1930 बैच के आईसीएस अधिकारी धरम वीरा ने अंग्रेज़ों के राज और आज़ाद भारत में कई महत्वपूर्ण पदों की शोभा बढ़ाई.
वो नेहरू के प्रधान सचिव बने, फिर उन्हें राजदूत बनाकर चेकोस्लवाकिया भेजा गया.
लाल बहादुर शास्त्री के ज़माने में वो भारत के कैबिनेट सचिव थे. बाद में उन्होंने पंजाब, पश्चिम बंगाल और मैसूर के राज्यपाल की जिम्मेदारी भी संभाली. अपनी आयु के आखिरी समय तक उन्होंने दिल्ली के गोल्फ़ क्लब में रोज़ दो घंटे गोल्फ़ खेलना जारी रखा.
बिजनौर के रहने वाले धरम वीरा ने अपनी क्लिक करेंडिग्री इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ली. इसके बाद वो आगे की पढ़ाई और सिविल सर्विस के इम्तेहान में बैठने इंग्लैंड गए.
काम पर ध्यान
आईसीएस में आने के बाद जब उनकी पहली पोस्टिंग अलीगढ़ में हुई तो उनके कलक्टर पर्सीवल मार्श ने उन्हें एक अमूल्य सलाह दी, "बातें करना राजनीतिज्ञों का काम है. तुम्हें तुम्हारे काम से पहचाना जाएगा, न कि तुम्हारी बातों से. इसलिए बातें कम करो और काम पर अधिक ध्यान दो."
धरम वीरा ने ताउम्र इस सलाह का पालन किया. जब धरम वीरा अल्मोड़ा में ज्वाएंट मजिस्ट्रेट थे तोक्लिक करेंनेहरू अल्मोड़ा जेल में रह रहे थे. दोनों की बागबानी मे रुचि उनके नज़दीक आने का कारण बनी.
नेहरू ने अपनी जेल के सामने फूलों के कुछ पौधे लगाए थे. जब धरम वीरा उनसे मिलने आते थे तो वो उन पौधों को बहुत गर्व से उन्हें दिखाते थे. उस ज़माने में नेहरू डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया लिख रहे थे. उसकी भी चर्चा वो अक्सर उनसे किया करते थे.
सज्जन पुरुष
लियाकत अली खॉं के साथ भी धरम वीरा की दोस्ती रही थी.
तभी उनकी पत्नी कमला नेहरू की तबियत काफ़ी बिगड़ गई. उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव ने धरम वीरा को फ़ोन किया कि वो नेहरू को छोड़ने के लिए तैयार हैं बशर्ते नेहरू ये आश्वासन दे कि वो किसी राजनीतिक गतिविधि में भाग नहीं लेंगे.
जब धरम वीरा ने मुख्य सचिव का ये संदेश नेहरू को सुनाया तो उन्होंने जवाब दिया, "मैं इस तरह का कोई आश्वासन नहीं दे सकता. हांलाकि उन्हें अब तक ये अंदाज़ा हो जाना चाहिए कि मैं राजनीतिज्ञ के साथ साथ एक सज्जन पुरुष भी हूँ."
धरम वीरा ने मुख्य सचिव को फ़ोन कर कहा कि नेहरू के इस आश्वासन के पर्याप्त समझा जाना जाहिए कि वो एक सज्जन पुरुष हैं. इसलिए मैं उनको रिहा करने की सिफ़ारिश करता हूँ.
लियाक़त अली खाँ से दोस्ती
उत्तर प्रदेश मुस्लिम लीग के नेता और बाद में पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बने लियाक़त अली ख़ाँ से धरम वीरा की गहरी दोस्ती थी. लियाक़त और उनकी बेगम दोनों को ब्रिज खेलने का बहुत शौक था और धरम वीरा भी ये शौक रखते थे.
इसके अलावा लियाक़त जिन पीने के भी बहुत शौकीन थे. युद्ध के दौरान विदेशी शराब बहुत मुश्किल से मिलती थी. लेकिन अपने संपर्कों की बदौलत धरम वीरा उनके लिए बेहतरीन जिन का इंतेज़ाम कर देते थे. इसकी वजह से लियाक़त अली खाँ उनके शुक्रगुज़ार रहा करते थे.
सरदार पटेल की नाराज़गी
जब धरम वीरा नेहरू के प्रधान सचिव थे तो सरदार पटेल ने जजों की नियुक्ति संबंधी कुछ प्रस्ताव स्वीकृति के लिए नेहरू के पास भेजे. इन प्रस्तावों पर धरम वीरा ने अपनी टिप्पणी लिखित रूप से नेहरू को दी.
नेहरू ने ग़लती से वो टिप्पणी हूबहू पटेल के पास भेज दी. उसको पढ़ कर पटेल को बेहद गुस्सा आया. उन्होंने कहा,"दिस ब्वॉय हैज़ बिकम टू बिग फॉर हिज़ बूट्स."
धरम वीरा ने सरदार पटेल से मिलने का समय माँगा. जब वो पटेल के सामने गए तो उन्होंने उन्हें नमस्कार किया.
(धरम वीरा की ये दोनों तस्वीरें धरम वीरा फाउंडेशन के सौजन्य से ली गई हैं)
पटेल ने उन्हें बहुत ठंडे ढ़ंग से जवाब दिया. धरम वीरा ने बहुत विनम्रता से कहा, "लगता है आप मुझसे नाराज़ हैं." पटेल का जवाब था, "हाँ मैं तुम से बहुत नाराज़ हूँ."
धरमवीरा बोले, "क्या मैं कुछ कह सकता हूँ ? शंकर आपके निजी सचिव हैं. वो आपको कई मुद्दों पर सलाह देते हैं... कई बार मंत्रियों के प्रस्ताव के ख़िलाफ़ भी. क्या वो अपना कर्तव्य नहीं निभा रहे ?"
सरदार थोड़ा ढ़ीले हुए और बोले, "हाँ." इस पर धरम वीरा ने कहा, "मैंने भी तो वही किया सर. अगर आप मुझसे नाराज़ थे तो मुझे बुला भेजते ? आपने दूसरों से मेरी शिकायत क्यों की? आपने मेरा कान भी पकड़ा होता तो मैं बिल्कुल बुरा नहीं मानता." इस पर सरदार ने हंसते हुए कहा, "तुम बड़े बदमाश हो. तुमने मेरा मुँह बंद कर दिया. जाओ, अच्छा, ऐसा कुछ होगा तो कान खीचूँगा तुम्हारे."
धरम वीरा का मानना था कि नेहरू इतने गंभीर और तुनक मिजाज़ शख्स नहीँ थे जितना कि लोग उनके बारे में कहते थे. नेहरू अक्सर उन्हें चैलेंज करते थे कि कौन पहले सीढ़ियाँ चढ़ कर पहली मंज़िल पर प्रधान मंत्री कार्यालय में पहुँचे.
राष्ट्रपति सो रहे थे
1966 में जब लाल बहादुर शास्त्री का अचानक ताशकंद में निधन हो गया तो उनके साथ गए प्रतिनिधिमंडल के सामने सबसे बड़ी समस्या ये आई कि जल्द से जल्द इस की सूचना राष्ट्रपति राधाकृष्णन को दी जाए.
लाल बहादुर शास्त्री के निधन की सूचना तत्कालीन राष्ट्रपति राधाकृष्णन की नींद से जगाकर दी गई.
रूसियों द्वारा बेहतरीन टेलिफ़ोन व्यवस्था उपलब्ध कराए जाने के बावजूद ये काम इतना आसान नहीं था. जब रात के दो बजे राष्ट्रपति भवन में टेलिफ़ोन की घंटी बजी तो उस समय सो रहे टेलिफ़ोन ऑपरेटर ने बिना कोई बात सुने ये कह कर फ़ोन रख दिया कि राष्ट्रपति को इस समय नहीं जगाया जा सकता.
इसके बाद शास्त्री के साथ गए सेनाध्यक्ष जनरल पीपी कुमारामंगलम ने सेना ऑपरेशन रूम को फ़ोन मिला कर जैसे ही ड्यूटी ऑफ़िसर मेजर टंडन से कहा, "टंडन मैं जनरल कुमारामंगलम बोल रहा हूँ... "मेजर ने उन्हें रोकते हुए कहा, "इफ़ यू आर जनरल कुमारमंगलम, देन आई एम क्वीन ऑफ़ शेबा."
सौभाग्य से तब तक तत्कालीन गृह सचिव लल्लन प्रसाद सिंह का कैबिनेट सचिव धरम वीरा से संपर्क स्थापित हो चुका था. वो तुरंत उसी समय अपनी कार स्वयं चला कर राष्ट्रपति भवन गए. राष्ट्रपति राधाकृष्णन को जगाया गया और गुलज़ारी लाल नंदा को कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई.
धरम वीरा ने राष्ट्रीय पुलिस आयोग के प्रमुख के तौर पर पुलिस व्यवस्था में सुधार के अनेकों सुझाव दिये लेकिन किसी भी सरकार को उन्हें अमल में लाने की हिम्मत नहीं हुई.
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