महात्मा गांधी के सेक्रेटरी के तौर पर काफ़ी सालों तक काम करने वाले, और उनके वंशजों में से एक कनु गांधी ने उनकी 2,000 से अधिक तस्वीरें ली थीं.
इनमें से कई तस्वीरें सालों तक गुमनाम रहीं.
इनमें से गांधी की ज़िंदगी के अंतिम दशक की 92तस्वीरों को बड़े ही एहतियात से नज़र फ़ाउंडेशन ने मोनोग्राफ़ के रूप में सहेजा है.
नज़र फ़ाउंडेशन की बुनियाद जाने-माने फ़ोटोग्राफ़र प्रशांत पंजियार और दिनेश खन्ना ने रखी थी.
कनु गांधी को उनके माता-पिता ने 20 साल की उम्र में गांधी की मदद करने को सेवाग्राम भेज दिया था.
वो मेडिकल की पढ़ाई करना चाहते थे लेकिन फिर उन्हें फ़ोटोग्राफ़ी में दिलचस्पी पैदा हो गई.
महात्मा गांधी असहयोग आंदोलन के बीच दर्जनों बार भूख-हड़ताल पर रहे.
मशहूर फ़ोटोग्राफ़र संजीव सेठ बताते हैं, ''अपने वज़न पर हमेशा नज़र रखने वाली ये तस्वीर उस इंसान के बारे में बहुत कुछ कहती है''.
कनु गांधी आमतौर पर महात्मा गांधी के आस पास ही रहते थे. ऐसे में कई ऐसे अंतरंग और एकांत के पल उनके कैमरे में क़ैद हो गए.
उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत में एक बार गांधी की गाड़ी कुछ ऐसे ही फंस गई थी. कनु गांधी ने महात्मा गांधी के साथ देश-दुनिया जगह जगह यात्राएं की.
गांधी के जीवन के अंतिम दशक में कई अहम घटनाएं और क्षण गुज़रे. कनु की तस्वीरों में उन सबकी कहानी क़ैद है.
इन तस्वीरों में गांधी कई भाव में दिखते हैं. गहरे चिंतन में, तो कभी प्रसन्न, तो कभी चिंतित, तो कभी अपने समर्थकों के साथ.
तीन दिनों के उपवास के दौरान गांधी की मालिश करती हुई उनकी बड़ी बहन रालियातबेन और एक रिश्तेदार.
ये तस्वीर साल 1940 की है.
साल 1944 में पुणे के आगा़ ख़ा पैलेस के एक बिस्तर पर कस्तूरबा गांधी अचेत अवस्था में लेटी हुई हैं.
1938 की एक ऐतिहासिक तस्वीर जिसमें महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस हल्के-फुल्के अंदाज़ में बातचीत करते हुए. पीछे कस्तूरबा साड़ी का पल्लू खींचती हुईं दिखाई दे रही हैं.
वैसे तो गांधी और सुभाष के बीच के संबंध जटिल रहे, उनके बीच काफ़ी मतभेद भी रहे.
सेठ कहते हैं, "इसे हम एक अविस्मरणीय तस्वीर कह सकते हैं. यहां भारत के दो बड़े नेता एक ही फ्रेम में हैं."
1940 में खिंची गई इस तस्वीर में गांधी और टैगोर चिंतन-मनन करते दिखाई दे रहे हैं.
महात्मा गांधी भारत में अछूतों की मौजूदा दशा के प्रति ख़ासे चिंतित रहा करते थे. उन्होंने 1945-46 के दौरान तीन महीने लंबी रेल यात्रा की और जगह-जगह जाकर धन जुटाया था.
इसी संदर्भ में उन्होंने एक बार कहा था, "मैं बनिया हूं. मेरे लोभ का कोई अंत नहीं है."
कनु गांधी अकेले ऐसे शख़्स थे जो महात्मा गांधी की किसी भी पल की तस्वीर ले सकते थे. लेकिन कई मौक़े ऐसे आए जब गांधी ने उन्हें फ़ोटो खींचने से रोका-टोका भी.
ऐसा ही एक पल था जब कस्तूरबा का निष्प्राण शरीर पुणे के आग़ा खां पैलेस में गांधी की गोद में था.
कुछ रिपोर्ट के अनुसार गांधी ने कहा था, "60 सालों का लंबा साहचर्य, अब मैं उसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता."
ये विडंबना ही रही कि गांधी के साथ साए की तरह रहने वाले कनु उनके अंतिम पलों में उनके पास नहीं थे.
कनु गांधी की मौत फ़रवरी 1986 में उत्तरी भारत में धार्मिक यात्रा के दौरान हार्ट अटैक से हो गई थी.
(सारी तस्वीरेंः कनु गांधी, ©गीता मेहता, आभा और कनु गांधी की वारिस
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