Saturday, 3 October 2015

स्‍वच्‍छता के सबसे बड़े ब्रांड एंबेसडर तो बापू ही @अनुराग चतुर्वेदी

हरिवंश राय बच्चन ने गांधीजी के लिए एक अविस्मरणीय पंक्ति लिखी है - 'इस अंधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?" आज भी सामाजिक-आर्थिक रूप से रात अंधेरी है। गरीबों, पिछड़ों और ग्रामीण भारत की रात अंधेरी है। वे गांधी के बताए रास्ते पर चल इस सदी की चुनौतियों को समझ सकते हैं। गांधीजी के दीपक की रोशनी कहां से आ रही है? जीवन के, सभ्यता के, मनुष्यता के कई सवालों के जवाब महात्माजी ढूंढ़ते हैं और एक साधक की तरह वहां जमकर अपने समय के सवालों से रूबरू होते हैं। स्वतंत्रता और बराबरी के लिए लड़ने वाले गांधी कुरीतियों से लेकर स्वच्छता के विषय पर बोलते हैं। साफ-सफाई के मुद्दे पर वे कस्तूरबा तक से झगड़ पड़ते हैं। भारत के 'लोकमन" को वे न केवल पहचानते थे, साथ ही वे उसके बताए रास्ते पर चलने का आग्रह भी करते थे।
गांधीजी ने देश के सबसे बड़े जन-आंदोलन का नेतृत्व किया। गांधीजी में वह कौन-सी कूवत थी, कौन-सी ताकत थी, कौन-सा जादू था, जो करोड़ों भारतवासी उनके साथ हो गए? गांधीजी एक अपराजित योद्धा थे। उनमें आत्मबल और पुरुषार्थ था। गांधीजी को अहिंसा से प्यार था और वे निहत्थे थे। उनके पास न तो राजसत्ता थी और न समानांतर शक्ति, लेकिन खुद निडर रहकर गांधीजी दूसरों को डराते थे। बड़ी राजशक्तियां, सांप्रदायिक नजरिया रखने वाले समूह गांधी की इसी निडरता से डरते थे। गांधीजी निडरता के साथ-साथ सत्य के भी पक्षधर थे। सत्य और अहिंसा को वे साथ लेकर चलते थे।
वर्तमान भारत के लिए महात्मा गांधी सबसे ज्यादा आज प्रासंगिक हैं। दिल्ली से चालीस किमी दूर बिसाहड़ा गांव, जहां एक लोहार की हत्या इसलिए कर दी गई, क्योंकि एक उन्मादी भीड़ को अफवाह फैलाकर लाउडस्पीकर से सूचना दी गई कि उसके पास गोमांस है। हिंसा का लावा फूट गया। पिता को मार डाला भीड़ ने और पुत्र को गंभीर रूप से घायल कर दिया। गांधी जयंती से कुछ दिन पूर्व देश की राजधानी से एक घंटे की दूरी पर घटी यह घटना। गांधीजी होते तो क्या करते?
गांधीजी हिंसा के कारणों को जानते थे, पर वे अहिंसा के दर्शन के पक्षधर थे। अत्याचार और हिंसा के विवेक को वे जानते थे। वे लिखते हैं - 'अहिंसा तो निर्विकार होने में और कर्तव्य के संकल्पपूर्वक पालन में है, जिसके लिए मरना आना चाहिए और कोई व्यक्ति अहिंसा पालन करना न सीख सके तो कायरतापूर्वक पीठ दिखाकर भागने की अपेक्षा उसे आततायी को मारने में संकोच नहीं करना चाहिए।"
भारत विभाजन के बाद जब कलकत्ता सांप्रदायिक हिंसा में जल उठा तो कई कांग्रेसी उनसे मिलने आए। गांधीजी ने कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से पूछा - 'तुमने कितने मुस्लिमों को बचाया? क्या बचाते हुए किसी की जान गई?" गांधीजी अहिंसा का पालन करते हुए जान की बाजी लगाने के पक्षधर थे।
गांधीजी छुआछूत और सिर पर मैला उठाने के सख्त खिलाफ थे। गांधीजी के आश्रम स्वच्छता की मिसाल हैं। सब जगहें साफ-सुथरी, शौचालय प्रकृति से जुड़े और सभी आश्रमों की सफाई आश्रमवासी ही करते थे। शौचालय सभी को साफ करना होता था। गांधी के आश्रम और सेना की छावनियों की रिहाइश भारत में सबसे ज्यादा स्वच्छ होते हैं। क्या हमारा पूरा देश इस तरह से साफ नहीं हो सकता?
पिछले वर्ष गांधी जयंती के मौके पर भारत में स्वच्छता अभियान शुरू किया गया। स्कूलों में शौचालयों का निर्माण बड़े पैमाने पर शुरू हुआ और गांधी के चश्मे की फ्रेम से स्वच्छता आंदोलन एक ऐसी दिशा में चल पड़ा, जहां अस्वच्छता, भ्रष्टाचार, हिंसा का नाश जरूरी हो गया। भारत में जब तक अछूत रहेंगे, तब तक स्वराज नहीं मिलेगा। 1916 में आयोजित हुए सर्वजातीय सम्मेलन में छुआछूत निवारण के लिए मुकम्मल जंग का एलान करते हुए गांधीजी ने अपने सिर की तरफ इशारा किया था और कहा था - 'यह सिर अस्पृश्यता निवारण के लिए समर्पित है।" गांधी भले ही दलित के घर न जन्मे हों, लेकिन दलितों के काम को गरिमा, सामाजिक वैधता दिलाने वाली हर संभव कोशिश में वे शामिल ही नहीं हुए, बल्कि उसका अभिन्न् हिस्सा भी हो गए।
गांधी संपूर्ण मानव विकास की बात करते थे। वे पुरातन और आधुनिकता को जानते थे। भारत के गरीब और गरीबी उनके सोच की केंद्र में थे। वे जीवनशैली के कुछ कठोर नियमों का पालन करते थे और दूसरों से भी उसका पालन करने का आग्रह करते थे। इच्छाओं का दमन, प्रकृति की तरफ लौट जाना, जरूरतों को कम करना और ब्रह्मचर्य का पालन उनकी सोच का हिस्सा थे।
गांधी ने जिन बातों की ओर समाज का ध्यान सौ-डेढ़ सौ वर्ष पूर्व दिलाया था, साधनों और सुविधाओं से भरपूर उपभोक्ता समाज फिर से गांधी के मार्ग पर लौट जाना चाहता है। रासायनिक खाद की जगह गोबर का खाद फिर से चर्चा में है। गांधीजी ने खेती से लेकर शिक्षा के बारे में जिन मुद्दों को उठाया, वे आज प्रासंगिक हो गए हैं। गांधी स्त्रियों के पक्ष में थे। उनके आश्रमों में स्त्रियों की भागीदारी बराबरी की थी। गांधी भारतीय भाषाओं और मातृभाषा के साथ-साथ हिंदी के भी प्रबल समर्थक थे। गांधी काम के जरिए 'लोक" से जुड़े और भारत विभाजन के बाद वे एक पंख कटी चिड़िया के समान हो गए थे। इस निराशा के दौरान उन्होंने कहा कि वे 'खोटे सिक्के हो गए हैं।" कांग्रेस को भंग करने की सलाह भी गांधीजी ने तब दी थी।
पोरबंदर, जोहांसबर्ग और दांडी की यात्राओं ने मुझे गांधी की पवित्रता, साहस और संघर्ष का एहसास कराया। गांधी के 'सत्य के साथ प्रयोग" दुनिया के लिए एक नजीर है। कई बार लगता है कि गांधी अब अप्रासंगिक हुए, अब सत्ता उन्हें नहीं मानेगी या जो मान रहे हैं, वे भी नाटक कर रहे हैं। लेकिन अलग-अलग संदर्भों में गांधी फिर प्रासंगिक हो जाते हैं। स्वच्छता अभियान के यूं तो सरकार ने कई ब्रांड एंबेसडर बनाए हैं, पर इस अभियान के सबसे बड़े ब्रांड एंबेसडर तो गांधी ही हैं, जो जीवन को अहिंसा, उदारमना, सर्वधर्म समभाव के जरिए स्वच्छ बनाना चाहते थे। समाज के मैल-गंदगी धोने वाले को गांधी गरिमापूर्ण स्थान देते थे और व्यक्ति व समाज की सफाई को बराबरी का दर्जा देते थे। गांधीजी देश के लिए अंधेरे के खिलाफ लड़ने वाले, प्रेरणा देने वाले थे और रहेंगे।

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