मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या की ख़बर देते हुए भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अवाम से कहा था, "हमारे जीवन से प्रकाश चला गया और अब हर जगह अंधेरा है." अंग्रेजी लेखक जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने महात्मा गांधी की हत्या पर टिप्पणी करते हुए कहा था, "इससे पता चलता है कि भला इंसान होना कितना जानलेवा हो सकता है."
मानव इतिहास की महानतम शख्सियतों में शुमार किए जाने वाले गांधी के हर आचार-विचार का लाखों के जीवन पर सीधा असर पड़ा. भारत और उसके बाहर, दुनिया के कई प्रमुख नेता उन्हें अपना राजनीतिक गुरु या प्रेरणास्रोत मानते रहे हैं. ऐसे अभूतपूर्व व्यक्तित्व के जीवन का हर साल, हर दिन या हर पल एक अहमियत रखता होगा. फिर भी हम अपनी सीमाओं को ध्यान में रखते हुए उनकी पुण्यतिथि पर उनके जीवन के 15 महत्वपूर्ण पड़ाव पेश करने की कोशिश कर रहे हैं.
1869
मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म दो अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबंदर राज्य के कठियावाड़ में हुआ था. उनके पिता करमचंद गांधी कठियावाड़ रियासत के दिवान के थे. उनकी शुरुआती पढ़ाई-लिखायी स्थानीय स्कूलों में हुई थी. 1887 में उन्होंने करीब 40 प्रतिशत अंकों के साथ मैट्रिक की परीक्षा पास की. शायद इसी वजह से तृतीय श्रेणी को व्यंजना में गांधी डिविजन भी कहा जाने लगा. इस बीच 1883 में मोहनदास की शादी उम्र में उनसे थोड़ी बड़ी कस्तूरबाई माखनजी कपाड़िया से हुई.
1888
उन्होंने 1888 में भावनगर के समलदास कॉलेज में उच्च शिक्षा के लिए प्रवेश लिया लेकिन स्वास्थ्य कारणों से वो पढ़ाई पूरी किए बगैर ही वो घर वापस आ गए थे. बाद में उनके परिवार ने उन्हें आगे के पढ़ाई के लिए लंदन भेजने का निर्णय लिया. 1888 ही में उनके पहले बेटे हरिलाल का जन्म हुआ.
अगस्त, 1888 में गांधी कानून की पढ़ाई के लिए लंदन गए. वो पोरबंदर बदंरगाह से बॉम्बे गए और वहां से लंदन. जून, 1891 में उन्हें बैरिस्टर की डिग्री मिली. उसी साल वो भारत वापस आ गए. वापस आने के बाद उन्होंने बॉम्बे में प्रैक्टिस करने की कोशिश की लेकिन उनकी वकालत ज्यादा चली नहीं. वो राजकोट वापस आ गए और वहीं काम करने लगे.
लंदन प्रवास के दौरान गांधी का पहली बार अंतरराष्ट्रीय समुदाय से परिचय हुआ. शाकाहार, हिंदू धर्म और सभी धर्मों के शिक्षाओं के बीच तुलनात्मक शिक्षाओं से जुड़े गांधी के विचारों पर ब्रिटेन प्रवास का गहरा असर पड़ा. इस दौरान ही वो थियोसफिकल सोसाइटी के संपर्क में भी आए. एनी बेसेंट समेत थियोसोफिकल सोसाइटी के कई नेताओं का उनके भावी जीवन में महत्वपूर्ण असर रहा.
1893
1893 में गांधी ने दक्षिण अफ्रीका स्थित दादा अब्दुल्ला एंड कंपनी के वकील के रूप में काम करने का अनुबंध कर लिया. मई, 1893 में उन्होंने 24 साल की उम्र में कंपनी के नटाल स्थित दफ्तर में नौकरी ज्वाइन कर ली. दक्षिण अफ्रीका पहुंचते ही गांधी के साथ ऐसी घटनाएं हुईं जिनसे उनके भावी जीवन की आधारशिला माना जाता है.
मई, 1893 में जब गांधी दक्षिण अफ्रीका की अदालत में गए तो मजिस्ट्रेट ने उन्हें पगड़ी उतारने के लिए कहा. गांधी यह कहकर कोर्ट से बाहर चले गए कि भारत में पगड़ी उतारने को असम्मान माना जाता है. स्थानीय अखबार में इस बाबत खबर भी छपी.
इसके बाद इसी साल जून में गांधी को ट्रेन यात्रा के दौरान पहले दर्जे में नहीं बैठने दिया गया. उनके पास पहले दर्जे का टिकट था लेकिन उन्हें तीसरे दर्जे में बैठने के लिए कहा गया. वहां भारतीयों के संग ऐसा बरताव आम बात थी. इस घटना ने गांधी का जीवन बदलकर रख दिया.
गांधी ने 1894 में नताल इंडियन कांग्रेस की स्थापना में प्रमुख भूमिका निभायी. उन्होंने इस संगठन के माध्यम से दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले भारतीयों के राजनीतिक और मानवाधिकारों की लड़ाई लड़नी शुरू की. इससे पहले भारत में 1885 में एओ ह्यूम इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना कर चुके थे. जिससे कई प्रमुख भारतीय जुड़े हुए थे.
1899 में उन्होंने बोअर युद्ध के दौरान इंडियन एम्बुलेंस कॉर्प की स्थापना की थी. 1903 में चार भाषाओं (गुजराती, तमिल, हिंदी और अंग्रेजी) में इंडियन ओपिनियन का प्रकाशन शुरू किया. 1904 में जॉन रस्किन के 'अनटू दिस लास्ट' पुस्तक से प्रभावित होकर फीनिक्स आश्रम की स्थापना की.
1906
1906 में गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में पहली बार सत्याग्रह का व्यावहारिक प्रयोग किया. इसी साल उन्होंने ब्रह्मचर्य का व्रत भी लिया. सितंबर, 1906 में जोहांसबर्ग के एम्पायर थिएटर में गांधी के नेतृत्व में करीब तीन हजार लोग एशियाटिक लॉ अमेंडमेंट आर्डिनेंस 1906 के विरोध के लिए एकत्रित हुए.
इस कानून के तहत ट्रांसवेल के आठ साल से अधिक उम्र के बच्चों समेत सभी एशियाई मूल के पुरुषों को फिंगरप्रिंट वाला एक प्रमाणपत्र रखने का प्रावधान था. गांधी और उनके साथियों ने इसका शांतिपूर्ण विरोध किया. विरोध के बावजूद ये कानून पारित हो गया लेकिन 'सत्याग्रह' की ऐतिहासिक नींव पड़ चुकी थी. कानून के बाद भी उन्होंने अपनी लड़ाई जारी रखी. लंबे संघर्ष के बाद 1913 में ब्रिटिश सरकार ने कानून में सुधार किया. इसी साल उन्होंने भारतीय मूल के लोगों पर तीन पाउंड का टैक्स लगाने के खिलाफ हड़ताल की.
1908 से 1914 के बीच किए गए सत्याग्रह आंदोलनों के कारण गांधी को दक्षिण अफ्रीका में चार बार जेल जाना पड़ा. वो कुल मिलाकर करीब सात महीने जेल में रहे. दक्षिण अफ्रीका में मिली सफलता से गांधी भारत में भी काफी लोकप्रिय हो चुके थे. 1909 में उन्होंने अपनी मशहूर किताब 'हिंद स्वराज' भी लिखी.
उनके दक्षिण अफ्रीका में रहने के दौरान ही गोपालकृष्ण गोखले और सीएफ एंड्रूज जैसे भारतीय नेताओं ने उन्हें भारत आने का निमंत्रण दिया.
1915
1915 में गांधी भारत वापस आए. बॉम्बे बंदरगाह पर उनके स्वागत के लिए गोखले समेत उस समय के कई बड़े भारतीय नेता मौजूद थे. गोखले को गांधी भारत में अपना राजनीतिक गुरु भी मानते थे. जो गांधी एक मामूली युवक के रूप में लंदन पढ़ने गए थे करीब ढाई दशक बाद अंतरराष्ट्रीय जगत में विख्यात भारतीय नेता को रूप में देश वापस आए.
1915 में वो शांति निकेतन और हरिद्वार कुंभ गए. इसी साल भारत में पहली बार अहमदाबाद में उन्होंने आश्रम की स्थापना की. 1916 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय जाकर भाषण दिया. इसी साल वो पहली बार लखनऊ कांग्रेस में जवाहरलाल नेहरू से मिले.
1917
बिहार के चंपारण के नील किसानों से जर्बदस्ती नील की खेती करायी जाती थी. किसानों की दुर्दशा को देखते हुए राजकुमार शुक्ल ने गांधी से किसानों की मदद का अनुरोध किया. गांधी के वहां पहुंचने से पहले ही अंग्रेज सरकार ने उनके चंपारण प्रवेश पर रोक लगा दी. गांधी ने सरकारी निषेध को स्वीकार नहीं किया. आखिरकार सरकार को अपना फैसला बदलना पड़ा.
उन्होंने चंपारण में रुककर उनकी लड़ाई लड़ने का फैसला किया. चंपारण में एक विरोध प्रदर्शन के बाद जब अदालत ने गांधी पर सरकारी आदेश के लिए जुर्माना लगाया तो गांधी ने जुर्माना देने से इनकार कर दिया था. गांधी के नेतृत्व में हुए आंदोलन के बाद अंग्रेज सरकार ने नील किसानों को राहत देने की मांग स्वीकार कर ली. चंपारण सत्याग्रह के रूप में मशहूर ये आंदोलन भारत में उनका पहला आंदोलन था.
1917 में गांधी ने साबरमती आश्रम की स्थापना भी की और इसी साल महादेव देसाई उनके सचिव बने. इसके बाद देसाई जीवनपर्यंत उनके सचिव रहे.
चंपारण के बाद 1918 में गांधी गुजरात के खेड़ा किसान आंदोलन के मार्गदर्शक बने. खेड़ा आंदोलन में सरदार वल्लभभाई पटेल उनके संपर्क में आए. पटेल खेड़ा आंदोलन का सक्रिय नेतृत्व कर रहे थे.
1919
1919 में ब्रिटिश सरकार ने रौलेट एक्ट पारित किया. इस कानून के तहत किसी भी विद्रोही नेता को बगैर किसी कानूनी कार्रवाई के गिरफ्तार किया जा सकता था. इसके तहत गिरफ्तार व्यक्ति किसी तरह की कानूनी सुनवाई की अपील भी नहीं कर सकता था. इस कानून को संक्षेप में उस समय दिए गए नारे 'न दलील, न वकील, न अपील' से समझा जा सकता है. गांधी ने विरोधस्वरूप पहली बार भारत में राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया.
1919 में पंजाब के जलियांवाला बाग में ब्रिटिश जनरल डायर ने निहत्थी जनता पर गोलियां चलवा दीं. सैकडो़ं भारतीय मारे गए. गांधी ने इस कुकृत्य के खिलाफ अहमदाबाद में तीन दिन का उपवास रखा.
1919 में ब्रिटेन ने तुर्की के ओटोमन खलीफा को युद्ध में हराकर उसे शर्मनाक समझौता करने पर मजबूर किया. भारत में मोहम्मद अली और शौकत अली बंधुओं के नेतृत्व में मुस्लिम नेताओं ने तुर्की के खलीफा के समर्थन में खिलाफत आंदोलन शुरू किया. गांधी ने खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया.
1919 में उन्होंने अंग्रेजी पत्रिका यंग इंडियन और गुजराती पत्रिका नवजीवन शुरू किया.
सितंबर, 1920 में गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन की घोषणा की.
1921
1921 में गांधी कांग्रेस के कार्यकारी अधिकारी चुने गए. उन्होंने कांग्रेस पार्टी का नया संविधान तैयार करवाया. संभ्रात लोगों की पार्टी समझी जाने वाली कांग्रेस में नाममात्र के शुल्क पर आम लोगों को सदस्य बनाने की शुरुआत की. स्वराज प्राप्ति को पार्टी का लक्ष्य बनाया.
स्वेदशी आंदोलन की शुरुआत करते हुए आजीवन खादी पहनने का व्रत लिया. स्वदेशी के समर्थन में बंबई में पहली बार विदेशी कपड़ों की होली जलायी गयी. सांप्रदायिक विद्वेष के खिलाफ बंबई में उन्होंने पांच दिन का उपवास रखा.
1922 में उत्तर प्रदेश के चौरीचौरा में हुई हिंसा के कारण गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया.
1928
1928 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गांधी ने ब्रिटिश सरकार से भारत को डोमिनियन स्टेटस देने की मांग की. मांग न माने जाने पर उन्होंने पूरी आजादी के लिए असहयोग आंदोलन करने की चेतावनी दी. ब्रिटिश सरकार ने उनकी मांग नहीं मानी. नतीजतन, 26 जनवरी, 1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू ने 'पूर्व स्वराज' को अपना लक्ष्य घोषित किया. 1929 में ही तिरंगे को भारतीय ध्वज के रूप में स्वीकार किया गया जो थोड़े बदलाव के साथ आजादी के बाद भारत का ध्वज बना.
1930
ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों के नमक बनाने पर पाबंदी लगा रखी थी. गांधी ने इस नमक कानून का विरोध किया. उन्होंने इस कानून के विरोध में गुजरात के साबरमती से अपने साथियों के साथ पदयात्रा शुरू की. 200 मील की पदयात्रा के बाद अरब सागर के दांडी तट पर अपने हाथों से नमक बनाकर उन्होंने इस कानून को तोड़ा. इस घटना ने पूरे देश में उत्साह की नई लहर पैदा कर दी.
1932
ब्रितानी प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड ने 1932 में कम्युनल अवार्ड की घोषणा की. इसके तहत भारत में अछूतों को हिंदुओं से पृथक निर्वाचन का अधिकार दिया गया था. गांधी पहले से ही इसके खिलाफ थे.
कम्युनल अवार्ड की घोषणा के समय गांधी पुणे की यरवदा जेल में थे. इस कानून के विरोध में उन्होंने जेल में ही अनशन शुरू कर दिया. गांधी का कहना था कि दलितों को पृथक निर्वाचन का अधिकार देने से हिंदू समाज विभाजित होगा. डॉक्टर बीआर आंबेडकर ने इस कानून का समर्थन किया था. लंबी बातचीत के बाद आंबेडकर अछूतों के लिए हिंदुओं से पृथक निर्वाचन की मांग से पीछे हट गए. भारतीय इतिहास में इस समझौते को पूना पैक्ट के नाम से जाना जाता है.
पूना पैक्ट हो जाने के बाद गांधी ने अपना अनशन समाप्त किया. इसी साल उन्होंने 'हरिजन सेवस संघ' की स्थापना की.
1932 में उन्होंने हरिजन (अंग्रेजी), हरिजन सेवक (हिंदी) और हरिजनबंधु (गुजराती) पत्रिकाओं की स्थापना की.
1942
भारत को पूरी आजादी दिलाने के लिए 'भारत छोड़ो आंदोलन' की शुरुआत. गांधी ने इस आंदोलन के लिए 'करो या मरो' का नारा दिया. ब्रितानी प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल गांधी की मांग के आगे झुकने को तैयार नहीं थे. गांधी और उनकी पत्नी कस्तूरबा को गिरफ्तार कर लिया गया. दोनों को दो साल की सजा हुई. दोनों को आगा खां पैलेस जेल में रखा गया.
1942 में उन्होंने जवाहरलाल नेहरू को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया. इसी साल उनके लंबे समय से सचिव रहे महादेव देसाई का निधन हो गया.
1944
1944 में गांधी को बहुत बड़ी निजी क्षति पहुंची. करीब 62 साल से उनकी जीवनसंगिनी रहीं कस्तूरबा की आगा खां पैलेस जेल ही में मृत्यु हो गई. पत्नी की मृत्यु के कुछ महीनों बाद गांधी को अंग्रेज सरकार ने बिना किसी शर्त जेल से रिहा कर दिया.
1946
ब्रिटिश वायसराय ने जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में 12 सदस्यों वाली अंतरिम सरकार का गठन किया. बाद में मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग भी अंतरिम सरकार का हिस्सा बनी.
बंगाल, पंजाब और बिहार समेत कई जगहों पर सांप्रदायिक दंगे शुरू हो गए. जब दिल्ली में भारत की विभाजन की शर्तें तय की जा रही थीं उस समय गांधी ने दंगा प्रभावित नाओखली जाने का निर्णय लिया. अगस्त, 1947 में जब भारत का विभाजन हुआ तो गांधी कलकत्ता में थे. उन्होंने कलकत्ता में ही सांप्रदायिक दंगे रोकने के लिए अनशन किया. उन्होंने दंगे रुकने के बाद ही अनशन तोड़ा.
दंगे रोकने में गांधी की भूमिका को देखते हुए तत्कालीन वायसराय माउंटबेटन ने गांधी 'वन मैन बाउंड्री फोर्स' कहा था क्योंकि दूसरे इलाकों में दंगे रोकने के लिए भारी संख्या में सेना तैनात करनी पड़ी थी.
1948
30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी रोज की तरह तड़के साढ़े तीन बजे उठे. उठकर सुबह की प्रार्थना की. कुछ काग़ज़ी काम किया. छह बजे वो दोबारा सो गए और फिर आठ बजे उठे. उसके बाद उनकी शाम की प्रार्थना से पहले तक सबकुछ रोजमर्रा जैसा ही रहा.
शाम चार बजे वो सरदार पटेल से मिले. उन्हें पांच बजे शाम की प्रार्थना में पहुंचना था. पटेल से बातचीत के कारण वो थोड़ी देर से आभा और मनु के साथ प्रार्थनास्थल के लिए निकले. प्रार्थना मंच पर पहुंचने से पहले ही हिंदू कट्टरपंथी नाथूराम गोडसे ने उनपर गोली चला दी. गोडसे ने 77 साल के महात्मा के सीने में एक के बाद एक, तीन गोलियां उतार दीं. गांधी वहीं अमर हो गए.
1948 में गांधी ने दो महत्वपूर्ण कार्य करने की योजनाएं बनायी थीं. वो आजादी के बाद एक बार फिर कांग्रेस पार्टी का पुनर्गठन करना चाहते थे. कुछ वैसे ही जैसे 1921 में उन्होंने कांग्रेस में बुनियादी बदलाव किए थे.
उन्होंने इसी साल फ्रंटियर गांधी ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान से पाकिस्तान आने का भी वादा किया था. वो भी बगैर वीज़ा के. लेकिन वो ये दोनों काम नहीं कर सके.
गांधी जीते जी जो कर सके उससे प्रभावित होकर एल्बर्ट आइंस्टाइन ने उनके बारे में कहा था, "आने वाली पीढ़ियों को इसपर यकीन करना मुश्किल होगा कि इस धरती पर हाड़-मांस का बना कोई ऐसा आदमी भी रहा होगा.