Saturday, 30 May 2015

बैट, बॉल और क्रिकेट के सपने @रामचंद्र गुहा

जब मैं नौजवान था, तो मेरे कई सपने क्रिकेट से जुड़े हुए थे। तब इस खेल का जादू मेरे सिर चढ़कर बोलता था। स्कूल और विश्वविद्यालय स्तर पर मैंने इसे गंभीरता से खेला। कॉलेज की टीम के मेरे साथी उस समय देश के बेहतर खिलाडि़यों में थे, जिनमें से दो ने तो बाद में टेस्ट क्रिकेट भी खेला। कई रणजी और दिलीप ट्रॉफी तक पहुंचे। दसवें नंबर पर बल्लेबाजी करने वाला और टर्न न होने वाली ऑफ ब्रेक गेंद फेंकने वाला मैं शायद उन सबमें सबसे कम प्रतिभाशाली था। लेकिन टीम में होना ही मेरे लिए काफी अर्थ रखता था। आईपीएल से पहले के उस जमाने में टेस्ट श्रृंखलाएं भी दो साल में एक बार होती थीं। जब हम पांच दिन चलने वाला दिल्ली विश्वविद्यालय का इंटर-कॉलेज फाइनल खेलते थे,  तो हजारों लोग उसे देखने आते थे। अगले दिन राजधानी के अखबारों में मैच की रिपोर्ट के साथ उसका स्कोर भी छपता था। मेरा नाम कभी सुर्खियों में नहीं आया, लेकिन तब मैं सपना देखता था कि एक दिन नाइट वॉचमैन बनकर शाम को मैदान में उतरूंगा और अगले दिन मेरा नाम भी अखबार में छपेगा- आर गुहा, नॉट आउट, चार रन। पर यह मौका कभी नहीं आया। मैं दसवें या ग्यारहवें नंबर पर बल्लेबाजी के लिए जाता और चार रन पर आउट हो जाता। लेकिन यह सपना मैं हर समय देखा करता था।

इस सपने को समझना बहुत आसान है। बल्लेबाज इस खेल का सर्वोच्च वर्ग होते हैं, गेंदबाज चाहे कितने भी मेहनती हों, लेकिन दोयम ही रहते हैं। दस में से नौ बार टीम का कप्तान कोई बल्लेबाज ही होता है। खबरों की 90 प्रतिशत सुर्खियां बल्लेबाजों पर ही होती हैं, और 90 प्रतिशत मामलों में बल्लेबाज ही मैन ऑफ द मैच होते हैं, स्पॉन्सरशिप के मामले में तो शायद यह आंकड़ा 75 प्रतिशत तक जाता है। क्रिकेट की मेरी सबसे प्रिय कथा 1956 की है, जब इंग्लैंड की टीम ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर गई थी। इंग्लैंड के पूर्व ओपनिंग बल्लेबाज लेन हटन उस समय प्रेस बॉक्स में थे, वहां ऑस्ट्रेलिया के पूर्व गुगली गेंदबाज आर्थर माइली भी थे। मैच के दौरान खबर आई कि हटन को इंग्लैंड की महारानी ने नाइटहुड के सम्मान से नवाजा है। माइली उनके पास गए, हाथ मिलाया और कहा- बधाई, पर मुझे उम्मीद है कि अगली बार यह सम्मान किसी गेंदबाज को मिलेगा।

यह टिप्पणी बहुत अच्छी तरह से बताती है कि गेंदबाजों के खिलाफ सामाजिक पूर्वाग्रह किस तरह के हैं। ये पूर्वाग्रह इतने गहरे हैं कि ब्रिटिश राजघराना भी इसका शिकार है। लेन हटन से पहले जैक हॉब्स और डॉन ब्रैडमैन जैसे बल्लेबाजों को यह सम्मान मिल चुका था। और उनके बाद यह फ्रैंक वॉरेल व गैरी सोबर्स जैसे बल्लेबाज ऑलराउंडरों को मिला। युगों बाद 1990 में पहली बार रिचर्ड हैडली के रूप में किसी गेंदबाज को इस सम्मान से नवाजा गया। इसलिए कोई हैरत नहीं है कि मेरी जवानी का कोई भी सपना गेंदबाज, फील्डर या विकेट कीपर का नहीं था। जब मेरी उम्र 25 बरस के आस-पास थी, तो मैंने क्रिकेट खेलना बंद कर दिया और लगभग दस साल बाद क्रिकेट के सपने दिखने भी बंद हो गए। अगले एक दशक तक मेरे सपने पुस्तकालयों और आर्काइव को लेकर थे। लेकिन फिर अचानक जिस दिन मेरी किताब का दिल्ली मे विमोचन होना था, उससे एक दिन पहले क्रिकेट मेरे सपने में आ गया।

मैंने देखा कि अनिल कुंबले एलेक स्टीवर्ड को गेंद डाल रहे हैं। बल्लेबाज ने इस गुगली पर शॉट लगाना चाहा, लेकिन गेंद ने बल्ले का किनारा लिया और कैच सीधा स्लिप में खड़े राहुल द्रविड़ के हाथ में पहुंच गया। इसी के साथ सपना भी टूट गया। इस सपने में बल्लेबाज नहीं, गेंदबाज का कारनामा महत्वपूर्ण था। संयोग से वह गेंदबाज मेरे ही प्रदेश का था और स्लिप में कैच पकड़ने वाला फील्डर भी। मुझे बल्लेबाज के इस तरह आउट होने में मजा इसलिए आया कि कुछ विकेट मैंने भी इसी तरह लिए थे। एक बार मेरी गेंद पर स्लिप में खड़े अरुण लाल ने कैच लिया था। तब वह मेरे कॉलेज के कप्तान थे और बाद में बहुत बड़े खिलाड़ी बने।

कुंबले और द्रविड़ का यह सपना मैंने 2002 में देखा था। उसके बाद से मेरा प्रिय खेल मेरे सपनों में नहीं आया। आजकल मैं देहरादून के अपने बचपन के जंगलों और मैदानों के सपने देखता हूं। लेकिन जिस रात मुझे ठीक से नींद नहीं आती, उस रात मैं अपने दौर के दो सबसे प्रतिभाशाली गेंदबाजों के बारे में सोचता हूं। ये गेंदबाज हैं शेन वॉर्न और वसीम अकरम। अनिद्रा वाली रात की बेचैनी में मैं सबसे पहले शेन वॉर्न के बारे में सोचता हूं। उनका छोटा-सा धीमा रनअप, उनके मजबूत कंधों के साथ ही अचानक उनकी कलाई का घूमना। उसके बाद गेंद आगे बढ़ती है, वह जिस तरह से गिरती और घूमती है, उसमें अक्सर बल्लेबाज या तो कैच आउट हो जाता है या फिर एलबीडब्ल्यू। या फिर वसीम अकरम के बारे में सोचता हूं। नई गेंद को बाएं हाथ में लेकर वह सुगम-सरल तेज रफ्तार से बढ़ते हुए ओवर द विकेट इनस्विंग गेंद फेंकते हैं, जो सीधे ऑफ स्टंप को उड़ा देती है। या फिर वह बाएं हाथ में पुरानी गेंद पकड़े हुए राउंड द विकेट आते हैं, इस बार उनकी गेंद रिवर्स स्विंग करती है, लेग से ऑफ की तरफ और असहाय बल्लेबाज स्लिप में कैच दे बैठता है।

मैं वॉर्न और अकरम को क्यों पसंद करता हूं, यह समझाने के लिए मुझे आर्थर माइली की एक और कहानी बतानी पड़ेगी। 1930 में ऑस्ट्रेलिया की टीम के इंग्लैंड दौरे के समय इयान पीबेल्स नाम के एक नौजवान स्पिनर को टीम में शामिल किया। टेस्ट मैचों के बीच में कभी इस नए गेंदबाज ने माइली से जानना चाहा कि वह अपनी गुगली को छिपाए कैसे? माइली ने इसका गुर सिखा दिया। जिस पर कुछ ऑस्ट्रेलियाई आलोचकों ने माइली की देशभक्ति पर सवाल उठा दिए। माइली का जवाब था- स्पिन गेंदबाजी कला है और कला अंतरराष्ट्रीय होती है। इसी तरह स्विंग गेंदबाजी भी एक कला होती है। कुछ साल पहले वसीम अकरम ने भारतीय तेज गेंदबाज जहीर खान को गेंदबाजी के कई गुर सिखाए थे- कैसे गति परिवर्तन करना है, कैसे रिवर्स स्विंग करानी है, कैसे ओवर द विकेट से बदलकर राउंड द विकेट गेंद फेंकनी है। इस बात के लिए वसीम अकरम की पाकिस्तान में वैसी ही आलोचना हुई थी, जैसी कभी माइली की ऑस्ट्रेलिया में हुई थी। लेकिन इसके बावजूद वसीम अकरम ने भारतीय गेंदबाजों को सिखाना जारी रखा।

जब मैं बच्चा था, तो बल्लेबाज बनने की मूखर्तापूर्ण सपने देखा करता था। प्रौढ़ होने पर मैं क्रिकेट के इतिहास में गेंदबाजों की जगह के बारे में सोचने लगा। तीस साल की उम्र पार करने तक मैं हमेशा चाहता था कि मेरा देश जीते। अब मैं सिर्फ अच्छे मैच चाहता हूं। इसलिए अब नींद से पहले शेन वॉर्न की लेग ब्रेक और वसीम अकरम की लेट स्विंग की खूबसूरती के बारे में सोचता हूं।

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