एक समय आम आदमी पार्टी की तरह ही उभरी तेलुगुदेशम पार्टी यानी टीडीपी का है।
टीडीपी का गठन तेलुगु फिल्मों के मशहूर अभिनेता एनटी रामाराव ने किया था। उन्होंने मार्च 1982 में पार्टी का गठन किया और आम आदमी पार्टी की तरह से गैर-राजनीतिक और साफ छवि वाले लोगों को पार्टी से
जोड़ा। उनके तौर-तरीकों ने आंध्र के लोगों को इतना प्रभावित किया कि दस माह बाद जनवरी 1983 में हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आ गई। इसके बाद हुए आम चुनावों में टीडीपी को 33 सीटें मिलीं और वह लोकसभा में विपक्षी दल बन गई। 1984 में एनटी रामाराव इलाज कराने विदेश गए तो कांग्रेसी राज्यपाल रामलाल ने उनके विरोधी भास्कर राव को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी। इससे आंध्र के लोग सड़कों पर उतर आए। जल्द ही एनटी रामाराव फिर से मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे। उन्होंने मध्यावधि चुनाव कराए और जोरदार जीत हासिल कर अपना कार्यकाल पूरा किया। वह अगला विधानसभा चुनाव हार गए, लेकिन 1994 में फिर सत्ता में लौट आए।
नौ माह बाद उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू ने रातोंरात उनका तख्ता-पलट दिया। करीब-करीब सारे विधायक नायडू के साथ चले गए। रामाराव के हाथ से पार्टी भी गई और मुख्यमंत्री पद भी। उनके बेटों ने भी उनका साथ नहीं दिया। दरअसल उनके बेटे, दामाद और विधायक-मंत्री रामाराव की दूसरी पत्नी लक्ष्मी पार्वती के हस्तक्षेप से आजिज आ गए थे। लक्ष्मी पार्वती ही रामाराव की आंख-कान बन गई थीं। शुक्र है कि आम आदमी पार्टी में ऐसी स्थिति नहीं है, लेकिन यह ठीक नहीं कि केजरीवाल के समर्थकों में कुछ-कुछ लक्ष्मी पार्वती की झलक दिख रही है।
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