समूचा देश आज चौधरी चरण सिंह की 28वीं पुण्य तिथि पर व्यथित है। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान स्वामी सहजानंद सरस्वती एवं सरदार पटेल किसान राजनीति के ध्वजवाहक रहे। वहीं स्वतंत्र भारत में चौधरी चरण सिंह कृषि प्रधान राजनीति के सिरमौर बने रहे। उन्होंने भूमि सुधार से लेकर मंडी में किसान हितों की रखवाली तक के दर्जनों विषयों को राजनीति और अर्थनीति का केंद्रबिंदु बनाया। कांग्रेस के नागपुर सम्मेलन में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने सहकारी कृषि कार्यक्रम का प्रस्ताव रखा, तो चरण सिंह ने उसका पुरजोर विरोध किया, नतीजतन लंबे समय तक उन्हें नेहरू जी के कोप का शिकार होना पड़ा। आज किसान राजनीति और उनके सवाल हाशिये पर चले गए हैं। चरण सिंह की मृत्यु के साथ किसान हितों के लिए संघर्ष करने वाला दल ही विभाजित नहीं हुआ, किसान उत्थान के सपने भी बिखर गए।
आज कृषि और किसान हित राजनीतिक एजेंडे से बाहर हैं। किसानों की जमीन उसकी सहमति के बगैर अधिगृहीत की जा रही है। किसान आत्महत्या करने को मजबूर है। ऐसे ही समय चौधरी जी की याद आती है, जिन्होंने किसानों की खुशहाली और कृषि पर जोर दिया था। लेकिन उनकी मृत्यु के बाद पिछले अट्ठाइस वर्षों में नरसिंह राव सरकार की उदार आर्थिक नीति, अटल सरकार के विनिवेश, मनमोहन सरकार के सेज से होते हुए आज मोदी सरकार के भूमि अधिग्रहण अध्यादेश ने किसानों को चौराहे पर ला खड़ा किया है। देश की लगभग साठ फीसदी आबादी सीधे खेतीबाड़ी पर निर्भर है। लेकिन कर्ज से तंग आकर किसानों की आत्महत्या की दर में कमी नहीं आई है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के मुताबिक, 2004 से 2012 तक एक लाख, 46 हजार, 373 किसान कर्ज और गरीबी से तंग आकर खुदकुशी कर चुके हैं।
चरण सिंह ने 1981 में अपनी किताब इकोनॉमिक नाइटमेयर ऑफ इंडिया में जिन बिंदुओं को उठाया था, यदि तमाम सरकारें उन पर अमल करतीं, तो आज किसान खुशहाल होता। चौधरी जी ने खाद्यान्न उत्पादन में बढ़ोतरी करने, कृषि आधारित कच्चे माल की उत्पादकता, कृषि निर्यात तथा किसानों की क्रयशक्ति बढ़ाने तथा कृषि पर बढ़ती जनसंख्या का बोझ कम करने जैसे कई सुझाव दिए थे। उन्होंने अमेरिकी विदेशी विकास परिषद की रिपोर्ट का हवाला देते हुए किताब में लिखा था कि भारत की प्राकृतिक स्थिति खाद्य उत्पादन में लगभग दूसरे देशों से कहीं आगे है, पर तमाम सरकारों के कृषि क्षेत्र की तरफ उदासीन रवैया अपनाने के कारण इस पर ध्यान नहीं दिया गया।
चरण सिंह द्वारा तैयार किया गया जमींदारी उन्मूलन विधेयक राज्य के कल्याणकारी सिद्धांत पर आधारित था। वर्ष 1952 में उत्तर प्रदेश में उन्हीं के कारण जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ और गरीबों को अधिकार मिले। वर्ष 1954 में किसानों के हित में उन्होंने उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून पारित कराया था। वर्ष 1979 में वित्त मंत्री और उप-प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक ‘नाबार्ड’ की स्थापना भी की। किसानों के ऐसे निर्विवाद नेता की पुण्यतिथि पर सरकार को चाहिए कि वह उनके दिए गए सुझावों और विचारों पर अमल करते हुए ऐसी योजनाएं और कार्यक्रम लाए, जिनका लाभ किसानों को मिले। यही चौधरी चरण सिंह की स्मृति को चिरस्थायी बनाने में सहायक होगा।
आज कृषि और किसान हित राजनीतिक एजेंडे से बाहर हैं। किसानों की जमीन उसकी सहमति के बगैर अधिगृहीत की जा रही है। किसान आत्महत्या करने को मजबूर है। ऐसे ही समय चौधरी जी की याद आती है, जिन्होंने किसानों की खुशहाली और कृषि पर जोर दिया था। लेकिन उनकी मृत्यु के बाद पिछले अट्ठाइस वर्षों में नरसिंह राव सरकार की उदार आर्थिक नीति, अटल सरकार के विनिवेश, मनमोहन सरकार के सेज से होते हुए आज मोदी सरकार के भूमि अधिग्रहण अध्यादेश ने किसानों को चौराहे पर ला खड़ा किया है। देश की लगभग साठ फीसदी आबादी सीधे खेतीबाड़ी पर निर्भर है। लेकिन कर्ज से तंग आकर किसानों की आत्महत्या की दर में कमी नहीं आई है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के मुताबिक, 2004 से 2012 तक एक लाख, 46 हजार, 373 किसान कर्ज और गरीबी से तंग आकर खुदकुशी कर चुके हैं।
चरण सिंह ने 1981 में अपनी किताब इकोनॉमिक नाइटमेयर ऑफ इंडिया में जिन बिंदुओं को उठाया था, यदि तमाम सरकारें उन पर अमल करतीं, तो आज किसान खुशहाल होता। चौधरी जी ने खाद्यान्न उत्पादन में बढ़ोतरी करने, कृषि आधारित कच्चे माल की उत्पादकता, कृषि निर्यात तथा किसानों की क्रयशक्ति बढ़ाने तथा कृषि पर बढ़ती जनसंख्या का बोझ कम करने जैसे कई सुझाव दिए थे। उन्होंने अमेरिकी विदेशी विकास परिषद की रिपोर्ट का हवाला देते हुए किताब में लिखा था कि भारत की प्राकृतिक स्थिति खाद्य उत्पादन में लगभग दूसरे देशों से कहीं आगे है, पर तमाम सरकारों के कृषि क्षेत्र की तरफ उदासीन रवैया अपनाने के कारण इस पर ध्यान नहीं दिया गया।
चरण सिंह द्वारा तैयार किया गया जमींदारी उन्मूलन विधेयक राज्य के कल्याणकारी सिद्धांत पर आधारित था। वर्ष 1952 में उत्तर प्रदेश में उन्हीं के कारण जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ और गरीबों को अधिकार मिले। वर्ष 1954 में किसानों के हित में उन्होंने उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून पारित कराया था। वर्ष 1979 में वित्त मंत्री और उप-प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक ‘नाबार्ड’ की स्थापना भी की। किसानों के ऐसे निर्विवाद नेता की पुण्यतिथि पर सरकार को चाहिए कि वह उनके दिए गए सुझावों और विचारों पर अमल करते हुए ऐसी योजनाएं और कार्यक्रम लाए, जिनका लाभ किसानों को मिले। यही चौधरी चरण सिंह की स्मृति को चिरस्थायी बनाने में सहायक होगा।
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