पर अमरीकी अधिकारियों को रजनीश के शिष्यों की बढ़ती तादाद ने चौंका दिया.
डेन डेरो कहते हैं, “रजनीश के चेलों की संख्या बस बढ़ती ही गई, यह तो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी. हम चाहते थे कि कम्यून में ठहरने वालों की संख्या पर कहीं एक लगाम लगे.”
दरअसल रजनीश के शिष्य कहीं दूर की सोच रहे थे. एन कहती हैं, “हमने वहां खेती तो की ही, झील बना दिए, शॉपिंग मॉल खोल दिए, ग्रीन हाउस और हवाई अड्डे बना दिए, एक बड़ा और आत्मनिर्भर शहर बसा दिया. हमने उस रेगिस्तान को बदल कर रख दिया.”
उनके चेलों ने 1982 में रजनीशपुरम नामक शहर का पंजीकरण कराना चाहा. स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया.
गैरेट यहां प्रेम और शांति के लिए आई थीं, पर उन्हें लगने लगा कि कम्यून दुश्मनों से घिर चुका है. वो कहती हैं, “प्रेम, शांति और सद्भाव से हमारा रहना मानो राज्य को पसंद नहीं था.”
स्थानीय लोगों ने कम्यून पर मुक़दमा कर दिया. दो साल बाद वहां स्थानीय चुनाव हुए.
पर कम्यून के पास उतने मतदाता नहीं थे कि वे चुनाव के नतीजों पर असर डालते.
ज़हरीले बैक्टीरिया
अमरीका के दूसरे राज्यों और शहरों से हज़ारों लोगों को लाकर रजनीशपुरम में बसाया गया.
ऐन कहती हैं, “हमने बाहरी लोगों को रोज़गार, भोजन, घर और एक बेहतरीन भविष्य की संभावनाएं दीं. हमने उन लोगों से कहा कि वे हमारी पसंद के लोगों को वोट दें. पहली बार मुझे लगा कि हम लोग ठीक नहीं कर रहे हैं.”
बाद की जांच से पता चला कि रजनीश के शिष्यों ने ज़हरीले सालमोनेला बैक्टीरिया पर तरह तरह के प्रयोग करने शुरू कर दिए.
अमरीकी अधिकारी कहते हैं, “पहले तो रजनीश के शिष्यों ने कई जगहों पर सालमोनेला का छिड़काव कर दिया, कुछ ख़ास असर नहीं देखे जाने पर उन्होंने दूसरी बार यही काम किया."
"इसके बाद उन्होंने सलाद के पत्तों पर इस बैक्टीरिया का छिड़काव कर दिया. जल्द ही लोग बीमार पड़ने लगे. डारयरिया, उल्टी और कमज़ोरी की शिकायत लेकर लोग अस्पताल पंहुचने लगे.”
कुल मिला कर 751 लोग बीमार हो कर अस्पतालों में दाख़िल कराए गए.
रजनीश के चेलों को लगने लगा कि सारे लोग उनके ख़िलाफ़ हैं. आश्रम के अंदर ऐन जैसे लोगों पर शक किया जाने लगा. ऐन को कम्यून से निकाल दिया गया.
जांच के आदेश
सितंबर 1985 में सैकड़ों लोग कम्यून छोड़ कर यूरोप चले गए. कुछ दिनों के बाद रजनीश ने लोगों को संबोधित किया.
उन्होंने अपने शिष्यों पर टेलीफ़ोन टैप करने, आगज़नी और सामूहिक तौर पर लोगों को ज़हर देने के आरोप लगाते हुए ख़ुद को निर्दोष बताया.
उन्होंने कहा कि इन बातों की उन्हें कोई जानकारी नहीं थी.
सरकार ने रजनीश के कम्यून की जांच के आदेश दे दिए. जांच में कम्यून के अंदर सालमोनेला बैक्टीरिया पैदा करने वाला प्रयोगशाला और टेलीफ़ोन टैप करने के उपकरण पाए गए.
रजनीश के शिष्यों पर मुक़दमा चला. उनके चेलों ने ‘प्ली बारगेन’ के तहत कुछ दोष स्वीकार कर लिए. उनके तीन शिष्यों को जेल की सज़ा हुई.
रजनीश पर नियम तोड़ने के आरोप लगे और उन्हें भारत भेज दिया गया, जहां 1990 में उनकी मौत हो गई.
रजनीश की शिष्या ऐन काफ़ी निराश हुईं. उन्होंने अपने आपको इन सारी चीज़ों से अलग कर लिया.
बाद में उन्होंने अपने अनुभव के आधार पर एक किताब लिखी.
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