Wednesday, 18 March 2015

जब टाटा ने अपने 'अपमान' का बदला फोर्ड पर 'अहसान' करके चुकाया

व्यवहार के चलते टाटा मोटर्स को अपमान का घूंट पीना पड़ा था बाद में उसी फोर्ड को टाटा का एक बड़ा अहसान लेना पड़ा.
वक्त का चक्का कई बार इस तरह घूमता है कि हालात ठीक उल्टे हो जाते हैं. एक वक्त था जब टाटा मोटर्स अपना कार व्यवसाय अमेरिकी कंपनी फोर्ड को बेचना चाहती थी. लेकिन इस कवायद में उसे अपमान का घूंट पीना पड़ा. नौ साल बाद उसी फोर्ड का ब्रांड जगुआर एंड लैंडरोवर (जेएलआर) जब टाटा ने खरीदा तो फोर्ड को कहना पड़ा कि टाटा ने ऐसा करके उस पर अहसान किया है.+
हाल ही एक पुरस्कार समारोह में टाटा कैपिटल्स के मुखिया प्रवीण काडले ने यह बात कही. काडले टाटा समूह के तत्कालीन मुखिया रतन टाटा के साथ अमेरिका गई उस टीम में शामिल थे जिसने इस सौदे के सिलसिले में बातचीत की थी. 1998 में टाटा मोटर्स ने इंडिका हैचबैक के साथ यात्री कार श्रेणी में कारोबार शुरू किया था. उनके मुताबिक शुरुआत में अच्छी प्रतिक्रिया न मिलने के बाद कुछ लोगों ने रतन टाटा को इसे बेचने की सलाह दी. इसके बाद फोर्ड ने इसे खरीदने में दिलचस्पी दिखाई. उसके अधिकारियों की एक टीम भारत भी आई.+
टाटा के यात्री कारों के व्यवसाय में कदम रखने पर हैरानी जताते हुए फोर्ड के अधिकारियों का कहना था कि वे टाटा का कार कारोबार खरीदकर उस पर अहसान करेंगे.
इसके बाद रतन टाटा और कुछ अन्य शीर्ष अधिकारी अमेरिका के डेट्रायट शहर गए जहां फोर्ड का कार्यालय है. लेकिन पहले बनती दिख रही बात यहां बिगड़ गई. काडले के मुताबिक एक बैठक में उनसे कहा गया कि उन्हें कुछ पता ही नहीं है. टाटा के यात्री कारों के व्यवसाय में कदम रखने पर हैरानी जताते हुए फोर्ड के अधिकारियों का कहना था कि वे टाटा का कार कारोबार खरीदकर उस पर अहसान करेंगे. काडले ने कहा कि टाटा मोटर्स की टीम ने उसी शाम न्यूयॉर्क लौटने का फैसला किया. उन्होंने याद किया कि कैसे रतन टाटा 90 मिनट की उस उड़ान के दौरान बेहद उदास दिख रहे थे.+
हालात बदले. भारत में यात्री कारों का बाजार खूब फला-फूला और साथ में टाटा मोटर्स का कारोबार भी. 2008 में टाटा ने दुनिया भर में सुर्खियां बटोरते हुए जेएलआर को खरीद लिया. काडले के मुताबिक फोर्ड के चेयरमैन बिल बोर्ड ने टाटा को धन्यवाद दिया और कहा कि ‘आप जेएलआर को खरीदकर हम पर बड़ा एहसान कर रहे हैं.’+
दरअसल 2008 में दुनिया में आए वित्तीय संकट ने फोर्ड की हालत खस्ता कर दी थी. ऐसे में जब टाटा ने 2.3 अरब डॉलर में उससे जगुआर लैंड-रोवर ब्रांड खरीदा तो उसे बड़ी मदद मिली. कभी फोर्ड ने इन दोनों ब्रांडों को इसकी दोगुनी से भी ज्यादा रकम चुका कर खरीदा था.+
वैसे उन दिनों आर्थिक विश्लेषकों ने टाटा मोटर्स के इस फैसले पर सवाल उठाए थे. इसकी एक वजह तो यह थी कि जेएलआर घाटे में चल रही थी और दूसरे, मंदी के चलते लक्जरी कारों का बाजार पस्त पड़ा हुआ था. लेकिन हालात बदलने और टाटा के झंडे तले आने के बाद जेएलआर की माली हालत में असाधारण सुधार हुआ और आज यह खूब फायदा दे रही है

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