बीती सदी के साठ के दशक में अपने बचपन के दिनों के दौरान मैं वेस्ट इंडीज और न्यूजीलैंड को विश्व क्रिकेट के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव की तरह देखता था। दोनों अंग्रेजी भाषी थे और दोनों की ज्यादातर द्वीपीय आबादी ईसाइयों की थी। जनसंख्या के मामले में इन दोनों की तुलना भारत के किसी मध्यम आकार के शहर से की जा सकती थी। भौगोलिक और जनांकिकीय समानताएं दोनों टीमों को काफी हद तक समान बनाती थीं। हां, क्रिकेटीय कौशल के मामले में जरूर दोनों टीमें एक-दूसरे से बिल्कुल उलट थीं। जहां वेस्ट इंडीज निर्विवाद तौर पर विश्व चैंपियन थी, वहीं न्यूजीलैंड अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट की सबसे कमजोर टीम थी। दूसरी ओर मेरी टीम भारत थी, जिसके वेस्ट इंडीज से हरदम हारने, और न्यूजीलैंड से हमेशा जीतने की उम्मीद रहती थी। शायद इसी वजह से यह अप्रत्याशित नहीं था कि वह कीवी ही थे, जिनके खिलाफ हमने विदेशी जमीन पर अपनी पहली टेस्ट सीरीज जीती थी। हालांकि 17 फरवरी, 1976 से पहले तक भारतीय क्रिकेट के प्रशंसक कीवियों की क्रिकेट और उनके खिलाड़ियों को बेहद हलके ढंग से लेते थे। दरअसल, उसी दिन समंदर पार से यह खबर आई थी कि हमें एक टेस्ट मैच में उस टीम के खिलाफ पारी की हार का सामना करना पड़ा, जिसे अब तक हम दुनिया की सबसे बदतर टीम मानते थे। एक अनजाने से युवा खिलाड़ी आर जे हेडली ने वेलिंगटन के बेसिन रिजर्व में केवल 23 रन देकर हमारे सात विकेट चटकाए थे, और इसकी बदौलत भारत की टीम तीन विकेट पर 75 के स्कोर से आगे खेलते हुए 81 पर ऑल आउट हो गई थी।
वैसे, अतीत में न्यूजीलैंड टीम में बेहतरीन क्रिकेट खिलाड़ी रहे हैं। इनमें बाएं हाथ से बल्लेबाजी करने वाले मार्टिन डोनेली और बर्ट सटक्लिफ के अलावा जे ए कोवी और डिक मोत्ज जैसे बेहतरीन स्विंग गेंदबाज शामिल थे। इन सभी खिलाड़ियों की अपने समय के विश्व एकादश में शामिल होने की दावेदारी बनती थी। मगर महत्वपूर्ण बात यह है कि इनमें से किसी से भी उम्मीद की जा सकती थी, कि वह विपक्षी टीम के खिलाफ न्यूजीलैंड को जीत दिला दे। दरअसल, वह रिचर्ड हेडली थे, जिन्होंने पहली बार कीवियों को यह एहसास कराया कि अगर दिन और परिस्थितियां माकूल हों, तो वे वाकई टेस्ट मैच जीत सकते थे। युवावस्था में एक लापरवाह तेज गेंदबाज रहे हेडली ने परिपक्व होने पर गेंदबाजी के तमाम कौशलों का विकास किया। वह गेंद को दोनों तरफ सीम और स्विंग करा सकते थे, बेहतरीन यॉर्कर फेंकते थे और गेंद पर उनका नियंत्रण देखने लायक होता था। इतना ही नहीं, वह निचले क्रम के एक उपयोगी बल्लेबाज भी थे। खेल पर निर्णायक छाप छोड़ने वाले न्यूजीलैंड के दूसरे खिलाड़ी मार्टिन क्रो थे। हेडली की तरह उनका भी एक बड़ा भाई था, जिसने टेस्ट क्रिकेट भी खेला। कैरियर के अच्छे दिनों में जिस तरह हेडली दुनिया के सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज माने जाते थे, उसी तरह 1980 के दशक के कुछ वर्षों के दौरान क्रो को खेल के प्रतिष्ठित जानकार विश्व का सबसे अच्छा बल्लेबाज मानते थे। वह विकेट के चारों ओर स्ट्रोक खेल सकते थे, धीमी या तेज, वह हर तरह की गेंदबाजी का सामना करने में सक्षम थे और पुछल्ले बल्लेबाजों के साथ खेलते वक्त तो उनका कोई सानी ही नहीं था। स्विंग और रिवर्स स्विंग के मास्टर वसीम अकरम ने उनके बारे में कहा था कि उनकी गेंदों को क्रो से बेहतर किसी भी बल्लेबाज ने नहीं खेला।
मैंने रिचर्ड हेडली को कभी लाइव नहीं देखा, मगर उनकी गेंदबाजी के कई स्पेल मैंने रेडियो पर सुने हैं, और कुछ को टेलीविजन पर देखा भी है। हां, मार्टिन क्रो को खेलते हुए दो बार मैंने लाइव देखा है, मगर अफसोस की बात है कि दोनों ही बार क्रो भारत में विवादास्पद अंपायरिंग का शिकार बने। 1987 के विश्व कप के दौरान बंगलूरू में भारत के खिलाफ खेलते हुए क्रो को मनिंदर सिंह की गेंद पर स्टंप आउट दिया गया, जबकि रिप्ले में साफ था कि जब विकेटकीपर ने स्टंप बिखेरे, तब गेंद उसके हाथ में नहीं थी। आठ वर्ष बाद इसी मैदान पर उन्हें अनिल कुंबले की गेंद पर पगबाधा आउट दिया गया, जबकि गेंद न केवल ऊंची थी, बल्कि साफ तौर पर लेग स्टंप के बाहर भी जा रही थी।
तीसरे महान कीवी खिलाड़ी, जो ज्यादा पुराने भी नही हैं, क्रिस केर्यन्स थे। मैदान के बाहर उनका आचरण कैसा भी हो, मगर इसमें संदेह नहीं कि वह कमाल के क्रिकेटर थे और हवा में शॉट खेलना उनकी खूबी थी। मुझे इंग्लैंड में हुआ एक मैच याद आता है, जो मैं टेलीविजन पर देख रहा था। उस मैच में केर्यन्स ने बाएं हाथ के धीमे गेंदबाज फिल टफनेल की खूब ठुकाई की थी। उनके एक ओवर के दौरान केर्यन्स ने क्रीज से बाहर आते हुए शॉट खेली, मगर गेंद ठीक से उनके बल्ले पर नहीं आई। इसके बावजूद गेंद ने सीमा रेखा को थोड़ी ही दूरी से पार किया और उन्हें छह रन मिले। अगली गेंद पर उन्होंने फिर क्रीज से बाहर आते हुए गजब की टाइमिंग के साथ गेंद पर प्रहार किया, और स्टंप पर लगे माइक्रोफोन के जरिये कीवी लहजे में उनकी आवाज सुनाई दी, 'दैट्स बैटर'। वह वाकई बेहतरीन शॉट थी, क्योंकि गेंद मैदान को पार करते हुए पार्किंग स्थल पर गिरी थी।
हेडली, क्रोव और केर्यन्स जैसे क्रिकेटरों की बदौलत कीवी क्रिकेटरों के भीतर यह एहसास जागा कि वे भी भारत, पाकिस्तान, इंग्लैंड या फिर ऑस्ट्रेलिया को हरा सकते हैं। यह इन खिलाड़ियों की ही विरासत है, जिसने न्यूजीलैंड की वर्तमान टीम को ताकत दी है। यह आत्मविश्वास सबसे ज्यादा उनके कप्तान ब्रैंडन मैककुलम में दिखता है। उनकी बल्लेबाजी की बात करें, तो पहले दस ओवर में मैच का नतीजा निर्धारित करने की क्षमता के मामले में वह सनथ जयसूर्या तक को पीछे छोड़ चुके हैं। वहीं, अगर उनकी कप्तानी पर गौर किया जाए, तो बल्लेबाजी कर रही टीम के रनों का प्रवाह रोकने के बजाय लगातार विकेट चटकाने को लेकर अपने उत्साह को लेकर वह स्टीव वॉ से भी आगे दिखते हैं।
इस विश्व कप में कीवी टीम ने अपनी प्रतिभाओं का शानदार प्रदर्शन किया है। फिर चाहे वह मैककुलम के अलावा इलियट, विलियम्सन, टेलर और गुप्टिल की बल्लेबाजी हो, बोल्ट और साउदी की स्विंग गेंदबाजी हो, या फिर हमेशा युवा दिखने वाले डैनियल वेटोरी की फिरकी गेंदबाजी हो। टीम का क्षेत्ररक्षण बेहतरीन रहा है। फिर, जैसा कि कभी वेस्ट इंडीज के बारे में कहा जाता था, न्यूजीलैंड की जनसंख्या से तुलना करें, तो उनकी उपलब्धियां चौंकाने वाली हैं। इस देश में सात करोड़ भेड़ें हैं, जबकि लोगों की संख्या 50 लाख से भी कम है। मतलब यह कि न्यूजीलैंड की पूरी आबादी अकेले नोएडा में समा सकती है, जबकि उनके क्रिकेटर पूरी दुनिया को जीतने का माद्दा रखते हैं।
विश्व कप के फाइनल वाली सुबह यह कॉलम प्रकाशित होगा। मगर आज के मैच का नतीजा कुछ भी हो, मेरे लिए न्यूजीलैंड टूर्नामेंट की सर्वश्रेष्ठ टीम है। अब तक उन्होंने रोमांचकारी क्रिकेट खेला है। इतना ही नहीं, लंबे समय से क्रिकेट की दुनिया की कथित महाशक्तियों ने न्यूजीलैंड को जिस हल्के ढंग से लिया है, मैदान पर अपनी उपलब्धियों के जरिये मैककुलम की टीम ने उसका मुंहतोड़ जवाब दे दिया है।
वैसे, अतीत में न्यूजीलैंड टीम में बेहतरीन क्रिकेट खिलाड़ी रहे हैं। इनमें बाएं हाथ से बल्लेबाजी करने वाले मार्टिन डोनेली और बर्ट सटक्लिफ के अलावा जे ए कोवी और डिक मोत्ज जैसे बेहतरीन स्विंग गेंदबाज शामिल थे। इन सभी खिलाड़ियों की अपने समय के विश्व एकादश में शामिल होने की दावेदारी बनती थी। मगर महत्वपूर्ण बात यह है कि इनमें से किसी से भी उम्मीद की जा सकती थी, कि वह विपक्षी टीम के खिलाफ न्यूजीलैंड को जीत दिला दे। दरअसल, वह रिचर्ड हेडली थे, जिन्होंने पहली बार कीवियों को यह एहसास कराया कि अगर दिन और परिस्थितियां माकूल हों, तो वे वाकई टेस्ट मैच जीत सकते थे। युवावस्था में एक लापरवाह तेज गेंदबाज रहे हेडली ने परिपक्व होने पर गेंदबाजी के तमाम कौशलों का विकास किया। वह गेंद को दोनों तरफ सीम और स्विंग करा सकते थे, बेहतरीन यॉर्कर फेंकते थे और गेंद पर उनका नियंत्रण देखने लायक होता था। इतना ही नहीं, वह निचले क्रम के एक उपयोगी बल्लेबाज भी थे। खेल पर निर्णायक छाप छोड़ने वाले न्यूजीलैंड के दूसरे खिलाड़ी मार्टिन क्रो थे। हेडली की तरह उनका भी एक बड़ा भाई था, जिसने टेस्ट क्रिकेट भी खेला। कैरियर के अच्छे दिनों में जिस तरह हेडली दुनिया के सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज माने जाते थे, उसी तरह 1980 के दशक के कुछ वर्षों के दौरान क्रो को खेल के प्रतिष्ठित जानकार विश्व का सबसे अच्छा बल्लेबाज मानते थे। वह विकेट के चारों ओर स्ट्रोक खेल सकते थे, धीमी या तेज, वह हर तरह की गेंदबाजी का सामना करने में सक्षम थे और पुछल्ले बल्लेबाजों के साथ खेलते वक्त तो उनका कोई सानी ही नहीं था। स्विंग और रिवर्स स्विंग के मास्टर वसीम अकरम ने उनके बारे में कहा था कि उनकी गेंदों को क्रो से बेहतर किसी भी बल्लेबाज ने नहीं खेला।
मैंने रिचर्ड हेडली को कभी लाइव नहीं देखा, मगर उनकी गेंदबाजी के कई स्पेल मैंने रेडियो पर सुने हैं, और कुछ को टेलीविजन पर देखा भी है। हां, मार्टिन क्रो को खेलते हुए दो बार मैंने लाइव देखा है, मगर अफसोस की बात है कि दोनों ही बार क्रो भारत में विवादास्पद अंपायरिंग का शिकार बने। 1987 के विश्व कप के दौरान बंगलूरू में भारत के खिलाफ खेलते हुए क्रो को मनिंदर सिंह की गेंद पर स्टंप आउट दिया गया, जबकि रिप्ले में साफ था कि जब विकेटकीपर ने स्टंप बिखेरे, तब गेंद उसके हाथ में नहीं थी। आठ वर्ष बाद इसी मैदान पर उन्हें अनिल कुंबले की गेंद पर पगबाधा आउट दिया गया, जबकि गेंद न केवल ऊंची थी, बल्कि साफ तौर पर लेग स्टंप के बाहर भी जा रही थी।
तीसरे महान कीवी खिलाड़ी, जो ज्यादा पुराने भी नही हैं, क्रिस केर्यन्स थे। मैदान के बाहर उनका आचरण कैसा भी हो, मगर इसमें संदेह नहीं कि वह कमाल के क्रिकेटर थे और हवा में शॉट खेलना उनकी खूबी थी। मुझे इंग्लैंड में हुआ एक मैच याद आता है, जो मैं टेलीविजन पर देख रहा था। उस मैच में केर्यन्स ने बाएं हाथ के धीमे गेंदबाज फिल टफनेल की खूब ठुकाई की थी। उनके एक ओवर के दौरान केर्यन्स ने क्रीज से बाहर आते हुए शॉट खेली, मगर गेंद ठीक से उनके बल्ले पर नहीं आई। इसके बावजूद गेंद ने सीमा रेखा को थोड़ी ही दूरी से पार किया और उन्हें छह रन मिले। अगली गेंद पर उन्होंने फिर क्रीज से बाहर आते हुए गजब की टाइमिंग के साथ गेंद पर प्रहार किया, और स्टंप पर लगे माइक्रोफोन के जरिये कीवी लहजे में उनकी आवाज सुनाई दी, 'दैट्स बैटर'। वह वाकई बेहतरीन शॉट थी, क्योंकि गेंद मैदान को पार करते हुए पार्किंग स्थल पर गिरी थी।
हेडली, क्रोव और केर्यन्स जैसे क्रिकेटरों की बदौलत कीवी क्रिकेटरों के भीतर यह एहसास जागा कि वे भी भारत, पाकिस्तान, इंग्लैंड या फिर ऑस्ट्रेलिया को हरा सकते हैं। यह इन खिलाड़ियों की ही विरासत है, जिसने न्यूजीलैंड की वर्तमान टीम को ताकत दी है। यह आत्मविश्वास सबसे ज्यादा उनके कप्तान ब्रैंडन मैककुलम में दिखता है। उनकी बल्लेबाजी की बात करें, तो पहले दस ओवर में मैच का नतीजा निर्धारित करने की क्षमता के मामले में वह सनथ जयसूर्या तक को पीछे छोड़ चुके हैं। वहीं, अगर उनकी कप्तानी पर गौर किया जाए, तो बल्लेबाजी कर रही टीम के रनों का प्रवाह रोकने के बजाय लगातार विकेट चटकाने को लेकर अपने उत्साह को लेकर वह स्टीव वॉ से भी आगे दिखते हैं।
इस विश्व कप में कीवी टीम ने अपनी प्रतिभाओं का शानदार प्रदर्शन किया है। फिर चाहे वह मैककुलम के अलावा इलियट, विलियम्सन, टेलर और गुप्टिल की बल्लेबाजी हो, बोल्ट और साउदी की स्विंग गेंदबाजी हो, या फिर हमेशा युवा दिखने वाले डैनियल वेटोरी की फिरकी गेंदबाजी हो। टीम का क्षेत्ररक्षण बेहतरीन रहा है। फिर, जैसा कि कभी वेस्ट इंडीज के बारे में कहा जाता था, न्यूजीलैंड की जनसंख्या से तुलना करें, तो उनकी उपलब्धियां चौंकाने वाली हैं। इस देश में सात करोड़ भेड़ें हैं, जबकि लोगों की संख्या 50 लाख से भी कम है। मतलब यह कि न्यूजीलैंड की पूरी आबादी अकेले नोएडा में समा सकती है, जबकि उनके क्रिकेटर पूरी दुनिया को जीतने का माद्दा रखते हैं।
विश्व कप के फाइनल वाली सुबह यह कॉलम प्रकाशित होगा। मगर आज के मैच का नतीजा कुछ भी हो, मेरे लिए न्यूजीलैंड टूर्नामेंट की सर्वश्रेष्ठ टीम है। अब तक उन्होंने रोमांचकारी क्रिकेट खेला है। इतना ही नहीं, लंबे समय से क्रिकेट की दुनिया की कथित महाशक्तियों ने न्यूजीलैंड को जिस हल्के ढंग से लिया है, मैदान पर अपनी उपलब्धियों के जरिये मैककुलम की टीम ने उसका मुंहतोड़ जवाब दे दिया है।
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