मैं थोड़ा सोना चाहूंगा', ब्रिटेन स्थित एक वेबसाइट की मानें तो ये नेताजी सुभाषचंद्र बोस के आखिरी शब्द थे. इस वेबसाइट को चलाने वाले आशीष रे के अनुसार नेताजी ने ये शब्द 18 अगस्त, 1945 को ताइपेई स्थित नैनोमोन मिलिट्री हॉस्पिटल में कहे थे. उसके बाद नेताजी कभी सोकर नहीं उठे.
इस वेबसाइट ने नेताजी के जीवन और मृत्यु से जुड़े कई अहम दस्तावेज पेश किए हैं. इन दस्तावेजों के अनुसार आजाद हिंदी फौज (आईएनए) के संस्थापक की मौत विमान दुर्घटना के बाद उसी रात हो गयी थी. ताइपेई विमान दुर्घटना के बाद बोस जली हुई अवस्था में अस्पताल में भर्ती हुए थे लेकिन वो बच नहीं सके.
वेबसाइट ने पांच गवाहों के बयान पेश किए हैं जिनमें नेताजी के करीबी सहायक, दो जापानी डॉक्टर, एक दुभाषिया और एक ताइवानी नर्स शामिल हैं. इन सबने कहा है कि नेताजी का देहांत 18 अगस्त, 1945 को ही हुआ था.
पेश हैं वो पांच अहम गवाह और दस्तावेज जिनसे सुलझ सकती है ये गुत्थी:
1. कर्नल हबीबुर रहमान का बयान
नेताजी के भरोसेमंद साथी कर्नल हबीबुर रहमान विमान दुर्घटना के समय उनके साथ ही थे. रहमान दुर्घटना में बच गये थे. वो 1956 में पाकिस्तान से आकर नेताजी इनक्वायरी कमेटी के सामने पेश हुए थे. इस कमेटी के प्रमुख थे मेजर जरनल शाह नवाज़ ख़ान.
रहमान के बयान के चुनिंदा अंश:
- दुर्घटना के समय विमान के पायलट के पीछे एक जापानी अफ़सर बैठे थे उनके ठीक पीछे नेताजी बैठे थे. मैं नेताजी के पीछे बैठा था.
- दुर्घटना के बाद नेताजी विमान के बाएं हिस्से से बाहर निकले. मैं उनके पीछे निकला. हमें आग से बाहर निकलना था. मैं बाहर निकला तो देखा कि नेताजी के कपड़ों में आग लगी हुई है. मैंने उनके पकड़े उतारने में उनकी मदद की. जब तक उनके कपड़े उतारे जाते वो काफी जल चुके थे. दुर्घटना की वजह से उनके सिर पर भी गंभीर चोट लगी थी.
- उन्हें तत्काल मेडिकल सुविधा दी गयी लेकिन उनकी हालत बहुत गंभीर थी. निप्पॉन मेडिकल अथारिटीज ने उन्हें बचाने के लिए हर संभव प्रयास किया लेकिन वो उन्हें बचा नहीं सके. ताइवान के समयानुसार रात 9 बजे उनका देहांत हो गया.
- मृत्यु से पहले नेताजी ने मुझसे कहा, "मैं अपनी आखिरी सांस तक देश के लिए लड़ा और अब उसी के लिए अपनी जान दे रहा हूं. देशवासियों, आप आजादी के लड़ाई जारी रखें. बहुत जल्द भारत आजाद होगा. आजाद हिंद अमर रहे."
रहमान के अनुसार नेताजी का 22 अगस्त, 1945 में सैन्य अधिकारियों की निगरानी में ताइहोकु में अंतिम संस्कार किया गया.
2. हिकारी किकन के अधिकारी का टेलीग्राम
'हिकारी किकन' का गठन जापानी सेना और आजाद हिंदुस्तान की अस्थायी सरकार के बीच संपर्क का काम करने के लिए हुआ था.
सितंबर, 1945 को भारत से दो ख़ुफिया टीमें बैंकाक, साइगॉन और ताइपेई गईं. फिन्ने, डेविस, एचके रॉय और केपी डे इन टीमों के सदस्य थे. इस टीम का मक़सद नेताजी की मौत की गुत्थी को सुलझाना था. उन्हें अपनी जांच में जापान की दक्षिणी सेना द्वारा हिकारी किकन को भेजा गया एक टेलीग्राम मिला जिसमें बोस की मौत का जिक्र था.
20 अगस्त, 1945 को भेजे गए इस टेलीग्राम में नेताजी के लिए कूट संकेत के रूप में 'टी' का प्रयोग किया गया. टेलीग्राम में लिखा था, "राजधानी (टोक्यो) जाते समय टी का विमान ताइहोकु (ताइपेई का जापानी नाम) के निकट 18 अगस्त को दोपहर दो बजे दुर्गघटनाग्रस्त हो गया जिसमें वो बुरी तरह घायल हो गए. उनका उसी दिन मध्यरात्रि को निधन हो गया."
3. नेताजी के इलाज से जुड़ी एक नर्स का एक भारतीय पत्रकार को दिया बयान
वेबसाइट ने हरिन शाह नामक एक पत्रकार की जांच का हवाला दिया है. हरिन शाह मुंबई फ्री जर्नल के लिए काम करते थे. सितंबर, 1946 में उन्होंने ताइपेई की यात्रा करके दुर्घटना के बारे में कई लोगों से बातचीत की थी. उनसे बात करने वालों में एक नर्स सान पी शा भी थीं. उन्होंने हरिन से कहा, "उनकी मौत यहीं हुई थी. मैं उनके निकट ही थी... उनकी मृत्यु पिछले साल (1945) 18 अगस्त को हुई थी."
उन्होंने आगे कहा, "मैं सर्जिकल नर्स हूं. मैंने उनकी आखिरी समय तक उनकी सेवा की...मुझे उनके पूरे शरीर पर जैतून का तेल लगाने के लिए कहा गया था मैंने वही किया."
जब हरिन ने उनसे जोर देकर पूछा कि क्या उन्हें पक्का यकीन है कि उनकी मृत्यु हो गयी थी तो नर्स ने कहा, "हां, उनकी मृत्यु हो गयी थी. मैंने आपको सबकुछ बता दिया है. मैं साबित कर सकती हूं कि उनकी मृत्यु हो गयी थी."
4. डॉक्टर योशिमी का इंटरव्यू और बयान
डॉ योशिमी(दाएं से दूसरे) और आशीष रे(दाएं से तीसरे) तस्वीर- बोसफाइल्स से साभार
उनका बयान युद्धबंदियों की अदला बदली के दौरान दर्ज किया गया था. योशिमी शाह नवाज़ कमेटी के सामने भी हाजिर हुए थे. साल 1974 में नेताजी की मौत की जांच के लिए गठिन जस्टिस जीडी खोसला कमीशन के सामने भी उन्होंने अपना बयान दर्ज कराया था.
ब्रितानी अधिकारियों को दिए बयान में उन्होंने नेताजी की मौत का विस्तृत ब्योरा दिया था-
- जब उन्हें अस्पताल में लाया गया तो मैंने खुद उनके घाव तेल से साफ किए और उनपर पट्टी लगायी. उन्हें पूरे शरीर में तेज जलन हो रही थी. लेकिन उन्हें सबसे गंभीर चोट सिर, छाती और जांघ पर लगी थी.
- अस्पताल में भर्ती कराने के चार घंटे बाद उनकी चेतना खोने लगी. वो कोमा जैसी स्थिति में बुदबुदा रहे थे. वो दोबारा होश में नहीं आए. स्थानीय समय के अनुसार रात को करीब 11 बजे उन्होंने आखिरी सांस ली.
डॉ योशिमी का 1946 में दिया गया बयान
जब योशिमी को ये लगने लगा कि बोस अब नहीं बचेंगे तो उन्होंने उनसे पूछा कि 'मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं?'
बोस ने जवाब दिया, "मुझे लग रहा है जैसे मेरे सिर में खून दौड़ रहा है. मैं थोड़ा सोना चाहूंगा." एक इंजेक्शन दिए जाने के बाद वो सो गए और फिर कभी नहीं उठे.
5. नेताजी के जापानी दुभाषिए नाकामुरा का बयान
नाकामुरा नेताजी के 1943 और 1944 के ताइपेई दौरे के दौरान उनके दुभाषिए थे. उन्होंने डॉक्टर योशिमी और बोस के बीच भी दुभाषिए की भूमिका निभायी थी. नाकामुरा 1956 में बनी शाह नवाज कमेटी के सामने पेश हुए थे. उन्होंने कमेटी को नेताजी के आखिरी समय के बारे में कई जानकारियां विस्तार से दीं.
नेताजी के आखिरी वक्त के बारे में नाकामुरा ने कमेटी को बताया, "उनके होठों पर दर्द या शिकायत का एक शब्द नहीं था... उनके इस आत्मसंयम से हम सब हैरान थे."
नाकामुरा ने बताया कि बोस की मौत के बाद कमरे में खड़े जापानी सैनिकों ने एक कतार में खड़ा होकर उनके पार्थिव शरीर को सैल्यूट किया.
क्या इन दस्तावेजों से नेताजी की मौत की गुत्थी सुलझ जाएगी?
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नेताजी की भतीजी कृष्णा बोस नेताजी की कार के साथ
वेबसाइट ने जो भी दस्तावेज जारी किए हैं वो पहले से ही पब्लिक डोमेन में हैं. खास बात ये है कि वेबसाइट ने सभी संबंधित दस्तावेजों को एक जगह व्यवस्थित ढंग से पेश किया है.
उनकी इस पहल से क्या नेताजी की मौत का रहस्य आखिरकार सुलझ गया है? इसपर वेबसाइट के संस्थापक आशीष कहते हैं, "हमारी वेबसाइट का उद्देश्य सभी दस्तावजों और सुभाष बोस के आखिरी समय से जुड़े तथ्यों को क्रमवार तरीके से पेश करना है. बाकी अंतिम निर्णय हमने दुनिया पर छोड़ दिया है."
इस साल होने वाले पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनावों से पहले राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पिछले साल सितंबर में नेताजी से जुड़ी 64 फाइलों को सार्वजनिक कर दिया.
ममता ने ये भी कहा था कि उन्हें नहीं लगता कि नेताजी अगस्त, 1945 में विमान दुर्घटना में मारे गए थे. उन्होंने ये भी कहा कि रूस सरकार के खुफिया दस्तावेजों से नेताजी के गायब होने का रहस्य सुलझ सकता है.
मौजूदा बीजेपी गठबंधन सरकार ने केंद्र के पास मौजूद नेताजी से जुड़ी खुफिया दस्तावेज सार्वजनिक करने का एलान किया है. ये प्रक्रिया नेताजी के जन्मदिन 23 जनवरी से शुरू होगी.
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