Monday, 26 October 2015

अब्राहम लिंकन अनजानी शख्सियत : एक नायक के निर्माण की कहानी @चंदन पांडेय

पुस्तक समीक्षा स्ट्रिपडेल कारनेगी रचित ‘लिंकन द अननोन’ के अनुवाद ‘अब्राहम लिंकन अनजानी शख्सियत’ का एक अंश – ‘अगर दासता गलत नहीं है तो कुछ भी गलत नहीं है. मैं अपने जीवन में किसी निर्णय की सच्चाई को लेकर इतना आश्वस्त नहीं रहा, जितना आज हूं, लेकिन मैं सुबह नौ बजे से ही लोगों से मिलता और हाथ मिलाता रहा हूं. मेरा हाथ कुछ जकड़-सा गया है. भविष्य में इस दस्तखत का बारीकी से निरीक्षण किया जाएगा. अगर मेरे हाथ में तनिक भी कंपन हुआ तो लोग कहेंगे कि उसके मन में कोई-न-कोई दुविधा जरूर थी.’ (अब्राहम लिंकन, एक जनवरी, 1863 के दिन मुक्ति के घोषणा-पत्र पर दस्तखत करने से ठीक पहले सिवार्ड से बात करते हुए).

किताब : अब्राहम लिंकन अनजानी शख्सियत (लिंकन द अननोन का हिंदी अनुवाद)
लेखक : डेल कारनेगी 
अनुवाद : कृष्णमोहन
प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
मूल्य : 200 रुपये

दास प्रथा से मुक्ति के नायक अब्राहम लिंकन का जीवन और उनका समय, इतिहास और सभ्यता के अध्ययन की कुंजी है. मानव सभ्यता के विकास में रुचि रखने वाले अक्सर किसी गुत्थी को सुलझाने के लिए लिंकन के जीवन में झांककर देखना चाहते होंगे, ऐसा ‘अब्राहम लिंकन अनजानी शख्सियत’ से गुजरते हुए समझा जा सकता है.
इस पुस्तक को पढ़ते हुए जो बात सर्वाधिक चमक के साथ उभरती है वह है : एक नायक के निर्माण की प्रक्रिया. ये नायक हमारी आपकी तरह जीवन जी रहे होते हैं, लगन से अपने काम में लगे होते हैं. केंद्र में दाखिल सत्ता इनको बेपरवाही की हद तक अनदेखा किए रहती है, अपना शिकार बनाती है, इनका विश्वास कुचलती है और कभी-कभार तो इन्हें ही कुचल देती है. इनके आसपास की जनता मसरूफ रहती है, कुछेक दोस्त होते हैं जिन्हें इन पर अपने से भी अधिक भरोसा होता है और फिर जब ये खास लोग अपने महती कार्य को अंजाम देते है तो नायक का जन्म होता है.
अब्राहम लिंकन का मैरी टॉड से प्रेम और विवाह उन्हें ऊंचाईयों तक जरूर ले गया लेकिन यही घटनाएं उनके जीवन की त्रासदी भी हैं
लिंकन के निर्माण को डेल कारनेगी ने उनके जीवन की उन महत्वपूर्ण घटनाओं के मार्फत देखा है, जिनसे प्रभावित होकर खुद लिंकन ने फैसले लिए या उनके प्रभाव से दूसरों ने लिए. इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण है लिंकन का विवाह. इस किताब में लिंकन के प्रेम और वैवाहिक जीवन पर पर्याप्त और समझदारी भरा अध्ययन दिखता है. मसलन, अपनी पहली प्रेमिका ‘एन’ की मृत्यु के बाद लिंकन अपना शहर छोड़ने का फैसला लेते हैं. इस प्रेम का उनके मन-मस्तिष्क पर गहरा असर पड़ता है.
दूसरे शहर यानी स्प्रिंगफील्ड में लिंकन का प्रवास उनकी जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण समय है. यहां वे वकालत में करियर आजमाने आए हैं और यहीं उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत होती है. इसी शहर में वे डेमोक्रेट डगलस से विवाद करते हैं और अपने कई ओजस्वी भाषण देते हैं और यहीं से उनके राष्ट्रपति बनने की राह खुलती है. ये सब घटनाएं पहली नजर में लिंकन के जीवन के सबसे महत्वपूर्ण अंश जान पड़ती हैं लेकिन उनके जीवन को एक अलग दिशा देने वाली घटना जो इस शहर में घटी और जिसे लेखक ने भलीभांति लक्षित किया है, वह थी – मैरी टॉड से प्रेम.
लिंकन का यह प्रेम और इस स्त्री से विवाह उन्हें ऊंचाइयों तक जरूर ले गया लेकिन यही घटना लिंकन के जीवन की त्रासदी भी है. इंसान की अतिमहत्वाकांक्षाओं को एक खूबसूरत चित्र के मार्फत दर्ज किया जाए तो वह शर्तिया मेरी टॉड का रूप लेगी. वह आत्मविश्वास भी क्या गजब रहा होगा जहां एक लड़की तय करती है या बात-बात में कहती है कि वह अमेरिका के राष्ट्रपति से ही विवाह करेगी. लेखक ने मैरी की बहन के कथन का उल्लेख किया है, ‘(मैरी) चमक-दमक, शक्ति और प्रदर्शन पसंद करती थी और मेरी जानकारी में सबसे महत्वाकांक्षी महिला थी.’
इस किताब से आप जान पाएंगे कि वे कौन लोग थे और उनकी मंशा क्या थी जो लिंकन को राष्ट्रपति की गद्दी तक तो ले गए लेकिन फिर वहां से हटाने की मुहिम भी चलाई
लेखक एक सुनहरे संयोग का जिक्र करता है. 1860 में जिन दो लोगों ने राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारी दर्ज की थी – स्टीफेन ए डगलस और अब्राहम लिंकन – वे दोनों 1939 में (जब मैरी लिंकन से मिली) स्प्रिंगफील्ड में ही थे और, संयोग की पराकाष्ठा यह कि, दोनों ही ने मैरी से विवाह का प्रस्ताव रखा था. डगलस एक सितारे की तरह उग रहे थे और जाहिर है, मैरी की पहली पसंद भी वही बने. लेकिन यह डेमोक्रेट उम्मीदवार समय रहते उन्हें पहचान गया. फिर डगलस ने एक दूसरी लड़की देखी और प्रेम कर लिया. डगलस की ईर्ष्या को जगाने के लिए ही मैरी ने लिंकन से नजदीकी बनाई थी. डेल कारनेगी ने इन प्रसंगों को कमाल का लिखा है और इनके जरिए लिंकन के जीवन के सर्वाधिक निर्णायक पहलू को उजागर किया है.
इस किताब से आप जान पाएंगे कि आखिर वे कौन से कारक थे जिसने ‘ली’ जैसे योद्धा, जो आदर्शवादी था और जिसने अपने सारे गुलामों को आजाद कर दिया था, को गुलामों के विरुद्ध ही लड़ने पर मजबूर किया. वे कौन लोग थे और उनकी मंशा क्या थी जो लिंकन को राष्ट्रपति की गद्दी तक तो ले गए लेकिन फिर वहां से हटाने की मुहिम भी चलाई. लिंकन की ह्त्या के प्रयास करने वाले कौन थे और आखिरकार जान विल्कीस बूथ कौन था जिसने लिंकन की ह्त्या कर दी.
लिंकन के व्यक्तित्व के रेशे-रेशे से परिचय कराने वाली यह पुस्तक भारतीय संदर्भो में इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि हमारे समाज में जाति की जकड़ कहीं से भी दासप्रथा से कम जहरीली नहीं है. इन दोनों प्रथाओं के मुक्ति संघर्ष में साम्य भी है. लेखक डेल कारनेगी की अनूठी दृष्टि के कारण यह किताब दस्तावेज की तरह है, जिसे जरूर पढ़ा जाना चाहिए. कृष्णमोहन अपने अनुवादकीय में ठीक ही लिखते हैं – एक ऐसी किताब जिसे पढ़ने के बाद कोई पहले जैसा नहीं रह सकता.

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