Wednesday, 18 March 2015

जब असलम शेर ने तावीज़ चूम कर गोल मारा @रेहान फ़ज़ल

हॉकी विश्वकप ट्रॉफी
भारत ने पहली बार वर्ष 1975 में क्वालालम्पुर में हॉकी का विश्व कप जीता. इसके बाद भारत विश्व कप के सेमी फ़ाइनल तक में नहीं पहुंचा.
सेमी फ़ाइनल में उपेक्षित असलम शेर खाँ ने मैच ख़त्म होने से तीन मिनट पहले मेज़बान मलेशिया के ख़िलाफ़ गोल कर भारत को फ़ाइनल में पहुंचाया.
पाकिस्तान के ख़िलाफ़ फ़ाइनल में हॉकी के जादूगर ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार ने भारत के लिए विजयी गोल दागा.
ये संभवत: भारतीय हॉकी का सबसे स्वर्णिम क्षण था. भारत ने मानो दुनिया को जीत लिया था.
पढ़िए रेहान फ़ज़ल की विवेचना
हॉकी विश्वकप ट्रॉफी
विश्वकप के साथ बाएं से चिमनी, असलम शेर ख़ां, कोच गुरचरण सिंह बोधी और राइट आउट फ़िलिप्स.
ये मार्च 1975 की बात है. तीसरे विश्व कप हॉकी का आयोजन मलेशिया की राजधानी क्वालालम्पुर में किया गया था. भारत की टीम क्वालालम्पुर पहुंचने वाली सबसे आख़िरी टीम थी.
मर्लिन होटल की लॉबी में जहाँ सभी टीमों को ठहराया गया था, शीशे के एक केस में विश्व कप की ट्रॉफ़ी रखी गई थी.
भारतीय खिलाड़ियों ने बहुत हसरत भरी नज़रों से इस कप की ओर देखकर सोचा- क्या वो इस बार इसे जीतकर भारत ले जा पाएंगे?
वर्ष 1973 की यादें अभी भी उनके मन में थीं जब फ़ाइनल में हॉलैंड के ख़िलाफ़ 2-0 की लीड लेकर भी भारत उस मैच के टाई ब्रेकर में हार गया था.
लेकिन वर्ष 1975 में भारत ने लीग मैचों में ब्रिटेन, घाना और जर्मनी को हराकर अपने ग्रुप में पहला स्थान प्राप्त किया था. सेमी फ़ाइनल में भारत की भिड़ंत मलेशिया से हुई.

जब असलम ने शर्तिया हार बचाई

वर्ष 1975 में विश्वकप हॉकी का मुक़ाबला
इंग्लैंड के साथ खेलते हुए राइट इन अशोक कुमार और सेंटर फॉरवर्ड चिमनी
मैच शुरू होने से काफ़ी समय पहले ही पूरा स्टेडियम खचाखच भर गया था. पचास हज़ार लोगों ने एक स्वर में आवाज़ लगाई... मलेशिया की जीत... और पूनफ़ून लोक ने भारतीय रक्षकों को छकाते हुए भारतीय गोल को भेद दिया.
नतीजा रहा मलेशिया 1 और भारत 0. कुछ देर बार भारत ने गोल बराबर किया, लेकिन मलेशिया ने फिर बढ़त बना ली.
मलेशिया 2, भारत-1. फ़ाइनल व्हिसिल बजने में 17 मिनट शेष थे. कोच गुरचरण सिंह बोधी और मैनेजर बलबीर सिंह के बीच मंत्रणा होती है कि अब क्या किया जाए.
13 मिनट शेष... मंत्रणा अभी भी जारी.... 12 मिनट... 11 मिनट... अभी भी कोई फ़ैसला नहीं. 9 मिनट बाकी. बलबीर ने आवाज़ लगाई, 'असलम मैदान पर उतरो.'
असलम शेर खाँ ने अपने पिता की दी हुई तावीज़ को चूमा और मैदान में क़दम रखा. फ़ौरन ही मलेशियाई फ़ॉरवर्ड शनमुघम ने बाएं फ़्लैंक से हमलावर अंदाज़ दिखाया.
अचानक असलम फ़्लैश बैक में चले गए.

बाएं हाथ का कमाल

विश्वकप विजेता हॉकी टीम
फ़ाइनल विसिल के बाद पसीने से लथपथ भारतीय हॉकी टीम के खिलाड़ी
उनके पिता अहमद शेर खाँ उन्हे हॉकी सिखाते समय बताया करते थे, ''असलम तुम क़ुदरती रूप से बाएं हत्थे हो. इसलिए तुम दाहिने हाथ से रोकने का आभास दो और बाएं हाथ से टैकल करो.''
असलम ने दाहिने तरफ़ से बॉडी फेंट करते हुए उनसे गेंद छीनी और गोविंदा की तरफ़ आगे बढ़ाई. खेल ख़त्म होने में सिर्फ़ तीन मिनट शेष... भारतीय खिलाड़ियों ने दबाव बनाया और भारत को पेनाल्टी कॉर्नर मिला.
टॉप ऑफ़ डी पर खड़े हुए असलम शेर ख़ाँ ने एक बार फिर तावीज़ को चूमा. गोविंदा ने गेंद पुश की और अजीतपाल सिंह ने गेंद को दबाया.
जैसे ही गेंद को हिट करने के लिए उनकी स्टिक उठी, उन्होंने अपनी आँख के कोने से देखा- मलेशियाई गोलकीपर ज़ियाउद्दीन, गेंद रोकने के लिए बाईं ओर झुक रहा है.
असलम के अंदर से किसी ने कहा....'दाहिने !' ये आवाज़ इतनी तेज़ थी कि असलम ने उसी स्पिलिट सेकेंड में अपने शॉट का कोण बदला और ज़मीन से चिपका हुआ धीमा शॉट, गोल पोस्ट के दाहिने हिस्से में जा घुसा.
इसके बाद मैच अतिरिक्त समय तक खिंचा. हरचरण सिंह ने विजयी गोल मारकर भारत को फ़ाइनल में पहुंचाया.

बलबीर ने असलम के साथ नमाज़ पढ़ी

अशोक कुमार
राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद से अर्जुन पुरस्कार लेते हुए अशोक कुमार
फ़ाइनल में भारत का मुक़ाबला चिर-परिचित प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के साथ था. असलम शेर खाँ ने इच्छा प्रकट की कि वो नमाज़ पढ़ने के लिए मस्ज़िद जाना चाहते हैं.
कोच बोधी, मैनेजर बलबीर सिंह और डॉक्टर राजेंद्र कालरा उन्हें लेकर क्वालालम्पुर की शाही मस्जिद पहुंचे.
उसी बस में पाकिस्तानी टीम के खिलाड़ी भी थे. 'सडेन डेथ' रशीद ने असलम से मज़ाक किया कि तुमने मलेशिया के ख़िलाफ़ बराबरी का गोल मारा और अब बलबीर को नमाज़ पढ़वाने ले जा रहे हो. आगे क्या इरादे हैं?
वहाँ के मौलाना ने उनका स्वागत किया. जब उन्होंने बताया कि वो सब वहाँ नमाज़ पढ़ने आए हैं तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ.
बलबीर को नमाज़ पढ़ने का तरीका पता नहीं था. इसलिए उन्होंने नमाज़ ख़त्म होने तक अपना माथा ज़मीन से ऊपर नही उठाया.
लौटते समय रशीद ने शहनाज़ शेख़ से व्यंग्य किया, ''कल भारत जीत रहा है तुम्हारे ख़िलाफ़.''
शहनाज़ ने कहा, ''इसलिए कि तुम टीम में नहीं खेल रहे हो?'' रशीद ने तुरंत जवाब दिया, ''इसलिए कि अल्लाह पहले की गई दुआ को ही क़बूल करता है. असलम और बलबीर ने जीत के लिए पहले दुआ माँगी है.'' रशीद बिल्कुल सही थे.

भारत का बराबरी का गोल

अशोक कुमार अपने पिता ध्यानचंद के साथ
'हॉकी के जादूगर' ध्यानचंद के साथ उनके पुत्र अशोक कुमार
पाकिस्तान ने 17वें मिनट में खेल के रुख़ के ख़िलाफ़ भारत पर फ़ील्ड गोल कर 1-0 की बढ़त बनाई.
टीम के कप्तान अजीतपाल सिंह उस मैच को याद करते हुए कहते हैं, ''आप टेप देखेंगे तो पाएंगे कि हमारे ख़िलाफ़ अप्रत्याशित गोल हुआ. हमारे राइट हाफ़ वरिंदर सिंह के पास गेंद थी. उन्होंने उसे क्लीयर किया. ग़लत क्लीयर हो गया. गेंद पाकिस्तानी खिलाड़ी ज़ाहिद के पास चली गया. वो डी में घुसे और उन्होंने भारतीय गोल में गेंद प्लेस कर दी.''
भारतीय टीम ने हिम्मत नहीं खोई, लेकिन कम से कम पहले हॉफ़ में उन्होंने अपने राइट फ़्लैंक का इस्तेमाल नहीं किया. हॉफ़ टाइम के समय कुछ भारतीय खिलाड़ियों का मनोबल बिल्कुल नीचे चला गया.
उन्हें लगा कि इतिहास अपने आपको दोहराने वाला है. अशोक कुमार कहते हैं कि जैसे ही मेरे कान में ये बात पड़ी, मैंने देसी ज़ुबान में उन खिलाड़ियों को डांटा और कहा कि अभी भी हमारे पास 35 मिनट बाकी हैं.
मध्यांतर के बाद भारतीय टीम नए जोश के साथ मैदान पर उतरी. उन्होंने पाकिस्तान पर उसी तरह हमले करने शुरू किए, जैसे ज्वार वाले समुद्र में लहरें आती हैं.
भारत की मेहनत बेकार नहीं गई. 44वें मिनट में भारत को पेनल्टी कार्नर मिला.
प्रख्यात कमेंटेटर जसदेव सिंह याद करते हैं, ''जहाँ तक मुझे याद है कप्तान अजीतपाल सिंह ने गेंद को दबाया था बहुत ख़ूबसूरती के साथ. सीधा... जिसे पंजाबी में कहते हैं गेंद फट्टे में जाकर लगी थी और ज़ोरदार आवाज़ हुई थी और इसके साथ ही पूरे स्टेडियम में ख़ुशी की लहर दौड़ गई.''

अशोक ने विजयी गोल मारा

अशोक कुमार, रेहान फ़ज़ल
बीबीसी के स्टूडियो में रेहान फ़ज़ल के साथ अशोक कुमार
7 मिनट बाद हरचरण ने लॉन्ग कॉर्नर से गेंद फ़िलिप्स की तरफ़ भेजी.
फ़िलिप्स ने गेंद बढ़ा दी अशोक की तरफ़. अशोक ने तेज़ शॉट लगा कर गेंद गोल में डाल दी. शॉट इतना तेज़ था कि गेंद फट्टे से टकरा कर फिर मैदान में वापस आ गई.
अंपायर विजयनाथन को फ़ैसला लेने में तीन से चार सेकेंड लग गए.
जसदेव सिंह कहते हैं, "उस समय इतना शोर था भारत के पक्ष में कि एक बार कमेंट्री करते हुए मैं झिझका, क्योंकि अंपायर ने जिस तरह का इशारा किया उससे मैं थोड़ा शक में पड़ गया."

अंपायर को भी समझ न आया

भारतीय हॉकी टीम
विश्वकप जीतने के बाद भारतीय खिलाड़ियों ने फ़िल्म स्टारों के साथ प्रदर्शनी मैच खेला.
"पहले मैंने कहा गोल. दूसरी बार मैं रुका. मुझे अच्छी तरह याद है मैंने कहा गोल !गोल ! लेकिन जब अंपायर ने दोबारा इशारा किया सेंटर लाइन की तरफ़ जहाँ से पास बैक किया जाता है, तो मैं भी चीख़ पड़ा... गोल... भारत इस समय 2-1 से आगे है."
भारत ने अंत तक ये 2-1 की लीड बनाए रखी. विजयी गोल मारने वाले अशोक कुमार को वो गोल अभी भी याद है, "वो एक लांग कॉर्नर था. जब गेंद मुझे मिली तो दस गज़ आगे जा कर मैंने गेंद फ़िलिप्स को दे दी. फ़िलिप्स डी के अंदर गया और राइट गोलपोस्ट के सामने मुझे गेंद डाल दी."
वो बताते हैं, "मैं और गोलकीपर आमने सामने थे. मैंने उस गेंद के ऊपर पूरा स्वीप किया और इनर साइड के जो बोर्ड लगे होते हैं उनको छूती हुई गेंद बहुत तेज़ी से बाहर आ गई. उस समय अंपायर को सोचने का मौका नहीं मिला कि हुआ क्या. दो चार सेकेंड बाद उसने रिएलाइज़ किया और उसे गोल घोषित किया."

इस्लाह वो मौच अभी तक नहीं भूले

इस्लाहउद्दीन
विश्वकप के फ़ाइनल में हारने वाली पाकिस्तानी टीम के कप्तान इस्लाहउद्दीन
मैंने कराची फ़ोन कर उस पाकिस्तानी टीम के कप्तान इस्लाहउद्दीन से संपर्क कर पूछा कि कभी उस फ़ाइनल मैच का ख़्याल आपको आता है?
इस्लाह ने जवाब दिया, "अक्सर आता है और अब आप ज़िक्र कर रहे हैं तो और आ रहा है. जर्मनी से हम सेमी फ़ाइनल पांच सिफ़र से जीते थे. हमारे तीन रेगुलर खिलाड़ी ज़ख़्मी हो गए थे. रशीद जूनियर का फ़्रैक्चर हो गया था. शहनाज़ शेख़ को घुटने की दिक्कत थी."
वो बताते हैं, "समीउल्लाह मैच शुरू होने के दस मिनटों के अंदर भारत के वरिंदर सिंह से टकरा कर अपनी कॉलर बोन तुड़वा बैठे थे. दूसरे हॉफ़ में अशोक कुमार ने गोल किया जिसकी वजह से पाकिस्तान की टीम हारी."
"आपको याद होगा कि इस गोल पर काफ़ी विवाद भी रहा था कि गेंद गोलपोस्ट के आउटर एज से टकराई है. वो मैच हम कभी नहीं भूल सकते. उस पर बाद में हंगामे भी हुए. लेकिन अंपायर का फ़ैसला फ़ाइनल होता है. अंपायर थे विजयनाथन. उनका ताल्लुक मलेशिया से था. वो 75 का विश्व कप लोग भूल जाएं, आप भूल गए हैं, लेकिन मैं हमेशा याद रखूंगा."

दर्द के बाद भी चक्कर लगाया

भारतीय हॉकी टीम
खेल ख़त्म होने के तुरंत बाद का दृश्य.
पाकिस्तान ने अंतिम क्षणों में गोल उतारने के भरसक प्रयास किए. लेकिन भारतीय रक्षण ने बिल्कुल लोहे की दीवार की तरह उनका सामना किया.
सुरजीत, असलम और अशोक दीवान सभी ने अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया. जब खेल ख़त्म हुआ तो स्टेडियम की हालत देखने लायक थी.
जसदेव सिंह कहते हैं कि फ़ाइनल व्हिसिल बजते ही, कप्तान अजीतपाल सिंह ने उसी वक्त धरती पर माथा टेक दिया था और गोविंदा ने अपनी टी शर्ट उतार कर दर्शकों के बीच फेंक दी थी.
अशोक ने भी अपनी वो स्टिक स्टैंड्स में फेंक दी जिससे उन्होंने गोल किया था. वो याद करते हैं कि खेल ख़त्म होने के बाद जब वो मैदान का चक्कर लगा रहे थे तो उनकी मांसपेशियों में खिंचाव आना शुरू हो गया.
इस मैच के बाद वो शारीरिक और मानसिक रूप से इतने थक गए थे कि उनके पैर की मांसपेशियाँ खिंचनी शुरू हो गईं, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने मैदान का पूरा चक्कर लगाया.

अभूतपूर्व स्वागत

भारतीय हॉकी टीम
विजयी भारतीय टीम विश्वकप लेकर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलने पहुंची.
जब विश्व कप लेकर भारतीय टीम दिल्ली के पालम हवाई अड्डे पर पहुंची, तो समाज के हर वर्ग का शक्स वहाँ मौजूद था... चादनी चौक के रिक्शा चलाने वाले से लेकर करोल बाग़ के मोटर मकैनिक तक.
राजा भलिंदर सिंह से लेकर पंजाब के खेल मंत्री उमराव सिंह तक. उस टीम के सदस्य ब्रिगेडियर चिमनी याद करते हैं कि पालम हवाई अड्डे पर लैंड करते ही हमारे प्रशंसकों ने हमे कंधे पर उठा लिया था और ज़मीन पर पैर नहीं रखने दिए थे.
भारतीय हॉकी टीम
राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद से हाथ मिलाते ब्रिगेडियर चिमनी, उनके बगल में खड़े हैं कोच बलवीर सिंह सीनियर.
हवाई अड्डे पर अशोक कुमार और असलम शेर खाँ की माएं भी आई हुई थीं. उन दोनों महिलाओं के लिए ये एक ऐतिहासिक क्षण था जिनके पति ध्यानचंद और अहमद शेर खाँ ने साथ साथ 1936 के बर्लिन ओलंपिक में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीता था और अब 39 साल बाद उनके पुत्र अशोक कुमार और असलमशेर खाँ भारत के लिए विश्व कप जीत कर ला रहे थे

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