20 मई, 1965 की सुबह चीमा ने तीन बजे तड़के उठकर नवांग गोंबू को गुड मॉर्निंग कहा. दोनों ने गर्मागर्म कॉफ़ी पी, तैयार हुए और पांच बजे एवरेस्ट की ओर बढ़ चले. आसमान में बादल थे. तेज़ हवा चल रही थी. साढ़े सात बजते बजते वो दोनों साउथ समिट के बिल्कुल नीचे पहुंच गए.
वहाँ पर उन्होंने थोड़ी थोड़ी इस्तेमाल की हुई ऑक्सीजन बोतलें छोड़ीं. तेज़ी से बढ़ते हुए बिना किसी मुश्किल के वो मशहूर हिलैरी चिमनी पहुंच गए.
थकान नहीं, बल्कि रोमांच के कारण ज़ोर ज़ोर से धड़कते दिलों के साथ उन्होंने क़दम दर क़दम चढ़ना तब तक जारी रखा, जब तक उन्हें 1 मई, 1963 को जेम्स विटेकर और नवांग गोंबू का लगाया गया अमरीकी झंडा नहीं दिखाई दिया.
शिखर से दस फ़ुट पहले वो रुके और उन्होंने अपना रक सैक खोला. उन्होंने कैमरे और अपने साथ लाए तरह तरह के झंडे निकाले.
उस मई दिवस के ठीक साढ़े नौ बजे दुनिया के सबसे ऊँचे शिखर पर भारत का तिरंगा झंडा फहरा रहा था.
पढ़िए विवेचना विस्तार से
एडवांस बेस कैंप और बेस कैंप पर दल के सभी लोगों ने अपनी दूरबीनें दुनिया के सबसे ऊँचे शिखर पर लगा रखी थीं.
सबसे पहले गुरदयाल सिंह ने अपने वॉकी टॉकी से दल के नेता को बताया, "उन दोनों ने चढ़ना शुरू कर दिया है... साढ़े आठ बजे मैंने देखा है... अच्छी स्पीड से ऊपर जा रहे हैं."
फिर दल के उपनेता कर्नल नरेंद्र कुमार ने लगभग चीख़ते हुए कहा, "कॉन्ग्रेचुलेशन कैप्टेन कोहली... दोनों लोग शिखर से कुछ ही कदम दूर हैं.... सामने बादल आ गए हैं... लेकिन अब तक वो समिट पर पहुंच चुके होंगे."
आकाशवाणी की लीड ख़बर
चीमा और गोम्बू शिखर पर आधे घंटे रहे. चीमा ने वहाँ पर अपनी माँ के दिए हुए चाँदी के सिक्के गाड़े.
गोंबू ने अपनी पत्नी का दिया स्कार्फ़ और तेंज़िग नोर्गे की दी हुई बुद्ध की प्रतिमा वहाँ पर रखी. दस बजकर पांच मिनट पर उन्होंने नीचे उतरना शुरू किया.
दस बजकर पैंतालिस मिनट तक वो साउथ समिट पहुंच गए, लेकिन तब तक मौसम बहुत ख़राब हो चला था. बार बार उन्हें बर्फ़ हटाने के लिए अपने चश्मे उतारने पड़ रहे थे.
उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था. नौबत यहाँ तक आई कि चीमा को आगे बढ़ने के लिए अपने हाथों और पैरों के बल रेंगना पड़ा.
बारह बजकर पैंतालिस मिनट पर वो दोनों कैंप नंबर छह पहुंचे. सबसे पहले उन्होंने अपने को गर्मी पहुंचाने के लिए खूब सारा सूप पिया और फिर वायरलेस सेट उठाकर दल के नेता कैप्टेन कोहली को इसकी सूचना दी.
हालांकि कोहली को इस बारे में संकेत पहले मिल गया था, लेकिन चीमा के मुंह से ये समाचार सुनकर कोहली नाचने लगे.
सभी ने एक दूसरे को गले लगाया. पहले काठमांडू और फिर दिल्ली संदेश फ़्लैश किया गया. उस दिन पौने नौ बजे आने वाले आकाशवाणी बुलेटिन की ये लीड ख़बर थी.
दूसरे दिन भारत के सभी समाचार पत्रों ने इसे बैनर हेडलाइन के साथ छापा.
येती के हाथ के निशान
इसके बाद दो-दो दिन के अंतर पर सोनम ग्यात्सो, सोनम वांग्याल, सीपी वोहरा और अंग कामी एवरेस्ट शिखर पर पहुंचे.
इस दौरान कई दिन ऐसे भी आए जब मौसम बहुत ख़राब हो जाता. तब समय बिताने के लिए दल के सदस्य ताश खेलते.
दल के उप नेता कर्नल नरेंद्र कुमार अपने साथ यती के हाथ की शक्ल का एक सांचा ले गए थे.
एक दिन उन्होंने सुबह सबसे पहले उठकर उससे कुछ निशान बर्फ़ पर बना दिए. जब दल के सदस्य सुबह उठकर नित्य क्रिया के लिए जाने लगे तो वो निशान देखकर हंगामा मच गया.
लोग ये बताने के लिए वायरलेस सेट की तरफ दौड़े कि उनके शिविर में यती आया था.
मामला गंभीर होते देख कर्नल कुमार को उन्हें बताना पड़ा कि उन्होंने उनके साथ मज़ाक किया था.
दसियों फ़ुट बर्फ़ के नीचे
25 मई की सुबह जब मेजर हरि अहलूवालिया जगे तो फू दोरजी उनके लिए चाय लेकर आए.
उन्होंने उन्हें बताया कि कल रात कैंप तीन पर ज़बर्दस्त बर्फ़ीला तूफ़ान आया, जिसने सब कुछ तहस-नहस कर दिया. चाय छोड़ अहलूवालिया बाहर भागे.
वहाँ उन्होंने जो दृश्य देखा, उससे उनके पैरों तले ज़मीन निकल गई.
अहलूवालिया ने बीबीसी को बताया, "कैंप नंबर तीन बर्फ़ से अटा पड़ा था. वहाँ रखी हमारी ऑक्सीजन की सारी बोतलें बर्फ़ में कई फ़ुट नीचे दब गई थीं. हमारे नेता कोहली ने कहा कि अब ऑक्सीजन के बिना आगे जाना संभव नहीं है. इसलिए हम अपना अभियान यहीं समाप्त करते हैं. मैंने उन्हें समझाने की कोशिश की कि हमने इस दल के छह लोगों को एवरेस्ट शिखर पर भेजकर अमरीकी रिकॉर्ड की बराबरी कर ली है, लेकिन अगर हम एक भी और पर्वतारोही एवरेस्ट पर पहुंचाने में सफल हो गए तो हम विश्व रिकार्ड बना देंगे."
कोहली किसी तरह मान गए और उन्होंने अहलूवालिया को ऑक्सीजन बोतलों खोजने के लिए चार शेरपा दिए.
छह घंटों तक चली खुदाई
अहलूवालिया और शेरपा छह घंटों तक खुदाई करते रहे. उनके हाथ कुछ न लगा. एक एक मिनट साल की तरह लग रहा था.
तभी अहलूवालिया की नज़र शेरपाओं की तरफ़ गई. वो सभी अपने भगवान से प्रार्थना कर रहे थे. अहलूवालिया ने भी भगवान को याद किया, "अगर आप नहीं तो कौन यहाँ पर मेरी मदद करेगा."
अहलूवालिया बताते हैं, "मैंने तीन चार कुदालें ही चलाई होंगी कि मुझे टन्न की आवाज़ सुनी दी. पहले एक बोतल निकली, फिर दूसरी और फिर तो बोतलों का अंबार निकलता चला गया. हमारे हाथ ऑक्सीजन की पच्चीस बोतलें लगीं. उसी समय मुझे लग गया कि अब हमें एवरेस्ट पर पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता."
भाप से पकाया चिकन
28 मई का दिन अहलूवालिया, फू दोरजी, बहुगुणा और रावत ने 27,930 फ़ुट ऊंचे 'रेज़र्स एज' के नीचे बिताया.
अहलूवालिया याद करते हैं, "रावत मेरे टेंट में पूछने आए कि क्या हमारे पास तेल और मसाले हैं? दरअसल वो एक मुर्गा तलना चाहते थे. हमारे पास इनमें से कुछ भी नहीं था. फिर उन्होंने उसे पिघलाई गई बर्फ़ पर भाप की मदद से पकाया. भाप से पकाए चिकन को चबाना आसान नहीं होता. सर्दी में हमारे जबड़े धीमे धीमे चलते हैं और हमें चिकन के कुछ टुकड़े खाने में पूरा एक घंटा लग गया."
अहलूवालिया और फू दोरजी एक टेंट में सोए. अहलूवालिया को बहुत देर तक नींद नहीं आई क्योंकि फू दोरजी ज़ोर ज़ोर से खर्राटा ले रहे थे. साढ़े पांच बजे सुबह अहलूवालिया, फू दोरजी, बहुगुणा और रावत ने दो-दो के ग्रुप में एवरेस्ट की ओर बढ़ना शुरू किया.
बहुगुणा और रावत अभी पचास साठ गज़ ही गए होंगे कि बहुगुणा ने कहा कि वो आगे नहीं बढ़ सकते. रात में उन्होंने नींद की गोली खाई थी जिससे उनके पूरे शरीर में दाने निकल आए थे और उन्हें ज़बर्दस्त ख़ारिश हो रही थी.
वो रावत के चांस को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने आगे न बढ़कर वापस लौट जाने का फ़ैसला किया.
रावत कुछ देर अकेले चले फिर अहलूवालिया और फू दोरजी के साथ जा मिले.
गुरु नानक की तस्वीर रखी
एवरेस्ट नज़दीक आते-आते चढ़ाई उतनी खड़ी नहीं रह गई थी. तीनों ने हाथ में हाथ डाले एवरेस्ट पर कदम रखा. वहाँ पर पहले आए दल का लगाया हुआ तिरंगा झंडा फहरा रहा था, लेकिन हवा के वेग से वो तार तार हो गया था.
अहलूवालिया याद करते हैं, "उस समय तापमान शून्य से तीस डिग्री नीचे रहा होगा. सहसा हवा की रफ़्तार धीमी हो गई. हमने दुनिया के सबसे ऊंचे शिखर से नीचे की तरफ़ विहंगम नज़र डाली. हमें मकालू लोत्से और कंचनजंघा चोटियाँ नज़र आईं. मैं घुटने के बल झुका. मैंने गुरु नानक की तस्वीर और अपनी मां की दी हुई माला एवरेस्ट पर रखी."
"फू दोरजी ने दलाई लामा की तस्वीर वाला चांदी का लॉकेट रखा. रावत ने इतनी तेज़ हवा में भी अगरबत्ती जलाई और दुर्गा की प्रतिमा वहाँ रखी. तभी मुझे लगा कि मुझे कुछ निजी चीज़ भी एवरेस्ट को समर्पित करनी चाहिए. मैंने अपनी घड़ी उतारी और एवरेस्ट के चरणों पर रख दी."
"अचानक फू दोरजी ने कहा मेरे पास आप दोनों के लिए एक तोहफ़ा है. उन्होंने एक छोटा सा थर्मस निकाला. उसमें गर्मागर्म कॉफ़ी थी. हम तीनों ने 29,029 फ़ुट की ऊंचाई पर उस कॉफ़ी का आनंद लिया."
इत्तेफ़ाक से ये वही दिन था जब बारह साल पहले 29 मई को एडमंड हिलेरी और तेंज़िग नोर्गे ने एवरेस्ट पर पहली बार क़दम रखा था.
यह पहला मौका था जब किसी दल के नौ सदस्यों ने एवरेस्ट पर क़दम रखा था. भारतीय दल के नाम यह रिकॉर्ड सोलह सालों तक रहा.
अभूतपूर्व स्वागत
21 सदस्यीय भारतीय दल जब दिल्ली लौटा तो पालम हवाई अड्डे पर कार्यवाहक प्रधानमंत्री गुलजारीलाल नंदा अपने पूरे मंत्रिमंडल के साथ स्वागत करने के लिए मौजूद थे.
हवाई अड्डे से पर्वतारोहियों का काफ़िला सीधे जवाहरलाल नेहरू की समाधि शाँति वन गया. दल के सभी सदस्यों को संसद के दोनों सदनों को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया गया और सभी को अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
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