24 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित सियाचिन ग्लेशियर आखिर क्यों है भारत के लिए खास? आखिर क्या वजह है कि बेहद खतरनाक हालात में हमारे सैनिक वहां लगातार डटे रहते हैं? क्यों है सियाचीन हमारे लिए खास? सबसे पहले जानिए सियाचिन की रोंगटे खड़े कर देने वाली कहानी!
आपके घर से 18 हजार फुट से भी ज्यादा ऊंचाई पर है बर्फ की एक बेजान दुनिया…ये है वो इलाका जहां की जमीन के साथ आसमान भी जिंदगी का दुश्मन है लेकिन बर्फ की इस बंजर दुनिया में इंसानी कदमों की आहट गूंजती है…ये कोई आम इंसान नहीं, बल्कि वो जांबाज फौजी हैं…जो भारत-पाकिस्तान के बीच एक ऐसी सरहद की निगहबानी में डटे हैं…जिसका वजूद किसी भी नक्शे में नहीं है…इस बेरहम दुनिया में 28 साल से भारत और पाकिस्तान की सेनाएं एक-दूसरे की ओर संगीनें ताने तैनात हैं…ये है दुनिया का सबसे ऊंचा और सबसे ठंडा जंग का मैदान….सियाचिन!
कश्मीर से लगते काराकोरम रेंज के पूर्वी हिस्से में मौजूद है यहां के पांच सबसे बड़े ग्लेशियर्स में से एक…सियाचिन ग्लेशियर…समुद्र तल से 16 हजार से 20 हजार फुट की ऊंचाई पर मौजूद ये ग्लेशियर भारत और पाकिस्तान के बीच 28 साल से जंग का मैदान बना हुआ है….हालांकि यहां 2003 से युद्धविराम लागू है, लेकिन भारत और पाकिस्तान की सेनाएं हर पल अपने-अपने मोर्चों पर तैनात हैं.
यहां दोनों तरफ के जितने सैनिक आपसी गोलीबारी में नहीं मारे गए, उससे कहीं ज्यादा फौजियों ने यहां की ठंड और विपरीत मौसम का सामना करते हुए दम तोड़ा है…लगभग 70 किलोमीटर विस्तार वाले इस बेरहम बर्फीले इलाके ने भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों के करीब 2500 सैनिकों की जानें ली हैं…शून्य से भी 50 डिग्री नीचे के तापमान वाले इस बेजान इलाके पर अपना कब्जा बरकरार रखने के लिए भारत और पाकिस्तान दोनों ही देश अब तक 500 अरब रुपये से ज्यादा की रकम खर्च कर चुके हैं. केवल भारत की ही बात करें तो एक अनुमान के मुताबिक सियाचिन मोर्चे पर भारी सैनिक तैनाती बनाए रखने के लिए हमें हर दिन 10 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं.
कश्मीर से आगे एक देश में एक और खूबसूरत जहां है जिसे दुनिया लद्दाख के नाम से जानती है. वो लद्दाख जहां की खूबसूरती बॉलीवुड की कई फिल्मों में आपने देखी होगी. लद्दाख से ही कुछ किलोमीटर आगे से शुरू होता है सियाचिन का इलाका. बर्फ से लिपटा ये इलाका आपको बेहद खूबसूरत लगेगा लेकिन इस इलाके में जिंदगी काफी मुश्किल और खतरों से भरी है.
सियाचिन की भौगोलिक बनावट ऐसी है कि इसके एक तरफ पाकिस्तान की सीमा है तो दूसरी तरफ चीन की सीमा अक्साई चीन इस इलाके को छूती है.
दुनिया का सबसे ऊंचा बैटलफील्ड यानी रणक्षेत्र माना जाने वाला सियाचिन से हमें आखिर क्या हासिल हो रहा है? ये बताने से पहले आपको ले चलते हैं आज से बत्तीस साल पहले. 1984 की बात है तब बर्फ की सफेद चादर से लिपटा बेहद खूबसूरत दिखने वाला ये इलाका वीरान पड़ा था. लेकिन पाकिस्तान की नजर 33 हजार वर्गकिलोमीटर में फैले इस इलाके पर थी. भारत सरकार की आंख तब खुली जब पाकिस्तान ने सियाचिन पर कब्जे की तैयारी शुरू की. पाकिस्तान ने यूरोप में बर्फीले क्षेत्र में पहने जाने वाले खास तरह के कपड़ों और हथियारों का बड़ा ऑर्डर दिया था. सेना इस सूचना से चौकन्ना हो गई और सियाचिन की तरफ कूच कर दिया. और इस तरह लॉन्च हुआ ऑपरेशन मेघदूत.
13 अप्रैल 1984 को भारतीय सेना ने ऑपरेशन मेघदूत लॉन्च किया. खास बात ये थी कि बर्फ में पहने जाने वाले कपड़े और साजो सामान सेना के पास 12 अप्रैल की रात को ही पहुंचे थे.
ऑपरेशन मेघदूत के तहत भारतीय सैनिकों को पाकिस्तानी सेना से पहले ना केवल सियाचिन की ऊंची पहाड़ियों पर पहुंचना था बल्कि इस दुर्गम इलाके में पड़ने वाले तीनों पास यानि दर्रों–सेला पास, बेलाफोंडला और ग्योंगला पास पर भी अपना कब्जा जमाना था.
मेजर बहुगुणा को सेला दर्रे का इंचार्ज बनाया गया. जबकि कैप्टन संजय कुलकर्णी को बेलाफोंडला दर्रे की कमान दी गई. लेफ्टिनेंट कमांडर पुष्कर चांद के नेतृत्व में में चले ऑपरेशन मेघदूत की सभी सैन्य टुकड़ियों को पहले समोमा दर्रे पर कब्जा करना था फिर बेस कैंप के आगे जाकर अपने अपने दर्रों को कब्जा में लेने को कहा गया था.
13 अप्रैल की सुबह साढ़े पांच बजे संजय कुलकर्णी और एक सिपाही को लेकर चीता हेलिकॉप्टर बेस कैंप में उतरा था. यहां अभी तो सड़क बन चुकी है लेकिन उस वक्त यहां उतरना भी आसान नहीं था.
बेलाफोंडला दर्रे पर संजय कुलकर्णी ने कब्जा किया और देश की शान तिरंगा लहराकर भारत की जीत की खबर दुनिया दो की.
सियाचिन की भौगोलिक बनावट ऐसी है कि भारत की तरफ से सियाचिन की खड़ी चढ़ाई है और इसीलिए ऑपरेशन मेघदूत को काफी मुश्किल माना गया था. जबकि पाकिस्तान की तरफ से ये ऊंचाई काफी कम है. उसके बावजूद भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी सैनिकों को मात दी. इसीलिए दुनियाभर की जो सफल लड़ाइयां हुई हैं उनमें ऑपरेशन मेघदूत का नाम भी आता है. ये अपनी तरह का एक अलग ही युद्ध था जिसमें भारतीय सैनिकों ने माइनस 60 से माइनस 70 डिग्री के तापमान में सबसे ऊंची पहाडियों पर जाकर फतह हासिल की थी. पाकिस्तान के लिए ये हार काफी शर्मनाक थी.
ये ऑपरेशन 1984 से 2002 तक चला था यानि पूरे 18 साल तक. भारत और पाकिस्तान की सेनाएं सियाचिन के लिए एक दूसरे के सामने डटी रहीं. जीत भारत की हुई. इस अभियान में भारत के करीब 1000 हजार जवान शहीद हो गए थे. हर रोज सरकार सियाचीन की हिफाजत पर करोड़ो रुपये खर्च करती है. बावजूद उसके… आखिर क्यों सियाचिन भारत के लिए अहम है.
सियाचिन के एक तरफ पाकिस्तान तो दूसरी तरफ चीन की सीमा होने की वजह से भारत के लिए सियाचीन सामरिक नजरिए से बेहद अहम है. अगर पाकिस्तानी सेना ने सियाचिन पर कब्जा कर लिया होता तो पाकिस्तान और चीन की सीमा मिल जाती तो चीन और पाकिस्तान का ये गठजोड़ भारत के लिए कभी भी घातक साबित हो सकता था. सबसे अहम ये कि इतनी ऊंचाई से दोनों देशों की गतिविधियों पर नजर रखना भी आसान है.
साल 2003 में पाकिस्तान ने भारत से युद्धविराम संधि की जिसके बाद से ही दोनों देशों की सेनाओं के बीच अब इस इलाके में फायरिंग और गोलाबारी बंद है.
दुनिया के सबसे ऊंचे रणक्षेत्र, सियाचिन ग्लेशियर की लंबाई करीब 70 किलोमीटर है. 12 महीने ये बर्फ की चादर से ढका रहता है. इस ग्लेशियर के एक तरफ है भारत का कट्टर दुश्मन पाकिस्तान जिससे भारत के एक दो नहीं चार-चार युद्ध हो चुके हैं तो दूसरी तरफ है चीन जिसके साथ 1962 में भारत युद्ध लड़ चुका है. और इन विपरीत परिस्थितियों में भारत के हिम-योद्धा यहां अपनी सीमाओं की सुरक्षा करते हैं.
सियाचिन पर भारत का मोर्चा
सियाचिन पर भारतीय सेना की रणनीतिक स्थिति काफी मजबूत है . सियाचिन ग्लेशियर के साथ इसके उत्तर में मौजूद सलतोरो पहाड़ियां भी हमारे कब्जे में हैं. जबकि पाकिस्तानी फौज हमारे मोर्चों से निचले इलाकों पर है. सियाचिन पर कब्जा जमाए रखने के लिए भारत की एक ब्रिगेड यानि करीब 3000 सैनिक तैनात है. उन्हें रसद और सैनिक साजोसामान की नियमित सप्लाई के लिए वायुसेना के चेतक, चीता, एमआई-8 और एमआई-17 हेलिकॉप्टर लगातार उड़ान भरते रहते हैं.
सियाचिन पर भारत का मोर्चा
सियाचिन पर भारतीय सेना की रणनीतिक स्थिति काफी मजबूत है . सियाचिन ग्लेशियर के साथ इसके उत्तर में मौजूद सलतोरो पहाड़ियां भी हमारे कब्जे में हैं. जबकि पाकिस्तानी फौज हमारे मोर्चों से निचले इलाकों पर है. सियाचिन पर कब्जा जमाए रखने के लिए भारत की एक ब्रिगेड यानि करीब 3000 सैनिक तैनात है. उन्हें रसद और सैनिक साजोसामान की नियमित सप्लाई के लिए वायुसेना के चेतक, चीता, एमआई-8 और एमआई-17 हेलिकॉप्टर लगातार उड़ान भरते रहते हैं.
सियाचिन विवाद क्या है?
1972 के शिमला समझौते के वक्त सियाचिन को बेजान और इंसानों के लायक नहीं समझा गया…लिहाजा समझौते के दस्तावेजों में सियाचिन में भारत-पाक के बीच सरहद कहां होगी, इसका जिक्र नहीं किया गया. लेकिन अस्सी के दशक की शुरुआत में जिया उल हक के फौजी शासन के दौरान पाकिस्तान ने सियाचिन का रणनीतिक व सामरिक महत्व समझा और इस पर कब्जा जमाने के लिए देश-विदेश के पर्वतारोही दलों को भेजना शुरू कर दिया.
1972 के शिमला समझौते के वक्त सियाचिन को बेजान और इंसानों के लायक नहीं समझा गया…लिहाजा समझौते के दस्तावेजों में सियाचिन में भारत-पाक के बीच सरहद कहां होगी, इसका जिक्र नहीं किया गया. लेकिन अस्सी के दशक की शुरुआत में जिया उल हक के फौजी शासन के दौरान पाकिस्तान ने सियाचिन का रणनीतिक व सामरिक महत्व समझा और इस पर कब्जा जमाने के लिए देश-विदेश के पर्वतारोही दलों को भेजना शुरू कर दिया.
पाकिस्तान के मंसूबे भांपते हुए भारत ने सख्त कार्रवाई की और 1984 में ऑपरेशन मेघदूत के तहत फौज भेजकर सियाचिन की चोटियों पर मोर्चाबंदी कर ली. तब से लेकर 2003 तक यहां कब्जा बनाए रखने के लिए पाकिस्तान गोलाबारी करता रहा है, जिसका हरबार उसे कड़ा जवाब मिला है. पाकिस्तान का कहना है कि सियाचिन में ऑपरेशन मेघदूत से भारतीय सेना ने 1972 के शिमला समझौते और उससे पहले 1949 में हुए करांची समझौते का उल्लंघन किया है. पाकिस्तान चाहता है कि भारतीय सेना सियाचिन और सलतोरो की चोटियों से हट जाए, लेकिन करगिल से सबक लेने के बाद भारत अब चोटियों से नीचे नहीं आना चाहता, क्योंकि डर है कि हमारे हटते ही पाकिस्तानी फौजें यहां कब्जा जमा सकती हैं.
2003 से सियाचिन में गोलाबारी बंद है, लेकिन अपने-अपने मोर्चों पर डटे भारत और पाकिस्तान के सैनिक…इंसानी जान के सबसे बड़े दुश्मन बेरहम मौसम से मुकाबला कर रहे हैं.
विवाद के हल की कूटनीतिक कोशिशें
भारत और पाकिस्तान के बीच सियाचिन विवाद का समाधान कूटनीतिक स्तर पर तलाशने की कोशिशें 1985 में शुरु हुईं. तब से लेकर अब तक दोनों देशों के बीच रुक-रुक कर 12 दौर की वार्ताएं हो चुकी हैं. जिनका फिलहाल कोई हल नहीं निकला है. चीन के कराकोरम हाइवे के करीब मौजूद सियाचिन के रणनीतिक महत्व के चलते भारत ये इलाका तब तक छोड़ने को तैयार नहीं है, जब तक कि पाकिस्तान इस इलाके पर भारत का अधिकार लिखित तौर पर नहीं मान लेता. और जाहिर है पाकिस्तान ऐसा नहीं चाहता.
भारत और पाकिस्तान के बीच सियाचिन विवाद का समाधान कूटनीतिक स्तर पर तलाशने की कोशिशें 1985 में शुरु हुईं. तब से लेकर अब तक दोनों देशों के बीच रुक-रुक कर 12 दौर की वार्ताएं हो चुकी हैं. जिनका फिलहाल कोई हल नहीं निकला है. चीन के कराकोरम हाइवे के करीब मौजूद सियाचिन के रणनीतिक महत्व के चलते भारत ये इलाका तब तक छोड़ने को तैयार नहीं है, जब तक कि पाकिस्तान इस इलाके पर भारत का अधिकार लिखित तौर पर नहीं मान लेता. और जाहिर है पाकिस्तान ऐसा नहीं चाहता.
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