Saturday, 19 December 2015

दादी की नकल कहीं पोते को महंगी न पड़ जाए! @रशीद किदवई

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कांग्रेस पार्टी बहुत अनमने ढंग से सोनिया गांधी के अनिवार्य 'रिटायरमेंट' की अपनी तैयारी कर रही थी और नीतीश कुमार, लालू यादव और अरविंद केजरीवाल जैसे तीसरे मोर्चे के नेता, भाजपा को चुनौती देने के लिए इस पुरानी पार्टी की जगह लेते नज़र आने लगे थे, लेकिन नेशनल हेरल्ड मामले में कोर्ट में पेशी ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी को फिर से सुर्खियों में ला दिया है.
बुज़ुर्ग सोनिया ने पटियाला हाउस कोर्ट के अंदर और बाहर दोनों मोर्चों पर आगे रहकर संघर्ष करने का मन बना लिया है. यह वही जगह है जहां इंदिरा गांधी और संजय गांधी ने 1977-78 में शाह आयोग की जांच का सामना किया था.
इसीलिए उत्साह बिल्कुल साफ़ दिख रहा है. पार्टी के शीर्ष नेताओं से लेकर ज़मीनी स्तर के कार्यकर्ताओं तक से अपनी ताक़त दिखाने के लिए अदालत के बाहर प्रदर्शन करने को कहा गया है.
कांग्रेस की मोटा मोटी रणनीति अपने युवा उपाध्यक्ष राहुल गांधी के लिए बेल बॉन्ड न भरने की है.
नेहरू गांधी परिवार के एक सदस्य की संभावित गिरफ़्तारी, तीन अक्टूबर 1977 की उस घटना की याद को ताज़ा करा सकती है, जब इंदिरा गांधी को ग़िरफ्तार किया गया था.
सत्ता से बेदखल होने और जनता की हमदर्दी में कमी के इस दौर में इंदिरा गांधी ने अपनी वापसी का रास्ता बनाने के लिए जनता सरकार द्वारा खुद की गिरफ़्तारी को बहुत कुशलता से भुनाया था.
कोर्ट में पेश होने जातीं इंदिरा गांधीImage copyrightCOURTESY SHANTI BHUSHAN
तीन अक्टूबर,1977 को शाम पांच बजे सोनिया 12, वेलिंग्डन क्रीसेंट में अपनी सास के लिए चाय बना रही थीं, उसी समय सीबीआई के एसपी एनके सिंह ने घर का दरवाजा खटखटाया.
इंदिरा गांधी ने चीख कर कहा, “मुझे हथकड़ी लगाओ.”
उन्होंने एनके सिंह पर दहाड़ा, “मैं तबतक नहीं जाऊंगी जबतक हथकड़ी नहीं लगाई जाती.”
अभी सोनिया ठिठक कर इस घटना को देख ही रही थीं कि संजय गांधी ने कांग्रेस समर्थकों को जल्दबाज़ी में फ़ोन किया और दूसरे फ़ोन से आरके धवन ने स्थानीय मीडिया को ये सूचना दी.
उस ज़माने के रिपोर्टर आज भी याद करते हैं कि कैसे उस समय सूर्या मैगज़ीन से जुड़ी रहने वाली मेनका गांधी के उनके पास फ़ोन आए कि अगर वो इंदिरा गांधी के घर अभी जाएं तो उन्हें बड़ी कहानी हाथ लगेगी.
इंदिरा गांधीImage copyrightShanti Bhushan
जबतक मीडिया के लोग पर्याप्त संख्या में नहीं पहुंच गए, इंदिरा अपनी गिरफ़्तारी में देरी करती रहीं.
उन्होंने एनके सिंह से पूछा, “गिरफ़्तारी का वारंट और एफ़आईआर रिपोर्ट कहां है?”
जब सीबीआई अधिकारी ये संबंधित दस्तावेज़ निकाल ही रहे थे कि इंदिरा के वकील फ़्रैंक एंथनी ने कहा, “क्या चरण सिंह का यही नया क़ानून है?” उस समय चरण सिंह गृह मंत्री थे.
जबकि इंदिरा लगातार दुहराती रहीं, “मैं तबतक नहीं हिलूंगी, जबतक आप हथकड़ी नहीं लगाते, हथकड़ी ले आइए और मुझे ले चलिए.”
उस समय इंदिरा गांधी को तकनीकी आधार पर रिहा कर दिया गया.
राजीव गांधी और सोनिया
इस वाक़ये ने ही राजीव गांधी को ये टिप्पणी देने के लिए प्रेरित किया, “मम्मी अपने दम पर इतना बेहतर माहौल नहीं बना सकती थीं.” उस समय वो राजनीति में नहीं थे और उन्होंने ये बात एक विदेशी पत्रकार से कही थी.
ले मोंडे ने लिखा, “भारत में आमतौर पर राजनीतिक बंदी को शहीद के रूप में माना जाता है, यहां जेल सत्ता की सीढ़ी हो सकती है, जैसा कि मोरारजी देसाई सरकार के अधिकांश सदस्यों के मामले में एक बार हो चुका था.”
इंदिरा गांधी को एक अन्य मौके पर दिसम्बर 1978 में जेल जाना पड़ा था. असल में देसाई सरकार इंदिरा और संजय पर मुक़दमा चलाने के लिए विशेष अदालतों के गठन का क़ानून पास कराने में सफल हो गई थी.
संसद से उनके निष्कासन और नाटकीय विदाई के कुछ दिन बाद ही, इंदिरा गिरफ़्तार कर ली गईं और उन्हें तिहाड़ जेल में बंद किया गया, जहां उन्हें उसी बैरक में रखा गया जहां इमरजेंसी के दौरान जॉर्ज फ़र्नांडीस कैदी रहे थे.
इस दौरान सोनिया इंदिरा के लिए घर से तीनों पहर का खाना बनाकर ले जाती थीं.
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कांग्रेस में एक वर्ग का मानना है कि अगर मोदी सरकार नेशनल हेरल्ड मुद्दे पर सोनिया और राहुल गांधी को जेल भेजने की कोशिश करती है तो कांग्रेस के लिए वापसी का यह एक मौका होगा.
हालांकि उत्साही और आशावादी कांग्रेस को थोड़ी सावधानी और इतिहास के पन्नों से एक सबक लेने की ज़रूरत है.
पहली बात तो यही है कि 2015-16 का समय 1977-79 जैसा नहीं है. दूसरे, सोनिया इंदिरा गांधी भी नहीं हैं.
जब शरद पवार, पीए संगमा और तारिक़ अनवर ने उनके विदेशी मूल के होने के मुद्दे पर बगावत कर दी थी तो उन्होंने उन्होंने खुद मई, 1999 में कहा था कि वो जवाहरलाल नेहरू की लड़की नहीं हैं.
यह बात सच है कि एक तरफ जनता की हमदर्दी बटोरने और राजनीतिक वापसी के लिए अपनी गिरफ़्तारी को इंदिरा गांधी ने बहुत सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया, लेकिन संजय गांधी नहीं कर पाए.
मई 1978 में उन्हें एक महीने की जेल हुई. 1979 में छह बार जेल भेजे गए और पांच सप्ताह तक दिल्ली, देहरादून और बरेली के जेलों में गुजारे.
संजय गांधीImage copyrightGetty
फ़िल्म ‘क़िस्सा कुर्सी का’ से जुड़े आपराधिक मामले में, संजय को दो साल की सज़ा हुई.
संजय को ज़मानत का विकल्प चुनना पड़ा और यह मामला धीरे-धीरे गुमनामी में खो गया क्योंकि कई गवाह मुकर गए.
दो मई, 1979 में स्टेट्समैन अख़बार ने संजय गांधी की एक तस्वीर प्रकाशित की जिसमें उनके हाथों, पीठ और कंधों पर लाठी के निशान थे.
तत्कालीन दिल्ली के उपायुक्त पीएस बरार को उस समय संजय पर चिल्लाते हुए सुना गया था जब पुलिसकर्मियों द्वारा संजय पर लाठियां बरसाईं जा चुकी थीं.
इसके बाद अलगे दो हफ़्ते उन्होंने जेल में बिताए.
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कांग्रेसियों और राहुल गांधी के कार्यालय को ये सवाल पूछने की ज़रूरत है: क्या अपने चाचा जैसी हालत का सामना करने के लिए राहुल तैयार हैं या युवराज स्पेशल प्रोटेक्शन एक्ट ऑफ़, 1991 के भरोसे बैठे हैं, जिसकी छत्रछाया उन्हें किसी भी मुश्किल हालात से बचाती है

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