इससे पहले बहुत से लोग एक विमान हादसे को उनकी मृत्यु का कारण मानते थे तो कइयों को लगता था कि वे किसी बड़ी राजनीतिक साजिश का शिकार हुए हैं
इस दावे को सही साबित नहीं किया जा सका बल्कि इसने नेताजी की गुमनामी की गुत्थी को एक बार फिर से कुछ और उलझा दिया. इससे पहले बहुत से लोग एक विमान हादसे को उनकी मृत्यु का कारण मानते थे तो कइयों को लगता था कि वे किसी बड़ी राजनीतिक साजिश का शिकार हुए हैं. कुल मिलाकर नेताजी को लेकर अब तक अलग-अलग तरह की इतनी सारी बातें सामने आ चुकी हैं, लेकिन उनके गायब होने का रहस्य आज भी जस का तस बना हुआ है.+
हवाई दुर्घटना मे मृत्यु
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की गुमशुदगी के मामले में यह अब तक का सबसे मजबूत तर्क माना जाता है. इसके मुताबिक आज से सत्तर साल पहले 18 अगस्त 1945 को ताइवान के नजदीक हुई एक हवाई दुर्घटना में नेताजी की मौत हो गई थी. भारत सरकार तथा इतिहास की कुछ किताबें भी इसी हवाई दुर्घटना को नेता जी की मुत्यु का कारण बताती हैं. बताया जाता है नेता जी को अंतिम बार टोक्यो हवाई अड्डे पर ही देखा गया था और वे वहीं से उस विमान में बैठे थे.+
इस घटना के संबंध में दो अलग-अलग ऐसी बातें भी सामने आईं जिनके चलते इसकी सत्यता पर संदेह खड़ा हो गया. इनमें पहली बात तो यह थी कि नेता जी का शव कहीं से भी बरामद नहीं हो सका और दूसरी यह कि कई लोगों के मुताबिक उस दिन ताइवान के आस-पास कोई हवाई दुर्घटना घटी ही नहीं थी. खुद ताइवान सरकार के दस्तावेजों में भी उस दिन हुई किसी हवाई दुर्घटना का जिक्र नहीं है. ऐसे में कई लोग आज भी उनकी मौत की वजह कुछ और मानते हैं. नेताजी के जीवन पर ‘मृत्यु से वापसी, नेताजी का रहस्य’ नाम की पुस्तक लिखने वाले अनुज धर भी यही मानते हैं कि उऩकी मौत 18 अगस्त 1945 को नहीं हुई थी.+
उस कथित विमान हादसे के समय नेताजी के साथ मौजूद कर्नल हबीबुर रहमान ने इस बारे में आजाद हिन्द सरकार के सूचना मंत्री एसए नैयर, रूसी तथा अमेरिकी जासूसों और शाहनवाज समिति के सामने अलग-अलग बयान दिए थे
हालांकि नेता जी की बेटी अनीता बोस फाफ विमान दुर्घटना वाली बात से इत्तेफाक रखते हुए इसे ही उनकी मौत का कारण बताती हैं. जर्मनी में रहने वाली 72 वर्षीय अनीता, नेताजी की ऑस्ट्रियन पत्नी एमिली शेंकल से हुई उनकी इकलौती संतान है. लेकिन अनीता के ऐसा मानने के बाद भी इस बात पर संदेह करने के कई तर्क और भी हैं. एक खबर के अनुसार उस कथित विमान हादसे के समय नेताजी के साथ मौजूद कर्नल हबीबुर रहमान ने इस बारे में आजाद हिन्द सरकार के सूचना मंत्री एसए नैयर, रूसी तथा अमेरिकी जासूसों और शाहनवाज समिति के सामने अलग-अलग बयान दिए थे, जिनके चलते भी उस हादसे की सत्यता पर सवाल खड़े होते हैं.+
राजनीतिक साजिश के शिकार
कई लोग इस बात को भी मानते हैं कि नेता जी को किसी बड़ी राजनीतिक साजिश के तहत मारा गया था. राजनीतिक साजिश को नेता जी की मौत का कारण बताने वाले लोग दो अलग-अलग संभावनाओं की तरफ इशारा करते हैं. पहली संभावना के मुताबिक कुछ लोग मानते हैं कि उन्हें ब्रिटिश सरकार ने अपने गुप्त एजेंटों की सहायता से मारा था, जबकि दूसरी संभावना के मुताबिक कुछ लोग नेता जी की मौत में रूस का हाथ देखते हैं.+
गुमनामी बाबा (भगवन) की कहानी
इस रिपोर्ट की शुरुआत में फैजाबाद के ‘राम भवन’ में रहने वाले जिन बुजुर्ग शख्स का जिक्र किया गया है, वे ही गुमनामी बाबा और भगवन जी के नाम से प्रसिद्ध हैं. उनके पास से मिले नेताजी से जुड़े दस्तावेजों के आधार पर कई लोग आज भी यही मानते हैं कि वे नेता जी ही थे और भारत की आजादी के बाद जानबूझ कर वेश बदल कर रह रहे थे. बताया जाता है कि वे सत्तर के दशक की शुरुआत में फैजाबाद आए थे. आजाद हिन्द फौज में शामिल रहे बहुत से सैनिक और अधिकारी भी कई मौकों पर यह दावा कर चुके हैं कि नेताजी आजादी के बाद तक भी जीवित थे. इन सिपाहियों ने नेताजी से गुप्त मुलाकातों का दावा भी किया है. लेकिन फिर सवाल उठता है कि वे कभी सामने क्यों नहीं आए? इस बारे में कुछ लोग एक अजीब किस्म की दलील देते हैं. इस दलील के मुताबिक संभवत: आजादी के समय ब्रिटिश और भारत सरकार के बीच ऐसा कोई गुप्त समझौता हुआ होगा जिसमें यह शर्त रखी गई होगी कि नेताजी के वापस लौटने की सूरत में उन्हें अंग्रेजों को सौंप दिए जाएगा. ऐसे में हो सकता है कि वे इसीलिए दुनिया के सामने नहीं आए होंगे. हालांकि इस समझौते का कोई भी साक्ष्य अभी तक सामने नहीं आ सका है. लिहाजा यह तर्क भी रहस्य की श्रेणी से आगे नहीं बढ पाया है.+
आजाद हिन्द फौज में शामिल रहे बहुत से सैनिक और अधिकारी भी कई मौकों पर यह दावा कर चुके हैं कि नेताजी आजादी के बाद तक भी जीवित थे. इन सिपाहियों ने नेताजी से गुप्त मुलाकातों का दावा भी किया है
जांच समितियां और रिपोर्ट
नेता जी सुभाष चंद्र बोस की गुमशुदगी का रहस्य सुलझाने के लिए भारत सरकार अब तक तीन आयोगों का गठन कर चुकी है. इन तीनों आयोगों की रिपोर्ट सामने आने के बाद भी नेता जी की मौत को लेकर अंतिम निष्कर्ष जैसा कुछ भी हासिल नहीं हो सका है. नेता जी की मौत का पता लगाने के लिए सबसे पहले 1956 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने शाहनवाज खान के नेतृत्व में एक जांच समिति का गठन किया था. इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में विमान हादसे की बात को सच बताते हुए कहा कि नेताजी की मौत 18 अगस्त 1945 को ही हुई थी. लेकिन इस समिति में बतौर सदस्य शामिल रहे नेताजी के भाई सुरेश चंद्र बोस ने इस रिपोर्ट को नकारते हुए तब आरोप लगाया था कि सरकार कथित विमान हादसे को जानबूझ कर सच बताना चाहती है.+
इसके बाद सरकार ने सन 1970 में न्यायमूर्ति जीडी खोसला की अध्यक्षता में एक और आयोग बनाया. इस आयोग ने अपने पूर्ववर्ती आयोग की राह पर चलते हुए विमान दुर्घटना वाली बात पर ही अपनी मुहर लगाई. लेकिन इसके बाद 1999 में उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मनोज मुखर्जी की अध्यक्षता वाले एक सदस्यीय आयोग ने इन दोनों समितियों के उलट रिपोर्ट देते हुए विमान हादसे वाले तर्क को ही खारिज कर दिया. 2006 में सामने आई मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट में नेता जी की मौत की पुष्टि तो की गई थी, लेकिन आयोग के मुताबिक इसका कारण कुछ और था, जिसकी अलग से जांच किए जाने की जरूरत है. मुखर्जी आयोग की इस रिपोर्ट को तत्कालीन केंद्र सरकार ने खारिज कर दिया था.+
रहस्य पर सरकार की रहस्यमयी भूमिका
नेताजी की गुमशुदगी और मौत को लेकर इतने सालों के बाद भी कोहरा नहीं छंट पाने से सबसे ज्यादा सवाल सरकार की मंशा पर उठते हैं. हैरानी की बात तो यह है कि नेताजी की मौत से जुड़े दस्तावेज (41 फाइल) मौजूद होने के बाद भी वर्तमान केंद्र सरकार सहित सभी सरकारे इन्हें सार्वजनिक करने से लगातार इनकार करती रही है. यहां तक कि इसको लेकर सूचना अधिकार के तहत किए गए आवेदनों को भी बैरंग लौटा दिया. सरकार का तर्क है कि ऐसा करने से कुछ देशों के साथ भारत के संबंध खराब हो सकते हैं. देखा जाए तो सरकार का यह जवाब नेताजी की मौत से जुड़े रहस्य को लेकर और भी अधिक जिज्ञासा पैदा कर देता है
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