प्रधानमंत्री होते हुए भी राजीव गांधी को यह कतई पसंद नहीं था कि जहां वे जाएं, उनके पीछे-पीछे उनके सुरक्षाकर्मी भी पहुंचें.
उनकी मां की हत्या और उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद उनकी सुरक्षा पहले की तुलना में कहीं अधिक बढ़ा दी गई थी. फिर भी राजीव गांधी की पूरी कोशिश होती थी कि वह अपने सुरक्षाकर्मियों को गच्चा दें, जहां चाहें वहां जा सकें.
जब भी राजीव ऐसा करते थे उनके एसपीजी अधिकारियों की नींद उड़ जाया करती थी. राजीव गांधी अपनी जीप खुद ड्राइव करना पसंद करते थे और वह भी बहुत तेज स्पीड में.
1 जुलाई, 1985 को मूसलाधार बारिश हो रही थी. तभी अचानक खबर आई कि वायुसेना अध्यक्ष एयर चीफ़ मार्शल लक्ष्मण माधव काटरे का निधन हो गया है.
दोपहर बाद प्रधानमंत्री राजीव गांधी और सोनिया गांधी उनके निवास स्थान पर पहुंचे और श्रीमती काटरे के साथ करीब पंद्रह मिनट बिताए.
प्रधानमंत्री के साथ उनका पूरा मोटरकेड था. चूंकि एसपीजी वालों को पता नहीं था कि काटरे के निवास से सोनिया गांधी राजीव की कार में बैठेंगी या अपनी कार में कहीं और जाएंगी, इसलिए सोनिया के सुरक्षाकर्मी भी उसी मोटरकेड में साथ साथ चल रहे थे.
हिदायत की अनदेखी
जैसे ही राजीव बाहर आए, उन्होंने इन सभी कारों को वहाँ खड़े देखा. उन्होंने एक अधिकारी को बुला कर हिदायत दी कि वे सुनिश्चित करें कि यह कारें उनकी कार के पीछे न आएं.
लेकिन जब वह सोनिया के साथ अपनी जीप में बैठे तो उन्होंने देखा कि सभी कारे उनके पीछे पीछे चल रही हैं. शायद पुलिस अधिकारी उनके निर्देश को ठीक ढंग से समझ नहीं पाया था.
राजीव ने अचानक अपनी जीप को रोका. मूसलाधार बारिश में बाहर निकले. अपने ठीक पीछे आ रही एस्कॉर्ट कार का दरवाज़ा खोला और उसकी चाबी निकाल ली. इसके बाद उन्होंने पीछे चल रही दो और कारों की चाबी निकाली. जैसे ही कारों का काफ़िला रुका पीछे आ रहे दिल्ली पुलिस के उप आयुक्त यह जानने के लिए अपनी कार आगे ले आए कि माजरा क्या है. उसके पांव से ज़मीन निकल गई जब राजीव ने बिना कुछ कहे उसकी कार की भी चाबी निकाल ली.
मज़ेदार चीज़ तब हुई जब राजीव गांधी ने सभी चाबियां पानी से भरे नाले में फेंक दीं और सोनिया के साथ अकेले आगे बढ़ गए. एसीपी की समझ में ही नहीं आया कि क्या करें.
ज़बरदस्त बारिश हो रही थी और प्रधानमंत्री के काफ़िले की सभी छह कारें बिना चाबी के राजाजी मार्ग के बीचों-बीच खड़ी थीं. उनको बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि राजीव गए कहां हैं.
पंद्रह मिनट बाद उनकी जान में जान आई जब उन्हें पता चला कि राजीव सकुशल सात रेसकोर्स रोड पर पहुंच गए हैं. कुछ महीनों बाद रात के बारह बजे उन्होंने गृह सचिव आर डी प्रधान को फ़ोन मिलाया.
पंडारा रोड किधर है?
उस समय प्रधान गहरी नींद सो रहे थे. उनकी पत्नी ने फ़ोन उठाया. राजीव बोले,’ क्या प्रधान जी सो रहें हैं. मैं राजीव गांधी बोल रहा हूँ.’ उनकी पत्नी ने तुरंत उन्हें जगा दिया.
राजीव ने पूछा, "आप मेरे निवास से कितनी दूर रहते हैं?" प्रधान ने बताया कि वह पंडारा रोड पर हैं. राजीव बोले, "मैं आपको अपनी कार भेज रहा हूँ. आप जितनी जल्दी हो, यहाँ आ जाइए."
उस समय राजीव के पास पंजाब के राज्यपाल सिद्धार्थ शंकर राय कुछ प्रस्तावों के साथ आए हुए थे. चूंकि राय उसी रात वापस चंडीगढ़ जाना चाहते थे, इसलिए राजीव ने गृह सचिव को इतनी रात गए तलब किया था.
दो घंटे तक यह लोग मंत्रणा करते रहे. रात दो बजे जब सब बाहर आए तो राजीव ने आरडी प्रधान से कहा कि वह उनकी कार में बैंठें. प्रधान समझे कि प्रधानमंत्री उन्हें गेट तक ड्रॉप करना चाहते हैं.
लेकिन राजीव ने गेट से बाहर कार निकाल कर अचानक बाईं तरफ टर्न लिया और प्रधान से पूछा, "मैं आपसे पूछना भूल गया कि पंडारा रोड किस तरफ है."
अब तक प्रधान समझ चुके थे कि राजीव क्या करना चाहते हैं. उन्होंने राजीव का स्टेयरिंग पकड़ लिया और कहा, "सर अगर आप वापस नहीं मुड़ेंगे तो मैं चलती कार से कूद जाऊंगा."
प्रधान ने उन्हें याद दिलाया कि उन्होंने उनसे वादा किया था कि वह इस तरह के जोखिम नहीं उठाएंगे. बड़ी मुश्किल से राजीव गांधी ने कार रोकी और जब तक गृह सचिव दूसरी कार में नहीं बैठ गए वहीं खड़े रहे.
(80 के दशक में भारत के गृह सचिव और अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल रहे आर डी प्रधान से बातचीत पर आधारित
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