आपने निज़ामुद्दीन के उस दावे को भी पढ़ा था, जिसमें उन्होंने नेताजी को ओर जा रहीं तीन गोलियों को अपनी पीठ पर ले लिया था.
बीबीसी से बातचीत में निज़ामुद्दीन ने ये भी बताया कि वे नेताजी बोस के साथ यूरोप और एशिया के देशों में गए थे.
बमबारी
उन्होंने कहा, "बर्मा में नेताजी की बहुत इज़्ज़त थी. आज़ाद हिन्द फ़ौज का अपना रेडियो स्टेशन था, अपना बैंक था और हमारे अपने नोट भी छपते थे."
लेकिन 104 वर्ष की उम्र में भी निज़ामुद्दीन उस बात को याद करके भावुक हो उठते हैं, जिसके अनुसार नेताजी बोस को जंगलों में जगहें बदल-बदल कर रातें गुज़ारनी पड़ती थीं.
उन्होंने बताया, "हवाई बमबारी का ख़तरा हमेशा रहता था, इसलिए सुभाष चंद्र बोस हर रात बर्मा के जंगलों में कम से कम दो जगह बदलते थे. मैं ख़ुद उनको रात में उठाता था, ये कहते हुए कि उठिए अंडा (बम) गिर सकता है. इसलिए हमें निकलना चाहिए."
निज़ामुद्दीन के अनुसार, सुभाष हर बार नींद से उठाए जाने पर जवाब देते थे, "नींद से अच्छी तो मौत है."
निज़ामुद्दीन के मुताबिक़, नेताजी बोस अपने सहयोगियों को लेकर इतने मिलनसार थे कि अक्सर उनके जूठे गिलास में भी पानी पी लिया करते थे.
बहादुरशाह ज़फर
'कर्नल' निज़ामुद्दीन 1940 के दशक की याद करते हुए बताते हैं कि, "उन दिनों ऐसा ही लगता था कि भारत को आज़ाद हिंद फ़ौज ही आज़ादी दिलाएगी."
उन्होंने बताया कि सुभाष बोस ही वो व्यक्ति थे जिन्होंने आख़िरी मुग़ल शासक बहादुर शाह ज़फर की क़ब्र को पूरी इज़्ज़त दिलवाई.
वो बताते हैं, "ज़फर की कब्र को नेताजी बोस ने ही पक्का करवाया था. वहाँ कब्रिस्तान में गेट लगवाया और उनकी क़ब्र के सामने चारदीवारी बनवाई थी. मैं ख़ुद नेताजी के साथ कई मर्तबा ज़फर की मज़ार पर गया हूँ."
निज़ामुद्दीन के अनुसार, उन्होंने अपनी सौ वर्ष से भी ज़्यादा की उम्र में सुभाषचंद्र बोस जैसा दिलदार आदमी नहीं देखा.
विमान हादसा
इतिहास के मुताबिक़, सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु अगस्त, 1945 में फॉरमोसा, ताइवान में एक विमान हादसे हुई थी.
हालांकि 'कर्नल' निज़ामुद्दीन इस बात का खंडन करते हैं.
उन्होंने बताया, "जापान ने नेताजी को तीन हवाई जहाज़ दिए थे. जब मैंने उन्हें सितांग नदी के किनारे वर्ष 1947 में आख़िरी बार छोड़ा तब वो जापानी अफसरों के साथ मोटरबोट पर बैठने के पहले भावुक हो गए थे. मैंने कहा, मुझे भी अपने साथ ले चलिए, लेकिन उन्होंने कहा कि, तुम यहीं रुको जिससे दूसरों का ख़्याल रखा जा सके."
वैसे नेताजी बोस की मृत्यु से जुड़ी जानकारी जुटाने वाले और 'इंडियाज़ बिगेस्ट कवरअप' नामक किताब लिखने वाले अनुज धर का भी मानना है कि सुभाष चंद्र बोस उस विमान में थे ही नहीं जिसका हादसा हुआ था.
लेकिन अनुज धर निज़ामुद्दीन के उन दावों को ख़ारिज करते हैं, जिनमें कहा गया है कि नेताजी 1945 से लेकर 1947 तक बर्मा में थे.
दावों पर सवाल
सुभाष बोस की रहस्यमई मृत्यु पर लेखक अनुज धर की किताब ने कई सवाल खड़े किए हैं.
उन्होंने कहा, "जितने दस्तावेज़ मिले हैं उनके हिसाब से नेताजी इस दौरान रूस में थे. रही बात निज़ामुद्दीन की तो उन्हें कम से कम एक फ़ोटो या कोई प्रमाण तो दिखाना चाहिए अपने और नेताजी के दिनों का."
अब सच्चाई क्या है इसे पता लगाने में अनुज धर जैसे तमाम लोग लगे हैं.
कुछ दिन पहले ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस की पोती आजमगढ़ में निज़ामुद्दीन से मिलकर लौटीं हैं.
वहीँ पिछले वर्ष नरेंद्र मोदी ने वाराणसी से अपने चुनाव लड़ने की घोषणा करने के बाद निज़ामुद्दीन का एक भरी जनसभा में झुक कर पैर छुआ था
मुबारकपुर, आज़मगढ़ के पास के गाँव ढकुआ में रहने वाले 'कर्नल' निज़ामुद्दीन ने सुभाष चंद्र बोस के साथ बिताए दिनों की याद ताज़ा की.
अभी तक आप उनके उन दावों को पढ़ चुके हैं कि कैसे वह नेताजी के ड्राइवर बने और कैसे उन्होंने नेताजी की ओर जा रहीं तीन गोलियों को अपनी पीठ पर ले लिया था.
उन्होंने वो याद भी ताज़ा की थी जिसके अनुसार रंगून में नेताजी बोस ने आख़िरी मुग़ल शासक बहादुर शाह ज़फर की मज़ार को पक्का करवाया था.
बीबीसी से हुई बातचीत में निज़ामुद्दीन ने ये भी बताया कि कैसे रोज़ शाम को चार बजे के आसपास नेताजी अपने सहयोगियों से साथ बैठ कर आज़ादी की बात किया करते थे.
हिटलर
'कर्नल' निज़ामुद्दीन ने ये भी बताया कि नेताजी बोस के साथ कई देशों की यात्रा के दौरान वो नामचीन लोगों से भी मिले.
उन्होंने बताया, "एक दफ़ा मैं नेताजी के साथ जापान गया था, जहाँ नेताजी की मुलाक़ात जर्मनी के चांसलर हिटलर से हुई. उस मीटिंग के दौरान जर्मनी के फील्ड मार्शल रोमेल भी मौजूद थे. मुझे भी हिटलर से हाथ मिलाने का मौका मिला था".
हालांकि सुभाष चंद्र बोस और उनकी मौत से जुड़े रहस्य पर शोध करने वाले अनुज धर निज़ामुद्दीन के इस दावे पर दूसरी राय रखते हैं.
उन्होंने कहा, "हो सकता है 100 से ज़्यादा उम्र होने के चलते निज़ामुद्दीन ये भूल रहे हों कि हिटलर और नेताजी की मुलाक़ात जर्मनी में हुई थी न कि जापान में. दूसरी बात ये कि नेताजी के साथ आईएनए के दूसरे बड़े अफ़सर जाया करते थे".
नाराज़गी
'कर्नल' निज़ामुद्दीन बताते हैं कि जब दूसरा विश्व युद्ध समाप्ति पर था तब नेताजी ने आज़ाद हिंद फ़ौज के सभी सदस्यों को छुप कर आदेश दिए थे.
उन्होंने कहा, "विमान हादसे में नेताजी बोस की मौत की ख़बर ग़लत थी क्योंकि उन्होंने 1945 के बाद भी आईएनए के सदस्यों को सभी दस्तावेज़ नष्ट करने के लिए कहा था ताकि बाद में उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई न हो सके".
निज़ामुद्दीन का दावा है कि नेताजी कांग्रेस के अपने पुराने सहयोगियों से खासे आहत रहते थे जिसमे सभी शीर्ष नेता शामिल थे.
हालांकि नेताजी बोस पर 'इंडियाज़ बिगेस्ट कवरअप' लिखने वाले अनुज धर के अनुसार निज़ामुद्दीन को अपने इन दावों के प्रमाण दिखाने की ज़रुरत है.
कश्मकश
अनुज धर ने कहा, "अगर हिटलर से हाथ मिलाते हुए नेताजी बोस की तस्वीर मौजूद है तो उसमे निज़ामुद्दीन तो कहीं नहीं दिखते. न ही निज़ामुद्दीन सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु पर जांच के लिए बनी खोसला कमिटी या शाहनवाज़ कमीशन के समक्ष पहुंचे और न ही उनके पास दस्तावेज़ हैं".
मैं खुद भी इस कश्मकश में हूँ कि आख़िर सच क्या है.
'कर्नल' निज़ामुद्दीन के गाँव में तीन घंटे बिताने पर मुझे ये तो समझ में आया कि उन्हें कम से कम सात भाषाओं की समझ है और उनकी आधी से ज़्यादा ज़िन्दगी बर्मा में बीती है.
नेताजी के साथ उनके सहयोग के दावों का सच निज़मुद्दीन के अलावा शायद अब कोई नहीं बता सकता.
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