Monday, 12 October 2015

'नेताजी की हत्या का आदेश दिया था' @सुबीर भौमिक


सुभाष चंद्र बोस
सुभाष चंद्र बोस अँगरेज़ों से बचकर जर्मनी पहुँच गए थे
ब्रितानी ख़ुफ़िया एजेंटों को 1941 में आदेश दिया गया था कि वे नेताजी सुभाष चंद्र बोस की हत्या कर दें.
एक आयरिश इतिहासकार यूनन ओ हैल्पिन का कहना है कि जब नेताजी ने जापान और जर्मनी से मदद लेने की कोशिश की तो ब्रितानी सरकार ने उन्हें ख़त्म करने का आदेश दिया.
ओ हैल्पिन ब्रितानी ख़ुफ़िया सेवाओं पर पहले भी कई किताबें लिख चुके हैं.
उनका कहना है कि ब्रितानी ख़ुफ़िया सेवा के अधिकारियों को आदेश दिया गया था कि मध्य पूर्व से होकर जर्मनी जाने की कोशिश कर रहे नेताजी को बीच रास्ते में ही ख़त्म कर दिया जाए.
लेकिन वे अपने इस मंसूबे में सफल नहीं हो पाए, माना जाता है कि नेताजी की मौत 1945 में ताईवान में एक विमान दुर्घटना में हो गई, हालाँकि इस पर भी लंबे समय से विवाद चलता रहा है.
ओ हैल्पिन का कहना है कि जब ब्रितानी सरकार को पता चल गया कि नेताजी दुश्मन देशों की मदद लेकर ब्रितानी हुकूमत को उखाड़ फेंकना चाहते हैं तो ख़ुफ़िया अधिकारियों को स्पष्ट आदेश दिए गए कि उन्हें मार डाला जाए.
राज़
कोलकाता में एक भाषण में ओ हैल्पिन ने गुप्त दस्तावेज़ों का हवाला देते हुए अपनी बात कही, उन्होंने बताया कि ब्रितानी एजेंट इस बात को लेकर परेशान थे कि नेताजी आख़िर कहाँ हैं, वे जनवरी 1941 में अचानक लापता हो गए थे.
दस्तावेज़
हैल्पिन ने गुप्त दस्तावेज़ों के हवाले से अपनी बात कही है
हैल्पिन ने बताया, "ख़ुफ़िया एजेंटों ने सोचा कि नेताजी सुदूर पूर्व की तरफ़ गए हैं लेकिन एक इतालवी संदेश से उन्हें पता चला कि वे काबुल हैं और मध्य पूर्व के रास्ते जर्मनी जाने की तैयारी कर रहे हैं."
"इसके बाद तुर्की में तैनात दो जासूसों को लंदन स्थित मुख्यालय से निर्देश दिया गया कि वे सुभाष चंद्र बोस को जर्मनी पहुँचने से पहले खत्म कर दें."
हैल्पिन का कहना है कि जासूस नेताजी तक नहीं पहुँच पाए क्योंकि वे मध्य एशिया होते हुए रूस के रास्ते जर्मनी पहुँच गए.
हैल्पिन का कहना है कि ब्रितानी सरकार बोस को लेकर बहुत चिंतित थी और उन्हें एक गंभीर ख़तरे के रूप में देख रही थी.
इतिहासकार
नेताजी के जीवन पर शोध करने वाले इतिहासकारों का कहना है कि इस नई जानकारी के सामने आने से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे करिश्माई नेताओं में से एक, सुभाष चंद्र बोस के रहस्यमय जीवन में एक अध्याय जुड़ गया है.
कोलकाता की प्रमुख इतिहासकार लिपि घोष का कहना है कि अँगरेज़ों ने बोस से मिलने वाली चुनौती का सही आकलन किया था और इससे यह भी पता चलता है कि ब्रितानी हुकूमत उनसे कितना घबरा रही थी.
नेताजी के पड़पोते और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफ़ेसर सुगत बोस कहते हैं, "उन्होंने जिस तरह से भारतीय सैनिकों की वफ़ादारी को देश हित में और ब्रितानी हुकूमत के ख़िलाफ़ प्रेरित किया था, उनके पास ऐसा आख़िरी क़दम उठाने का कारण मौजूद था."
नेताजी ने हत्या की इस कोशिश को नाकाम करते हुए आज़ाद हिंद फौज का गठन किया और पूर्वोत्तर भारत में ब्रितानी सेना को चुनौती दी.

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