क उम्र के बाद व्यक्ति पिछले हफ्ते या महीने की बातें भी याद नहीं रख पाता। मगर जवानी की यादें हमेशा ताजा रहती हैं। ये पंक्तियां लिखते समय मुझे याद आता है कि 1974 के दिल्ली टेस्ट में बिशन सिंह बेदी की गेंद पर एल्विन कालीचरण ने किस तरह ऑन ड्राइव लगाने की कोशिश की थी। लेकिन गेंद जैसे ही उनके बल्ले का किनारा लेते हुए खतरनाक ढंग से ऑफ साइड में हवा में उछली, मैंने गेंदबाज की चीख सुनी, 'बृजेश'! बेदी की चीख में विकेट लेने की उनकी तड़प को मैंने भी महसूस किया। उस वक्त मैं फिरोज शाह कोटला के आम आदमी स्टैंड के शीर्ष पर बैठा था। 1974 की उस भारतीय टीम में पांच ऐसे खिलाड़ी थे, जो भरोसेमंद ढंग से गेंद को कैच कर सकते थे। इनमें से चार बल्लेबाज के इर्द-गिर्द थे। फारूक इंजीनियर स्टंप के पीछे थे, वेंकटराघवन स्लिप पर, जबकि सोलकर और आबिद अली लेग साइड में मुस्तैद थे। दूसरी ओर आउटफील्ड के शेष सात खिलाड़ियों में से छह क्रिकेटर तो बेहतरीन थे, मगर फील्डिंग के मामले में फिसड्डी थे। यही वजह थी कि जब कैच पकड़ने की बात आई, तो बेदी की जुबान पर बृजेश पटेल का नाम आया।
उस पारी का एक और वाकया इतना ही दिलचस्प था। वेस्ट इंडीज के तेज-तर्रार ऑलराउंडर कीथ बॉयस स्वीप शॉट के जरिये प्रसन्ना की गेंदों पर लगातार प्रहार कर रहे थे। अंततः गेंदबाज ने स्क्वॉयर लेग पर बृजेश पटेल को तैनात किया। दरअसल, प्रसन्ना और पटेल एक ही राज्य की ओर से खेलते थे। यही वजह थी कि पटेल की भरोसेमंद फील्डिंग से बेदी की तुलना में प्रसन्ना ज्यादा अच्छी तरह वाकिफ थे। फिर क्या था, बॉयस गेंद की फ्लाइट से चकमा खा गए, और गेंद बल्ले का किनारा लेते हुए पटेल के हाथ में समा गई। 1974 की भारतीय क्रिकेट टीम की खासियत यह थी कि फील्डिंग करने की क्षमता के मामले में उसके खिलाड़ियों के बीच बड़ा फर्क मौजूद था। अपने दाईं या बाईं ओर हवा में कलाबाजी दिखाते हुए कैच पकड़ना, गेंद को बाउंड्री से तेजी से विकेटकीपर के दस्तानों में पहुंचाना, जैसी कुछ ऐसी कलाएं थीं, जिनके लिए कम से कम भारतीय खिलाड़ी तो मशहूर नहीं थे। हालांकि इस मामले में कुछ अपवाद भी थे।
1930 के दशक में हमारी टीम में एक खिलाड़ी था, लाल सिंह। उनका जन्म मलयेशिया में हुआ था, और वह कवर पर बेहतरीन फील्डिंग करते थे। 1950 के दशक में पॉली उमरीगर को स्लिप या शॉर्टलेग पर काफी भरोसमंद फील्डर माना जाता था। उनके जूनियर साथी मंसूर अली खान पटौदी काफी फुर्तीले थे, और उनकी थ्रोइंग आर्म जबर्दस्त थी। 1970 के दशक की भारतीय क्रिकेट टीम में नजदीकी कैच लेने के मामले में कुछ बेहतरीन खिलाड़ी थे। इनमें से एकनाथ सोलकर को क्रिकेट के इतिहास में शॉर्टलेग का महानतम फील्डर माना जा सकता है। वह बगैर हेलमेट और पैड (शिन गार्ड) के शॉर्टलेग पर मुस्तैद रहते थे। 1980 के दशक में कपिल देव बेहतरीन आउटफील्डर थे। वह स्लिप में भी अच्छी फील्डिंग करते थे। 1990 के दशक में हमारे पास अजहरुद्दीन थे। कप्तान उन्हें कहीं भी खड़ा क्यों न कर दे, वह हर जगह गजब की फील्डिंग करते थे।
वैसे अगर पटौदी और अजहर जैसे अपवादों को छोड़ दें, तो भारतीय टीम अपनी लचर फील्डिंग के लिए जानी गई है। भारतीय क्रिकेट के लिए सही बात यह है कि अगर आप बल्लेबाजी या गेंदबाजी जानते हैं, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप गेंद रोकने या कैच पकड़ने में कितने काबिल हैं। हमारे कुछ बेहतरीन बल्लेबाज और तकरीबन सारे शीर्ष गेंदबाज अनफिट और ज्यादा वजन वाले थे। इन खिलाड़ियों को स्लिप पर खड़ा नहीं किया जा सकता था। इसलिए इन्हें मिड ऑन्ा या मिड ऑफ पर खड़ा कर बाउंड्री तक गेंद के पीछे दौड़ते देखना ज्यादा सुरक्षित विकल्प था।
�
अतीत में कुछेक फील्डर जरूर ऐसे रहे हैं, जिन्हें स्वाभाविक एथलीट कहा जा सकता था। मजे की बात तो यह है कि भारतीय क्रिकेटरों को अपने फील्डिंग कौशल में निखार लाने की जरूरत भी कभी महसूस नहीं हुई। ऐसा लगता था, मानो कुछ खिलाड़ियों को बेहतर फील्डर होने का वरदान मिला था, तो कुछ को नहीं। हां, यह जरूर तय था कि अच्छी या बुरी फील्डिंग के चलते किसी खिलाड़ी की न तो टीम में जगह पक्की होती थी, और न ही उसे टीम से बाहर का रास्ता दिखलाया जाता था। टीम में अंदर/बाहर जाने की कसौटी बल्लेबाज के रन और गेंदबाज के विकेट होते थे। बृजेश पटेल गजब के फील्डर होने के बावजूद टीम में नियमित जगह नहीं बना सके, क्योंकि बतौर बल्लेबाज उनका प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा था।
लेकिन अब चीजें बदल रही हैं। तेज दौड़ना, हवा में कलाबाजी खाते हुए गेंद को बाउंड्री के पार जाने से रोकना, स्लिप पर नीची रहती कैचों को लपकना, आउटफील्ड में फिसलते हुए गेंद को रोकना, कम या ज्यादा दूरी से गेंद को थ्रो करते हुए स्टंप उड़ा देना जैसे कौशलों को ऑस्ट्रेलिया या दक्षिण अफ्रीका में हमेशा सराहना मिली है। अब भारत में भी इन्हें प्रशंसा मिलने लगी है। इस मामले में 2013 का जोहांसबर्ग टेस्ट मैच टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। 458 रन का पीछा करने में दक्षिण अफ्रीकी टीम नाकामयाब रही, क्योंकि उनके दो सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों स्मिथ और डू प्लेसिस को अजिंक्य रहाणे की उत्कृष्ट फील्डिंग के चलते रन आउट होना पड़ा। उस वक्त मैंने ट्वीट किया था, 'मुंबई के एक बल्लेबाज ने भारत को बचा लिया-अपनी फील्डिंग की बदौलत।' बल्लेबाजी के मामले में रहाणे बेशक मर्चेंट, मांजरेकर, गावस्कर या तेंदुलकर की लीग के बल्लेबाज न बन पाएं। मगर फील्डिंग के मामले में ये सारे महान खिलाड़ी रहाणे की बराबरी नहीं कर सकते।
पहले जब भी कभी भारत कोई टेस्ट सीरीज या वनडे टूर्नामेंट जीतता था, तो उसमें हमारी फील्डिंग की भूमिका कम ही होती थी। 2011 की विश्व विजेता टीम में फील्डिंग के मामले में भारत के चार खिलाड़ी काफी कमजोर थे, 'तेंदुलकर और सहवाग' तथा 'जहीर खान व मुनफ पटेल'। मगर न तो प्रशंसकों और न चयनकर्ताओं ने ही इस पर ध्यान दिया। इनमें से पहली जोड़ी जब तक रन बनाती रही, और दूसरी जोड़ी विकेट लेती रही, तब तक इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता था, कि वे फील्डर कैसे हैं।
2015 के विश्व कप का नॉकआउट चरण शुरू होने वाला है। विजेता की भविष्यवाणी करना तो अभी जल्दबाजी है। हां, यह जरूर कहा जा सकता है कि फील्डिंग के मामले में वर्तमान भारतीय टीम अब तक की सर्वश्रेष्ठ टीम है। चार खिलाड़ी-कोहली, जडेजा, रहाणे और रैना, बेहतरीन फील्डर हैं। बाकी खिलाड़ी भी तेज दौड़ने, सटीक थ्रो और कैच लपकने में माहिर हैं। स्पिनर्स की बात करें, तो अश्विन और जडेजा की तुलना प्रसन्ना और बेदी से तो नहीं की जा सकती, मगर एक मामले में वर्तमान स्पिनर्स खुशकिस्मत हैं कि गेंद जब हवा में हो, तो उन्हें किसी एक खिलाड़ी का नाम लेकर चीखने की जरूरत नहीं होती। कैच पकड़ने के लिए वे अपने किसी भी साथी पर भरोसा कर सकते हैं।
उस पारी का एक और वाकया इतना ही दिलचस्प था। वेस्ट इंडीज के तेज-तर्रार ऑलराउंडर कीथ बॉयस स्वीप शॉट के जरिये प्रसन्ना की गेंदों पर लगातार प्रहार कर रहे थे। अंततः गेंदबाज ने स्क्वॉयर लेग पर बृजेश पटेल को तैनात किया। दरअसल, प्रसन्ना और पटेल एक ही राज्य की ओर से खेलते थे। यही वजह थी कि पटेल की भरोसेमंद फील्डिंग से बेदी की तुलना में प्रसन्ना ज्यादा अच्छी तरह वाकिफ थे। फिर क्या था, बॉयस गेंद की फ्लाइट से चकमा खा गए, और गेंद बल्ले का किनारा लेते हुए पटेल के हाथ में समा गई। 1974 की भारतीय क्रिकेट टीम की खासियत यह थी कि फील्डिंग करने की क्षमता के मामले में उसके खिलाड़ियों के बीच बड़ा फर्क मौजूद था। अपने दाईं या बाईं ओर हवा में कलाबाजी दिखाते हुए कैच पकड़ना, गेंद को बाउंड्री से तेजी से विकेटकीपर के दस्तानों में पहुंचाना, जैसी कुछ ऐसी कलाएं थीं, जिनके लिए कम से कम भारतीय खिलाड़ी तो मशहूर नहीं थे। हालांकि इस मामले में कुछ अपवाद भी थे।
1930 के दशक में हमारी टीम में एक खिलाड़ी था, लाल सिंह। उनका जन्म मलयेशिया में हुआ था, और वह कवर पर बेहतरीन फील्डिंग करते थे। 1950 के दशक में पॉली उमरीगर को स्लिप या शॉर्टलेग पर काफी भरोसमंद फील्डर माना जाता था। उनके जूनियर साथी मंसूर अली खान पटौदी काफी फुर्तीले थे, और उनकी थ्रोइंग आर्म जबर्दस्त थी। 1970 के दशक की भारतीय क्रिकेट टीम में नजदीकी कैच लेने के मामले में कुछ बेहतरीन खिलाड़ी थे। इनमें से एकनाथ सोलकर को क्रिकेट के इतिहास में शॉर्टलेग का महानतम फील्डर माना जा सकता है। वह बगैर हेलमेट और पैड (शिन गार्ड) के शॉर्टलेग पर मुस्तैद रहते थे। 1980 के दशक में कपिल देव बेहतरीन आउटफील्डर थे। वह स्लिप में भी अच्छी फील्डिंग करते थे। 1990 के दशक में हमारे पास अजहरुद्दीन थे। कप्तान उन्हें कहीं भी खड़ा क्यों न कर दे, वह हर जगह गजब की फील्डिंग करते थे।
वैसे अगर पटौदी और अजहर जैसे अपवादों को छोड़ दें, तो भारतीय टीम अपनी लचर फील्डिंग के लिए जानी गई है। भारतीय क्रिकेट के लिए सही बात यह है कि अगर आप बल्लेबाजी या गेंदबाजी जानते हैं, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप गेंद रोकने या कैच पकड़ने में कितने काबिल हैं। हमारे कुछ बेहतरीन बल्लेबाज और तकरीबन सारे शीर्ष गेंदबाज अनफिट और ज्यादा वजन वाले थे। इन खिलाड़ियों को स्लिप पर खड़ा नहीं किया जा सकता था। इसलिए इन्हें मिड ऑन्ा या मिड ऑफ पर खड़ा कर बाउंड्री तक गेंद के पीछे दौड़ते देखना ज्यादा सुरक्षित विकल्प था।
�
अतीत में कुछेक फील्डर जरूर ऐसे रहे हैं, जिन्हें स्वाभाविक एथलीट कहा जा सकता था। मजे की बात तो यह है कि भारतीय क्रिकेटरों को अपने फील्डिंग कौशल में निखार लाने की जरूरत भी कभी महसूस नहीं हुई। ऐसा लगता था, मानो कुछ खिलाड़ियों को बेहतर फील्डर होने का वरदान मिला था, तो कुछ को नहीं। हां, यह जरूर तय था कि अच्छी या बुरी फील्डिंग के चलते किसी खिलाड़ी की न तो टीम में जगह पक्की होती थी, और न ही उसे टीम से बाहर का रास्ता दिखलाया जाता था। टीम में अंदर/बाहर जाने की कसौटी बल्लेबाज के रन और गेंदबाज के विकेट होते थे। बृजेश पटेल गजब के फील्डर होने के बावजूद टीम में नियमित जगह नहीं बना सके, क्योंकि बतौर बल्लेबाज उनका प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा था।
लेकिन अब चीजें बदल रही हैं। तेज दौड़ना, हवा में कलाबाजी खाते हुए गेंद को बाउंड्री के पार जाने से रोकना, स्लिप पर नीची रहती कैचों को लपकना, आउटफील्ड में फिसलते हुए गेंद को रोकना, कम या ज्यादा दूरी से गेंद को थ्रो करते हुए स्टंप उड़ा देना जैसे कौशलों को ऑस्ट्रेलिया या दक्षिण अफ्रीका में हमेशा सराहना मिली है। अब भारत में भी इन्हें प्रशंसा मिलने लगी है। इस मामले में 2013 का जोहांसबर्ग टेस्ट मैच टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। 458 रन का पीछा करने में दक्षिण अफ्रीकी टीम नाकामयाब रही, क्योंकि उनके दो सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों स्मिथ और डू प्लेसिस को अजिंक्य रहाणे की उत्कृष्ट फील्डिंग के चलते रन आउट होना पड़ा। उस वक्त मैंने ट्वीट किया था, 'मुंबई के एक बल्लेबाज ने भारत को बचा लिया-अपनी फील्डिंग की बदौलत।' बल्लेबाजी के मामले में रहाणे बेशक मर्चेंट, मांजरेकर, गावस्कर या तेंदुलकर की लीग के बल्लेबाज न बन पाएं। मगर फील्डिंग के मामले में ये सारे महान खिलाड़ी रहाणे की बराबरी नहीं कर सकते।
पहले जब भी कभी भारत कोई टेस्ट सीरीज या वनडे टूर्नामेंट जीतता था, तो उसमें हमारी फील्डिंग की भूमिका कम ही होती थी। 2011 की विश्व विजेता टीम में फील्डिंग के मामले में भारत के चार खिलाड़ी काफी कमजोर थे, 'तेंदुलकर और सहवाग' तथा 'जहीर खान व मुनफ पटेल'। मगर न तो प्रशंसकों और न चयनकर्ताओं ने ही इस पर ध्यान दिया। इनमें से पहली जोड़ी जब तक रन बनाती रही, और दूसरी जोड़ी विकेट लेती रही, तब तक इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता था, कि वे फील्डर कैसे हैं।
2015 के विश्व कप का नॉकआउट चरण शुरू होने वाला है। विजेता की भविष्यवाणी करना तो अभी जल्दबाजी है। हां, यह जरूर कहा जा सकता है कि फील्डिंग के मामले में वर्तमान भारतीय टीम अब तक की सर्वश्रेष्ठ टीम है। चार खिलाड़ी-कोहली, जडेजा, रहाणे और रैना, बेहतरीन फील्डर हैं। बाकी खिलाड़ी भी तेज दौड़ने, सटीक थ्रो और कैच लपकने में माहिर हैं। स्पिनर्स की बात करें, तो अश्विन और जडेजा की तुलना प्रसन्ना और बेदी से तो नहीं की जा सकती, मगर एक मामले में वर्तमान स्पिनर्स खुशकिस्मत हैं कि गेंद जब हवा में हो, तो उन्हें किसी एक खिलाड़ी का नाम लेकर चीखने की जरूरत नहीं होती। कैच पकड़ने के लिए वे अपने किसी भी साथी पर भरोसा कर सकते हैं।
No comments:
Post a Comment