जब नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार को लगता है कि फोर्ड फाउंडेशन की गतिविधियां देश के खिलाफ हैं तो उन्हीं की गुजरात सरकार ने इस संस्था से पैसा क्यों लिया?
गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) पर नरेंद्र मोदी सरकार की भंवें फिर तन गई है. मोदी सरकार ने अमेरिका स्थित फोर्ड फाउंडेशन को अपनी निगरानी सूची में डाल दिया है. गृह मंत्रालय की मंजूरी के बिना अब कोई एनजीओ फोर्ड फाउंडेशन से अनुदान नहीं ले सकता.+
ताजा घटनाक्रम में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भारतीय रिजर्व बैंक को एक चिट्ठी लिखी है. इसमें उसने संस्था से सभी बैंकों को यह निर्देश देने को कहा है कि वे फोर्ड फाउंडेशन से किसी एनजीओ के खाते में आने वाले फंड की जानकारी पहले गृह मंत्रालय को दें. इसके बाद वह फैसला करेगा कि पैसा उस खाते में जाए या नहीं. सरकारी संस्थाओं को फोर्ड फाउंडेशन से अनुदान लेने से पहले आर्थिक मामलों के मंत्रालय से इसकी मंजूरी लेनी होगी.+
फोर्ड फाउंडेशन की वेबसाइट बताती है कि गुजरात इंस्टीट्यूट ऑफ डेजर्ट इकॉलॉजी (गीर) को 2007 में एक लाख 77 हजार डॉलर यानी आज के हिसाब से एक करोड़ रु से भी ज्यादा का चंदा मंजूर हुआ था
विदेशों से अनुदान पाने वाले गैरसरकारी संगठनों के प्रति भाजपानीत सरकार की अप्रसन्नता कोई नई बात नहीं है. कुछ समय पहले एक आयोजन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न्यायपालिका को फाइव स्टार एक्टिविज्म से सावधान रहने की नसीहत दी थी. इसका संकेत यह निकाला गया था कि मोदी गैरसरकारी संगठनों द्वारा अदालतों में लगाई जाने वाली जनहित याचिकाओं के चलते अलग-अलग परियोजनाओं में लगने वाले अड़ंगे से नाराज हैं. उनके इस बयान के कुछ दिन बात ही ग्रीनपीस के खिलाफ कार्रवाई हो गई थी. कुछ दिन पहले ही गृह मंत्रालय ने अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण संस्था ग्रीनपीस का भारत में पंजीकरण 180 दिनों के लिए निलंबित कर दिया. विदेश से आने वाले पैसे की जानकारी छिपाने और विकास के ख़िलाफ़ अभियान चलाने का दोषी ठहराते हुए सरकार ने उसके सात बैंक खातों पर रोक भी लगा दी थी.+
बीते साल भाजपा ने कई बार आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल को यह कहते हुए घेरा था कि उनके एनजीओ को फोर्ड फाउंडेशन से पैसा मिलता है. फरवरी 2014 में दिल्ली भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ हर्षवर्धन का बयान आया था कि जनलोकपाल औऱ स्वराज की बात करने वाले केजरीवाल ने सीआईए की सहयोगी फोर्ड फाउंडेशन की सहायता ली है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र पांचजन्य में विश्व हिंदू परिषद के अशोक सिंघल का कहना था कि केजरीवाल को मैग्सेसे पुरस्कार दिया गया और यह पुरस्कार फोर्ड फाउंडेशन द्वारा उन लोगों को देने की कोशिश होती है जो अमेरिका के हित में कार्य कर सकें. उन्हीं दिनों भाजपा की रैलियों में केजरीवाल को सीआईए एजेंट बताते हुए पर्चे भी बंटे थे. इनमें कहा गया था कि अमेरिका के नरेंद्र मोदी से सौहार्दपूर्ण संबंध नहीं हैं इसलिए वह फोर्ड फाउंडेशन के जरिये केजरीवाल की मदद करके मोदी को रोकना चाहता है.+
फरवरी 2014 में दिल्ली भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ हर्षवर्धन का बयान आया था कि जनलोकपाल औऱ स्वराज की बात करने वाले केजरीवाल ने सीआईए की सहयोगी फोर्ड फाउंडेशन की सहायता ली है.
लेकिन गुजरात में खुद भाजपा की सरकार उसी फोर्ड फाउंडेशन से पैसा ले चुकी है. फोर्ड फाउंडेशन की वेबसाइट बताती है कि 2002 में गुजरात इकॉलॉजिकल एजुकेशन एंड रिसर्च फाउंडेशन (गीर) को एक लाख 22 हजार डॉलर (आज के करीब 73 लाख रुपये) का चंदा मिला था. इस संस्थान के चेयरमैन खुद गुजरात के मुख्यमंत्री होते हैं जो उस समय नरेंद्र मोदी ही थे. यही नहीं, उसी साल गुजरात इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च को भी फोर्ड फाउंडेशन से एक लाख 97 हजार 759 डॉलर (करीब एक करोड़ 20 लाख रुपये) मिले थे. इस संस्था का वित्तीय सलाहकार गुजरात सरकार का शिक्षा विभाग है. इसके अलावा भी फोर्ड फाउंडेशन ने गुजरात में ऐसी कई संस्थाओं को करोड़ों रु का अनुदान दिया है जो राज्य सरकार के विभिन्न विभागों के साथ मिलकर या उनके सहयोग से काम कर रही हैं. इनमें गुजरात इंस्टीट्यूट ऑफ डेजर्ट इकॉलॉजी (गाइड) शामिल है जिसे 2007 में फोर्ड फाउंडेशन की वेबसाइट के मुताबिक करीब एक लाख 77 हजार डॉलर का अनुदान मिला. गाइड की वेबसाइट बताती है कि यह एक ट्रस्ट है जिसके बोर्ड ऑफ गवनर्स में गुजरात के पूर्व मुख्य सचिव सहित राज्य के तमाम भूतपूर्व और वर्तमान अधिकारी शामिल हैं.+
जब भाजपा और नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार को यह लगता है कि फोर्ड फाउंडेशन की गतिविधियां देश के हितों के खिलाफ हैं तो खुद भाजपा और मोदी की ही गुजरात सरकार ने इस संस्था से पैसा क्यों लिया? इसके जवाब में भाजपा या केंद्र सरकार कह सकती है कि एनजीओ पैसा लेकर देश में अस्थिरता फैलाने की कोशिश करते हैं जबकि कोई राज्य सरकार ऐसा नहीं करेगी. लेकिन यह सवाल तो फिर भी रहता ही है कि जिस पर आप देशविरोधी गतिविधियां चलाने का संदेह करते हैं उसी से पैसा कैसे ले सकते हैं?+
1999 में ब्रिटिश पत्रकार फ्रैंसिस स्टोनर सॉन्डर्स ने अपनी बहुचर्चित किताब ‘हू पेड द पाइपर? सीआईए एंड द कल्चरल कोल्ड वार’ में लिखा था कि फोर्ड फाउंडेशन के जरिए सीआईए दूसरे देशों में अपने लोगों को धन मुहैया करवाती है
अगर फोर्ड फाउंडेशन की बात करें तो इसकी स्थापना चर्चित अमेरिकी आटोमोबाइल कंपनी फोर्ड के मुखिया हेनरी फोर्ड और उनके बेटे एडसेल फोर्ड ने 1936 में की थी. गरीबी उन्मूलन और लोकतांत्रिक मूल्यों को प्रोत्साहन जैसे क्षेत्रों में काम कर रहे संगठनों को वित्तीय मदद देने वाली यह फाउंडेशन दुनिया में सबसे ज्यादा रसूख वाली संस्थाओं में से एक है. न्यूयॉर्क में अपने मुख्यालय और पूरी दुनिया में फैले दस केंद्रों के जरिये यह हर साल सैकड़ों करोड़ डॉलर का अनुदान देती है. भारत में यह 1952 से सक्रिय रही है. अलग-अलग रिपोर्टों के मुताबिक भारत, नेपाल और श्रीलंका में 2006 से 2014 के बीच इस संस्था ने करीब 546 अनुदान दिए जिनका कुल आंकड़ा करीब 840 करोड़ रु बैठता है.+
फोर्ड फाउंडेशन के लिए विवाद कोई नई बात नहीं है. कई बार इस पर अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए से जुड़े होने के आरोप लग चुके हैं. 1999 में ब्रिटिश पत्रकार फ्रैंसिस स्टोनर सॉन्डर्स की एक किताब बहुत चर्चित रही थी. ‘हू पेड द पाइपर? सीआईए एंड द कल्चरल कोल्ड वार’ नाम की इस किताब में कहा गया था कि फोर्ड फाउंडेशन के जरिए सीआईए दूसरे देशों में अपने लोगों को धन मुहैया करवाती है.+
2001 में न्यूयॉर्क की बिंगहैंपटन यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के प्रोफेसर जेम्स पेट्रास ने एक लेख लिखा था. द फोर्ड फाउंडेशन एंड द सीआईए शीर्षक वाले इस लेख में उन्होंने लिखा था कि अपने उद्देश्यों को साधने हेतु मोटा पैसा भेजने के लिए सीआईए उन संस्थाओं का इस्तेमाल करती है जो सामाजिक कार्य में लगी हैं. भारत की खुफिया एजेंसी ‘रॉ’ के अपर सचिव रहे बी रमन ने भी कुछ समय पहले कहा था कि सीआईए जैसी विदेशी खुफिया एजेंसियां एनजीओ के जरिए अपने काम को अंजाम देती हैं. उनके मुताबिक सीआईए के लिए किसी भी देश में अपने अनुकूल माहौल बनाने के लिए उस देश में पहले से काम कर रहे एनजीओ का इस्तेमाल करना ज्यादा आसान होता है. अगर कोई एनजीओ उसके हिसाब का नहीं है तो वह नया एनजीओ भी बनवा देती है.
No comments:
Post a Comment