Monday, 28 September 2015

नेहरू या बोस, किससे प्रभावित थे भगत सिंह ? @अपूर्वानंद

सुभाष चंद्र बोसImage copyrightNetaji Research Bureau
सुभाष चन्द्र बोस पर फिर चर्चा शुरू हो गई है. पिछले सत्तर सालों में जाने कितनी बार बोस की वापसी के कयास लगाए गए हैं.
यह स्वीकार करना कि वे दुनिया में नहीं हैं, कुछ लोगों की निगाह में राष्ट्रद्रोह से कम नहीं. आख़िर इस देश में ऋषियों के हजारों वर्ष तक तपस्या करने का वर्णन महाभारत और रामायण जैसे ‘इतिहास-ग्रंथों’ में मिलता हैं या नहीं.
बोस भारत को अंग्रेजों से आज़ाद कराना चाहते थे, इसमें क्या शक.
उनके विचारों में समाजवादी रुझान भी देखा जा सकता है. लेकिन यह तथ्य है कि उन्होंने आख़िरकार हिटलर, मुसोलिनी और तोजो से परहेज़ नहीं रखा, बल्कि सक्रिय सहयोग लिया.

समाजवादी हिटलर

हिटलरImage copyrightGetty
यह भी न भूलें कि हिटलर भी एक प्रकार का समाजवादी ही था. इस तथ्य को बहुत से भारतीय अगर बहुत गंभीर नहीं मानते तो सिर्फ इसलिए कि फासीवाद की विभीषिका की उन्होंने सिर्फ कहानियाँ पढ़ी हैं.
क्यों यूरोप में स्वस्तिक का चिह्न धारण करना सभ्यता के ख़िलाफ़ माना जाता है, यह समझने के लिए क्या हर किसी को आश्वित्ज़ की यात्रा करनी ही चाहिए?
एक शख्स ऐसा था जिसने सुभाष चंद्र बोस के फासीवाद की ओर झुकाव का बहुत पहले अनुमान कर लिया था.
Image copyrightGetty
वह एक नौजवान था, कोई इक्कीस साल का. उसका नाम भगत सिंह था. वह न तो कांग्रेसी था और न कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य. उनकी क्रांतिकारिता में किसी को शक नहीं. उनका सुभाष चंद्र बोस के बारे में क्या ख्याल था?
1928 में भगत सिंह कोई 21 साल के जवान थे. ‘किरती’ नामक पत्र में उन्होंने ‘नए नेताओं के अलग-अलग विचार' नाम से एक लेख लिखा.
वे असहयोग आंदोलन की असफलता और हिन्दू-मुस्लिम झगड़ों की मायूसी के बीच उन आधुनिक विचारों की तलाश कर रहे थे जो नए आंदोलन के लिए नींव का काम करें.
वे इस लेख में दो नए उभरते नेताओं ‘बंगाल के पूजनीय श्री सुभाष चंद्र बोस और माननीय पंडित श्री जवाहरलाल नेहरू’ के विचारों की पड़ताल करते हैं.

‘भावुक बंगाली’

महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोसImage copyrightGANDHI FILM FOUNDATION
भगत सिंह के अनुसार सुभाष ‘भारत की प्राचीन संस्कृति के उपासक’ और नेहरू ‘पश्चिम के शिष्य’ माने जाते हैं. पहला ‘कोमल हृदयवाला भावुक’ और दूसरा ‘पक्का युगांतरकारी’ माना जाता है. लेकिन खुद भगत सिंह सुभाष और नेहरू के बारे में क्या राय रखते हैं?
भगत सिंह अमृतसर और महाराष्ट्र में कांग्रेस के सम्मेलनों के इनके भाषणों को पढ़कर कहते हैं कि हालाँकि दोनों पूर्ण स्वराज्य के समर्थक हैं लेकिन इनके विचारों में ‘ज़मीन आसमान का अंतर’ है.
बंबई की एक जनसभा का वे ख़ास जिक्र करते हैं जिसकी अध्यक्षता नेहरू कर रहे थे और भाषण सुभाष ने दिया.
उन दोनों के वक्तव्यों को पढ़कर वे सुभाष को एक ‘भावुक बंगाली’ कहते हैं. उन्होंने भाषण शुरु किया कि हिन्दुस्तान का दुनिया के नाम एक विशेष संदेश है. वह दुनिया को आध्यात्मिक शिक्षा देगा.
वे उनके भाषण को ‘दीवाने’ का प्रलाप ठहराते हुए टिप्पणी करते हैं, "यह भी वही छायावाद है. कोरी भावुकता है. वे हर बात में पुरातन युग की महानता देखते हैं. वे हर चीज़ को प्राचीन भारत में खोज निकालते हैं, पंचायती राज को भी और साम्यवाद को भी."

परिवर्तनकारी या युगांतरकारी?

सुभाष चंद्र बोस और जवाहर लाल नेहरूImage copyrightnetaji research bureau
भगत सिंह सुभाष के राष्ट्रवाद को भी अजीबोगरीब मानते हैं और उनके इस विचार से कतई सहमत नहीं कि हिंदुस्तानी राष्ट्रीयता कोई नायाब चीज़ है और बाक़ी राष्ट्रीयताएं भले ही संकीर्ण हों, भारतीय राष्ट्रवाद ऐसा हो नहीं सकता.
भगत सिंह सुभाष चन्द्र बोस के उलट नेहरू से अधिक प्रभावित जान पड़ते हैं.
वे कहते हैं कि सुभाष परिवर्तनकारी हैं जबकि नेहरू युगांतरकारी.
भगत सिंह का मानना था, "एक के विचार में हमारी पुरानी चीज़ें बहुत अच्छी हैं और दूसरे के विचार में उनके विरुद्ध विद्रोह कर दिया जाना चाहिए. एक ‘भावुक’ कहा जाएगा और दूसरा ‘युगांतरकारी और विद्रोही."
21 साल के क्रांतिकारी भगत सिंह की यह टिप्पणी और भी मानीखेज है, "सुभाष बाबू राष्ट्रीय राजनीति की ओर उतने समय तक ही ध्यान देना आवश्यक समझते हैं जितने समय तक दुनिया की राजनीति में हिन्दुस्तान की रक्षा और विकास का सवाल है. लेकिन पंडित नेहरू राष्ट्रीयता के संकीर्ण दायरों से निकलकर खुले मैदान में आ गए हैं."

विचारों का भटकाव

सुभाष चंद्र बोसImage copyrightnetaji research bureau
सुभाष और नेहरू में किसका चुनाव किया जाए?
भगत सिंह अपना निर्णय सुनाते हैं, "सुभाष आज शायद दिल को कुछ भोजन देने के अलावा कोई दूसरी मानसिक खुराक नहीं दे रहे हैं....इस समय पंजाब को मानसिक भोजन की सख्त ज़रूरत है और यह पंडित जवाहरलाल नेहरू से ही मिल सकता है."
भगत सिंह उनके अंधे पैरोकार बन जाने के ख़िलाफ़ हैं. लेकिन जहाँ तक विचारों का संबंध है, वहां वे उनके साथ लग जाने की सलाह देते हैं ताकि नौजवान इंकलाब के वास्तविक अर्थ, हिन्दुस्तान के इंकलाब की आवश्यकता, दुनिया में इंकलाब के स्थान, आदि के बारे में जान सकें.
नेहरू इसमें नौजवानों की मदद करेंगे कि वे "सोच-विचार कर अपने विचारों को स्थिर करें ताकि निराशा, मायूसी और पराजय के समय में भी भटकाव के शिकार न हों और अकेले खड़े होकर दुनिया से मुकाबले में डटे रह सकें."

भावुकतावादी राष्ट्रवाद

सुभाष चंद्र बोसImage copyrightAFP
अपने इस लेख को लिखने के कोई तीन साल बाद भगत सिंह ने फाँसी के फंदे को गले लगाया.
कोई तेरह साल बाद सुभाष का भावुक और संकीर्ण राष्ट्रवाद उन्हें हिटलर तक ले गया. बीसवीं सदी में मानवता के सबसे बड़े अपराधियों में से एक के साथ हाथ मिलाने सुभाष को दुविधा न हुई.
भगत सिंह जीवित रहते तो कहते कि मैंने बरसों पहले नौजवानों को सावधान कर दिया था.
भगत सिंह की यह चेतावनी कि नौजवान सुभाष चंद्र बोस के संकरे भावुकतावादी राष्ट्रवाद के विचारों से सावधान रहे, क्या 100 पहले के जवानों के लिए थी, आज के जवानों के लिए नहीं?

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