मैसूर सल्तनत के पूर्व शासक टीपू सुल्तान की हिंदू विरोधी और दमनकारी शासक की छवि प्रचारित करके भाजपा कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल में राजनीतिक फायदा उठाना चाहती है
यह पिछले साल इन्हीं दिनों की बात है. तमिलनाडु में भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह के दौरे की तैयारियां चल रही थीं. इसके साथ यह चर्चा भी जोरों पर थी कि तमिल फिल्मों के सुपरस्टार रजनीकांत भाजपा में शामिल हो सकते हैं. इस चर्चा को हवा इस बात से भी मिल रही थी कि लोकसभा चुनाव का प्रचार करते हुए नरेंद्र मोदी की उनसे मुलाकात हो चुकी थी. हालांकि जब अमित शाह यहां आए तो ऐसा कुछ हुआ नहीं. भाजपा अध्यक्ष ने राज्य पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं से मुलाकात की और उनका दौरा खत्म हो गया. फिर भी उनके जाने के बाद यह बात हवा में तैरती रही कि रजनीकांत पार्टी के करीबी हैं और अभी नहीं तो कभी भविष्य में वे पार्टी की तरफ से राज्य में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हो सकते हैं.
इस घटना के ठीक एक साल बाद अब तमिलनाडु भाजपा के बीच रजनीकांत फिर चर्चा में हैं लेकिन एक अलग वजह से. हाल ही में पार्टी ने उन्हें चेताया है कि वे मैसूर के शासक रहे टीपू सुल्तान पर बननी वाली फिल्म का हिस्सा न बनें. पार्टी का कहना है कि टीपू सुल्तान एक दमनकारी और हिंदू विरोधी शासक था और रजनीकांत को उसे महिमामंडित करने वाली किसी भी कोशिश में शामिल नहीं होना चाहिए.
कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि धर्म परिवर्तन सिर्फ दुश्मन सैनिकों तक सीमित नहीं था. टीपू सुल्तान के समय बड़ी संख्या में आम तमिलों को भी मुसलमान बनाया गया
इस पूरे घटनाक्रम की खासबात यह है कि जिन रजनीकांत के सहारे पार्टी तमिलनाडु में अपना जनाधार बढ़ाने के बारे में सोच रही थी अब उसे अपने इस रवैए से उनके नाराज होने की फिक्र नहीं है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अब भाजपा रजनीकांत के कंधे पर रखकर जिस लक्ष्य पर निशाना साध रही है उससे पार्टी को कहीं ज्यादा राजनीतिक फायदा मिल सकता है.
वैसे टीपू सुल्तान के बहाने दक्षिण के राज्यों में राजनीति साधने की भाजपा की कोशिश नई नहीं है, लेकिन हालिया विवाद के बाद ऐसा लग रहा है जैसे पार्टी सीधे-सीधे दक्षिण के तीन राज्यों में इसके बहाने अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश कर रही है. ताजा विवाद सितंबर के पहले हफ्ते में तब शुरू हुआ जब कन्नड़ फिल्मों के प्रोड्यूसर अशोक खेनी ने घोषणा की कि वे टीपू सुल्तान के ऊपर एक फिल्म बनाना चाहते हैं और इसमें मुख्य भूमिका रजनीकांत निभाएंगे. इस घोषणा पर सबसे ज्यादा प्रतिक्रिया कर्नाटक और तमिलनाडु में ही दिखाई दी. तमिलनाडु में भाजपा के एक वरिष्ठ नेता एल गणेशन ने इस फिल्म का विरोध करते हुए कहा कि कि टीपू ने हिंदुओं पर भारी अत्याचार किए थे. उन्होंने उम्मीद जताई कि रजनीकांत इस फिल्म में काम नहीं करेंगे.
राज्य में सबसे पहले हिंदू मुन्नानी संगठन ने इस फिल्म और इसमें रजनीकांत के काम करने का विरोध किया था. इसके बाद हिंदू मक्कल काची नाम का एक धार्मिक संगठन भी इस विरोध में शामिल हो गया है. इस संगठन का पूरे तमिलनाडु में प्रभाव माना जाता है. टीपू सुल्तान से जुड़ा विवाद राज्य में उस समय और बढ़ गया जब 13 सितंबर को डिंडीगुल जिले में टीपू सुल्तान और हैदर अली (टीपू के पिता) से जुड़े स्मारक का निर्माण कार्य शुरू हुआ. मैसूर के शासक रहे हैदर अली ने पहली बार टीपू को इसी जगह का शासक नियुक्त किया था. भाजपा ने फिलहाल इस स्मारक के खिलाफ भी अभियान छेड़ा हुआ है. भाजपा के राष्ट्रीय सचिव एच राजा एक अखबार से बात करते हुए कहते हैं कि यदि सरकार स्मारक निर्माण के कार्य पर आगे बढ़ी तो भाजपा पूरे क्षेत्र में इसके खिलाफ आंदोलन करेगी.
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने भाजपा-संघ परिवार के घर वापसी अभियान की धार कुंद करने के लिए टीपू सुल्तान की जयंती मनाने की घोषणा की थी लेकिन बाद में भाजपा ने ही यह मुद्दा लपक लिया
तमिलनाडु में टीपू सुल्तान की विरासत हमेशा से विवादित रही है. मैसूर सल्तनत पर टीपू सुल्तान का शासन सन 1782 से 1799 तक रहा और इस दौरान अंग्रेजों द्वारा प्रशासित तमिलनाडु पर उसने कई बार चढ़ाई की थी. यह सिलसिला उसके पिता हैदर अली से चला आ रहा था. उस दौरान हैदर और टीपू दुश्मन सेना के पकड़े गई सभी सैनिकों का धर्म परिवर्तन करवाकर अपनी सेना में शामिल करते थे. मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर आर वैंकटरामानुजम एक रिपोर्ट में कहते हैं, ‘उस दौर में यही चलन था और इसकी शुरुआत हैदर अली ने की थी.’ हालांकि कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि धर्म परिवर्तन सिर्फ सैनिकों तक सीमित नहीं था. टीपू सुल्तान के समय बड़ी संख्या में आम तमिलों को भी मुसलमान बनाया गया है.
इस समय भाजपा तमिलनाडु में इन्हीं उदाहरणों को देकर अपने पक्ष में हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रही है. राज्य में अगले साल ही विधानसभा चुनाव हैं और विश्लेषक मानते हैं कि वह इसी को ध्यान में रखकर टीपू सुल्तान से जुड़े विवाद को हवा दे रही है. लेकिन मैसूर सल्तनत के इस पूर्व शासक से जुड़े विवाद को उठाकर भाजपा तमिलनाडु ही नहीं बल्कि पड़ोसी राज्य कर्नाटक और केरल में भी राजनीतिक फायदा उठाने की जुगत में है.
कर्नाटक में तो टीपू सुल्तान से जुड़ा विवाद पिछले एक साल से चला आ रहा है और एक तरह से इसकी शुरुआत कांग्रेस ने की थी. पिछले साल इन्हीं दिनों राज्य में भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ‘घर वापसी’ अभियान पर काफी विवाद चल रहा था. राज्य में कांग्रेस सरकार और मुख्यमंत्री सिद्धरमैया कानूनीतौर पर इसकी कोई तोड़ नहीं निकाल पा रहे थे. आखिरकार उन्होंने घर वापसी के जवाब में घोषणा कर दी कि राज्य सरकार अब टीपू सुल्तान की जयंती (20 नवंबर) मनाएगी. मुख्यमंत्री का कहना था, ‘टीपू सुल्तान सिर्फ राजा नहीं था बल्कि एक धर्म निरपेक्ष शासक था जो सभी वर्गों को अपने साथ लेकर चलता था.’
बुरदुज जमाउन खान को एक पत्र में टीपू सुल्तान ने लिखा है, ‘क्या आपको पता है कि हाल ही में मैंने मालाबार पर एक बड़ी जीत दर्ज की है और चार लाख से ज्यादा हिंदुओं का इस्लाम में धर्म परिवर्तन करवाया है?’
यह घोषणा एक तरह से भाजपा के लिए वरदान साबित हुई. कर्नाटक अब घर वापसी अभियान की चर्चा पीछे छूट गई और भाजपा ने टीपू सुल्तान के बहाने राज्य सरकार पर निशाना साधना शुरू कर दिया. भाजपा का कहना था कि टीपू सुल्तान ने कूर्ग और मैंगलोर इलाके में बड़े पैमाने पर हिंदुओं की हत्या की थी और उन्हें जबरन मुसलमान बनाया था. इस दावे की पुष्टि इतिहास भी करता है. 1788 टीपू सुल्तान की सेना ने कूर्ग पर आक्रमण किया था और इस दौरान पूरे के पूरे गांव जला दिए गए थे. टीपू के एक दरबारी और जीवनी लेखक मीर हुसैन किरमानी ने इन हमलों के बारे में विस्तार से लिखा है. वहीं टीपू सुल्तान द्वारा कुर्नूल के नवाब रणमस्त खान को लिखे एक पत्र में जिक्र है कैसे उसने 40 हजार कूर्ग वासियों को हिरासत में लेकर उनका धर्म परिवर्तन करवाया था और सेना में शामिल किया था.
भाजपा के लिए ये ऐतिहासिक तथ्य टीपू सुल्तान के खिलाफ अपना अभियान चलाने में काफी मददगार साबित हुए हैं. इस साल फिर से कर्नाटक सरकार ने टीपू सुल्तान की जयंती मनाने की घोषणा की है और भाजपा ने अभी से इसका विरोध करने की तैयारी कर ली है. कर्नाटक के तटीय इलाकों को भाजपा का गढ़ माना जाता है. यहां एक बड़ी आबादी ईसाइयों की भी है. इतिहास बताता है कि टीपू सुल्तान ने जब इन क्षेत्रों पर आक्रमण किया तो उसने दर्जनों चर्च ढहा दिए थे और कई ईसाइयों का धर्म परिवर्तन कराया था. इस समय यहां के ईसाइयों की आबादी का एक हिस्सा भाजपा का समर्थन करता है और माना जा रहा है कि टीपू सुल्तान के खिलाफ अभियान चलाने पर उसे इनका और समर्थन मिल सकता है.
भाजपा के टीपू सुल्तान को खलनायक की तरह पेश करने का राजनीतिक फायदा सिर्फ तमिलनाडु और कर्नाटक तक सीमित नहीं है. उसकी इस रणनीति में केरल भी शामिल है. पार्टी केंद्र में सरकार बनाने के बाद से देश के इस सबसे दक्षिणी और बाकियों की तुलना में भाजपा से अप्रभावित राज्य में अपना असर बढ़ाने की जी-तोड़ कोशिश कर रही है.
अमित शाह ने पार्टी कार्यकर्ताओं को ‘केरल की राजनीति का हिंदूकरण करने और यहां के हिंदुओं का राजनीतिकरण’ करने की सलाह दी है. इस रणनीति को आगे बढ़ाने के लिए टीपू सुल्तान के नाम का इस्तेमाल किया जा सकता है
केरल के बारे में सबसे दिलचस्प तथ्य है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की यहां सबसे ज्यादा शाखाएं हैं, लेकिन राज्य विधानसभा में भाजपा का एक भी विधायक नहीं है. भाजपा इस स्थिति को बदलने की कोशिश कर रही है. पिछले साल सितंबर में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने यहां का दौरा किया था और भाजपा कार्यकर्ताओं में उनको लेकर काफी उत्साह देखा गया था. इस एक साल में पार्टी ने यहां काफी ध्यान दिया है. अभी दो दिन पहले केरल पहुंचे शाह ने यहां संकेत दिया है कि पार्टी हिंदूवादी संगठन श्री नारायण धर्मा परिपालना संघम योगम (एसएनडीपी) के साथ मिलकर राज्य में स्थानीय निकायों के चुनाव लड़ेगी. सूत्रों के मुताबिक शाह ने कार्यकर्ताओं को ‘केरल की राजनीति का हिंदूकरण करने और यहां के हिंदुओं का राजनीतिकरण’ करने की सलाह दी है. माना जा रहा है कि पार्टी केरल में इस रणनीति को आगे बढ़ाने के लिए टीपू सुल्तान के नाम का इस्तेमाल कर सकती है.
संयोग के कुछ ऐतिहासिक दस्तावेज यहां एकबार फिर भाजपा के पक्ष में जाते हैं. टीपू सुल्तान ने केरल के मालाबार क्षेत्र में बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन करवाया था और इसकी पुष्टि खुद उसके लिखे पत्रों से होती है. जैसे 19 जनवरी, 1790 को बुरदुज जमाउन खान को एक पत्र में टीपू सुल्तान ने लिखा है, ‘क्या आपको पता है कि हाल ही में मैंने मालाबार पर एक बड़ी जीत दर्ज की है और चार लाख से ज्यादा हिंदुओं का इस्लाम में धर्म परिवर्तन करवाया है?’ ऐसा ही एक पत्र 18 जनवरी, 1790 को सैय्यद अब्दुल दुलाई को लिखा गया है. इसमें टीपू सुल्तान ने बताया है कि कालीकट के तकरीबन सभी हिंदू इस्लाम में आ चुके हैं और कोचीन राज्य की सीमा के आसपास अभी कुछ हिंदू बचे हैं और वह उनका धर्म परिवर्तन करवाने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ है. केरल के मालाबार, कोचीन और दूसरे इलाकों में टीपू सुल्तान की छवि आज भी एक दुर्दांत शासक की है और इन क्षेत्रों में पैठ जमाने की जुगत में लगी भाजपा स्थानीय निकाय के चुनावों से ही इस छवि को भुनाने की शुरुआत कर सकती है.
यदि कर्नाटक को छोड़ दें तो भाजपा अभी तक तमिलनाडु और केरल में कोई राज्य स्तरीय नेता पैदा नहीं कर पाई है. लेकिन फिलहाल टीपू सुल्तान के मसले पर ऐसा लग रहा है कि उसने वह चेहरा जरूर ढूंढ़ लिया है जिसे आगे करके वह कम से कम तीन राज्यों में अपने लिए वोटों का ध्रुवीकरण कर सकती है.
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