जनता दल परिवार की एकता को लेकर हर तरफ संदेह का माहौल है. यह संदेह कुछ उसके अतीत के टकरावों से पैदा हुआ है और कुछ उसके वर्तमान की दुविधाओं से. यह सवाल सब पूछ रहे हैं कि जब बिहार में सत्ता में हिस्सेदारी का सवाल आएगा तो लालू यादव की चलेगी या नीतीश कुमार की? सब यह भी बता रहे हैं कि जनता दल परिवार के सबसे बड़े धड़े समाजवादी पार्टी के भीतर ही इस विलय को लेकर बहुत उत्साह नहीं है. मुलायम सिंह यादव के समर्थकों को डर है कि इस विलय के बाद उत्तर प्रदेश में उनको अपना कुछ हिस्सा दूसरों को देना पड़ेगा. उससे ब़ड़ा डर यह है कि अगर चुनाव चिन्ह के रूप में उनकी साइकिल छिन गई तो उससे उनके अपने वोटों पर भी असर पड़ सकता है. फिलहाल यही दिख रहा है कि सबसे बड़ा घटक होने के नाते सपा अपनी चला लेगी और पार्टी के भीतर साइकिल नाम के चुनाव चिन्ह पर मुहर लगवा लेगी. इस मसले पर फिलहाल बिहार के इसके दो मज़बूत घटक आरजेडी और जेडीयू भी चुप रहेंगे क्योंकि उनके लिए भी लालटेन या तीर में किसी एक का चुनाव आसान नहीं होगा.+
आज के जनता परिवार के जींस यानी गुणसूत्र उसी वैकल्पिक राजनीति से विकसित हुए हैं जिसे कभी गैरकांग्रेसवाद के नाम पर लोहिया ने आकार दिया था और कभी गैरभाजपावाद के नाम पर मंडलवादी दौर के वीपी सिंह और उनके शिष्यों ने साधा था
जब इतनी सारी उलझनें बिल्कुल शुरुआती स्तर हैं तो कहीं ज़्यादा बड़े राजनीतिक फायदों में बंटवारे की घड़ी आएगी तो क्या यह एकता बनी रह पाएगी?+
लेकिन इतने सारे सवालों से ब़डा सवाल एक और है. वह कौन सी चीज़ है जो लोकसभा में कुल 15 सांसदों और राज्यसभा में कुल 30 सांसदों वाले इस घटक को कुछ और बड़ी ख़बर बनाती है? जनता दल परिवार की स्मृति में वह कौन सा चुंबक है जो पत्रकारों-विशेलेषकों को उसकी ओर इस तरह से देखने को मजबूर करता है? दरअसल आज के जनता परिवार के जींस यानी गुणसूत्र उसी वैकल्पिक राजनीति से विकसित हुए हैं जिसे कभी गैरकांग्रेसवाद के नाम पर लोहिया ने आकार दिया था और कभी गैरभाजपावाद के नाम पर मंडलवादी दौर के वीपी सिंह और उनके शिष्यों ने साधा था. 1967 में इसने राज्यों में कांग्रेस की चूलें हिला दीं, 1977 में केंद्र से उसे उखाड़ फेंका, 1989 में यह करिश्मा दुहराया और 1996 में बीजेपी के उभार के दिनों में उसे रोकने का काम किया. बेशक, इस पूरे दौर में जनसंघ या भाजपा कभी उससे जुड़ते रहे, कभी टूटते रहे, इन दोनों ने मिलकर सत्ता में हिस्सेदारी भी की, लेकिन अंततः इस धड़े के लिए बीजेपी एक बाहरी या बेमेल सहयोगी ही साबित हुई. 1996 या 2004 के बाद के दिनों में अन्य राजनीतिक दलों से नजदीकी और उनके समर्थन के बावजूद कांग्रेस भी एक अलग तत्व ही बनी रही.+
बीजेपी या कांग्रेस से अलग एक जरूरी पहचान का गुण जनता परिवार की राजनीतिक संभावना से ज़्यादा उसकी सामाजिक संभावना से आता है. दुर्भाग्य से इस सामाजिक संभावना की एक पहचान नई तरह के क्षेत्रीय वंशवाद के रूप में विकसित हो रही है और वह अपनी सहज सहयोगी दलित बिरादरी से भी कुछ दूर खड़ी है. लेकिन अपनी ऐतिहासिक-सामाजिक स्थिति की वजह से जनता परिवार भारतीय राजनीति में पिछड़ा हितों और प्रतिनिधित्व का सबसे विश्वसनीय प्रवक्ता बन जाता है. इस सामाजिक प्रतिनिधित्व को रचनात्मक राजनीतिक विकल्प बनना अभी बाकी है. लेकिन वह तमाम तरह के आक्रमणों के बावजूद बचा हुआ है, यह बात छोटी नहीं है.+
जनता परिवार धर्मनिरपेक्षता का नारा ख़ूब देता है, लेकिन वह जितना यह नारा देता है उतना ही अविश्वसनीय भी होता जाता है. क्योंकि दूसरे खेमे के लिए सांप्रदायिकता नारा ही नहीं है
फिलहाल यह जनता परिवार भाजपा और नरेंद्र मोदी के उभार की चुनौती के सामने एक हुआ है जिसने बिहार में नीतीश कुमार को छिन्न-भिन्न कर दिया और उत्तर प्रदेश में दो बरस बाद समाजवादी पार्टी को भी कर सकता है. सवाल यह है कि सांप्रदायिकता और विकास का जो मोदी मिक्स है, उसे धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद के मंडल मिक्स के सहारे क्या काटा जा सकता है? जनता परिवार धर्मनिरपेक्षता का नारा ख़ूब देता है, लेकिन वह जितना यह नारा देता है उतना ही अविश्वसनीय भी होता जाता है. क्योंकि दूसरे खेमे के लिए सांप्रदायिकता नारा ही नहीं है, उल्टे वह खेमा छद्मधर्मनिरपेक्षता को हथियार बनाकर और इनकी सत्तालोलुपता की याद दिलाकर इन्हें आसानी से पीट डालता है. इसलिए ज़रूरी है कि जनता परिवार अपनी समाजवादी विरासत पर ज़ोर दे, अपनी पिछड़ा पहचान को राजनीति का आधार बनाए – धर्मनिरपेक्षता इस विरासत से अपने-आप जुड़ जाती है.+
इन सबके अलावा- अगर संभव हो सके तो – हालांकि फिलहाल यह असंभव संभावना जान पड़ती है – यह राजनीतिक परिवार अल्पसंख्यकों की तरह अपने दलित और आदिवासी सहोदरों को भी अपने साथ जोड़ने का उपक्रम करे. और सबको लेकर उस तथाकथित विकास से मोर्चा ले जिसके नाम पर मौजूदा सरकारें देश के एक बड़े हिस्से को उपनिवेश की तरह इस्तेमाल करती हुई एक छोटे हिस्से को दुनिया की महाशक्ति बनाने पर तुली हैं. यह लंबा और मुश्किल रास्ता है, लेकिन जनता परिवार की राजनीतिक उपस्थिति और प्रासंगिकता इस रास्ते के बाहर नहीं है
No comments:
Post a Comment