शुक्रवार, 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या हुई. फैज अहमद फैज का लिखा यह संपादकीय 2 फरवरी 1948 को पाकिस्तान टाइम्स में प्रकाशित हुआ. mkgandhi.org पर प्रकाशित इस श्रद्धांजलि का हम अविकल अनुवाद प्रस्तुत कर रहे हैं.
अगर हमने गांधीजी को विनम्र श्रद्धांजलि देने के लिए ये शीर्षक चुना है तो वो इसलिए कि हमें इस बात का, पहले से कहीं ज्यादा यकीन है कि इस पतित सदी में मानवता के इस सेवक और वंचितों के मसीहा से ज्यादा अमरता का हकदार कोई दूसरा नहीं हो सकता.
इस लेख के लिखे जाने तक महात्मा गांधी को अपना नश्वर शरीर छोड़े बेहद कष्टकारी 48 घंटे बीच चुके हैं. इस सदमे के शुरुआती धक्के का असर अब धीरे-धीरे कम हो रहा है. सुबह के धुंधले कुहासे और विषाद में डूबी रोशनी के बीच ये उम्मीद जगमगा रही है कि गांधीजी की जिंदगी व्यर्थ नहीं गई.
हो सकता है कि अंतिम रूप से ऐसे किसी नतीजे पर पहुंचना अपरिपक्वता हो लेकिन इस त्रासदी ने जिस तरह दुनिया की आत्मा को झकझोरा है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि एक इंसान की जन्मजात अच्छाई से हमारे अभिभूत हो जाने को माफ कर दिया जाएगा.
कम से कम हम पुरजोर आवाज़ में भारत के अपने शंकालु दोस्तों से ये तो कह ही सकते हैं कि गांधीजी का जाना सिर्फ भारत की क्षति नहीं है, पाकिस्तान के लिए भी उतना ही बड़ा आघात है. इस लाहौर शहर में हमने ऐसे उदास चेहरे, नम आंखें और लरजती आवाज़ें देखीं जिनपर यकीन करना शायद मुश्किल हो. हमने अवाम के दुख की स्वतःस्फूर्त अभिव्यक्ति के रूप में लोगों को हड़ताल और अवकाश पर जाते भी देखा.
हमारे हिंदुस्तानी दोस्तों को ध्यान देना चाहिए, और हम इसे अपनी पूरी ताकत से कहना चाहेंगे कि पाकिस्तान किसी सदिच्छा, दोस्ती की किसी पहल, और सीमापार से किसी भी तरह के सहयोग का जवाब देने के लिए जरूरी इंसानियत की भावना अपने भीतर रखता है. हमें पहले भी एक उम्मीद थी और उसकी ठोस वजह थी. इस त्रासदी के बाद भारत में गहरा आत्ममंथन चल रहा है. उसकी गंभीरता पर हमें पूरा भरोसा है. भारत सरकार को भी इस बात का अंदाजा हो गया है कि वो ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठी हुई है.
(गांधी की हत्या के अगले दिन) शनिवार को बॉम्बे में एक छोटी सी घटना हुई जिसमें एक हिंदू गिरोह ने 'एंटी-पाकिस्तान फ्रंट' के दफ्तर में तोड़-फोड़ की. पूरा दफ्तर तहस-नहस कर दिया. हमें अफसोस है कि इस घटना से देर से ही सही भारत को ये अहसास हो गया होगा कि मुसलमान न तो पापी हैं, और न ही भारत के दुश्मन.
हिंदुओं के एक बड़े तबके को ये पता चल चुका है कि उनका दुश्मन कौन है और उनकी राजनीतिक धारा क्या है. अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब भारत के उप-प्रधानमंत्री सरदार बल्लभभाई पटेल लखनऊ में कुछ समय पहले एक सभा में मुस्लिम राष्ट्रवादियों की खिंचाई कर रहे थे. वहां पर उन्होंने आरएसएस और हिंदू महासभा- ऐसा संगठन, अफसोस जिसने मानवीय इतिहास के सबसे बड़े अपराधी नाथूराम विनायक गोडसे को जन्म दिया- की तारीफ की.
इस तरह सरदार पटेल ने इन संगठनों के अंध-राष्ट्रवाद को बढ़ावा ही दिया. ये उलटबांसी लग सकती है लेकिन इस त्रासदी (गांधी की हत्या) से दो दिन पहले पंडित नेहरू ने अमृतसर में आएसएस और हिंदू महासभा के बुलबुले की हवा निकालते हुए साफ शब्दों में उन्हें भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया था.
जब विभिन्न राजनीतिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने गांधीजी को सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने का वचन दिया जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने अपना अनशन तोड़ा, उसके एक दिन बाद ही हिंदू महासभा नेता डॉक्टर देशपाण्डे और प्रोफेसर राम सिंह ने पूरी ढिठाई से कहा कि मुसलमानों को देश से बाहर निकाल देना चाहिए.
अगर भारत सरकार ने इन उग्र और कट्टर सांप्रदायिक नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने की कोशिश की होती तो शायद गांधीजी 125 वर्ष तक जीते. पटेल का खुफिया विभाग दिल्ली और भारत के दूसरे हिस्सों में मासूम मुसलमानों के घरों में बम और दूसरे हथियार रखवाने की बजाय महात्माजी की कीमती जिंदगी को बचाने के भले काम में लगा होता तो ये विशाल उप-महाद्वीप, दरअसर पूरी दुनिया, 'इस आपदा का' शिकार नहीं बनती.
इस त्रासदी से पहले हुई घटनाओं को याद करने का हमारा कोई इरादा नहीं लेकिन हमें एक ठोस वजह से ये करना पड़ रहा है क्योंकि पांच करोड़ मुसलमानों की नियति भारत के साथ जुड़ी हुई है. हम मांग करते हैं कि भारतीय सत्तावर्ग उनके संग ईमानदार और निष्पक्ष व्यवहार करे.
अगर हम गांधीजी की मृत्यु का इस्तेमाल भारत में मुसलमानों की हितचिंता की राजनीति के लिए करते हैं तो हम इंसानियत से गिर जाएंगे. लेकिन हम कृतज्ञतापूर्वक इस सच से वाकिफ हैं कि भारतीय मुसलमानों को न्याय और बराबरी मिलने से ज्यादा खुशी इस महान मृतात्मा को कोई दूसरी चीज नहीं दे सकती. जीवनभर उन्होंने इसकी पुरजोर पैरवी की.
अंत में उन्होंने इसके लिए अपनी जान भी दी. इन अनगिनत मुसलमानों के लिए महात्माजी हमेशा आशा और साहस के एक प्रतीक रहेंगे. हालांकि उनका देहांत हो चुका है लेकिन वो अनंत काल तक जीते रहेंगे
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