हॉर्न ओके प्लीज भारत में ट्रकों पर होने वाली कलाकारी का अभिन्न अंग है
ट्रकों और टैंपों के पीछे अक्सर ही दिखने वाले जिस हॉर्न ओके प्लीज पर महाराष्ट्र में प्रतिबंध लग गया है उसकी शुरुआत कैसे हुई?
महाराष्ट्र में ट्रक, टैंपो जैसी गाड़ियों के पीछे हॉर्न ओके प्लीज लिखने पर प्रतिबंध लग गया है. सरकार का तर्क है कि इस फैसले से ध्वनि प्रदूषण कम करने में मदद मिलेगी. वहां के यातायात विभाग का मानना है कि हॉर्न ओके प्लीज देखकर लोग बिना बात भी हॉर्न बजाने लगते हैं जिससे ध्वनि प्रदूषण होता है. विभाग के मुताबिक उसे अस्पताल और स्कूल जैसी उन जगहों पर ज्यादा हॉर्न बजाने की शिकायतें मिली थीं जहां इसकी मनाही होती है, इसलिए उसने इस वाक्यांश पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया. उसने जो सर्कुलर जारी किया है उसके मुताबिक ‘हॉर्न ओके प्लीज’ ओवरटेक करते समय हॉर्न बजाने के लिए उत्प्रेरक का काम करता है और इस तरह नागरिकों को गलत संदेश देता है. इस प्रतिबंध का उल्लंघन करने वालों पर जुर्माना हो सकता है. सरकार उनका परमिट भी रद्द कर सकती है.+
कुछ लोग मानते हैं कि यह लाइन एक मार्केटिंग रणनीति का हिस्सा थी तो कइयों के मुताबिक इसके इस्तेमाल की शुरुआत दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हुई.
इस प्रतिबंध के बाद सोशल मीडिया में इसे लेकर खूब बहस हो रही है. ट्रकों पर होने वाली कलाकारी के अभिन्न अंग हॉर्न ओके प्लीज पर रोक को एक वर्ग सही ठहरा रहा है जबकि दूसरा गलत. दोनों तरह के लोगों के पास अपने-अपने तर्क हैं. लेकिन इसके इतर एक सहज जिज्ञासा उठती है कि आखिर फिल्मों, संगीत अलबमों और तमाम दूसरे प्रयोजनों तक में इस्तेमाल हो चुका ट्रक कला का अभिन्न हिस्सा हॉर्न ओके प्लीज आया कहां से. इंटरनेट पर इस सवाल का जवाब तलाशने पर कई दिलचस्प जवाब मिलते हैं.+
उदाहरण के लिए कई लोग मानते हैं कि हॉर्न ओके प्लीज का इस्तेमाल एक मार्केटिंग रणनीति का हिस्सा था. भारत की आजादी के शुरुआती दशकों में ट्रक बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी टाटा मोटर्स थी. कुछ समय बाद टाटा समूह ने दूसरी चीजें भी बनानी शुरू कीं. इनमें टाटा ऑयल मिल्स कंपनी यानी टॉम्को का ओके डिटरजेंट भी शामिल था. माना जाता है कि इसका प्रचार करने के लिए ट्रकों पर ध्यान खींचने वाले रंगों के साथ ओके लिखा जाने लगा. अक्सर इसके साथ एक कमल का फूल भी बना होता था जो ओके डिटरजेंट का लोगो था. समय के साथ यह प्रोडक्ट तो इतिहास का हिस्सा बन गया लेकिन ओके और कमल के फूल का इस्तेमाल आज भी जारी है. इस धारा के कुछ उत्साही लोग तो ‘ओके टाटा बॉय बॉय’ जैसे वाक्य को भी प्रचार की इसी रणनीति का हिस्सा मानते हैं.+
हॉर्न ओके प्लीज के इस्तेमाल से जुड़ी एक और थ्योरी के तार दूसरे विश्व युद्ध तक जाते हैं. बताते हैं कि उन दिनों डीजल की भयानक किल्लत के चलते ट्रकों में केरोसीन यानी मिट्टी का तेल इस्तेमाल होने लगा था. केरोसीन को बहुत अस्थिर ईंधन माना जाता है जिसके चलते कई बार इंजन फटने की घटनाएं भी होती थीं. इसलिए दूसरों को चेतावनी देने के लिए ट्रक के पीछे ओके लिख दिया जाता था जिसका मतलब होता था ऑन केरोसीन.+
सिंगल लेन सड़कों के जमाने में ट्रकों के पीछे लिखे ओके शब्द के ऊपर एक बल्ब लगा होता था. जब किसी गाड़ी को ओवरटेक करने के लिए साइड देनी होती तो ड्राइवर केबिन में लगे एक स्विच के जरिये उस बल्ब को जला देता.
वेबसाइट कोराडॉटकॉम पर मुनीर नूरानी नाम के एक शख्स एक और दिलचस्प जानकारी देते हैं. मुनीर के मुताबिक उन्होंने कुछ बहुत ही उम्रदराज पूर्व ड्राइवरों से बात की. उनका कहना था कि सिंगल लेन और संकरी सड़कों के जमाने में ट्रकों के पीछे लिखे ओके शब्द के ऊपर एक बल्ब लगा होता था. जब किसी गाड़ी को साइड देनी होती तो ड्राइवर केबिन में लगे एक स्विच के जरिये उस बल्ब को जला देता. इसका संकेत यह होता कि आगे से कोई ट्रैफिक नहीं आ रहा और ओवरटेक करना सुरक्षित है. धीरे-धीरे सड़कें चौड़ी होने लगीं तो इस बल्ब का इस्तेमाल खत्म हो गया. रह गया सिर्फ ओके.+
ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष बल मलकीत सिंह भी कहते हैं कि हॉर्न ओके प्लीज के इस्तेमाल की शुरुआत वाहनों को संकरी सड़कों पर भी ओवरटेक करने में मदद करने के लिए हुई थी. उनके मुताबिक कई साल पहले सड़कें काफी संकरी हुआ करती थीं और पीछे वाले वाहन को ओवरटेक करने से पहले काफी हॉर्न बजाना पड़ता था ताकि वह आगे वाली गाड़ी के ड्राइवर को अलर्ट कर सके. हॉर्न ओके प्लीज का यही संदेश होता था. लेकिन अब इसकी जरूरत नहीं है क्योंकि सड़कें चौड़ी हैं.+
अलग-अलग फोरमों में कुछ लोग यह भी कहते हैं कि इसे हॉर्न ओके प्लीज नहीं बल्कि हॉर्न प्लीज ओके पढ़ा जाना चाहिए. यानी यह पीछे वाले को विनम्र संदेश है कि ओवरटेक करने के लिए कृपया हॉर्न दें, ओके?
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