कौन सच बोल रहा है शरद पवार या माखनलाल फोतेदार या पं.एन.के. शर्मा? राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद पवार ने अपनी किताब में दावा किया है कि राजीव गांधी की मृत्यु केबाद जब कांग्रेस अगले प्रधानमंत्री का नाम तय कर रही थी तब सोनिया गांधी के कुछ स्वघोषित वफादार नेताओं ने उनका रास्ता इसलिए रोक दिया था क्योंकि गांधी परिवार किसी स्वतंत्र विचार वाले व्यक्ति को प्रधानमंत्री नहीं बनाना चाहता था। लेकिन दूसरी तरफ कुछ दिन पहले ही आई पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता माखनलाल फोतेदार ने अपनी किताब में लिखा है 1991 में राजीव गांधी की आकस्मिक मौत के बाद जब कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई तब उसमें सोनिया गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव खुद शरद पवार ने उनके कहने पर किया था। जाहिर है राजीव की जगह जो कांग्रेस अध्यक्ष बनता वही नतीजे आने के बाद सरकार बनने पर प्रधानमंत्री बनता। लेकिन सोनिया गांधी ने जब यह जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया तब नरसिंह राव को कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया। वहीं कभी राजीव गांधी के बेहद करीबी होने का दावा करने वाले और नरसिंह राव के पूर्व सलाहकार पं.एन.के.शर्मा का कहना है कि पवार का दावा पूरी तरह आधारहीन और गलत है।
अमर उजाला से खास बातचीत में एन.के.शर्मा कहते हैं कि 21 मई 1991 को श्रीपेरम्बदूर में लिट्टे आतंकवादियों के बम विस्फोट में राजीव गांधी की मौत के बाद से ही शरद पवार खुद को कांग्रेस संसदीय दल का नेता बनाए जाने की मुहिम में जुट गए थे, जबकि चुनाव का सिर्फ एक ही चरण पूरा हुआ था और नतीजे आने में वक्त था। नतीजों से 235 सीटें जीत कर कांग्रेस लोकसभा में सबसे बड़े दल केरूप में उभरी। इसलिए शरद पवार जो उस समय लोकसभा सदस्य भी नहीं थे, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे, बड़ी तेजी से संसदीय दल के नेता बनने की मुहिम में जुट गए। क्योंकि यह तय था कि कांग्रेस संसदीय दल का नेता ही प्रधानंत्री बनेगा। नतीजों के बाद कांग्रेस संसदीय दल के नेता के चुनाव के लिए पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे सिद्धार्थ शंकर रे को निर्वाचन अधिकारी नियुक्त करके चुनाव प्रक्रिया शुरु की गई। दौड़ में दो लोग सामने आए। एक कांग्रेस कार्यसमिति के वरिष्ठ सदस्य पी.वी.नरसिंह राव और दूसरे शरद पवार। पवार के पक्ष में कांग्रेस सांसदों को जुटाने के लिए पवार खेमे ने कांग्रेस के नव निर्वाचित सांसदों से संपर्क शुरु कर दिया था।
शर्मा कहते हैं कि उन्होंने खुद पवार से कांग्रेस नेता एन.के.पी.साल्वे के घर पर जाकर बातचीत की और उन्हें दौड़ से हटने के लिए समझाया। फिर पवार की नरसिंह राव से उनके मोतीलाल नेहरू मार्ग स्थित तत्कालीन निवास पर मुलाकात कराई गई। शर्मा का दावा है कि पवार इस शर्त पर दौड़ से हटने को राजी हो गए कि राव मंत्रिमंडल में उन्हें उप प्रधानमंत्री बनाया जाए। इस बैठक में पी.चिदंबरम भी मौजूद थे। लेकिन शाम पांच बजे तक पवार ने अपना नाम वापस लेने की घोषणा नहीं की, जिसका उन्होंने वादा किया था। क्योंकि उनके लोगों ने पवार को भरोसा दिया कि सांसदों का बहुमत पवार केपक्ष में है। अगले दिन संसदीय दल का नेता चुना जाना था। शर्मा कहते हैं कि पवार का रुख देखकर उन्होंने खुद कुछ ऐसे सांसदों से जो पवार के साथ थे लेकिन शर्मा का सम्मान भी करते थे, से बात करके उन्हें नरसिंह राव के पक्ष के लिए तैयार कर लिया और अगले दिन सुबह इसकी जानकारी पवार को दे दी। तब हार के डर से शरद पवार ने अपना नाम वापस लिया और नरसिंह राव निर्विरोध कांग्रेस संसदीय दल के नेता चुने गए और प्रधानमंत्री बने। शर्मा का यह भी दावा है कि राव के लिए सोनिया गांधी को राजी करने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी। लेकिन राव भी संसद के किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे। लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने उनको टिकट नहीं दिया था।
प्रधानमंत्री बनने के बाद नरसिंह राव ने शरद पवार को अपनी सरकार में रक्षा मंत्री बनाया। शर्मा का कहना है कि सोनिया गांधी के मन में नरसिंह राव को लेकर भी कुछ उलझन थी, क्योंकि राजीव गांधी ने मतभेदों की वजह से ही राव को लोकसभा चुनाव का टिकट नहीं दिया था। लेकिन शरद पवार और अर्जुन सिंह की बजाय राव के लिए सोनिया को राजी करने में वह कामयाब हो गए। जबकि अर्जुन सिंह भी कांग्रेस अध्यक्ष पद पर काबिज होना चाहते थे, लेकिन वह कामयाब नहीं हुए।
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