेंग रहे होते हैं. ऐसे में मौत की वजह पता करने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ जाता है.

सड़े-गले शव

शवों का पोस्टमार्टम
हिस्टोपैथोलॉजिस्ट वे होते हैं जो कुदरती मौत का मेडिकल कारण तलाशते हैं, जबकि फोरेंसिक पैथोलॉजिस्ट अस्वाभाविक मौत के कारणों का पता लगाते हैं.
जॉर्ज हर हफ्ते करीब 50 शव परीक्षण करती हैं. ये या तो मृत व्यक्ति के रिश्तेदारों की इजाज़त से किए जाते हैं, या अधिकारी के आदेश पर. इसके अलावा शव परीक्षण तब किया जाता है जब डॉक्टर मौत की वजह जानने में नाकाम रहता है.
दो बच्चों की मां जॉर्ज बताती हैं कि ये काम तो बेहद कठिन है लेकिन वे काम के दौरान कभी विचलित नहीं होतीं. वे बताती हैं, "मुझे सड़े-गले शवों में रेंग रहे कीड़ों, मल या मूत्र से कोई फर्क नही पड़ता. हां, पेट में बचे अवशेषों को देखकर बुरी तरह उल्टी आती है."
मौत के बाद शवों को मुर्दाघर में लाया जाता है जहां उन्हें 4 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में रखा जाता है. ऑटोप्सी के लिए मेज पर उन्हें बिना कपड़ों के लिटाया जाता है और आंखें खुली हुई होती हैं.
शवों का पोस्टमार्टम
अगर मौत तुरंत हुई होती है तो मृत देह की चमड़ी फीकी पड़ जाती है और रंगत नीली हो उठती है.

मौत वर्जित विषय नहीं

सेंट थॉमस में ही सर्विस मैनेजर ट्रेसी बिग्गस जॉर्ज की साथी हैं. वे शवों को खोलने और अंगों को अलग करने का काम करती हैं.
बिग्गस कहती हैं, "ये काम करते हुए हमें हर दिन ये अहसास होता है कि जीवन कितना दुर्लभ है और मौत कितनी आसान है."
वे बताती हैं, "मुझे मौत से डर लगता है. अपनोंं के खोने का डर होता है. रोलर कॉस्टर पर भी नहीं जाती कि कहीं मुझे हार्ट अटैक न आ जाए."
शवों का पोस्टमार्टम
इसके विपरीत जॉर्ज को मौत से डर नहीं लगता. उन्होंने बताया, "मौत कोई वर्जित विषय नहीं है. ये तो जीवन का हिस्सा है. इस पर चर्चा करने में कैसी शर्म और कैसा डर."

उम्मीदों की खिड़की

डॉ जार्ज और बिग्गस जैसे लोगों का काम समाज में उम्मीदों और आशाओं की एक खिड़की खुलने जैसा है.
पैथोलॉजिस्ट कैंसर जैसी लंबी बीमारियों से मरने वाले लोगों के शवों का परीक्षण करते हैं. इससे उन्हें ये जानने में मदद मिलती है कि इलाज असर कर रहा है या नहीं.
शवों का पोस्टमार्टम
यही नहीं, पोस्टमार्टम से कई आनुवंशिक रोगों का भी पता चलता है जिससे मृत व्यक्ति के परिवार के लोगों को इसके खतरे से बचाया जा सकता है.
डॉ जॉर्ज कहती हैं, "पोस्टमार्टम से परिवार वालों को मौत के कारणों के बारे में बताने के अलावा पेशेवरों को रोग और रोग के विकास के बारे में अधिक जानकारी पाने में मदद मिलती है. ये जानकारी बाकियों के काम आती है.

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