सिंगापुर के संस्थापक और पहले प्रधानमंत्री ली कुआन यू का, जिन्होंने इस द्वीपीय देश को एशिया का सबसे समृद्ध और अपेक्षाकृत निम्नतम भ्रष्ट राष्ट्र बनाया, 91 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। ली 1959 (जब सिंगापुर ने ब्रिटिश शासन से पूर्ण स्व-शासन का अधिकार हासिल किया था) से लेकर 1990 (जब वह अपदस्थ हुए) तक सिंगापुर के प्रधानमंत्री थे। लेकिन अपने जीवन के अंत तक वह सिंगापुर के, जिसे वह तीसरी दुनिया के देशों में पहली दुनिया का नखलिस्तान कहते थे, प्रमुख व्यक्तित्व और असली ताकत बने रहे। उनका देश उन्हें प्रभावी, कठिन सच्चाइयों का सामना करने वाला, स्वच्छ आचरण वाला, आविष्कारी, दूरदर्शी और व्यावहारिक व्यक्ति मानता रहा। वर्ष 2007 में न्यूयॉर्क टाइम्स के साथ एक इंटरव्यू में सिंगापुर की विचारधारा के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा था, 'हम विचारधारा मुक्त राष्ट्र हैं। किसी भी विचारधारा को अपनाने से पहले हम सोचते हैं कि क्या यह कारगर होगी? यदि वह कारगर हो सकती है, तो उसे आजमाते हैं। अगर वह अच्छी होती है, तो उसे जारी रखते हैं। लेकिन जब वह विचारधारा कारगर नहीं होती, तो उसे छोड़कर दूसरी को आजमाते हैं।'
कभी-कभी स्वतंत्रता को कुचलने के लिए उनके नेतृत्व की आलोचना होती थी, पर उनका फॉर्मूला सफल रहा। इसकी बदौलत सिंगापुर एक अंतरराष्ट्रीय व्यावसायिक और वित्तीय केंद्र बन गया। पर 2011 के चुनाव में कुआन युग का अंत हो गया और मतदाताओं ने पीपुल्स ऐक्शन पार्टी (पीएपी-पाप) के खिलाफ जनादेश दिया। कुआन ने विशेष रूप से सृजित मंत्रियों के मार्गदर्शक पद से इस्तीफा दे दिया और नेपथ्य में चले गए, क्योंकि राष्ट्र ने ज्यादा सक्रिय और कम निरंकुश सरकार की संभावनाएं तलाशनी शुरू कर दी।
वर्ष 1965 में मलयेशिया से अलग होने (जिसे ली अपनी पीड़ा का क्षण कहते थे) के बाद सिंगापुर हमेशा प्राकृतिक संसाधनों की कमी, प्रतिकूल अंतरराष्ट्रीय माहौल और चीनी, मलय और भारतीयों की मिश्रित जातीय संस्कृति पर काबू पाने के अंतहीन संघर्ष से जूझता रहा है। वर्ष 2007 के एक इंटरव्यू में ली ने कहा था, 'सिंगापुर को समझने के लिए वहां से शुरुआत करनी पड़ेगी, जब उसका अस्तित्व नहीं माना जाता था, और कहा जाता था कि इसका अस्तित्व नहीं हो सकता। इसे वहां से शुरू करना होगा, जब हमारे पास राष्ट्र के लिए प्राथमिक कारक नहीं थे, मसलन, एक सजातीय आबादी, साझी भाषा, साझी संस्कृति और साझी नियति। इसलिए इसका इतिहास काफी लंबा है। मैंने तो बस अपने हिस्से का छोटा-सा काम किया है।'
उनके 'सिंगापुर मॉडल' में, जिसे विनम्र अधिनायकवाद बताकर आलोचना भी की जाती है, केंद्रीयकृत शक्ति, स्वच्छ सरकार और आर्थिक उदारवाद के साथ राजनीतिक विरोधियों के दमन और जनसभाओं व स्वतंत्र अभिव्यक्ति की सख्त सीमाएं (जिसने सजग और आत्म-नियंत्रण का माहौल तैयार किया) भी शामिल हैं। चीन समेत एशिया के विभिन्न नेताओं ने इस मॉडल का अध्ययन किया और इसकी प्रशंसा की है। यही नहीं, अनगिनत शैक्षणिक अध्ययनों का यह विषय भी है। प्रसिद्ध टिप्पणीकार चेरियन जॉर्ज ली कुआन के नेतृत्व को 'भय और करिश्मे का अनूठा संगम' बताते हैं। जैसे ही ली का प्रभाव खत्म हुआ, यह सवाल उभरा कि यह मॉडल एक नई और संभवतः अधिक उदार पीढ़ी के हाथों में जाकर कितना और कितनी तेजी से बदलेगा। कुछ लोगों ने यहां तक पूछा कि क्या 56 लाख की आबादी वाला सिंगापुर अशांत भविष्य में बचा रह सकता है।
ली एशियाई मूल्यों के उस्ताद थे। एशियाई मूल्य ऐसा विचार है, जिसमें व्यक्तिगत अधिकारों के ऊपर सामाजिक अच्छाई को तरजीह दी जाती है और बदले में नागरिक पितृसुलभ शासन के लिए अपनी कुछ स्वायत्तता सौंप देते हैं। सामान्य तौर पर राजनीतिक मामलों में कम रुचि लेने वाले सिंगापुर के लोग कभी-कभार आरामदायक जीवन-शैली (जिसे वे फाइव सी कहते हैं- कैश, कोंडो (आवास), कार, क्रेडिट कार्ड और कंट्री क्लब) में ज्यादातर मग्न रहने के लिए खुद की आलोचना करते हैं। हालांकि, हाल के वर्षों में राजनीतिक वेबसाइट और ब्लॉगों ने कुआन और उनकी व्यवस्था के आलोचकों को नई आवाज दी। सिंगापुर को कम जानने वाले लोगों के बीच भी क़ुआन अपने राष्ट्रीय आत्म-सुधार अभियान के लिए प्रसिद्ध थे, जो लोगों से हंसने, अच्छी अंग्रेजी बोलने और अपना शौचालय साफ करने की अपील करता है और सार्वजनिक स्थलों पर थूकने, च्यूंगम या बॉलकनी से कूड़ा फेंकने से मना करता है। अपने संस्मरण के दूसरे खंड (फ्रॉम थर्ड वर्ल्ड टू फर्स्टः द सिंगापुर स्टोरी 1965-2000) में कुआन कहते हैं, 'वे हम पर हंसते थे, लेकिन मुझे पूरा यकीन था कि अंत में हंसने वाले हम ही होंगे। अगर हम एक स्थूल, असभ्य, अशिष्ट समाज रहे होते, तो हम ये प्रयास नहीं कर पाते।'
ली ने राजनीतिक नियंत्रण के लिए एक विशिष्ट सिंगापुरी रणनीति बनाई, जिसके तहत उनकी आलोचना करने वालों के खिलाफ मानहानि के मामले दायर किए जाते थे। इस वजह से कई बार उनके विरोधी दिवालिया तक हो गए। विदेशी मीडिया के आलोचकों से उनके झगड़े तक हुए। कई विदेशी प्रकाशनों को उनसे न केवल माफी मांगनी पड़ी, बल्कि मुकदमे के कारण उन्हें अच्छा खासा धन भी शुल्क के तौर पर देना पड़ा। हालांकि खुद कुआन कहते थे कि इन मुकदमों के पीछे राजनीतिक कारण नहीं थे। उनका कहना था कि गलत आरोपों से खुद को बेदाग साबित करने के लिए ऐसे मुकदमे जरूरी थे। वह खुद को ऐसा राजनीतिक संघर्षकर्ता कहलाने में गर्व करते थे, जिससे लोग प्यार करने से ज्यादा डरें। 1994 में उन्होंने कहा था, अगर आप सोचते हैं कि मुझसे ज्यादा जोर से आप प्रहार कर सकते हैं, तो कोशिश कीजिए। इसके अलावा चीनी समाज में शासन करने का और कोई तरीका नहीं है।
कभी-कभी स्वतंत्रता को कुचलने के लिए उनके नेतृत्व की आलोचना होती थी, पर उनका फॉर्मूला सफल रहा। इसकी बदौलत सिंगापुर एक अंतरराष्ट्रीय व्यावसायिक और वित्तीय केंद्र बन गया। पर 2011 के चुनाव में कुआन युग का अंत हो गया और मतदाताओं ने पीपुल्स ऐक्शन पार्टी (पीएपी-पाप) के खिलाफ जनादेश दिया। कुआन ने विशेष रूप से सृजित मंत्रियों के मार्गदर्शक पद से इस्तीफा दे दिया और नेपथ्य में चले गए, क्योंकि राष्ट्र ने ज्यादा सक्रिय और कम निरंकुश सरकार की संभावनाएं तलाशनी शुरू कर दी।
वर्ष 1965 में मलयेशिया से अलग होने (जिसे ली अपनी पीड़ा का क्षण कहते थे) के बाद सिंगापुर हमेशा प्राकृतिक संसाधनों की कमी, प्रतिकूल अंतरराष्ट्रीय माहौल और चीनी, मलय और भारतीयों की मिश्रित जातीय संस्कृति पर काबू पाने के अंतहीन संघर्ष से जूझता रहा है। वर्ष 2007 के एक इंटरव्यू में ली ने कहा था, 'सिंगापुर को समझने के लिए वहां से शुरुआत करनी पड़ेगी, जब उसका अस्तित्व नहीं माना जाता था, और कहा जाता था कि इसका अस्तित्व नहीं हो सकता। इसे वहां से शुरू करना होगा, जब हमारे पास राष्ट्र के लिए प्राथमिक कारक नहीं थे, मसलन, एक सजातीय आबादी, साझी भाषा, साझी संस्कृति और साझी नियति। इसलिए इसका इतिहास काफी लंबा है। मैंने तो बस अपने हिस्से का छोटा-सा काम किया है।'
उनके 'सिंगापुर मॉडल' में, जिसे विनम्र अधिनायकवाद बताकर आलोचना भी की जाती है, केंद्रीयकृत शक्ति, स्वच्छ सरकार और आर्थिक उदारवाद के साथ राजनीतिक विरोधियों के दमन और जनसभाओं व स्वतंत्र अभिव्यक्ति की सख्त सीमाएं (जिसने सजग और आत्म-नियंत्रण का माहौल तैयार किया) भी शामिल हैं। चीन समेत एशिया के विभिन्न नेताओं ने इस मॉडल का अध्ययन किया और इसकी प्रशंसा की है। यही नहीं, अनगिनत शैक्षणिक अध्ययनों का यह विषय भी है। प्रसिद्ध टिप्पणीकार चेरियन जॉर्ज ली कुआन के नेतृत्व को 'भय और करिश्मे का अनूठा संगम' बताते हैं। जैसे ही ली का प्रभाव खत्म हुआ, यह सवाल उभरा कि यह मॉडल एक नई और संभवतः अधिक उदार पीढ़ी के हाथों में जाकर कितना और कितनी तेजी से बदलेगा। कुछ लोगों ने यहां तक पूछा कि क्या 56 लाख की आबादी वाला सिंगापुर अशांत भविष्य में बचा रह सकता है।
ली एशियाई मूल्यों के उस्ताद थे। एशियाई मूल्य ऐसा विचार है, जिसमें व्यक्तिगत अधिकारों के ऊपर सामाजिक अच्छाई को तरजीह दी जाती है और बदले में नागरिक पितृसुलभ शासन के लिए अपनी कुछ स्वायत्तता सौंप देते हैं। सामान्य तौर पर राजनीतिक मामलों में कम रुचि लेने वाले सिंगापुर के लोग कभी-कभार आरामदायक जीवन-शैली (जिसे वे फाइव सी कहते हैं- कैश, कोंडो (आवास), कार, क्रेडिट कार्ड और कंट्री क्लब) में ज्यादातर मग्न रहने के लिए खुद की आलोचना करते हैं। हालांकि, हाल के वर्षों में राजनीतिक वेबसाइट और ब्लॉगों ने कुआन और उनकी व्यवस्था के आलोचकों को नई आवाज दी। सिंगापुर को कम जानने वाले लोगों के बीच भी क़ुआन अपने राष्ट्रीय आत्म-सुधार अभियान के लिए प्रसिद्ध थे, जो लोगों से हंसने, अच्छी अंग्रेजी बोलने और अपना शौचालय साफ करने की अपील करता है और सार्वजनिक स्थलों पर थूकने, च्यूंगम या बॉलकनी से कूड़ा फेंकने से मना करता है। अपने संस्मरण के दूसरे खंड (फ्रॉम थर्ड वर्ल्ड टू फर्स्टः द सिंगापुर स्टोरी 1965-2000) में कुआन कहते हैं, 'वे हम पर हंसते थे, लेकिन मुझे पूरा यकीन था कि अंत में हंसने वाले हम ही होंगे। अगर हम एक स्थूल, असभ्य, अशिष्ट समाज रहे होते, तो हम ये प्रयास नहीं कर पाते।'
ली ने राजनीतिक नियंत्रण के लिए एक विशिष्ट सिंगापुरी रणनीति बनाई, जिसके तहत उनकी आलोचना करने वालों के खिलाफ मानहानि के मामले दायर किए जाते थे। इस वजह से कई बार उनके विरोधी दिवालिया तक हो गए। विदेशी मीडिया के आलोचकों से उनके झगड़े तक हुए। कई विदेशी प्रकाशनों को उनसे न केवल माफी मांगनी पड़ी, बल्कि मुकदमे के कारण उन्हें अच्छा खासा धन भी शुल्क के तौर पर देना पड़ा। हालांकि खुद कुआन कहते थे कि इन मुकदमों के पीछे राजनीतिक कारण नहीं थे। उनका कहना था कि गलत आरोपों से खुद को बेदाग साबित करने के लिए ऐसे मुकदमे जरूरी थे। वह खुद को ऐसा राजनीतिक संघर्षकर्ता कहलाने में गर्व करते थे, जिससे लोग प्यार करने से ज्यादा डरें। 1994 में उन्होंने कहा था, अगर आप सोचते हैं कि मुझसे ज्यादा जोर से आप प्रहार कर सकते हैं, तो कोशिश कीजिए। इसके अलावा चीनी समाज में शासन करने का और कोई तरीका नहीं है।
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