अंडमान निकोबार द्वीप समूह के जारवा आदिवासी
अंडमान के जारवा आदिवासियों का अस्तित्व बचाने के लिए उन्हें मुख्यधारा में शामिल करने की कोशिश होनी चाहिए या फिर सरकार उनके संरक्षित क्षेत्र में किसी भी तरह का दखल न देने की नीति पर चले?
ब्रिटेन के एक मानवाधिकार संगठन ने हाल ही में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के बहिष्कार का अभियान शुरू किया है. सर्वाइवल इंटरनेशनल नामक इस समूह का कहना है कि इस द्वीप समूह पर जावरा आदिवासियों का ‘ह्यूमन सफारी’ के लिए इस्तेमाल होता है, यानी पर्यटकों के सामने उन्हें ‘चिड़ियाघर के जानवर’ की तरह पेश किया जाता है. इस तरह का पर्यटन मानवीय गरिमा के विरुद्ध है और इसलिए संगठन ने दुनियाभर के पर्यटकों से इस द्वीप समूह के बहिष्कार की अपील की है. फिलहाल इस अभियान के पक्ष में 12,300 लोग आ चुके हैं.+
मानवविज्ञानियों का अनुमान है कि दुनिया के सबसे प्राचीन आदिवासी समुदाय में शामिल जारवा आदिवासियों की संख्या इस समय 200 से 300 के बीच सिमट चुकी है. आज से तीन साल पहले ब्रिटेन के अखबार द ऑब्जर्वर द्वारा जारी एक वीडियो के बाद यह समुदाय अचानक चर्चा में आ गया था. वीडियो में कुछ पर्यटकों के सामने जारवा महिलाएं नाचती हुई दिखाई दे रही थीं. पर्यटकों के साथ एक पुलिसवाला भी था जो कुछ खाने के सामान के बदले इन महिलाओं को नाचने के लिए कह रहा था. मानवाधिकार संगठनों ने जारवा आदिवासियों के साथ हो रहे इस बर्ताव को रोकने के लिए भारत सरकार से तुरंत कार्रवाई करने की मांग की थी. इस घटना के बाद पिछले तीन सालों में भारत सरकार और केंद्र शासित प्रदेश अंडमान के प्रशासन कुछ सख्ती जरूरी दिखाई है लेकिन आज भी अंडमान में अघोषितरूप से जावरा आदिवासियों की ह्यूमन सफारी जारी है.+
लंबे अरसे तक जारवा आदिवासियों की छवि आक्रामक बनी रही है. कहा जाता है कि 1950 के दशक में जब अंडमान ट्रंक रोड बन रही थी तब इन्होंने सड़क निर्माण में लगे मजदूरों पर हमले कर कुछ लोगों की हत्या कर दी थी
ताजा मामला उस अंडमान ट्रंक रोड (एटीआर) से जुड़ा है जो इन आदिवासियों के निवास क्षेत्र से गुजरती है. यह रोड उत्तरी अंडमान को दक्षिणी अंडमान से जोड़ती है. जारवा दक्षिण अंडमान में रहते हैं. इनकी मुख्य बसाहट के चारों तरफ पांच किमी का क्षेत्र सरकार द्वारा संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है. यह इलाका केंद्र शासित प्रदेश की राजधानी पोर्ट ब्लेयर और बरतांग के बीच में है.
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