Sunday, 6 December 2015

'भारत आज़ाद, आदिवासियों की आज़ादी छिन गई'

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Image captionप्रो. हरगोपाल
हैदराबाद के प्रोफ़ेसर जी हरगोपाल ने कई मौक़ों पर डॉ. बीडी शर्मा के साथ काम किया. वे डॉ. शर्मा के मित्र भी रहे और प्रशंसक भी. उन्होंने बीबीसी से बातचीत में बताया कि डॉ बीडी शर्मा अद्भुत नैतिक साहस और दृढ़ता के स्वामी थे.
पढ़ें डॉ बीडी शर्मा के बारे में और क्या कहा प्रोफ़ेसर हरगोपाल ने.
वो भारत के महानतम सिविलसर्वेंट्स में से एक थे.
वो किसी भी पीढ़ी के लिए एक इंसान और एक सिविल सर्वेंट के तौर पर आदर्श व्यक्ति हैं. वे एक बहुत ही ईमानदार और सत्यनिष्ठ व्यक्ति थे. वो ग़रीब आदमी की तरह रहते थे. दिल्ली में अगर आप उनका मकान देखें तो वह एक झुग्गी झोपड़ी वाले इलाक़े में था.
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ऐसा नहीं था कि उनके पास पैसे नहीं थे लेकिन उनका मानना था कि जीना है तो एक साधारण आदमी की तरह जीना है. वो भौतिक सुखसुविधाओं का ख़्याल नहीं करते थे, वो एक अध्यात्मिक व्यक्ति थे.
मेरे ख़्याल से भारत की प्रशासनिक सेवा के इतिहास में आपको ऐसा सिविल सर्वेंट नहीं मिलेगा जो बीडी शर्मा जैसा जीए. वो बस्तर के कलेक्टर थे. वहां और जहां भी उन्हें काम दिया गया वो ज़िंदगी भर ग़रीबों और आदिवासियों के लिए जीए और उनके लिए ही काम किया.
जब वो अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति आयोग के प्रमुख थे तो उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से कहा था कि मैं एक रुपए तन्ख़्वाह लूंगा लेकिन आप हमारे काम में दख़ल मत दीजिएगा.
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Image captionइंदिरा गांधी से बीडी शर्मा ने कहा था कि वेतन एक रुपए दीजिए लेकिन काम में दखल ना करें.
जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने एक दिन शर्मा जी से पूछा कि आपका काम और स्टेटस क्या है. तो उन्होंने कहा कि देखिए राजीव जी, स्टेटस तो मेरा कुछ नहीं है क्योंकि मैं सिर्फ़ एक रुपए की तन्ख़्वाह लेता हूं लेकिन मुझे कोई ख़रीद नहीं सकता. ये मेरा स्टेटस है. भारत के प्रधानमंत्री को जवाब देने का जो उनमें साहस था वो अद्भुत और असाधारण था. उन्होंने आदिवासियों के लिए कई किताबें लिखीं और बहुत काम किया.
वो कहते थे कि जब हमारा संविधान बना तो भारत आज़ाद हुआ लेकिन आदिवासियों की आज़ादी छिन गई.
जब छत्तीसगढ़ में कलेक्टर का अपहरण हुआ तो हम दोनों बस्तर में अंदर माओवादियों से मिलने के लिए गए थे तो देखा कि आदिवासी उन्हें पिता की तरह मानते थे.
हरेक गांव में उनकी बहुत इज़्ज़त थी. बहुत अच्छी तरह मिले और वो भूल ही गए कि हम वहां सरकार की तरफ़ से बात करने आए हैं.
वे चाहे किसी भी विभाग में कोई भी अधिकारी रहे यहां तक कि जब वे नॉर्थ ईस्ट युनिवर्सिटी में वाइसचांसलर थे तब भी उन्होंने आदिवासियों के लिए काम किया. उनके बच्चों की तरह थे, आदिवासी.
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Image captionबीडी शर्मा ने प्रधानमंत्री राजीव गांधी के पूछने पर बताया था, मुझे कोई खरीद नहीं सकता
सलवाजुडूम और बीजेपी के लोग उनका बहुत अपमान करते थे क्योंकि आदिवासियों के लिए वो बहुत साहस से बोलते थे लेकिन उन्होंने उसे अपमान नहीं माना.
उनका मानना था कि सत्ताधारी लोग जो दलितों को पीड़ित करते हैं, जो उनका शोषण करते हैं तो वो तो ऐसा करेंगे ही.
ज़िंदगी के आख़िरी क्षण तक उनकी यही इच्छा थी कि वो बस्तर जाएं और आदिवासियों के साथ रहें.
जब छत्तीसगढ़ के कलेक्टर का अपहरण हो गया और उनको लेकर हम वापिस आए तो मैंने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री से कहा कि बीडी शर्मा जी के लिए तो यहीं आदिवासियों के बीच झोपड़ी डाल दीजिए. वो यहीं रहेंगे उनके साथ काम करेंगे तो उनका स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा.
वो जितना प्यार आदिवासियों से करते थे उतना ही आदर सम्मान और प्यार उन्हें आदिवासियों से मिला.
सलवा जुडूमImage copyrightc g khabar
Image captionसलवा जुडूम-फाइल फोटो
मैं उनसे एक अन्य बड़े सिविल सर्वेंट एसआर शंकरन के साथ मिला था.
जब वो आईएस अफ़सर थे तब मेरी उनसे इतनी बातचीत नहीं थी लेकिन जब बाद में माओवादियों के साथ शांतिवार्ता के लिए वो कभी हैदराबाद आते थे तो एसआर शंकरन जी के साथ ठहरते थे.
तब हमारी बातचीत शुरू हुई. जब माओवादियों से बात करने का सवाल उठा तो माओवादियों ने कहा कि बीडी शर्मा और हरगोपाल से बात करेंगे.
मैंने कहा कि मुख्यमंत्री के कहे बगैर मैं नहीं जाउंगा. लेकिन उन्होंने कहा कि मैं कह रहा हूं, चलो.
बस्तरImage copyrightAjit Sahi
इतनी घनिष्ठता हो गई थी उनके साथ कि उनके कहने पर मैं गया और पंद्रह दिन हम आदिवासियों के साथ रहे.
उनमें जितना नैतिक साहस और नैतिक दृढ़ता थी, वो विलक्षण है. और काम करने के साथ-साथ वो लिखते भी बहुत थे.
उन जैसे व्यक्तित्व के साथ काम करना मेरे लिए एक बहुत क़ीमती अनुभव रहा.
(बीबीसी संवाददाता इक़बाल अहमद से बातचीत पर आधारित

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